"यह सिर्फ फेसबुक या टिकटॉक की बात नहीं है. यह उन नेताओं की बात है जो हमारे टैक्स लूटते हैं, जो अमीर बनते जाते हैं जबकि युवाओं के पास नौकरियां नहीं हैं. अब बस, बहुत हो गया," द क्विंट से 23 साल की लॉ ग्रेजुएट सादिक्षा कहती हैं, जो मंगलवार, 9 सितंबर को काठमांडू के व्यस्त कलंकी इलाके में दोस्तों के साथ विरोध-प्रदर्शन कर रही हैं.
मंगलवार को नेपाल की राजधानी में भारी अफरा-तफरी का माहौल रहा. हजारों गुस्साए युवा प्रदर्शनकारियों ने संसद, राष्ट्रपति भवन, सिंह दरबार, सुप्रीम कोर्ट, राजनीतिक और सरकारी दफ्तरों में लूटपाट करते हुए आग लगा दी. प्रदर्शनकारियों ने शीर्ष नेताओं के घरों में भी घुसपैठ की. इस घटनाक्रम ने देश को सबसे बड़े राजनीतिक संकट में धकेल दिया है.
बढ़ती हिंसा के बीच दोपहर तक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. दो दिन से चल रहे इस विद्रोह में अब तक कम से कम 23 लोगों की जान जा चुकी है और दर्जनों घायल हुए हैं.
राजनीतिक उथल-पुथल की आदी हो चुकी काठमांडू में तबाही के इस विशाल पैमाने ने सबको हिला दिया. प्रदर्शनकारियों ने घेराबंदी तोड़ दी, संघीय संसद भवन के परिसर में घुस गए और भवन के कुछ हिस्सों में आग लगा दी. नेपाल पुलिस और सशस्त्र पुलिस बल (APF) ने आत्मसमर्पण कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने सुरक्षा बलों के हथियार और वाहन छीन लिए.
नेपाल में चल रहे इस विरोध-प्रदर्शन को "Gen-Z आंदोलन" कहा जा रहा है. पिछले सप्ताह ये विरोध-प्रदर्शन तब भड़क उठा जब सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और एक्स सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया. अधिकारियों ने दावा किया कि यह पाबंदी इसलिए जरूरी थी ताकि विदेशी प्लेटफॉर्म नेपाल में रजिस्ट्रेशन कराएं और टैक्स भरें. लेकिन आलोचकों और एक्टिविस्ट ने इसे विरोध की आवाज दबाने की एक छुपी हुई कोशिश बताया.
सोशल मीडिया जो Gen-Z आबादी के लिए एक बड़ा सार्वजनिक मंच है, उसे बंद करना विरोध-प्रदर्शन के लिए बस एक टर्निंग प्वाइंट था, असल में युवा लंबे समय से नेताओं के भ्रष्टाचार और अयोग्यता से नाराज और निराश थे.
यह फैसला ऐसे देश के लिए एक बड़ा झटका था, जहां लाखों युवा न केवल संचार के लिए, बल्कि छोटे कारोबार, शिक्षा और जन आंदोलनों के लिए भी सोशल मीडिया पर निर्भर हैं.
'राजनेता हमारे टैक्स के पैसे का इस्तेमाल...'
मंगलवार को सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों में से एक ने द क्विंट से कहा, "भ्रष्टाचार बढ़ गया है... कई युवा सोशल मीडिया के माध्यम से व्यापार करते हैं, लेकिन सरकार उनकी सफलता बर्दाश्त नहीं कर सकती." एक अन्य ने तीखे स्वर में पूछा, "नेता हमारे टैक्स का इस्तेमाल विदेश यात्रा करने के लिए कर रहे हैं. जिन लोगों की पहले अच्छी जीवनशैली नहीं थी, राजनीति में आने के बाद उनमें इतना बदलाव कैसे आ गया?"
पूरे देश में तेजी से अशांति फैल गई. प्रदर्शनकारियों ने सीपीएन-यूएमएल पार्टी मुख्यालय, नेपाली कांग्रेस पार्टी मुख्यालय में आग लगा दी और सीपीएन (माओवादी सेंटर) पार्टी कार्यालय में तोड़फोड़ की. देश के वरिष्ठ नेताओं- केपी शर्मा ओली, पूर्व प्रधानमंत्रियों शेर बहादुर देउबा और पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' के घरों में तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई.
प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी डॉ. अर्जू राणा जैसे राजनीतिक नेताओं को भी बंधक बना लिया. हालांकि, बाद में सेना ने उन्हें बचाया. नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल के कई अन्य नेताओं के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ.
