ADVERTISEMENTREMOVE AD

Srilanka की हालत से भारत, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश क्या सबक ले सकते हैं?

Srilanka कभी स्थिर देश था. यहां तक कि कई भारतीय राज्यों से बहुत बेहतर स्थिति में था. लेकिन आज दयनीय हालत में है.

Published
story-hero-img
i
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

श्रीलंका के महल में प्रदर्शनकारियों के घुसने, स्विमिंग पुल में धूम मचाने और किचन में खाने का मजा लेने की तस्वीरें भले ही बहुत मजेदार हों लेकिन सच बहुत तल्ख है. दूसरी जगह भी ऐसे हालात आ सकते हैं. यह सिर्फ शासकों के भारी भ्रष्टाचार में डूबने भर की बात नहीं है. युद्ध की वजह से हजारों मील दूर दूसरे समाज और जिंदगी के टूटने बिखरने की कहानी भी है. मत भूलिए कभी श्रीलंका एक स्थिर देश था. यहां तक कि कई भारतीय राज्यों से बहुत बेहतर स्थिति में था. लेकिन आज दयनीय हालत में है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

श्रीलंका के पतन की कहानी

खराब मैनेजमेंट की वजह से श्रीलंका का पतन में जाना खुद में एक कहानी है. इसे एशियन डेवलपमेंट बैंक ने अपनी एक टाइटिल “ अ टेल ऑफ टू डेफिसिट” से समझाया है. इसमें बताया गया था कि कैसे जब देश का राष्ट्रीय खर्च कमाई से ज्यादा बढ़ जाए और उत्पादों और सेवाओं का उत्पादन गिर जाए तो क्या अंजाम होता है? इस सबके बीच देश पर चीन का 11 बिलियन डॉलर कर्ज और कुल विदेशी कर्ज 51 बिलियन डॉलर चढ़ चुका था. संकट जैसे बढ़ा कोलंबो ने बीजिंग से राहत मांगी लेकिन वहां से कुछ नहीं मिला.

Summary

• पाबंदियों के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है, और ग्लोबल ग्रोथ और धीमी होने जा रही है. यह साल 2021 की 6.1 फीसदी की तुलना में साल 2022 और 2023 में 3.6 फीसदी रह सकती है.

• विकासशील देश इसकी भारी कीमत भुगत रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सूडान में पेट्रोल 63 फीसदी, सियरा लियोन में 50 फीसदी, घाना 42 फीसदी और UK में 9 फीसदी तक बढ़ गया है.

• 26 मई से पाकिस्तान में हाई स्पीड डीजल 83 %, पेट्रोल 56 % और केरोसीन की कीमतें 73 %, तक बढ़ गई हैं. जहां नेपाल भी ‘यूक्रेन शॉक’ से गुजर रहा है वहीं बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉरपोरेशन रोजाना 90 CR बांग्लादेशी टाका का नुकसान झेल रही है.

रूस-यूक्रेन युद्ध का खामियाजा भुगत रहे विकासशील देश

श्रीलंका में बैलेंस ऑफ पेमेंट यानि भुगतान का संकट बार बार होने के बाद भी अर्थव्यस्था ठीक से चलने लगी थी, हालांकि 2021 की शुरुआत में फिर से कोविड 19 महामारी की छाया ने इसे घेर लिया था. फिर यूक्रेन युद्ध आया और इसने पहले से खराब हालात को और बिगाड़ दिया. डीजल की कीमतें 60 फीसदी तक बढ़ गई. इसने ना सिर्फ देश में इलेक्ट्रिसिटी जेनरेशन को खत्म कर दिया बल्कि मालभाड़े और दूसरी परेशानी को बढ़ा दिया. मछुआरे तक को जमीन पर रहना पड़ा क्योंकि तेल पूरा सूख गया था. ये सब तब हो रहा था जबकि भारत ने इमरजेंसी क्रेडिट लाइन दे रखी थी. साफ है श्रीलंका युद्ध से आई मुश्किलों को झेल नहीं सका.

तमाम पाबंदियों के साथ जो रूस और यूक्रेन का युद्ध चल रहा है उससे विकासशील देशों को सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. ग्लोबल ग्रोथ में धीमापन आ रहा है. साल 2021 के 6.1 फीसदी की तुलना में साल 2022 और 2023 में ये लुढ़ककर 3.6 फीसदी पर आने की संभावना है. जनवरी में जो अनुमान दिया गया था उससे यह 0.8 और 0.2 परसेंट प्वाइंट का ही अंतर है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानि IMF की वर्ल्ड आउटलुक रिपोर्ट ने भारी चेतावनी दी है. इसने लिखा "2023 के बाद ग्लोबल ग्रोथ में मध्यम अवधि में 3.3 % की कमजोरी आने का अनुमान है. युद्ध की वजह से कमोडिटी की कीमतें बढ़ीं और कीमतों पर दबाव बढ़ा.इसने दुनिया भर की इकोनॉमी को महंगाई के चक्र में धकेल दिया. विकसित देशों में यह 5.7 % तो उभरते बाजार और विकासशील देशों में 8.7 % पर आ गई है".

