बिहार चुनाव की सरगर्मी से ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश ने लोकलुभावन घोषणाओं की झड़ी लगा दी है. पिछले एक महीने के दरम्यान उन्होंने करीब आधा दर्जन घोषणाएं की हैं, जिन्हें अमलीजामा पहनाने में बिहार सरकार के खजाने पर खासा बोझ बढ़ेगा.
इनमें ताजा घोषणा प्रति माह 125 यूनिट बिजली मुफ्त देना है, मगर अन्य घोषणाओं के मुकाबले उनकी इस घोषणा की चर्चा कुछ अधिक है और इसकी वजह मुफ्त बिजली को लेकर उनका पुराना बयान है, जिसमें उन्होंने दिल्ली की तत्कालीन आप सरकार और अन्य राज्य सरकारों की इसलिए आलोचना की थी कि उन्होंने लोगों को मुफ्त बिजली देने की घोषणा की थी.
दिलचस्प बात ये भी है कि मुफ्त बिजली देने की बिहार सरकार की मंशा और इस पर वित्त विभाग की सहमति को लेकर पिछले दिनों मीडिया में जब खबरें चली थीं, तो वित्त विभाग ने प्रेस नोट जारी कर स्पष्ट तौर पर कहा था कि ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर कोई सहमति नहीं दी गई है.
13 जुलाई को वित्त विभाग की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में लिखा गया था, “कतिपय संचार माध्यमों में इस प्रकार की सूचना प्रसारित हो रही है कि वित्त विभाग द्वारा प्रत्येक माह 100 यूनिट मुफ्त बिजली प्रदान किये जाने के प्रस्ताव पर सहमति प्रदान की गई है. इस संबंध में सूचित करना है कि ऐसी कोई सहमति वित्त विभाग द्वारा नहीं दी गई है और इस संबंध में कोई भी निर्णय वित्त विभाग द्वारा नहीं लिया गया है. इस प्रकार यह खबर कि वित्त विभाग द्वारा 100 यूनिट के प्रस्ताव सहमित दी गई है, भ्रामक और तथ्यों से परे प्रतीत होता है.”
इस खंडन के तीसरे ही दिन मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी कि बिहार सरकार राज्य के सभी घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक बिजली का कोई पैसा नहीं देना होगा.
उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा कि इससे 1.67 करोड़ परिवारों को लाभ होगा.
क्या विपक्ष के दबाव में हो रही घोषणाएं
मुफ्त बिजली की घोषणा से पहले नीतीश कुमार ने 21 जून को सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के अंतर्गत एक करोड़ 11 लाख लोगों को मिल रही पेंशन की राशि 400 रुपये से बढ़ाकर 1100 रुपये करने का ऐलान किया. इसी तरह, अगले पांच वर्षों में यानी 2025 से 2030 तक बिहार के एक करोड़ युवाओं को सरकारी नौकरी और रोजगार देने की घोषणा भी उन्होंने की.
इसके अलावा सीएम ने मुख्यमंत्री कलाकार पेंशन योजना की शुरू करते हुए आर्थिक रूप से कमजोर कलाकारों को प्रति माह 3000 रुपये पेंशन देने और इंटर्नशिप करने के दौरान 12वीं पास युवाओं को 4000 रुपये, आईटीआई या डिप्लोमा पास युवाओं को 5000 रुपये और स्नातक व स्नातकोत्तर युवाओं को 6000 रुपये देने का ऐलान किया.
गौरतलब हो कि इन घोषणाओं में दो घोषणाएं – मुफ्त बिजली व पेंशन की राशि में बढ़ोतरी का वादा इंडिया अलायंस के पार्टनर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने आज से 6-7 महीने पहले ही किया था.
तेजस्वी यादव ने दिसम्बर 2024 में ही एक सार्वजनिक कार्यक्रम में वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है, तो राज्य की जनता को हर महीने 200 यूनिट बिजली फ्री दी जाएगी. उसी महीने तेजस्वी यादव ये भी कहा था कि उनकी सरकार आने पर वृद्धा पेंशन और सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि 400 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 1500 रुपये की जाएगी.
तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार की इन घोषणाओं को चुनावी हार का टेंशन करार दिया. पेंशन की राशि बढ़ाने की घोषणा पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर तेजस्वी यादव ने कहा कि वहीं, मुफ्त बिजली की घोषणा पर तेजस्वी यादव ने कहा,
"महागठबंधन की सरकार आ रही है, इसी टेंशन में एनडीए सरकार ने पेंशन की राशि बढ़ाई है. उन्होंने आगे कहा था, “उनके पास न तो सोच है, न विजन.” तेजस्वी ने आगे कहा था, “हमने पहले ही मांग की थी कि हमारी घोषणाओं को बजट प्रस्ताव में शामिल किया जाए, लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसे डर था कि श्रेय तेजस्वी ले जाएगा.”
वहीं, मुफ्त बिजली की घोषणा पर तेजस्वी यादव ने कहा, “उन्होंने कहा था कि 200 यूनिट फ्री बिजली दी जाएगी, तो आज नकलची सरकार ने नकल किया. इनके पास अपना रोडमैप और अपना विजन तो है नहीं.”
राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन भी मानते हैं कि विपक्षी पार्टियों के चुनावी वादे के मद्देनजर ही नीतीश सरकार ने ये फैसले लिये हैं. वह कहते हैं,
“ये तो सच है कि महागठबंधन और खास तौर से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पेंशन बढ़ाने, बिजली मुफ्त देने, रोजगार देने जैसे वादे लगातार कर रहे हैं और अब सरकार ने ही ये सब घोषणाएं कर दीं, तो जाहिर ही है कि सरकार विपक्ष के मुद्दे छीन रही है. सरकार में होने का ये फायदा तो होता है कि विपक्ष जो वादे करता है अगर वो आम लोगों में पॉपुलर हो गया, तो सरकार तुरंत घोषणा कर उसे लागू करके चुनाव लाभ ले सकती है.”महेंद्र सुमन
तेजस्वी यादव इन दिनों झारखंड और अन्य राज्यों के तर्ज पर बिहार में माई-बहिन सम्मान योजना लाने का वादा भी कर रहे हैं, जिसमें महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी.
उल्लेखनीय हो कि चुनाव से ठीक पहले इसी तरह की योजनाएं महाराष्ट्र, झारखंड, मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने लागू की थीं, जिसका फायदा उन्हें मिला था और इन सभी राज्यों की सरकारों ने जीत दोहराई थी.
महाराष्ट्र में वित्तमंत्री अजीत पवार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लाडकी बहिन योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देने का ऐलान किया था और चुनाव से पहले ही इसे लागू भी कर दिया था.
इसी तरह झारखंड की झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस-राजद गठबंधन सरकार ने चुनाव से पहले ‘मुख्यमंत्री मइया सम्मान योजना’ शुरू की थी। इस योजना के अंतर्गत सरकार ने 21 से 49 साल तक की महिलाओं के बैंक अकाउंट में हर महीने 1000 रुपये देना शुरू किया, जिसे बाद में बढ़ाकर 2500 रुपये किया गया.
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने भी चुनाव से पहले लाडली बहना स्कीम की घोषणा करते हुए महिलाओं को हर महीने 1250 रुपये देना शुरू किया. इसी तरह वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने लोक्खीर (लक्ष्मी का) भंडार योजना शुरू की, जिसमें महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिये जाते हैं. राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं,
“मुझे लगता है कि जल्द ही नीतीश सरकार भी महिलाओं के लिए हर महीने आर्थिक मदद की घोषणा कर सकती है.”
इसके अलावा महागठबंधन सरकारी नौकरी में १०० प्रतिशत डोमिसाइल नीति लागू करने का वादा भी कर रहा है, तो चर्चा है कि इस पर भी सरकार कुछ फैसले ले सकती है. हालांकि सरकार ने हाल ही में सरकारी नौकरियों में स्थानीय महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया है.
सरकार के खजाने पर कितना पड़ेगा बोझ?
