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Explained: पूजा स्थल अधिनियम क्या है? संभल और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से समझिए

Places of Worship Act 1991: साल 1991 में, राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बीच, भारत में पूजा स्थल अधिनियम लागू हुआ था.

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क्या है पूजा स्थल अधिनियम?

साल 1991 में, राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बीच, भारत में पूजा स्थल अधिनियम [Places of Worship (Special Provisions) Act] लागू हुआ.

एक्ट के असल मकसद :

  • पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को उसी तरह बनाए रखना, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को था.

  • किसी भी पूजा स्थल के बदलाव पर रोक लगाना.

लेकिन इस एक्ट ने अयोध्या विवाद को छूट दी, और इस छूट के कारण राम मंदिर का बनना संभव हो सका.

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एक्ट के पीछे के तर्क

इस कानून का मकसद था:

  • धार्मिक स्थलों की मौजूदा स्थिति को बचाए रखना

  • ऐतिहासिक वजहों से उठे साम्प्रदायिक विवाद को रोकना

यह भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार) और 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मतलब) के अनुरूप है.

रुकिए! बराबरी? धर्म की स्वतंत्रता? कैसा संविधान? आज के भारत में हिंदुत्व ग्रुप इस एक्ट को प्राचीन हिंदू विरासत को 'दोबारा पाने' के रस्ते में एक रुकावट के रूप में देखते हैं, जिसे सदियों पहले कुछ मुगल शासकों ने नष्ट कर दिया था.

एक्ट के सामने कानूनी चुनौतियां

इस एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिससे और भी विवाद पैदा हो गए हैं.

भले ही 2019 के अयोध्या फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के इरादे को बरकरार रखा था.

"ये एक्ट एक विधायी हस्तक्षेप है जो हमारे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों मतलब सेकुलर वैल्यूज की एक अनिवार्य विशेषता के रूप में नॉन रेट्रोग्रेशन को बनाए रखता है"
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2019 के अयोध्या फैसले में

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के बीच समानता के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है.

हाल के विवाद और उनके निहितार्थ

हिंदू ग्रुप का दावा है कि मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर बनाई गई थी.

इसी तरह, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद पर भी दावा किया जा रहा है कि इसे काशी विश्वनाथ मंदिर के ऊपर बनाया गया था.

पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने मस्जिद के सर्वे की इजाजत दी, और बाद में मस्जिद के तहखाने में पूजा की अनुमति देने वाले स्थानीय अदालत के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

यही कारण है कि उनकी आलोचना की जा रही है और उनपर प्लेसज ऑफ वर्शिप एक्ट के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया जा रहा है.

साल 2023 के अक्टूबर महीने में, ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान, 1991 के एक्ट की वजह से ज्ञानवापी मामले पर रोक लगाने के तर्क के जवाब में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि "एक्ट कहता है कि आप स्थान की प्रकृति को बदल या परिवर्तित नहीं कर सकते. वे स्थान के परिवर्तन की मांग नहीं कर रहे हैं."

इन कार्रवाइयों ने एक्ट के लागू होने की वैधता पर संदेह पैदा किया है, जिससे इसके प्रावधानों को सीधे तौर पर चुनौती मिल रही है.

इसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के संभल में हुई घटनाएं हैं.

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संभल की शाही जामा मस्जिद को अपनी ऐतिहासिक स्थिति की वजह से कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

महंत ऋषिराज गिरि और 7 अन्य लोगों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने याचिका दायर कर दावा किया था कि संभल में शाही जामा मस्जिद पहले हरिहर मंदिर था. वैसे विष्णु शंकरजैन वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद मामले में भी वकील हैं.

उसी दिन 19 नवंबर को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) आदित्य सिंह की अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली और मुगलकालीन मस्जिद का सर्वे कराने का आदेश दिया.

जल्द ही यह अफवाह फैल गई कि जामा मस्जिद को अदालत की अनुमति के बिना खोदा जा रहा है, जिसके कारण अफरातफरी मच गई, भीड़ जमा हो गई और फिर झड़पें और आगजनी. इस दौरान पांच लोग मारे गए- जो कि मुसलमान हैं.

संभल में हिंसक झड़पों और सांप्रदायिक अशांति के बाद भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है.

इन विवादों के कारण अतीत में सांप्रदायिक तनाव हुए हैं, साथ ही नाजुक सांप्रदायिक संतुलन और ऐतिहासिक विवादों के फिर से बढ़ने के खतरे हैं.

यह याद दिलाता है कि 33 साल पहले क्यों प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट देश की संसद में पास किया गया था.

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