आसान शब्दों में अगर सीधे कहें तो इसकी वजह से विकासशील देशों को बहुत ज्यादा कीमतें भरनी पड़ रही हैं. डाटा के मुताबिक सूडान में पेट्रोल की कीमतें 63 %, सियरा लियोन में 50 % और घाना में 42 % और UK में 9 % तक बढ़ गई हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

दक्षिण एशिया में उबाल

अब अपने पड़ोस को देखिए. पाकिस्तानी न्यूजपेपर डॉन ने जून के मध्य में बताया कि 20 दिनों में सब्सिडी में तीसरी कटौती के साथ 26 मई से हाई-स्पीड डीजल, पेट्रोल और मिट्टी के तेल की कीमतों में क्रमशः 83%, 56% और 73% की भारी बढोतरी हुई है. यह पाकिस्तान के लिए खतरनाक समय है. विश्व आर्थिक मंच की ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट में कर्ज को देश की प्राथमिक चुनौती बताया गया है. सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 80% है. एक डॉलर का मूल्य पाकिस्तानी करेंसी में 200 से ज्यादा हो गया है. हालांकि कुछ रिफॉर्म के लिए कदम उठाए गए हैं.. अगर नेता अपने सियासी झगड़े दूर रखें, अगर माहौल खराब ना हो और कोविड का कोई दूसरा संक्रमण नहीं आए तो हालात कुछ ठीक हो सकते हैं ..लेकिन फिर इसमें बहुत सारे अगरमगर जुड़े हुए हैं.

दूसरा पड़ोसी नेपाल पर नजर डालें तो यह भी ‘यूक्रेन शॉक’ से गुजर रहा है. IMF की टीम ने कहा है कि

जहां नेपाल कोविड-19 से हुई परेशानी से अब धीरे धीरे उबरने की कोशिश में है वहीं यूक्रेन की वजह से नेपाल की इंपोर्ट से जुड़ी जो निर्भरता है वो बुरी तरह से प्रभावित हुई है. महंगाई तेजी से बढ़ी है और अंतरराष्ट्रीय यानि फॉरेन रिजर्व कम हुआ है.

नेपाल की करेंसी भयंकर गोता लगा चुकी है और अंदेशा है कि कहीं बैलेंस ऑफ पेमेंट यानि भुगतान का संकट ना खड़ा हो जाए. इंपोर्ट की लागत बढ़ने से व्यापार घाटा साल दर साल के हिसाब से बढ़कर 34.5 फीसदी पर पहुंच गया जो नेपाली करेंसी में 1.16 ट्रिलियन (9.5 बिलियन डॉलर, 8.8 bn पाउंड) में पहुंच गया है.

खतरा क्या है ? काठमांडू इसका ठीकरा नई दिल्ली पर फोड़ सकता है. क्योंकि नेपाली करेंसी को भारतीय रुपए से जोड़ा जाता है, भले ही नेपाल का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व घटकर काफी कम हो गया हो. अब असली समस्या है क्या? कोविड 19 महामारी ने नेपाल जैसे गरीब देशों को बाहर से मिलने वाली वित्तीय सहायता जो कि करीब 700 बिलियन डॉलर है उसे पहले ही घटा दिया है. यह राशि 36 गरीब देशों की GDP के बराबर है. युद्ध की वजह से ये आंकड़ा और ज्यादा बढ़ सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बांग्लादेश की कहानी

दक्षिण एशिया के दूसरे देश भी संकट में हैं. कोविड के दौरान भी बांग्लादेश खुद को अच्छे से बचाने में कामयाब रहा लेकिन अब तेल की बढ़ती कीमतों, खाने पीने की चीजों के दाम बढ़ने और फर्टिलाइजर मार्केट में उठापटक से इसकी हालत खराब हो रही है. बांग्लादेश के ऊर्जा मंत्री ने जून में कहा था कि बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉरपोरेशन को रोजाना करीब 90 करोड़ बांग्लादेशी टाका का नुकसान हो रहा है. बांग्लादेश सरकार ने नंवबर 2021 में ये जानते हुए कि इसका क्या असर होगा डीजल की कीमतें 23 फीसदी तक बढ़ाया था.

