21 सितंबर की शाम प्राइम टाइम टेलीविजन पर देर रात कई भारतीय न्यूज चैनल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के संयुक्त राष्ट्र आम महासभा (यूएनजीए) संबोधन का सीधा प्रसारण कर रहे थे. विशेषज्ञ कमेंटटर्स संभावित बयान के तुरंत एनालिसिस करने के लिए कतारबद्ध थे. मैंने इसके बजाय मूवी देखना पसंद किया.
पाकिस्तान की कड़वाहट अब आश्चर्यचकित नहीं करती
मामला उरी हमले का नहीं है. उरी में हमारी ओर से भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे और ऐसी स्थिति में, एक जिहादी आंतकी हमला जिसमें हमलावर मरने तक को तैयार हों, आसानी से सेंध लगा सकते थे.
इसमें पाकिस्तान के शामिल होने के सबूतों को इकट्ठा करके और उन्हें दिखाकर भारत सरकार ने एकदम सही काम किया है, अब विश्व के कुछ लोगों को शायद ही शक हो कि पाकिस्तान कश्मीर के नाम पर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने में लगा हुआ है.
प्रधानमंत्री शरीफ का यूएनजीए में दिया गया बयान कि “कश्मीर विवाद के निपटारे के बिना भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और सुलह स्थापित नहीं हो सकती”, वास्तव में यह, पाकिस्तान का सीमा पार आतंकी हमलों में शामिल होने की साफ घोषणा है.
लेकिन खबर यह नहीं है, न कि वह जो कुछ मिस्टर शरीफ ने यूएनजीए में कहा. वास्तविकता यह है, जो उन्होंने कहा है, कहना ही चाहिए. क्योंकि, उनसे हम और क्या अपेक्षा भी कर सकते हैं?
मुशर्रफ-मनमोहन फॉर्मूला को अपनाएं
वर्तमान कश्मीर समस्या का यदि कोई हल संभव है तो वो वर्तमान में भुला दिया गया मुशर्रफ-मनमोहन फार्मूला.
फार्मूला सुझाव देता है-
- कोई नई सीमा रेखा का निर्धारण नहीं होगा, और नियंत्रण रेखा वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा हो जाएगी.
- हालांकि, लोगों तथा सामग्रियों का नियंत्रण रेखा के आर-पार मुक्त आवागमन जारी रहेगा.
- पाकिस्तान को कश्मीर में हिंसा को बढ़ावा देना बंद करना होगा, जबकि भारत अपनी सैनिक संख्या में कमी लायेगा और दोनों देश सीमा से सर्वसम्मत दूरी पर धीमे-धीमे सैनिकों को हटाएंगे.
- दोनों देश नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ के आंतरिक प्रबंधन के लिए स्व:प्रशासन का मॉडल स्थापित करेंगे.
पाकिस्तान पर दबाब बनाएं
दोनों देशों में बैठे कमेंटटरों के लिए अब यह कहना बहुत आम हो गया है कि इस फॉर्मूले का अब कोई महत्व नहीं है, क्योंकि परवेज मुशर्रफ और मनमोहन सिंह अपने-अपने देशों में कम महत्वपूर्ण हैं.
यह कहना कि फॉर्मूला के जनक अपने देशों में राजनीतिक रूप से महत्व नहीं रखते तो इसका यह मतलब कतई नहीं है कि उनके द्वारा दिया गया फॉर्मूला भी बेकार है. यहां इसके अलावा कश्मीर समस्या का अन्य कोई दूसरा हल नहीं है.
वास्तव में, भारतीय विदेश मंत्री को यूएनजीए में मिस्टर शरीफ के धोखे और धमकी के जवाब में मुशर्रफ-मनमोहन फॉर्मूले की दोबारा याद दिलानी चाहिए और इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना चाहिए.
कश्मीर समस्या का वास्तविक हल
- यूएनजीए में नवाज शरीफ का अपने बयान में कश्मीर के जिक्र से पाकिस्तान के सीमा पार आतंक में शामिल होने को खुले तौर पर स्वीकार किया है.
- मुशर्रफ-मनमोहन फॉर्मूले पर दोबारा विचार करके कश्मीर समस्या का वास्तविक हल निकाला जा सकता है.
- फॉर्मूले के सिद्धांतों में नियंत्रण रेखा को वास्तविक अंतर्राष्ट्रीय सीमा स्वीकार करना और पाकिस्तान का हिंसात्मक कार्यवाहियों को बढ़ावा देना बंद करना होगा.
- यदि फॉर्मूला के विचारकों का आज राजनीतिक रूप से महत्व नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं हुआ कि उनका दिए गए फॉर्मूले का भी कोई महत्व नहीं है.
भारत को कैसे जवाब देना चाहिए?
सचमुच, यह संभव है कि पाकिस्तान का जनतांत्रिक नेतृत्व और बड़ा जनसमूह इस पहल का स्वागत करे. सिर्फ पाकिस्तानी सेना, कट्टरपंथी इस्लामिक समूह और जिहादी आतंकवादी संगठन ही इस समझौते को अस्वीकार करेंगे.
इस हल के लिए पाकिस्तान की ओर से ही उल्लंघन था, जिसने मुशर्रफ को सत्ता से बेदखल और 26/11 के मुंबई आतंकी हमलें में पाकिस्तानी सेना के सहयोग ने जम्मू-कश्मीर को दुबारा सुर्खियों में ला दिया है.
यदि पाकिस्तान पीछे हटकर अपना रास्ता नहीं बदलता है तो भारत के पास अपने राजनीतिक, कूटनीतिक और सैनिक शक्ति को पीछे हटाने के सिवाय अन्य कोई विकल्प नहीं होगा. इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस साल नंवबर में इस्लामाबाद में हो रही सार्क शिखर सम्मेलन को अनिश्चित समय के लिए रोककर करनी चाहिए.
भारत को पाकिस्तान के अपने “सबसे तरजीही राष्ट्र” के टाइटल को भी खत्म करने के साथ ही, पाकिस्तान के साथ सभी आर्थिक संबंध समाप्त कर देने चाहिए, जो कि 1959-60 के दशक में मौजूद सभी व्यापारिक और संपर्क मार्गों की मरम्मत और निर्माण से जुड़े हैं.
सोची समझी प्रतिक्रिया
इस उच्च स्तर की कड़वाहट के बजाय भारत को अपनी प्रतिक्रिया काफी सोच विचार कर osvr चाहिए. कई मोर्चों पर, हमारा काम काफी हद तक प्रारंभिक स्तर पर है. जब हम प्रतिक्रया करें, तो हमें यह अधिक कुशलता, और प्रतिबद्धता और बेहतर परिणाम के साथ करनी चाहिए, जिससे हम एक नतीजे पर खड़े हों तो हम वैश्विक समुदाय से उसके अनुसार प्रतिक्रिया करने की अपेक्षा कर सकें.
भारत की ओर से प्रतिक्रिया विश्व और हमारे पड़ोसी की प्रतिक्रिया के अनुसार तय नहीं हो सकती. हमारी प्रतिक्रिया हमारी क्षमता, प्रतिस्पर्धा और प्रतिबद्धता पर आधारित होनी चाहिए.