नीतीश कुमार ने अपनी घोषणा में कहा है कि 125 यूनिट मुप्त बिजली देने से कुल 1 करोड़ 67 लाख परिवारों को लाभ मिलेगा. जाति सर्वे 2022-2023 के मुताबिक, बिहार में कुल 2.766 करोड़ परिवार रहते हैं, जिनमें से 94.42 लाख परिवारों की मासिक आय 6,000 रुपये व उससे कम है. वहीं, 81.91 लाख परिवारों की मासिक आय 6,000 से 10 हजार रुपये के बीच है. ऐसे में इस घोषणा से एक बड़ी आबादी को आर्थिक फायदा होगा. लेकिन, इस फैसले से बिहार सरकार पर खर्च का बोझ भी बढ़ेगा और बिजली सार्वजनिक बिजली कंपनियां और नुकसान झेलेंगी.
बिहार में दो सार्वजनिक बिजली कंपनियां – नॉर्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (एनबीपीडीसीएल) और साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (एसबीपीडीसीएल) बिजली वितरण करती हैं. आंकड़े बताते हैं कि इन दोनों कंपनियों को पिछले सालों में काफी आर्थिक नुकसान हुआ है. 31 मार्च 2019 से 31 मार्च 2023 तक दोनों बिजली कंपनियों को कुल 82950 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. ऐसे में 1.67 करोड़ परिवारों को 125 यूनिट बिजली मुफ्त दिये जाने से बिजली कंपनियों पर सालाना 4500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च बढ़ेगा.
वहीं, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के तहत मिलने वाली पेंशन की राशि बढ़ाने से भी आर्थिक बोझ बढ़ेगा. फिलहाल बिहार सरकार 1.11 करोड़ लोगों को हर महीने 400 रुपये बतौर पेंशन देती है, जिस पर सालाना 5328 करोड़ रुपये खर्च होता है. पेंशन की राशि बढ़ाकर 1100 रुपये कर देने से अब बिहार सरकार को सालाना 9324 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे.
इसके अलावा बिहार सरकार ने अगले पांच वर्षों में 1 करोड़ युवाओं को सरकारी नौकरी और रोजगार देने का जो वादा किया है, उस पर भी मोटी रकम खर्च होगी.
अर्थशास्त्री इसे बिहार सरकार के खजाने पर बड़ा बोझ के तौर पर देखते हैं और उनका कहना है कि इससे बिहार की आर्थिक सेहत पर खासा असर पड़ेगा.
अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी ने क्विंट के साथ बातचीत में कहा,
“सरकार के पास आय का स्रोत नहीं है, लेकिन खर्च बढ़ता जा रहा है. इस खर्च की भरपाई करने के लिए बिहार सरकार को लोन लेना होगा, जिससे सरकार पर कर्ज बढ़ेगा.”
उल्लेखनीय हो कि हाल ही में बिहार सरकार ने बड़ी संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति की और जो पहले से ठेके पर थे, उन्हें भी स्थाई किया है, ऐसे में सरकार को अच्छी खासी रकम शिक्षकों की तनख्वाह के तौर पर देनी पड़ रही है.
“ये आर्थिक बोझ राज्य की आर्थिक सेहत के लिए ठीक नहीं है और इससे अंतत: विकास कार्यों पर असर पड़ेगा. इसका असर दिख भी रहा है. पहले बिहार सरकार संबद्ध कॉलेजों को अनुदान देती थी, जिसे बंद कर दिया गया है,”अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी
वह आगे कहते हैं, “देशभर में प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद चल रहा है, जिसके चलते नीतीश कुमार को भी ये सब करना पड़ रहा है, लेकिन इसका शिकार आर्थिक तर्कसंगतता होती है. इस तरह की घोषणाएं सूबे के अच्छी आर्थिक सेहत के खिलाफ है.”
