ADVERTISEMENTREMOVE AD

Mizoram: जोरमाथांगा की MNF को चुनाव में कांग्रेस और ZPM से मिल रही कड़ी टक्कर

Mizoram Elections 2023: पूर्वोत्तर में ईसाई बीजेपी से नाराज हैं और जोरामाथांगा का अस्तित्व ईसाई वोटों पर निर्भर है.

Published
story-hero-img
i
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

मिजोरम (Mizoram) में पूरे दो दिनों तक चले राहुल गांधी के धुआंधार चुनाव अभियान ने - जहां 7 नवंबर को मतदान होना है - एक स्पष्ट संदेश दिया है कि कांग्रेस पार्टी सुदूर पूर्वोत्तर में सबसे कम आबादी वाले राज्य पर कब्जा करने के लिए उतनी ही गंभीर है, जितना मुख्य राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना को जीतने के बारे में है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामाथांगा, जो सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) के अध्यक्ष भी हैं, को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बड़े पैमाने पर ईसाई राज्य में सत्ता 1989 से ही कांग्रेस और एमएनएफ के बीच घूमती रही है.

कांग्रेस के ललथनवाला- जो अब 80 वर्ष के हो चुके हैं- ने 1989 और 1993 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उसके बाद 1998 और 2003 में जोरमाथांगा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली; ललथनवाला 2008 और 2013 में वापस आ गए थे, लेकिन जोरमाथांगा ने 2018 में जीत हासिल की और अब लगातार दूसरे कार्यकाल पर नजर गड़ाए हुए हैं.

विरोधाभासी रूप से, जोरमथंगा को बीजेपी का सहयोगी होने के बावजूद न केवल कांग्रेस बल्कि भारतीय जनता पार्टी से भी संघर्ष करना पड़ रहा है!

जोरामाथांगा को ईसाई वोट की जरूरत

मौजूदा स्थिति के अनुसार, MNF बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) में भागीदार है.

लेकिन इंफाल और दिल्ली में “डबल इंजन” बीजेपी सरकार के शासन में मई से मणिपुर में कुकी ईसाइयों के नरसंहार और रेप और चर्चों पर हमले के बाद मिजोरम में गठबंधन एक बड़ा बोझ बन गया है. दरअसल, मिजोरम में ईसाई न केवल आबादी का 87 प्रतिशत से अधिक हैं, बल्कि आठ में से आठ जिलों में भारी बहुमत में हैं.

ऐसे समय में जब पूरे भारत में और विशेष रूप से पूर्वोत्तर में ईसाई बीजेपी से बहुत नाराज हैं, जोरमाथांगा का अस्तित्व ईसाई वोटों पर निर्भर है.

इसलिए 79 वर्षीय मुख्यमंत्री अपने MNF और NJP के बीच एक फायरवॉल बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं - और प्रार्थना कर रहे हैं कि यह काम करे.

खुद को बीजेपी से दूर करने के लिए - एनडीए और एनईडीए पार्टनर होने के बावजूद - जोरमाथांगा ने कुकियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए आइजोल में मिजो ईसाइयों के साथ मार्च किया, और यहां तक कि कुकियों को मैतेई हिंदुओं से बचाने के लिए एक अलग प्रशासन की मांग की, जिससे मणिपुर के बीजेपी सीएम बीरेन सिंह नाराज हो गए.

माना जाता है कि उन्होंने मणिपुर के आंतरिक मामलों में जोरमाथागा के हस्तक्षेप के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से भी शिकायत की थी.

कुकी और मिजो एक ही जातीय समूह से हैं - और म्यांमार से विस्थापित चिन भी एक ही जातीय समूह से हैं. एमएनएफ सरकार न केवल कुकी और चिन शरणार्थियों को भोजन और छत प्रदान कर रही है, बल्कि चुनाव से पहले अपने ईसाई निर्वाचन क्षेत्र का निर्माण करने के लिए, चिन के बायोमेट्रिक डेटा एकत्र करने के केंद्र के आदेश को पूरा करने से इनकार कर दिया है.

क्या मिजोरम के ईसाई MNF को समर्थन देंगे?

ईसाई हितों का समर्थन करने के लिए, जोरमाथांगा ने एमएनएफ के लोकसभा सांसद सी लालरोसंगा और राज्यसभा सांसद के वनलालवेना को विशेष निर्देश जारी किए, ताकि वे संसद के पटल पर कुकियों के उत्पीड़न को उजागर करने का कोई भी अवसर न चूकें.

