साल 2009 के लोकसभा चुनाव का वक्त था. इस चुनाव से पहले कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन में थे, लेकिन 2009 का आम चुनाव राष्ट्रीय जनता दल ने अकेले लड़ने का फैसला किया था. उस वक्त राष्ट्रीय जनता दल के कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने लालू प्रसाद यादव से आग्रह किया था कि वे कांग्रेस के साथ गठबंधन खत्म न करें, लेकिन लालू प्रसाद यादव ने उनकी बात अनसुनी कर दी.
उस आम चुनाव में मधुबनी लोकसभा सीट, जो कांग्रेस व कम्युनिस्टों का गढ़ हुआ करती थी, से आरजेडी ने अब्दुल बारी सिद्दीकी को उतार दिया. कांग्रेस ने डॉ शकील अहमद को दोबारा टिकट दिया और BJP ने हुकुमदेव नारायण यादव को उतारा. नतीजा ये निकला कि मुस्लिम वोट बिखर गया और BJP ने इस सीट से जीत दर्ज की. भारत के चुनावी इतिहास में यह दूसरी बार था जब मधुबनी सीट से बीजेपी की जीत हुई थी. इससे पहले 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी जीती थी. लेकिन 2009 की जीत के बाद बीजेपी वहां मजबूत हो गई और तब से लगातार इस सीट से बीजेपी जीत रही है.
लेकिन, मौजूदा स्थिति ऐसी बन गई है कि आरजेडी, कांग्रेस को दरकिनार नहीं कर सकता है. खास तौर से कांग्रेस के नेतृत्व में दो हफ्ते चली वोटर अधिकार यात्रा के बाद तो कांग्रेस, आरजेडी के लिए अपरिहार्य बनती दिखने लगी है. वजह ये है कि इस यात्रा ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में नई जान फूंक दी है. जिस कांग्रेस को बिहार में बमुश्किल 8-9 प्रतिशत वोट मिलते हैं, उसका झंडा इस रैली में सबसे ज्यादा नजर आया, जबकि रैली में महागठबंधन के दूसरे दलों के शीर्ष नेता भी मौजूद थे.
मधुबनी के एक पुराने नेता, जिन्होंने कांग्रेस को बिहार में मजबूत होते और फिर कमजोर होते हुए देखा है, और फिलहाल समाजवादी खेमे में हैं, मानते हैं कि इस यात्रा ने कांग्रेस को बिहार में पुनर्जीवित कर दिया है. यही नहीं, इस यात्रा में जिस तरह शीर्ष नेताओं के बीच तालमेल दिख रहा है, उसी तरह का तालमेल ग्राउंड पर भी गठबंधन पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच नजर आ रहा है. “वर्षों से निष्क्रिय पड़े ग्रासरूट के कांग्रेसियों में स्फूर्ति आई है, वे जाग गये हैं,” उन्होंने कहा,
जो बिस्फी विधानसभा सीट आरजेडी के यादव वोटरों के कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार से मुंह फेर लेने के चलते बीजेपी के पास चली गई थी, उस सीट पर भी हम देख रहे हैं कि गठबंधन पार्टियों के वर्कर एकजुट हैं.
राजनीतिक विश्लेषक व पत्रकार रमाकांत चंदन का मानना है कि इस यात्रा से कांग्रेस को तीन फायदे होंगे. वह कहते हैं,
दक्षिण भारत में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की, तो वहां उन्हें चुनावी फायदा मिला, यही सोच कर उन्होंने बिहार में यात्रा की है, इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश है. दूसरा ये कि कांग्रेस के फैसले को स्वीकार करते हुए आरजेडी व गठबंधन की अन्य पार्टियां इस पदयात्रा में शामिल हुईं और तीसरा फायदा हुआ कि कांग्रेस पर आरजेडी की पिछलग्गु पार्टी होने का जो तमगा था, वो हट गया.
लेकिन, सवाल है कि वोटर अधिकार यात्रा के चलते कांग्रेस और उसका वोट चोरी का मुद्दा आम लोगों के बीच भी उतना ही लोकप्रिय हुआ ?
सीतामढ़ी के रहने वाले संजय बैठा मूलतः जदयू के वोटर रहे हैं, लेकिन वह मानते हैं कि वोट चोरी हो रही है.
लोगों के मन में ये बात बैठ गई है कि वोट चोरी हो रही है. वोटर लिस्ट में संशोधन में जो हुआ और राहुल गांधी जिस तरह वोट को लेकर बात कर रहे हैं, उससे तो आम लोगों में ये संदेश जा रहा है कि गरीब-दुखिया लोगों का वोट काटा जा रहा है.
