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Diwali पर बाजार गुलजार, लेकिन प्रकाशकों के लिए छाया है अंधकार

कोई भी देश तभी आगे बढ़ता है जब वहां के नागरिक किताबों से दोस्ती करें.

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भारत में चल रहे त्योहारों के इस सीजन में ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइटों पर खूब बिक्री हुई है. शॉपिंग वेबसाइटों द्वारा इस सीजन में ऑनलाइन फेस्टिव सेल आयोजित की गई. जिनमें, सबसे अधिक बिक्री मोबाइल फोन की हुई है. स्ट्रैटिजी कंसल्टेंसी फर्म रेडसीर के अनुसार त्योहारी सीजन की पहली ऑनलाइन सेल के दौरान प्रति घंटे 56,000 मोबाइल फोन बेचे गए. मोबाइल फोन में डूबे भारत में किताबों की बिक्री बहुत पीछे छूट गई है. कोई भी देश तभी आगे बढ़ता है जब वहां के नागरिक किताबों से दोस्ती करें. 

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हिंदी के लोकप्रिय लेखक अशोक पांडे की 'तारीख में औरत', 'अरविंग स्टोन विन्सेन्ट' किताबें प्रकाशित करने वाले सम्भावना प्रकाशन के अभिषेक अग्रवाल ने प्रकाशन जगत की दयनीय स्थिति को हमारे सामने रखा. अपनी फेसबुक पोस्ट में वह लिखते हैं.

यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी घटना है 
संभावना प्रकाशन एक साथ ग्यारह नयी किताबें आपके सामने ला रहा है किताबों का विवरण निम्न है
 

Summary
  1. अंधेरे में पिता की आवाज : सतीश नूतन (कविता संचयन) मूल्य : 400

  2. भारत की घड़ी : प्रियदर्शन (समय समीक्षा) मूल्य : 350

  3. एक सफर मुकम्मल : दिवाकर मुक्तिबोध (आत्म वृत्तान्त) मूल्य : 350

  4. जीवन जैसे पहाड़ : देवेन्द्र मेवाड़ी (आत्मकथा) मूल्य :  300

  5. दमनचक्र : सुधा अरोड़ा (कहानी संग्रह) मूल्य : 300

  6. आहार घोंसला : अशोक अग्रवाल (कहानी संग्रह)  मूल्य : 300

  7. राजमार्ग क्रमांक 6 : सतीश जायसवाल (कहानी संग्रह) मूल्य : 250

  8. नीली गिटार : दीपक शर्मा (कहानी संग्रह) मूल्य : 350

  9. जगह की जगह : रामकुमार तिवारी (कहानी संग्रह) मूल्य : 300

  10. बाघैन : नवीन जोशी (कहानी संग्रह) मूल्य : 300

  11. मैं थिगली में लिपटी थेर हूँ : ज्योति रीता (कविता) मूल्य : 199

3400 रुपये का यह सेट आप पा सकते हैं मात्र 2300 रुपये के अग्रिम भुगतान पर .

इस पुस्तक सेट की कामयाबी संभावना प्रकाशन की सांसों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है आपका योगदान हमारे लिए बेहद अहम है.

एक तरफ मोबाइल कंपनियां और उन्हें बेचने वालों ने त्योहारी सीजन में अच्छा लाभ कमाया. वहीं प्रकाशक, किताब पढ़ने की खत्म होती संस्कृति की वजह से अपनी किताबों पर इतना भारी डिस्काउंट देने के लिए मजबूर हैं.

लगभग सभी प्रकाशकों का यही हाल है.

इलाहाबाद डायरी, नैन बंजारे, चौरासी, गांधी की सुंदरता, नमक स्वादानुसार जैसी किताबें प्रकाशित कर चुकेहिन्द युग्म प्रकाशन ने बहुत ही कम समय में हिंदी साहित्य जगत में अपनी अलग पहचान बनाई है. हिन्द युग्म ने त्यौहारी सीजन के बीच अपनी किताबों पर डिस्काउंट दिया .

हिंदी के सबसे बड़े प्रकाशन समूह राजकमल प्रकाशन ने इस सीजन में 'किताबतेरस' नाम से ऑफर निकाला.

नवारुण प्रकाशन से प्रकाशन की दुनिया पर बातचीत

मैं एक कारसेवक था, टिकटशुदा रुक्का, गाजीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल, बब्बन कार्बोनेट जैसी किताबें प्रकाशित करने वाले नवारुण प्रकाशन के संजय जोशी ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखा.