अभी तक इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि सेना ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों और अन्य प्रमुख राजनीतिक नेताओं को कहां रखा है.
काठमांडू के 17 वर्षीय छात्र बिलोचन पौडेल ने कहा कि Gen-Z को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया गया. उन्होंने कहा, "तीन प्रमुख पार्टियों को बार-बार मौके मिलते हैं. वे कुछ नहीं करते, न तो अच्छा प्रशासन लाते हैं और न ही विकास. वे दूसरों को भी काम करने नहीं देते." इसके साथ ही उन्होंने कहा, "स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि आम लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं भी नहीं मिल पा रही हैं. हमें कुप्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन करना होगा… तभी देश आगे बढ़ सकता है."
काठमांडू के पेप्सीकोला निवासी 24 वर्षीय बिक्रम राउत मंगलवार सुबह न्यू बानेश्वर में विरोध प्रदर्शन में शामिल थे. उनके मुताबिक, कुप्रशासन ने देश के विकास को रोक दिया है. "भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी ने नेपाल को घेर लिया है. मैंने Gen-Z आंदोलन में हिस्सा लिया क्योंकि हालात बहुत बिगड़ गए हैं," उन्होंने कहा.
काठमांडू ठप, हवाईअड्डे बंद
इस उथल-पुथल ने राजधानी को ठप्प कर दिया. नेपाल का सबसे व्यस्त और एकमात्र प्रमुख अंतरराष्ट्रीय प्रवेशद्वार- त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे को बंद करना पड़ा, जिससे दर्जनों उड़ानें रद्द हो गईं और सैकड़ों यात्री फंस गए. काठमांडू में सड़कें ब्लॉक कर दी गईं. वहीं नेपाली सेना की बख्तरबंद गांड़ियां प्रमुख चौराहों पर स्पॉटलाइट की रोशनी में गश्त करते दिखे.
दोपहर में एक बयान जारी करते हुए ओली ने कहा कि वह "शांति और स्थिरता के हित में तत्काल प्रभाव से" इस्तीफा दे रहे हैं. उनका यह फैसला गृह मंत्री रमेश लेखक के पद छोड़ने के 24 घंटे से भी कम समय बाद आया, जिन्होंने कहा था कि सोमवार को पुलिस की गोली से मारे गए प्रदर्शनकारियों की मौत के लिए वह "नैतिक जिम्मेदारी" लेते हैं.
अधिकारियों ने काठमांडू और अन्य महत्वपूर्ण शहरों में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू का आदेश दिया था, लेकिन प्रदर्शनकारियों के फिर से इकट्ठा होने के कारण यह आदेश बेअसर रहा. स्कूल और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद कर दिए गए हैं, वहीं अस्पताल घायलों से भरे हैं.
लेकिन प्रदर्शनकारी अड़े रहे. राष्ट्रपति भवन के सामने राष्ट्रीय ध्वज लिए 23 वर्षीय छात्र अबिन श्रेष्ठ ने द क्विंट से बात करते हुए कहा, "हम अपने भविष्य के लिए यहां हैं. हम इस देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना चाहते हैं ताकि सभी लोग को आसानी से स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा मिल सके."
4 सितंबर को सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगने के कुछ ही घंटों बाद, इस कदम की निंदा करने वाले हैशटैग वायरल हो गए और छात्र सड़कों पर उतर आए. 8 सितंबर तक हजारों प्रदर्शनकारी, जिनमें ज्यादातर युवा थे, काठमांडू, पोखरा, विराटनगर, इटाहारी और अन्य शहरों में जमा हो गए और प्रतिबंध को तुरंत हटाने और भ्रष्टाचार से निपटने के लिए व्यापक सुधारों की मांग करने लगे.
सोमवार देर रात जब सरकार ने प्रतिबंध हटाया, तब तक विरोध-प्रदर्शन व्यापक भ्रष्टाचार-विरोधी अंदोलन में बदल चुका था. कई प्रदर्शनकारियों, खासकर पहली बार प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों ने कहा कि उनका राजनीतिक वर्ग पर से विश्वास उठ गया है. मंगलवार के मार्च में लगे तख्तियों पर "भ्रष्टाचार मुर्दाबाद" और "यह देश हमारा है, तुम्हारा नहीं" जैसे नारे लिखे थे.