वह पंचायत प्रतिनिधि हैं और उनके लिए जरूरी मुद्दों में ये भी है कि मुखिया व अन्य पंचायत प्रतिनिधियों का अधिकार सीमित कर दिया गया है. वह कहते है कि
बिहार सरकार ने तो हमलोगों का अधिकार ही खत्म कर दिया है. पंचायती राज को ही खत्म कर दिया है. इससे बेहतर था कि हमलोग बाहर कामधाम कर रहे थे. पंचायत प्रतिनिधियों में इसको लेकर सरकार के खिलाफ नाराजगी है.
जब क्विंट ने उनसे पूछा कि सरकार से अगर नाराजगी है, तो उनका रुझान किस पार्टी की तरफ रहेगा, तो उन्होंने कहा कि वे आरजेडी को वोट देने का सोच सकते हैं. मगर ऐसा क्यों? कांग्रेस क्यों नहीं? इस सवाल पर वह कहते हैं, “आरजेडी बड़ी पार्टी है.”
लेकिन, इसी जिले के एक सुदूर गांव के रहने वाले मुकेश राम, जो दलित समुदाय से आते हैं, जिनका कहना है कि
वोट चोरी के बारे में गांव के लोगों को कुछ नहीं पता है. वह ये भी नहीं जानते हैं कि उन्हीं के समुदाय के एक व्यक्ति को कांग्रेस ने बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया है.
आठ महीने में राहुल गांधी का आधा दर्जन बार बिहार दौरा
गौरतलब हो कि कांग्रेस नेता व सांसद राहुल गंधी 17 अगस्त से बिहार के सासाराम से वोटर अधिकार यात्रा शुरू की थी, जो 28 जिलों से होते हुए 31 अगस्त को गांधी मैदान पहुंची. गांधी मैदान से यह पदयात्रा एक सितम्बर को बेली रोड स्थित डॉ अंबेडकर की मूर्ति तक जाकर खत्म हो गई. लगभग 1200 किलोमीटर लंबी यात्रा में 40 विधानसभा सीटें कवर की गईं. शायद यह पहली बार था कि राहुल गांधी लगातार दो हफ्ते से अधिक समय तक बिहार में रहे.
बीते 8 महीनों में राहुल गांधी का ये संभवत सातवां बिहार दौरा था. उनके लगातार दौरों के चलते पटना के सदाकत आश्रम स्थित कांग्रेस दफ्तर का माहौल भी बदला है. पहले इस दफ्तर में सन्नाटा पसरा रहता था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से यहां गहमागहमी देखने को मिल रही है.
वोटर अधिकार यात्रा में भी राहुल गांधी को लेकर जबरदस्त क्रेज देखने को मिला. बच्चे, बूढ़े, महिलाएं और नौजवान, सभी तरह के लोग राहुल गांधी को देखने को मचलते नजर आये. वे पार्टी का झंडा लिये सड़कों के किनारे घंटों खड़े थे. बुलेट चलाते राहुल गांधी व तेजस्वी यादव के वीडियो सोशल मीडिया पर भी जमकर वायरल हुए. रैली के दौरान ही एक युवक को सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए राहुल गांधी के गाल चूमते देखा गया, तो एक अन्य जगह यात्रा को काला झंडा दिखाते बीजेपी के कुछ कार्यकर्ताओं को राहुल गांधी ने अपने पास बुलाया और चॉकलेट दिया. यात्रा में शामिल लोग मुखर होकर वोट चोरी की बात करते नजर आये. रविवार की शाम वोटर अधिकार यात्रा गांधी मैदान पहुंची, जहां कार्यकर्ताओं के ठहरने के लिए कांग्रेस की तरफ से जर्मन टेंट लगाये गये थे. कांग्रेस के एक नेता ने बताया, “50 हजार कार्यकर्ताओं के ठहरने का इंतजाम हमलोगों ने किया था.”
सोमवार को गांधी मैदान से पटना हाईकोर्ट स्थित डॉ अंबेडकर की मूर्ति तक एक यात्रा निकाली गई. चिलचिलाती धूप के बीच यह यात्रा दोपहर एक बजे गांधी मैदान में स्थित महात्मा गांधी की मूर्ति पर माल्याप्रण के साथ हुई. खुली छत की गाड़ी में सवार राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश साहनी एसपी वर्मा रोड होते हुए डाक बंगला चौराहे पर पहुंची, जहां पुलिस ने प्रतिबंधित क्षेत्र का हवाला देते हुए उनकी यात्रा रोक दी. डाक बंगला चौराहे पर ही प्रमुख नेताओं ने एक छोटी जनसभा की और वोटचोरी के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरा. इसके बाद खुली छत के वाहन में ही राहुल गांधी और कुछ अन्य नेता अंबेडकर मूर्ति तक गये और माल्यार्पण किया. इसके बाद यह यात्रा समाप्त हो गई.
