ADVERTISEMENTREMOVE AD

धर्मेंद्र की विरासत हमेशा प्रेम ही रही

प्यार ही धर्मेंद्र का हथियार, फिलॉसफी और मंत्र था, और यूं कहें तो उनका कर्मक्षेत्र भी.

Published
story-hero-img
i
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

वे आए, उन्होंने देखा, उन्होंने जीता और राज किया- और उन्होंने दिल से प्रेम किया.

धर्मेंद्र कोई साधारण इंसान नहीं थे. ऐसे धन्य व्यक्तित्व, जिन्हें ईश्वरीय शक्तियां धरती पर भेजती हैं, परिवार, मित्रों और प्रशंसकों को सिर्फ आनंद और खुशी ही नहीं देते, बल्कि अपने चुने हुए क्षेत्र में प्रतिभा का सर्वोच्च स्तर और अमरता भी प्राप्त करते हैं.

पेशेवर तौर पर धर्मेंद्र कौन थे? सिर्फ एक अभिनेता? बिल्कुल नहीं. वे निर्माता भी थे—आधिकारिक रूप से (घायल, बरसात) और पर्दे के पीछे भी (समाधी, प्रतिज्ञा, क्रोधी, बेताब, सितमगर, सोचा ना था, अपने, यमला पगला दीवाना आदि). वे गीतकार भी रहे हैं (यमला… के गीत ‘कद्द के बोतल’). उन्होंने अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा उसी फिल्म उद्योग में वापस लगाया, जिसने उन्हें इतना कुछ दिया था, और इसी के तहत उन्होंने सनी सुपर साउंड स्टूडियो कॉम्प्लेक्स भी बनवाया.

और धर्मेंद्र का क्या, वो इंसान, जिसने खुद माना था कि वो मुंबई (वो भी उस समय के इकलौते टैलेंट कॉन्टेस्ट—फिल्मफेयर यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स टैलेंट कॉन्टेस्ट के जरिए) “सिर्फ एक फ्लैट और एक फिएट (कार)” खरीदने आया था?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

“एक सितारा, जो इंसान बना रहा”

पंजाब के लुधियाना जिले के शांत गांव नसराली में स्कूल शिक्षक केवल किशन सिंह और सतवंत कौर के घर जन्मा और साहनेवाल में पला-बढ़ा यह सीधा-सादा नौजवान बचपन से ही फिल्मों का बेहद शौकीन था. मेगा-स्टार बनने के बाद भी वह अपने गांव की जड़ों और माहौल से जुड़ा रहा.

शर्मिला टैगोर कहती हैं, "धर्मेंद्र के व्यक्तित्व में साधारण किसान का भाव कभी नहीं छूटा." जो सात फिल्मों में उनकी सह-अभिनेत्री रहीं और जिनका जन्मदिन भी उनसे मिलता है- 8 दिसंबर.

“1990 के दशक की शुरुआत से अभिनेता ने कई मुश्किल दौर देखे. उन्होंने बी-ग्रेड फिल्में भी इसलिए की ताकि घर का खर्च चलता रहे (जहां किसी भी समय पंजाब से आए कई रिश्तेदार ठहरे रहते थे!), खंडाला में बनने वाले प्रस्तावित स्टूडियो के लिए पैसे जुटा सकें, और बाद में वहां एक फार्महाउस बनाने में निवेश कर सकें.”

फिर भी, यह पक्का था कि सिर्फ इंसान ही नहीं थे जिन्हें वह बहुत पसंद करते थे: उनके बहुत ज्यादा प्यार करने वाले स्वभाव में पेड़-पौधे और जानवर भी शामिल थे. आखिर तक वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर एक्टिव रहे और वहां मौजूद जानवरों के साथ अपने पलों की तस्वीरें समय-समय पर साझा करते रहते थे.

प्यार उनका हथियार था, उनकी फिलॉसफी थी, उनका मंत्र था, और लगभग उनका पेशा था. दिल से हमेशा वे एक फिलॉसफर रहे, उनकी दिलचस्प पर्सनल लाइफ ने 2007 में 72 साल की 'जवानी' में उनके अंदर के कवि को बाहर निकाला, और उन्होंने बिना किसी रोक-टोक के कविता लिखना शुरू कर दिया, जिसमें न सिर्फ उनकी गहरी निजी भावनाएं बल्कि जिंदगी की सच्चाईयां भी शामिल थीं.

