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India-China Border: PP-15 से सैनिकों की वापसी का भविष्य के लिए क्या मतलब है?

2020 में खूनी गलवान घाटी संघर्ष के बाद से शांति वार्ता विफल हो गई थी

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8 सितंबर को भारत और चीन (India-China) ने पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स में पेट्रोलिंग प्वाइंट-15 (पीपी-15) से अपनी सेना को हटाने की घोषणा की है. 2020 में गलवान घाटी और 2021 में पैंगोंग त्सो में डिसएंगेजमेंट (सेना को पीछे हटाना) के बाद अप्रैल-मई 2020 तक यथास्थिति को फिर से स्थापित करने की दिशा में यह एक और कदम है.

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने उस व‌र्ष (2020) मई की शुरुआत में पांच क्षेत्रों की पोजिशनों पर कब्जा कर लिया था, जिससे भारतीय सैनिकों को क्लेम लाइन तक पेट्रोलिंग (गश्त) करने से रोक दिया गया. इस विवाद की वजह से एक प्रमुख खूनी और हिंसक संघर्ष देखने को मिला, गलवान में चीन और भारत के सैनिकों की भिड़ंत हुई, जिसके परिणामस्वरूप 20 भारतीय और 4 चीनी सैनिकों (आधिकारिक तौर पर) की जिंदगी कुर्बान हो गई. इस घटना के बाद से भारत-चीन संबंधों पर काफी गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

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चीन द्वारा अतीत में बड़े पैमाने पर किए गए सैन्य उल्लंघन

इसके अलावा, चीनियों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास करीब 50,000 सैनिकों को इकट्ठा किया. चीन के इस कदम ने 1996 में मिलिट्री फील्ड (मिलिट्री कॉन्फिडेंस-बिल्डिंग मेजर्स CBMs) के अहम समझौते के अनुच्छेद IV का उल्लंघन किया. इस अनुच्छेद के अनुसार आमना-सामना होने की स्थिति में फायर आर्म्स यानी रायफल, रिवॉल्वर जैसे हथियारों का प्रयोग वर्जित था. इसमें यह भी कहा गया है कि एलएसी के पास एक से अधिक डिवीजन (लगभग 15,000 सैनिक) को शामिल करते हुए बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास करने से दोनों पक्षों को बचना चाहिए.

इसमें इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि अगर दाेनों में से किसी भी एक तरफ 5000 से अधिक सैनिकों की एक ब्रिगेड का अभ्यास होता है, इस बात की सूचना पहले से ही देनी होगी कि यह किस प्रकार का अभ्यास है और कितनी अवधि तक चलने वाला है.

हालांकि, अब तक चीनी सेना की तैनाती अपरिवर्तित बनी हुई है इसके साथ ही भारत ने इसके जवाब में तैनाती की हुई है.

वास्तविक दुनिया में समय को मोड़ा नहीं जा सकता है. भारत भले ही चीन को दो बचे हुए क्षेत्रों, देपसांग और चार्जिंग नाला में अपनी गतिविधियों को रोकने के लिए मनाने में सफल हो जाए, लेकिन फिर भी चीजें नहीं बदलेंगी.

टकराव वाले बाकी सभी क्षेत्र आकार में छोटे हैं, देपसांग बड़ा एरिया है. इसकी वहज से भारतीय बलों को 1,000 वर्ग किलोमीटर में पेट्रोलिंग करने से रोक दिया गया है. देपसांग को "विरासत का मुद्दा" बताते हुए कुछ समय पहले तक सरकार ने इसे स्वीकार भी नहीं किया था.

गलवान हिंसा से भारत के लिए सीख

यह देखते हुए कि संपूर्ण एलएसी विवादित है, ऐसे में वहां शांति बनाए रखने में कॉन्फिडेंस-बिल्डिंग मेजर्स यानी सीबीएम साथ-साथ विश्वास एक प्रमुख फैक्टर था. लेकिन चीनी कार्रवाई के बाद दोनों हवा में उड़ गए हैं, इसलिए सामान्य स्थिति बहाल करना आसान नहीं होगा.

यहां तक कि गालवान, पैंगोंग त्सो, कैलाश रेंज और पीपी15 में दोनों ओर से अपने बलों वापस पीछे करने की प्रक्रिया भी वास्तव में यथास्थिति की बहाली नहीं है. सुरक्षा बलों को हटा लिया गया है और प्रत्येक स्थान पर एक नो-पेट्रोलिंग जोन बना दिया गया है.

PP15 कहां पर स्थित है, इस बात को लेकर अनिश्चितता है. यह LAC से लगे हुए जियान पास (Jianan Pass, 34°32'24.7"N 78°38'10.7"E) के नजदीक है. जो कुग्रांग और गलवान नदी घाटियों के बीच वाटरशेड पर स्थित है. हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा दक्षिण-पूर्व में 40 किलोमीटर की दूरी पर कहीं स्थित हैं.