हालांकि, कुछ जानकारों का कहना है कि ये खर्च इतना अधिक भी नहीं होगा कि सरकार इसे वहन न कर सके. अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर कहते हैं,
“जब भी वंचित समाज को कुछ देने की बात होती है, तो अमूमन सवाल उठने लगता है कि इससे सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ जाएगा. लेकिन मुझे लगता है कि फ्री बिजली और पेंशन राशि में बढ़ोतरी पहले ही हो जानी चाहिए थी. लेकिन देर से लिया गया सही निर्णय है. गरीबों को सस्ती बिजली, सम्मानजनक पेंशन मिलना चाहिए, ये कोई बड़ा काम नहीं है.”
सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ने के सवाल पर उन्होंने कहा, “सरकार के पास संसाधनों की कमी नहीं है. सरकार अभी कंस्ट्रक्शन पर जो भारी खर्च कर रही है, उसे टाला जा सकता है. सरकार को प्राथमिकताएं तय करने की जरूरत है. निर्माण के क्षेत्र में कुछ ऐसे काम हैं, जिन्हें रोका जा सकता है. बिजली का जो आधुनिकीकरण हो रहा है, उसको तर्कसंगत कर दे, गांवों की बिजली का रेट कम कर दिया जाए और शहरों का रेट बढ़ा दिया जाए, तो चीजें बदल जाएंगी. उसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण की होड़ लगी हुई है, तो सरकार निजी सेक्टर से पैसे वसूले, निजी हेल्थ सेक्टर से पैसे वसूले. इस तरह के ढेर सारे सेक्टर हैं, जहां से वसूल सकती है सरकार.”
क्या एंटी इनकम्बेसी का है असर?
नीतीश कुमार की इन घोषणाओं को जानकार दो तरह से देख रहे हैं. अव्वल तो ये माना जा रहा है कि जमीन पर सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है, जिसके चलते इस तरह की लोकलुभावन घोषणाएं की गई हैं और दूसरा, ये भी कहा जा रहा है कि इस तरह की घोषणाएं भाजपा के दबाव में की जा रही है.
इसके पीछे अपनी वजहें हैं. दरअसल, पूर्व में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली में केजरीवाल सरकार द्वारा 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने की तीखी आलोचना की थी और कहा था कि वह इसके खिलाफ हैं क्योंकि इससे राज्य की आर्थिक सेहत पर असर पड़ता है. महेंद्र सुमन कहते हैं,
“फ्री बिजली देने की घोषणा तो बिल्कुल भी नीतीश कुमार का अपना फैसला नहीं लग रहा है. नीतीश कुमार इस तरह के फैसले नहीं लेते हैं. नीतीश कुमार भावनाओं में बहकर फैसले नहीं लेते हैं. वह तर्कसंगत निर्णय लेते रहे हैं लेकिन सभी को मुफ्त बिजली देने की घोषणा कतई तर्कसंगत निर्णय नहीं है. नीतीश कुमार अगर खुद ये फैसला लेते, तो मुफ्त बिजली स्कीम से अमीरों को बाहर रखते और जरूरतमंदों को इसमें शामिल करते.”महेंद्र सुमन
नवल किशोर चौधरी कहते हैं, “20 साल से बिहार में एनडीए की सरकार है. नीतीश सरकार की यूएसपी सुशासन था, लेकिन हाल के समय में सुशासन कमजोर पड़ा है जिससे लोगों में गुस्सा है, उस गुस्से को खत्म करने के लिए ऐसी घोषणाएं हो रही हैं.”
“चूंकि विपक्षी पार्टियां भी सत्ता में आने के लिए लोकलुभावन वादे कर रही हैं, तो उसके जवाब में नीतीश सरकार को भी ऐसी घोषणाएं करनी पड़ रही हैं. आखिरकार उन्हें भी तो सत्ता बचानी है,”नवल किशोर चौधरी
डीएम दिवाकर इन घोषणाओं के पीछे एंटी इनकम्बेंसी को वजह मानते हैं. उन्होंने कहा, “एंटी इनकम्बेंसी से बचने के लिए ही उन्होंने ये सब किया है, लेकिन इतने से लोगों के गुस्से को कम नहीं किया जा सकता है.”