भारत के लिए सबक

जहां तक भारत की बात है, उस रिपोर्ट में चेताया गया था कि किसी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए कर्ज को ठीक रखना सबसे बड़ी चुनौती है. इसके अलावा इसमें क्लाइमेट चेंज पर जो कम कदम उठाए जा रहे हैं उसकी भी बात की गई है. मत भूलिए कि ‘दुनिया को खिलाने’ का जो वादा किया गया था उसे बैक सीट पर रख दिया गया है कि क्योंकि गेंहू की जो बंपर फसल हुई था वो भयानक गर्मी के कारण नष्ट हो गई. इससे ज्यादा खराब और ये भी है कि भारत जैसा देश अब अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयला का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा बढ़ा रहा है. चीन की भी हालत कुछ ऐसी ही है. तमाम कोशिशों और सभी स्रोतों के इस्तेमाल करने के बाद भी वहां इकोनॉमी में सुस्ती है. हालांकि कुछ लोग इसे एक ऐसा फैक्टर मान सकते हैं जो तमाम बुरी खबरों के बीच बेहतर है लेकिन ये वर्ल्ड इकनॉमी यानि विश्व अर्थव्यवस्था के लिए गुड न्यूज तो नहीं ही होगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या हमें एक नई अंतरराष्ट्रीय संस्था चाहिए ?

यहां तक कि जब श्रीलंका बुरी तरह से बिखरा हुआ है तब भी हाल ही में जी -20 सम्मेलन में, IMF की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा चीन और दूसरे सदस्य देशों से उन देशों को राहत पहुंचाने के लिए अपील करती नजर आईं जो देश पहले से ही बहुत कर्ज में फंसे हुए हैं. उन्होंने ये चेतावनी भी दी कि अगर ऐसा अभी नहीं कर पाए तो ये सभी के लिए हानिकारक हो सकता है. दूसरे शब्दों में, वो चेतावनी दे रही थी कि कोई भी इस खतरनाक हालात से एक दम बचा हुआ नहीं है. जो चीज एक को नीचे खींचती है वो दूसरे को भी तेज गिरावट में धकेल सकती है. गौर कीजिए कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा सॉवरेन क्रेडिटर है. ये सबसे ज्यादा प्राइवेट सेक्टर का क्रेडिटर भी है.

2017 तक विश्व बैंक और आईएमएफ को पछाड़कर चीन दुनिया का सबसे बड़ा आधिकारिक क्रेडिटर बन गया है. कर्ज आम तौर पर वाणिज्यिक होते हैं. एक एक्सपर्ट स्टडी में चीन ने जो कर्ज दिए हैं उसका 50% सबसे व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले आधिकारिक आंकड़ों में नहीं बताए गए हैं. चीन अगर चाहता है कि वो फेल नहीं हो तो उसे दूसरो की मदद करनी होगी.

फिर, एक और आंकड़ा है. IMF बोर्ड में 16.5% के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे बड़ा वोटिंग ब्लॉक है. 6.2% के साथ जापान, 5.3% के साथ जर्मनी और 4% के साथ फ्रांस और यूके हैं. जापान और शायद फ्रांस को छोड़कर, ये ऐसे देश भी हैं जो रूस को युद्ध खत्म करने के लिए बातचीत के टेबल पर लाने से इनकार करते हैं. रूसी नेतृत्व को 'युद्ध अपराधी' कहना भले ही अभी आकर्षक लगे, लेकिन इस तरह के नामकरण से इकनॉमी में खतरनाक गिरावट बंद नहीं होगी. अभी किसी भी हालत में युद्ध रोकने और उसे समाप्त करने के लिए मजबूर करना वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है.

इसको करने का एक तरीका ये हो सकता है कि सभी एक साथ आएं. संयुक्त राष्ट्र के मेकेनिज्म से हटकर दोनों पक्षों से बातचीत करना शुरू करें. याद रखिए जब अंतरराष्ट्रीय संगठन विश्व युद्ध की वजह से बेकार हो गए थे तभी संयुक्त राष्ट्र बना था. अब ये तीसरी बार है जब यूरोप ने एक तीसरे “विश्व युद्ध”(.हां इसे यही कहा जाना चाहिए) में सबको धकेल दिया है. हो सकता है तब शायद कोई जिम्मेदारी ले और फिर एक नई अंतरराष्ट्रीय संस्था बने भले ही वो कैसा भी क्यों ना हो.

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×