इस यात्रा को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह था. पटना की सड़कों पर कांग्रेस, आरजेडी और सीपीआईएम (एल) के झंडे लहराते नजर आये. जगह जगह इस यात्रा से जुड़े पोस्टर-बैनर और तोरण लगे हुए थे. मगर यात्रा को देखने या इसमें शामिल नेताओं को देखने के लिए आम लोग कहीं नजर नहीं आये. जो दिखे वे महागठबंधन में शामिल पार्टियों के समर्पित कार्यकर्ता थे.
वैशाली से आये कांग्रेस के एक कार्यकर्ता मुकेश कुमार ने कहा,
कांग्रेस तो बिहार में वर्षों से सोई हुई थी, लेकिन राहुल गांधी की इस यात्रा से वे जाग गये हैं. हमलोग अब उत्साहित हैं और पूरे जोरशोर से बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. राहुल गांधी जी ने सबूत के साथ बता दिया कि बीजेपी कैसे वोट चोरी कर रही है और वो बिहार में भी यही करना चाह रही है इसलिए एसआईआर लाया गया.
नालंदा जिले से आये CPIM (लिबरेशन) के स्थानीय नेता रवींद्र पासवान कहते हैं,
वोटचोरी तो ही हो रही है. जिंदा के मरल (मरा हुआ) और मरल के जिंदा बता रहा है. मेरे गांव में भी ऐसा हुआ है. हमलोगों ने स्थानीय अधिकारियों से पूछा कि बताइए ये कैसे हो गया कि जीवित लोगों को मृत के लिस्ट में डाल दिये.रवींद्र पासवान, भाकपा(माले) लिबरेशन के स्थानीय नेता
सरकार तो 2020 में ही बदल जाती, लेकिन BJP-JDU ने मिलकर काउंटिंग के वक्त बहुत सारी सीटों पर फर्जीवाड़ा कर अपना वोट बढ़वा लिया. और राहुल गांधीजी के बिहार में यात्रा करने से महागठबंधन काफी मजबूत हुआ है, इसका फायदा चुनाव में मिलेगा.रवींद्र पासवान, भाकपा(माले) लिबरेशन के स्थानीय नेता
कांग्रेस जमीन पर कमजोर
यात्रा से बाहर निकली सांकेतिक तस्वीरों से राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता का पता चलता है और बिहार कांग्रेस इसी लोकप्रियता के जरिए अपने कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने की कोशिश कर रही है. लेकिन, सिर्फ एक नेता की लोकप्रियता से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं. इसके लिए बहुत जरूरी है कि पंचायत और बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत किया जाए.
बिहार कांग्रेस दशकों से जमीन पर नदारद रही है, जिसके चलते चुनावी मैदान में भी पार्टी लगातार हाशिये पर रही. लेकिन, अब पार्टी अपनी कार्यशैली बदल रही है, ऐसा पार्टी के नेताओं का कहना है.
जिला, प्रखंड स्तर पर नई कमेटियां, पर गुटबाजी भी
क्विंट के साथ बातचीत में कांग्रेस नेता संतोष मिश्रा बताते हैं,
पूरे राज्य में पार्टी के जिला अध्यक्षों का चयन हो चुका है, नये प्रखंड अध्यक्ष भी बनाये जा चुके हैं. इतना ही नहीं, बूथ स्तर पर भी हम लोगों ने नेताओं को नियुक्त कर दिया है. जहां हम मजबूत हैं, वहां हर बूथ पर दो बूथ स्तरीय कार्यकर्ता नियुक्त किये हैं और इसकी सूची निर्वाचन आयोग को भेजी जा चुकी है. ऐसा नहीं है कि ये सब अभी शुरू हुआ है. पिछले एक साल से हमलोग इस कवायद में लगे हुए हैं
कांग्रेस के एक नेता पार्टी के कमजोर होने की वजह की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं,
कमियां बहुत सारी थीं, गठबंधन में थे, तो मजबूरी थी कि हर जिलें में चुनाव नहीं लड़ पाते थे. इस वजह से उन जिलों में स्वाभाविक तौर पर कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर जाता था. जब तक कोई पार्टी चुनाव में नहीं जाएगी, तब तक सांगठनिक तौर पर वह मजबूत नहीं हो सकती है. चुनाव पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए उत्सव की तरह होता है. इसके अलावा पार्टी में अंदरूनी कलह भी काफी थी और संगठन में अलग अलग सामाजिक पृष्ठभूमि के नेताओं को पर्याप्त जगह भी नहीं मिली थी.