इस क्षेत्र में एलएसी कहां है, इस बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए, क्योंकि चीन ने 1960 की वार्ता में इस रेखा का विस्तृत विवरण हमें प्रदान किया था और यह कहा था कि इस क्षेत्र में यह (एलएसी) कुग्रांग त्सानपो नदी और उसकी सहायक नदी, चांग्लुंग के बीच बने वाटरशेड का अनुसरण करती है.

भारत अपने बयान में इस क्षेत्र को गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स के तौर पर संदर्भित करता है, जबकि चीन का आधिकारिक बयान अधिक सटीक है. चीन की ओर से कहा गया है कि डिसएंगेजमेंट यानी सेना हटाने का काम "जियान डाबन" क्षेत्र में होगा. यह एक अत्यंत दूरस्थ क्षेत्र है. हालांकि सैटेलाइट इमेजनरी सिस्टम से देखने पर पता लगा है कि यहां 20 किमी लंबी एक सड़क है जो पास की एक धारा के साथ चलती हुए अंतत: कुगरंग तक पहुंचती है. यह सड़क स्पष्ट तौर पर भारतीय क्षेत्र से होकर गुजरती है, लेकिन इसकी स्थिति के आधार पर ऐसा लगता है कि इस सड़क का उपयोग पहले भी चीनी वाहनों द्वारा किया जाता रहा है. चीनी यहां पर इस वजह से मजबूत सुरक्षा बनाए हुए हैं क्योंकि यह गलवान नदी का एक वैकल्पिक मार्ग है.

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क्या सैनिकों की इस वापसी से भारत-चीन के बीच मनमुटाव कम होगा?

भारतीय जिस तरह से इसे देख रहे हैं वह यह है कि आमने-सामने के टकराव में शामिल सैनिकों की वापसी के बाद दोनों पक्ष अपनी सेनाओं के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं, जो पिछले 28 महीनों से एलएसी के दोनों ओर बड़े पैमाने पर जमा हैं. हालांकि चीन का जो दृष्टिकोण है उससे यह प्रतीत होता है कि भारत अनावश्यक तौर पर स्थिति को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत कर रहा है. उन्हें लगता है कि दोनों पक्षों को सीमा से जुड़े मुद्दों को अन्य क्षेत्रों में जो संबंध हैं उससे अलग रखना चाहिए. लेकिन भारत दृढ़ रहा है. विदेश मंत्री जयशंकर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जब तक कि 2020 की स्थिति को वापस नहीं लाया जाता है, तब तक कोई सामान्यीकरण नहीं हो सकता है.

लेकिन अगर ऐसा होता भी है, तब भी समस्याएं खत्म नहीं होंगी. बॉर्डर पर विवाद और सैनिक बने रहेंगे. भरोसा कुछ अमूर्त नहीं था, बल्कि इसे 1993 के बॉर्डर पीस एंड ट्रैंक्विलिटी एग्रीमेंट से शुरू होने वाले कई कॉन्फिडेंड-बिल्डिंग एग्रीमेंट्स के माध्यम से सावधानीपूर्वक बनाया गया था जो 2020 की घटनाओं तक कायम रहा. इसे फिर से बहाल करना आसान नहीं होगा.

और इसके बाद जब तक हम पिछले सीबीएम के विनाश के पीछे की परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं हो जाते, तब तक हम नए कॉन्फिडेंस-बिल्डिंग मेजर्स के बारे में बात नहीं कर सकते हैं. अभी जो समझौता वार्ता चल रही है वह एलएसी के विवादित हिस्सों में नो-पेट्रोल जोन स्थापित करने की एक नई अवधारणा को आकार देती दिख रही है. यह कोई खराब आइडिया नहीं है, सिवाय इसके कि पूर्वी लद्दाख में, पैंगोंग त्सो में, गलवान और गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स में, नो पेट्रोलिंग जोन की कीमत अक्सर भारत को चुकानी पड़ती है. आप इस बात के लिए निश्चित हो सकते हैं कि PP15 पर सेना की वापसी की कीमत भारत को ही चुकानी होगी.

क्या एलएसी में जो कुछ बुरा होना था वह हो चुका है? ऐसा लगता नहीं है. पूरा बॉर्डर विवादित है. भारत में बहुत से लोग यह सोचते हैं कि मोटे तौर पर स्थिति स्थिर है और ऐसी ही बनी रहेगी, लेकिन चीनियों में गोलपोस्ट शिफ्ट करने की एक खराब आदत है. याद रखें, चीनी अब अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत के नाम से पुकारते हैं. 2017 के बाद से उन्होंने तिब्बत में बड़े पैमाने पर निर्माण शुरू कर दिया है. उन्होंने सैनिकों के लिए बिलेट, नए हेलीपोर्ट्स, हवाई अड्डों में मजबूत सुविधाओं आदि का निर्माण किया है.

भारत ने भी अपनी सेना को उत्तर की ओर उन्मुख किया है और सुविधाओं का निर्माण कर रहा है. इसलिए युद्ध का खतरा है और जब तक सीमा विवाद सुलझ नहीं जाता, तब तक यह खतरा बना रहेगा.

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के ख्यात फेलो हैं. लेख में व्यक्ति गए विचार लेखक के हैं और इनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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