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दिल्ली के तुगलकाबाद में हजारों बेघर: बुलडोजर के नीचे दबे 'सपनों के मलबे' | Video

Tughlakabad Demolition: ये लोग इन घरों में एक दशक से अधिक समय से रह रहे थे और इनके पास गैस और बिजली के कनेक्शन थे

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दिल्ली के तुगलकाबाद गांव के छुरिया मोहल्ले में 30 अप्रैल को भारी पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती के बीच बुलडोजर से अवैध बस्तियों को तोड़ा गया. इस बुलडोजर एक्शन के एक सप्ताह पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को तुगलकाबाद किले के अंदर और उसके आसपास से चार सप्ताह के भीतर अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया था.

दो दिनों तक डिमोलिशन चला, जिससे हजारों मजदूर और उनके परिवार बेघर हो गए. बुलडोजर चलने के कुछ दिनों बाद मैं तुगलकाबाद गया, और मैंने देखा कि वहां के निवासी अभी भी मलबे से अपना सामान खोजने की कोशिश कर रहे हैं. डिमोलिशन के बाद कुछ दिनों तक वहां खूब बारिश भी हुई थी. इसने निवासियों में घबराहट और लाचारी और भी अधिक बढ़ा दिया.

ये लोग इन घरों में एक दशक से अधिक समय से रह रहे थे और इनके पास गैस और बिजली के कनेक्शन थे. इन एड्रेस पर उनकी सरकारी आईडी जैसे आधार, पैन आदि कार्ड रजिस्टर्ड थे.

निवासी मुकेश कुमार ने अपना बिजली का बिल और पेमेंट स्लिप दिखाया. उन्होंने अपना गैस कनेक्शन और इस पते पर दर्ज आधार कार्ड दिखाया.

"यहां रहने वाले लोगों ने स्थानीय बिल्डरों से प्लाट खरीदे. बिल्डरों ने फर्जी कागज दिखाकर प्लाट बेच दिया. यहां रहने वाले लोगों ने जमीन पर कब्जा नहीं किया है. उन्होंने इसे बिल्डरों से खरीदा था. कुछ लोगों ने किश्तों में प्लाट खरीदे, कुछ ने कैश और दूसरों ने अपनी संपत्ति बेचकर इसे खरीदा. 20-30 साल से सड़क के दूसरी तरफ किराए पर रहने वाले लोगों ने यहां प्लॉट खरीदे. उन्होंने यहां अपने सपनों का घर बनाने की सोची.'
आलमदार, निवासी

इन लोगों ने अपने सिर से छत खो दी है. ये निवासी दिल्ली के मौसम में जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, कहीं और बसाए जाने की मांग कर रहे हैं.

एक निवासी सबिता ने कहा, "बारिश में मैं और मेरे बच्चे पूरी तरह भीग गए. हमें भागकर जंगल में जाना पड़ा. मेरा कुछ सामान मेरे बिस्तर के नीचे है, और मेरा कई सामान मलबे में दब गया है, और कुछ सामान मैंने अपने रिश्तेदार के घर रखा है. मेरा बहुत सा सामान नष्ट हो गया है."

सबिता दिन-रात अपने घर के मलबे पर बिता रही हैं क्योंकि वह अपने परिवार के लिए किराए का मकान नहीं ले सकती हैं. सबिता ने कहा, "मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं अपने बच्चों के साथ कहां जाऊं."

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