पार्टी के एक अन्य नेता ने ये स्वीकार किया कि जिला, प्रखंड व पंचायत स्तर पर कांग्रेस की नई कमेटियां गठित हुई हैं और नये सिरे से बीएलए भी नियुक्त हुए हैं. लेकिन पार्टी के भीतर गुटबाजियां अब भी बरकरार है, जो चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर बुरा असर डाल सकती है.
राहुल गांधी जी के आने से पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश तो है, लेकिन स्थानीय स्तर पर पार्टी में गुटबाजी भी चरम पर है. गुटबाजी खत्म करने का जिम्मा स्थानीय नेताओं पर है, लेकिन वे कुछ कर नहीं रहे हैं,” उक्त नेता ने क्विंट के साथ बातचीत में कहा.
इस गुटबाजी को खत्म नहीं किया गया, तो राहुल गांधी की इतनी कोशिशों का भी कोई खास नतीज नहीं निकलेगा और पार्टी चुनावी नुकसान झेलेगी.
कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि वोटर अधिकार यात्रा के बाद भी बिहार में राहुल गांधी की सक्रियता बनी रहेगी, ताकि कार्यकर्ताओं का उत्साह बना रहे.
वोटर अधिकार यात्रा के बाद प्रमंडलीय रैलियां होंगी, जिसमें राहुल गांधी मौजूद रहेंगे. इसके बाद गांधी मैदान में एक बड़ी रैली होगी जिसमें राहुल गांधी व गठबंधन पार्टियों के अन्य शीर्ष नेता शिरकत करेंगे. इसके अलावा हर विधानसभा सीट, जहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की है, वहां कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित होगा.एक सूत्र ने कहा
कितना कारगर होगा कांग्रेस का वैचारिक पुनर्विन्यास?
उल्लेखनीय हो कि बिहार में कांग्रेस का जनाधार मुख्य तौर पर मुस्लिम, दलित व प्रभुत्वशाली उच्च जातियां रहे हैं. लेकिन, कालांतर में मुस्लिम वोट छिटक कर आरजेडी में चला गया, उच्च जातियां बीजेपी के साथ और दलित वोट आरजेडी व जेडीयू में बंट गये.
समाजवादी विचारधारा वाली कांग्रेस का राहुल गांधी के नेतृत्व में वैचारिक पुनर्विन्यास हुआ है. अब राहुल गांधी कांग्रेस को मजबूत करने के लिए सामाजिक न्याय की बात करने लगे हैं, जो महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी की मुख्य विचारधारा है. जिला व प्रखंड अध्यक्षों की नियुक्ति में कांग्रेस ने सामाजिक न्याय को ध्यान रखा है. कई जिलों में, जहां लम्बे समय से उच्च जाति के नेता जिलाध्यक्ष थे, उनकी जगह पिछड़े व दलितों को अध्यक्ष बनाया गया है. पार्टी का राज्य अध्यक्ष राजेश कुमार हैं, जो दलित श्रेणी में आने वाले चमार समुदाय से आते हैं. उनकी नियुक्ति इसी साल मार्च में हुई है. ऐसे में आशंका ये भी है कि कांग्रेस, आरजेडी के पारंपरिक वोट बैंक को ही नुकसान पहुंचाएगी.
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन का मानना है कि कांग्रेस की तमाम कवायद का फायदा अंततः आरजेडी को ही मिलेगा.
जनाधार के मामले में भाकपा(माले) लिबरेशन, माकपा व कांग्रेस छोटी पार्टियां हैं बिहार में. लेकिन, बिहार में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों का इंडिया गठबंधन में होना RJD को फायदा पहुंचाएगा. क्योंकि अब कांग्रेस व वामपंथी पार्टियां भी सोशल जस्टिस की बात कर रही हैं, तो इससे बिहार में एंटी RJD, एंटी लालू और एंटी यादव ध्रुवीकरण निष्क्रिय होगा और पिछड़े-दलित महागठबंधन की तरफ लामबंद होंगेमहेंद्र सुमन, राजनीतिक विश्लेषक
अलबत्ता, इस यात्रा के चलते महागठबंधन में कांग्रेस ने जो बढ़त ली है, उसका फायदा उसे टिकट बंटवारे में मिल सकता है. कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, पार्टी राज्य में 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है, जो पिछले चुनाव के मुकाबले 20 कम है. मगर इस बार कांग्रेस वे सीटें मांगेंगी, जहां वह मजबूत है.
पार्टी के एक नेता ने कहा, “हमलोग कोई भी सीट नहीं ले लेंगे. हमें वो सीटें चाहिए, जहां हमारे जीतने की संभावनाएं अधिक हैं.”