“होती है तारीफ अहमियत की / इंसानियत की मगर कदर होती है (दुनिया महत्वपूर्ण लोगों की प्रशंसा करती है, लेकिन यह मानवता है जिसे महत्व दिया जाता है)” यह तीखी दो-पंक्तियां उन्हीं की लिखी हुई थीं.

जब मुझे उनकी बायोग्राफी, धर्मेंद्र: नॉट जस्ट ए ही-मैन लिखने का बड़ा सम्मान मिला, तो उन्होंने मुझे अपनी किताब में शामिल करने के लिए अपनी उन कीमती कविताओं का खजाना दिया.

भावुकता और इंसानियत उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पहचान थीं- और इन्हीं गुणों के कारण वे हर उम्र के प्रशंसकों के दिलों में मित्र, प्रेमी, बेटे या पिता की तरह गूंजते रहे.

अपने स्ट्रगल के दिनों में, वह मनोज कुमार और शशि कपूर के बहुत करीब थे, जो उस समय भी स्ट्रगलर थे. जब 2011 में शशि कपूर बहुत बीमार पड़े, तो दोनों ने अपने पुराने “यार” से मिलने के लिए हॉस्पिटल जाने का फैसला किया.

लेकिन तय दिन पर, अमिताभ बच्चन की शशि से मिलने की एक तस्वीर एक बड़े अखबार में छपी, और धर्मेंद्र ने मनोज को फोन करके यह आइडिया छोड़ने को कहा! उन्होंने मनोज से कहा, “मेरी फिल्म (यमला पगला दीवाना) रिलीज हो रही है, और अगर हमारी फोटो खींची गई तो लोग सोचेंगे कि मुझे पब्लिसिटी चाहिए!”

मैं पहली बार धर्मेंद्र से तब मिला जब उन्हें इंडिया-वेस्ट नाम के एक अमेरिकी अखबार में उनकी जिंदगी और करियर पर लिखा मेरा एक आर्टिकल बहुत पसंद आया. उस अखबार में मैं कॉरेस्पोंडेंट था. ‘अपने’ के प्रीमियर के लिए अमेरिका में मौजूद धर्मेंद्र ने खुद अखबार के दफ्तर में फोन करके मेरा नंबर लिया और भारतीय समय के अनुसार सुबह 9:30 बजे मुझे कॉल करके मेरी खुलकर तारीफ की. उन्होंने कहा कि ‘मुझ पर लिखे 5,000 लेखों और इंटरव्यूज में से तुम्हारी कहानी ने मेरी आत्मा को छू लिया.’

हम इंटरव्यू के लिए और इवेंट्स में भी कई बार मिले. हर मीटिंग, चाहे दो मिनट की हो या 40 मिनट की, “इंडिया-वेस्ट के आर्टिकल!” का जिक्र जरूर होता था.

जब मैंने उन्हें बताया कि मैं उन पर एक किताब लिख रहा हूं, तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और किताब के लिए खास तौर पर मुझसे मिले, साथ ही कुछ तस्वीरें भी शेयर कीं. जब मैंने बाद में उनसे फोन पर कुछ बातें पूछीं, तो वे भी उतने ही उत्साहित थे. जब किताब रिलीज हुई, और मैंने उन्हें फोन किया, तो उन्होंने कहा, "तू मेरे बारे में कुछ बुरा थोड़े लिखेगा?"

असाधारण प्रतिभा

मुझे इस बात का बहुत दुख है कि वह- दुनिया भर के प्रशंसकों और अपने साथी कलाकारों के साथ- अब से दो हफ्ते बाद अपना 90वां जन्मदिन मना रहे होते. इतनी महान प्रतिभा कम से कम इस सम्मान की हकदार थी. जो बात मुझे और दुखी करती है – असल में, बहुत गुस्सा दिलाती है – वह यह है कि हमारी इंडस्ट्री में, साधारण और नेचुरल परफॉर्मेंस को महान नहीं माना जाता और जिस एक्टर को मैंने सबसे नेचुरल (और दिलीप कुमार ने यह सर्टिफाई किया है!) कलाकारों में से एक माना, उसे कभी कोई बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड नहीं मिला.

