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'सपिंड विवाह' क्या है? दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद क्यों हो रही इसकी चर्चा?

Sapinda Marriage: एक महिला ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5(v) को चुतौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.

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भारत में विवाह का एक मामला सुर्खियों में है. दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High court) के एक फैसले के बाद इसकी चर्चा हो रही है. दरअसल, एक महिला ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5(v) को चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. ये मामला 'सपिंड विवाह' (Sapinda Marriage) का है.

चलिए आपको बताते हैं कि ये पूरा मामला क्या है? 'सपिंड विवाह' क्या होता है और हाई कोर्ट ने क्यों महिला की याचिका खारिज कर दी?

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'सपिंड विवाह' क्या है?

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 3(f)(ii) के तहत दो लोगों के पूर्वज अगर एक ही थे तो उनके विवाह को सपिंड विवाह कहा जाएगा.

हिंदू विवाह अधिनियम के मुताबिक, लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक शादी नहीं कर सकता/ सकती. इसका मतलब यह है कि अपनी मां की ओर से, कोई व्यक्ति अपने भाई-बहन (पहली पीढ़ी), अपने माता-पिता (दूसरी पीढ़ी), अपने दादा-दादी (तीसरी पीढ़ी) या किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता है जो तीन पीढ़ियों के भीतर इस वंश से आते हैं. वहीं पिता की तरफ से पांच पीढ़ियों यानी दादा-दादी के दादा-दादी तक तक सपिंड विवाह की पाबंदी है. मतलब कि लड़का या लड़की के बीच पिता की तरफ से पिछली पांच पीढ़ियों तक कोई रिश्ता मान्य नहीं होगा.

अगर कोई विवाह सपिंड विवाह होने की धारा 5(v) का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है, और ऐसी कोई स्थापित प्रथा नहीं है जो इस तरह की प्रथा की अनुमति देती हो, तो ये अमान्य घोषित होगा. इसका मतलब यह होगा कि विवाह शुरू से ही अमान्य था, और ऐसा माना जाएगा जैसे कि यह कभी हुआ ही नहीं.

क्या सपिंड विवाह को मान्यता मिल सकती है?

'हां'- एकमात्र अपवाद उसी प्रावधान के अंतर्गत है. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, जब प्रत्येक व्यक्ति के 'रूढ़ी और प्रथा' , सपिंड विवाह की अनुमति देते हैं तो उस विवाह को मान्य माना जाएगा.

'कस्टम' यानी 'रूढ़ी और प्रथा' शब्द की परिभाषा हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 3(ए) में प्रदान की गई है. इसमें कहा गया है कि एक प्रथा को "लगातार और समान रूप से लंबे समय तक मनाया जाना चाहिए", और इसे स्थानीय क्षेत्र, जनजाति, समूह या परिवार में हिंदुओं के बीच पर्याप्त वैधता प्राप्त होनी चाहिए, जैसे कि इसे "कानून की शक्ति" प्राप्त हो.

इन शर्तों के पूरा होने के बाद भी किसी प्रथा की रक्षा नहीं की जा सकती. विचाराधीन नियम "निश्चित होना चाहिए और अनुचित या सार्वजनिक नीति के विपरीत नहीं होना चाहिए" और, "किसी नियम के मामले में [जो] केवल एक परिवार पर लागू होता है", इसे "परिवार द्वारा बंद नहीं किया जाना चाहिए".

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क्या है पूरा मामला?

'सपिंड विवाह' (Sapinda Marriage) पर ये पूरी चर्चा दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद आई है, जिसमें कोर्ट ने प्रतिबंध की फिर से पुष्टि की है. महिला ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5(v) की संवैधानिकता को दी गई चुनौती थी, जो दो हिंदुओं के बीच विवाह पर प्रतिबंध लगाता है अगर वो एक-दूसरे के 'सपिंड' हैं- "जब तक उनमें से प्रत्येक को नियंत्रित करने वाली रीति-रिवाज ('रूढ़ी और प्रथा') दोनों के बीच विवाह की अनुमति नहीं देती".

सोमवार, 22 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए महिला की याचिका को खारिज कर दिया

अदालत ने कहा कि "अगर विवाह में साथी चुनने को बिना नियमों के छोड़ दिया जाए, तो अनाचारपूर्ण रिश्ते को वैधता मिल सकती है."

दरअसल, साल 2007 में महिला याचिकाकर्ता के पति ने कोर्ट में साबित कर दिया था कि उसकी शादी सपिंड थी और महिला के सुमदाय में ऐसी शादी नहीं होती है. इसके बाद अदालत ने उनकी शादी को अमान्य घोषित कर दिया था.

इसके बाद महिला ने लोअर कोर्ट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. लेकिन अक्टूबर 2023 में हाईकोर्ट ने महिला की याचिका खारिज कर दी.

इसके बाद महिला ने सपिंड विवाह पर प्रतिबंध की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए फिर से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. महिला का तर्क था कि प्रथा का कोई प्रमाण न होने पर भी सपिंड विवाह प्रचलित हैं. इसलिए, धारा 5(v) जो सपिंड विवाह पर रोक लगाती है जब तक कि कोई स्थापित प्रथा न हो, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करती है.

याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि शादी को दोनों परिवारों की सहमति मिली थी, जिससे शादी की वैधता साबित होती है.

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हाई कोर्ट ने क्या कहा?

दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को योग्य नहीं माना.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने एक स्थापित परंपरा का "पुख्ता सबूत" पेश नहीं किया, जो एक सपिंड विवाह को सही ठहराने के लिए जरूरी है.

दिल्ली HC ने यह भी कहा कि विवाह में साथी का चुनाव नियम के अधीन हो सकता है. इसे ध्यान में रखते हुए, अदालत ने माना कि महिला ने यह दिखाने के लिए कोई "ठोस कानूनी आधार" पेश नहीं किया कि सपिंड विवाह के खिलाफ प्रतिबंध समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

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दूसरे देशों में सपिंड विवाह को लेकर क्या नियम हैं?

कई यूरोपीय देशों में, अनाचार (incestuous) माने जाने वाले रिश्तों पर कानून भारत की तुलना में कम कठोर हैं. फ्रांस में 1810 की दंड संहिता के तहत अनाचार के अपराध को समाप्त कर दिया गया. यहां अगर दो वयस्क आपसी सहमति से साथ हैं तो रिश्ता मान्य होगा. ये पीनल कोड नेपोलियन बोनापार्ट के समय से लागू है. उस समय बेल्जियम में भी यह कोड लागू किया गया था.

1867 में बेल्जियम में एक नई दंड संहिता लागू की गई, इस तरह के रिश्तों को वहां कानूनी मान्यता प्राप्त है.

पुर्तगाली कानून भी अनाचार को अपराध नहीं मानता है. आयरलैंड गणराज्य ने 2015 में समान-लिंग विवाह को मान्यता दी, लेकिन इसमें अनाचार माने जाने वाले रिश्तों को शामिल नहीं किया गया. 

इतालवी कानून के मुताबिक, सपिंड रिश्ते तभी अपराध है जब यह "पब्लिक स्कैंडल" का कारण बनता है.

वहीं अमेरिका के 50 राज्यों में व्‍यभिचारपूर्ण शादियों को अवैध माना जाता है. पर इसमें अपवाद के तौर पर दो राज्य हैं, न्यू जर्सी और रोड आइलैंड. इन दो राज्यों में अगर दो वयस्क लोग आपसी सहमति से ऐसे रिश्ते में हैं तो इसे अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है.

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