बिना ऑफर की दीवाली 

हमें बहुत खेद के साथ यह सूचित करना पड़ रहा है कि नवारुण प्रकाशन की तरफ से इस दीवाली हमारी कोई उपहार योजना नहीं है. हम भी किताब तेरस मनाना चाहते हैं ,लेकिन पिछले दिनों कागज की कीमतों में जिस तरह तेजी आई है,सस्ते प्रकाशन करना एक मुश्किल पहेली बन गया है.

हम यह जरूर दोहरा रहे हैं कि पहले की तरह हम अब भी बेरोजगार विद्यार्थियों और पूरावक्ती राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हर संभव छूट देंगे . हम यह भी दोहरा रहे हैं कि नवारुण से प्रकाशित हर लेखक को अनुबंध के मुताबिक उनकी रायल्टी समय से दी जाएगी और पहले की तरह आगे भी किसी किताब का प्रकाशन लेखक से बिना पैसे लिए किया जाएगा.

असल में हम तो अपने शुभेच्छु पाठकों से अनुरोध कर रहे हैं कि वे इस मौके पर अधिकाधिक किताबें अपने किताब प्रेमी मित्रों को भेंट कर नवारुण की मुश्किलों को थोड़ा कम करने में मदद करें.

इस मौके पर हम यह भी वायदा करते हैं कि हम पूरी कोशिश करके अपने समय की बेहतरीन पांडुलिपि आपके लिए पूरे प्रोफेशनल अनुशासन के साथ प्रकाशित करेंगे.

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उनकी इस पोस्ट पर संजय जोशी से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि हम हर साल किताबों पर डिस्काउंट निकालते थे, इस साल पिताजी शेखर जोशी के गुजर जाने के बाद हमें इतना वक्त नही मिला.

वैसे डिस्काउंट पर इससे पहले का भी अनुभव ठीक नही रहा था, बहुत प्रचार करने के बाद भी किताबें कम बिकती थी.

अभी हिंदी पट्टी में शायद किताबें लोगों की जरूरत नही है.

जिन प्रकाशकों की किसी संस्थागत खरीद की व्यवस्था है वह सही स्थिति में हैं, लेकिन पाठकों के बूते प्रकाशन चलाने वालों के लिए बहुत मुश्किल है. कागज के दाम में पिछले एक- डेढ़ साल में करीब सौ से डेढ़ सौ प्रतिशत की वृद्धि हुई है और प्रॉफिट मार्जिन बहुत कम हुआ है.

ये जरूर है दलित विमर्श की किताबें खूब खरीदी और भेंट की जा रही हैं और इनकी बिक्री भी है पर कहानी, कविता, यात्रा वृतांत का स्वागत नहीं हो रहा है.

पिछले एक दो सालों में किताबों की बिक्री में भारी कमी आई है.

दीवाली पर लोग काजू, बादाम जैसे गिफ्ट देते हैं पर किताब नहीं देते, क्योंकि इनमें लोगों की रुचि खत्म हो रही है. प्रकाशक के लिए डिस्काउंट देना बड़ा मुश्किल है. रॉयल्टी, डिजाइनर को पैसा देकर प्रकाशकों के लिए पैसा बचाना बड़ा मुश्किल काम है.

उत्तराखंड में आरम्भ स्टडी सर्किल, पिथौरागढ़ और  नानकमत्ता पब्लिक स्कूल, नानकमत्ता छात्रों में चेतना जगा कर जगह जगह पुस्तक मेला लगा रहे हैं. इस तरह पढ़ने-लिखने की संस्कृति को बढ़ावा देना जरूरी है, तभी लोग किताब खरीदेंगे. प्रकाशन कोई अलग गतिविधि नही है, यह समाज से ही जुड़ी है.

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क्या कहते हैं सालों से किताबों के व्यवसाय से जुड़े जयमित्र

वर्ष 1988 से शुरू हुए 'अल्मोड़ा किताब घर' के जयमित्र सिंह बिष्ट कहते हैं कि कुछ प्रकाशकों ने इस बार किताबों की बिक्री पर आकर्षक ऑफर रखे हैं, जिसका उन्हें फायदा भी मिला है. लेखक अशोक पांडे की 'लपूझन्ना' किताब पहले दिन से ही ऑनलाइन उपलब्ध थी बावजूद इसके उन्होंने अपने स्टोर पर इसकी रिकॉर्ड बिक्री करी है. 

वह कहते हैं कि लोगों के अंदर इस त्योहारी सीजन में किताबों को लेकर अलग से तो कोई उत्साह नही है पर नियमित ग्राहक किताब खरीद ही रहे हैं और कुछ नए ग्राहक भी हमसे जुड़े हैं. मार्केटिंग ठीक से की जाए तो किताबें बिक सकती हैं.

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