मानसून सत्र के दौरान, एमएनएफ मणिपुर की अव्यवस्था पर केंद्रित बीजेपी सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने की हद तक चला गया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
मिजोरम मतदाताओं की नजर में खुद को बीजेपी से और भी अलग करने के लिए, मिजोरम विधानसभा ने हाल ही में समान नागरिक संहिता (UCC) के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया और हाल में संसद से पारित वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के विरोध में एक प्रस्ताव भी पास किया है.

यह देखना बाकी है कि क्या यह सब इस बार मिजोरम के ईसाइयों को एमएनएफ को समर्थन देने के लिए पर्याप्त होगा, जिसने पांच साल पहले 40 में से 26 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस को केवल 5 और जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) को केवल आठ सीटें मिली थीं.

रिटार्यड IPS लालदुहोमा के नेतृत्व में ZPM को अनिवार्य रूप से एमएनएफ के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है और उसने हाल ही में शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों में आश्चर्यजनक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है.

इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है क्योंकि यह तिकड़ी (तीनों दल) एक बार फिर मैदान में उतरने के लिए उत्सुक है और उसने सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.

इसके विपरीत, 2018 में एक सीट जीतने वाली बीजोपी को अपनी संभावनाएं ज्यादा नहीं दिख रही हैं और उसने केवल 23 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जो पिछली बार से काफी कम हैं.

पड़ोसी राज्य मणिपुर में कुकियों को निशाना बनाए जाने के कारण अब तक बीजेपी का चुनावी अभियान बहुत छोटा रहा है, जिसे ईसाई नेता राज्य समर्थित नरसंहार के रूप में बताते हैं, जिसका मुद्दा यूरोपीय संसद में भी उठा है, जिससे नई दिल्ली को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा 25 अक्टूबर को और पीएम मोदी 30 अक्टूबर को मिजोरम का दौरा करेंगे, और मतदाताओं से वोट की अपील करेंगे. इससे पार्टी के स्पष्ट रूप से कम हुए मनोबल को उठने की उम्मीद है.

कांग्रेस बनाम MNF बनाम ZPM

मिजोरम में राहुल गांधी का बयान राष्ट्रीय सुर्खियां बना क्योंकि उन्होंने पीएम मोदी पर मणिपुर से ज्यादा इजराइल को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया.

इसके अलावा, कांग्रेस नेताओं ने एमएनएफ और जेडपीएम को बीजेपी-आरएसएस मोर्चों के रूप में बताया है और मतदाताओं को चेतावनी दी कि वे धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की रक्षा के बारे में उनकी बयानबाजी और झूठी बातों से मूर्ख न बनें. उन्होंने शांति समझौते पर हस्ताक्षर करके मिजोरम के उत्थान में अपने पिता, पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी के योगदान का भी जिक्र किया.

इस पर पलटवार करते हुए MNF ने याद दिलाया कि कैसे कांग्रेस ने केंद्र की सत्ता में रहते हुए मिजो विद्रोहियों को दबाने के लिए हेलीकॉप्टर से हमला करवाया था.

कांग्रेस अपने सबसे बड़े मिजो नेता और पांच बार के सीएम थनहवला के बिना है, जिन्होंने राजनीति छोड़ दी. उनके स्थान पर आए नए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष लालस्वाता में स्वाभाविक रूप से थनहवला के करिश्मे और मिजो भावनाओं के गहरे ज्ञान की कमी है.

वहीं, राहुल गांधी बिना घोषणा के ही बाइक से थनहवला के घर उन्हें सम्मान देने और मिजोरम पर फिर से जीत के लिए सलाह लेने पहुंच गए.ये राहुल का चुतराई भरा कदम था.

चूंकि मिजोरम चुनाव पड़ोसी राज्य मणिपुर में सांप्रदायिक महासंकट की छाया में हो रहे हैं, जो छठे महीने में भी जारी है, इसलिए मतदाताओं के दिमाग पर इसका भारी असर पड़ना तय है क्योंकि वे अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे और मैदान में सभी दलों की किस्मत का फैसला करेंगे. जो पार्टी पूर्वोत्तर में चल रही अंडरकरेंट और क्रॉस करंट को सबसे अच्छे से समझ लेगी, वही विजेता होगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(एसएनएम अबदी एक प्रतिष्ठित पत्रकार और आउटलुक के पूर्व डिप्टी एडिटर हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×