लेकिन मुझे इस बात की खुशी है कि धर्मेंद्र ने कभी कोई फिल्म अधूरी नहीं छोड़ी. उनकी आखिरी फिल्म इक्कीस है. जिसे श्रीराम राघवन ने बनाया है. राघवन ने इससे पहले धर्मेंद्र के साथ जॉनी गद्दार बनाया था. इक्कीस 25 दिसंबर को रिलीज होगी. उनकी हालिया रिलीज फिल्में रॉकी और रानी की प्रेम कहानी—जिसमें उन्होंने अपने दौर के कई क्लासिक गीतों पर अभिनय भी किया—और तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया रहीं, जो क्रमशः हिट और सफल रही.

धर्मेंद्र के काम की विविधता हैरान कर देने वाली है. ऐसा कोई किरदार नहीं था जिसे वह निभा न सकें. पुलिस अफसर से लेकर डॉक्टर, स्मगलर, देहाती किसान और यहां तक कि भूत—धर्मेंद्र ने हर भूमिका को अद्भुत शैली और सहजता के साथ निभाया.

उनके बेहतरीन कामों की अगर गिनती की जाए तो उनमें आई मिलन की बेला (उनका पहला निगेटिव रोल), फूल और पत्थर (उनकी असली सफलता), अनुपमा, जीवन मृत्यु, यादों की बारात, प्रतिज्ञा, चुपके चुपके, धरम-वीर, गजब, अपने और रॉकी और रानी की प्रेम कहानी शामिल हैं.

उनकी हीरोइनें भी उनके 65 साल लंबे करियर की गवाही देती हैं, जिसमें मीना कुमारी से लेकर रति अग्निहोत्री तक पांच पीढ़ियों के सबसे बड़े को-स्टार्स शामिल थे. उनकी पत्नी और 20 से अधिक फिल्मों की सह-कलाकार हेमा मालिनी ने एक बार बताया था कि धर्मेंद्र ने अपनी सभी हीरोइनों की तस्वीरों वाला एक कॉफी-टेबल बुक बनाने की भी योजना बनाई थी. अपनी किताब के लिए जब मैं हेमा जी से मिला था, तो उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘अच्छा हुआ तुम किताब लिख रहे हो! वो बोलता रहता है, कुछ नहीं करता!’

बिमल रॉय और ऋषिकेश मुखर्जी से लेकर करण जौहर और अनुराग बसु तक, सभी डायरेक्टर्स ने उन्हें कम से कम एक बार कास्ट किया. उनका म्यूजिक भी खास था, भले ही लो-प्रोफाइल. हमारे सबसे संगीतप्रिय सितारों में से एक, धर्मेंद्र के लिए मोहम्मद रफी ने उनके बेहतरीन गीतों में आवाज दी—इनमें से 150 से अधिक गाने लोकप्रिय और हिट रहे. रफी के बाद किशोर कुमार और मुकेश रहे. उनके लिए 28 सिंगर्स ने गाया और ज्यादातर गाने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने कंपोज किए थे और गीतकार आनंद बख्शी ने लिखे थे, साथ में और अलग-अलग.

सबसे अच्छे इंसान वो होते हैं जो प्यार बांटते हैं, और बदले में खूब प्यार पाते हैं. धर्मेंद्र का दिया हुआ प्यार उन सभी के दिलों में हमेशा ज़िंदा रहेगा, जिन्हें कभी उनका स्नेह मिला है.

जैसे हम भी उन्हें हमेशा प्यार करते रहेंगे.

(राजीव विजयकर पिछले तीस से अधिक सालों से एंटरटेनमेंट पत्रकारिता में सक्रिय हैं और ‘म्यूजिक बाय लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सिनेमा पुस्तक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुके हैं. वे दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जूरी के सदस्य रह चुके हैं और धर्मेंद्र की जीवनी ‘नॉट जस्ट ए ही-मैन’ के लेखक हैं. वे 2025 के ऑस्कर चयन जूरी में भी शामिल थे. द क्विंट इन विचारों का समर्थन नहीं करता और न ही इनके लिए जिम्मेदार है.)

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×