सोमवार को विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण तरीके से शुरू हुए, छात्र स्कूल यूनिफॉर्म में सड़कों पर उतरे और नारेबाजी की. लेकिन दोपहर होते-होते पुलिस ने आंसू गैस और वॉटर-कैनन का इस्तेमाल कर उनका रास्ता रोक दिया. शाम को स्थिति और बिगड़ गई जब अधिकारियों ने कई जिलों में फायरिंग शुरू कर दी. इस खून-खराबे से आक्रोश भड़क उठा और सोमवार देर रात लेखक के इस्तीफे के बावजूद तनाव कम नहीं हुआ.
स्वतंत्र जांच और हिंसा बंद करने की मांग बढ़ी
इस बीच एमनेस्टी इंटरनेशनल ने स्वतंत्र जांच और जवाबदेही की मांग की है. एमनेस्टी इंटरनेशनल नेपाल के निदेशक नीरजन थपलिया ने एक बयान में कहा, "एमनेस्टी इंटरनेशनल नेपाल में कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा घातक और कम घातक बल के गैरकानूनी प्रयोग की कड़ी निंदा करता है, जिसके परिणामस्वरूप कई प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए. अधिकारियों को अधिकतम संयम बरतना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बल का प्रयोग केवल तभी किया जाए जब यह बिल्कुल आवश्यक और अनुपातिक हो. हर संभव सावधानी बरती जानी चाहिए ताकि हानि को कम किया जा सके."
विश्लेषकों का कहना है कि यह विरोध प्रदर्शन नेपाल के युवाओं की लंबित शिकायतों का परिणाम है, जो आबादी का बड़ा हिस्सा हैं, लेकिन व्यापक बेरोजगारी और राजनीतिक असंतोष से परेशान हैं. सोशल मीडिया पर प्रतिबंध एक ऐसा कारण था जिसने भ्रष्टाचार, असमानता और अवसरों की कमी जैसी मौजूदा चिंताओं को और बढ़ा दिया.
इस खूनी संघर्ष ने नेपाल में अस्थिरता की चिंता और बढ़ा दी है. 2006 में दस साल के गृहयुद्ध के बाद से देश में बार-बार सरकारें बदलती रही हैं. पिछले लगभग बीस साल में नेपाल में एक दर्जन से ज्यादा प्रधानमंत्री बदल चुके हैं, और भ्रष्टाचार के मामलों से जनता का भरोसा लगातार कम हुआ है.
काठमांडू महानगर के मेयर, बालेन शाह, जिन्हें नेपाल के लोग और खासकर Gen-Z पसंद करते हैं, उन्होंने प्रदर्शनकारियों से घर लौटने की अपील की है. मंगलवार दोपहर को उन्होंने प्रदर्शनकारियों से विरोध-प्रदर्शन खत्म करने की अपील करते हुए फेसबुक पर लिखा, “Gen-Z देश आपके हाथ में है. इसे आप ही आकार देंगे. लेकिन अब जितना ज्यादा नुकसान होगा, उतना ही यह हम सभी को प्रभावित करेगा. कृपया घर लौट जाएं.”
शाह शुरू से ही इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं. वे 2022 में नेपाल के स्थानीय चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार थे, जहां उन्होंने प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को भारी मतों से हराया था.
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे चाहते हैं कि बालेन देश का नेतृत्व करें.
इसके अलावा, राष्ट्रिय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) के जेल में बंद नेता रबी लामिछाने को भी प्रदर्शनकारियों ने जेल से बाहर निकाल लिया. ओली सरकार ने संसद में चौथी सबसे बड़ी पार्टी के नेता को सहकारी घोटालेबाज बताते हुए उन्हें जेल में डाल दिया था. हालांकि, उन्होंने दावा किया है कि सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद ही उन्हें जेल से रिहा किया गया है.
देश भर के जेलों से कई कैदी भी भाग गए हैं.
इस बीच, युवा काठमांडू की सड़कों पर विजय परेड निकाल रहे हैं और आंदोलन की "सफलता" का जश्न मना रहे हैं.
फिलहाल, नेपाल एक खतरनाक दोराहे पर खड़ा है. Gen-Z के विरोध प्रदर्शनों ने देश की राजनीतिक व्यवस्था की नींव हिला दी है, एक सरकार गिरा दी है, और एक निराश पीढ़ी और विश्वासघात के आरोपी शासक वर्ग के बीच की खाई को उजागर कर दिया है. यह संकट वास्तविक सुधारों की ओर ले जाएगा या अस्थिरता के एक और चक्र की ओर, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आने वाले दिनों में नेता इस पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं.
(प्रतिक घिमीरे, नेपाल की राजधानी काठमांडू के पत्रकार हैं.)