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MY Report : 7 साल के संघर्ष के बाद मिला Passport, क्विंट के जरिए बताई थी कहानी

पासपोर्ट के पाने के लिए, मैंने द क्विंट की माई रिपोर्ट टीम के साथ अपनी कहानी साझा की

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मेरा नाम विशालमृदुल मंडल है और मैं हरियाणा के गुरुग्राम में घरेलू सहायिका के रूप में कार्यरत हूं. मैंने 8 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया बाद में मां के दूसरी शादी करने के बाद दिल्ली का एक अनाथालय मेरा घर बन गया, जहां से मैंने अपनी स्कूली शिक्षा भी पूरी की. एक अनाथ के रूप में मैंने सभी दस्तावेज और कई बार आवेदन करने के बाद भी मेरा पासपोर्ट तीन बार खारिज कर दिया गया. अपने पासपोर्ट के मुद्दे को मैंने साल 2021 में द क्विंट के माई रिपोर्ट में प्रकाशित किया.लगभग सात वर्षों के लंबे इंतजार के बाद, आखिरकार मुझे 22 सितंबर 2022 को अपना पासपोर्ट मिल गया.

पासपोर्ट रिजेक्ट होने के क्या थे कारण ?

अपने पासपोर्ट रिजेक्शन के बारे में बात करते हुए विशालमृदुल ने बताया कि 2016 में मैंने मुंबई में पासपोर्ट के लिए आवेदन किया, जहां मैं ताज होटल में हाउसकीपिंग स्टाफ के रूप में काम करता था. उस समय मेरा आवेदन रिजेक्ट कर दिया गया, क्योंकि मैं अपने पासपोर्ट के लिए अपने काम का पता नहीं दे सका. और मुझे दिल्ली जाकर फिर से आवेदन करने के लिए कहा गया.

2019 में मैं फिर दिल्ली आया, और अनाथालय से अनुमति लेकर मैंने फिर से पासपोर्ट के लिए आवेदन किया. इस बार पुलिस ने मेरा पासपोर्ट यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मैं 18 साल से ऊपर का हूं और आवेदन में अनाथालय का पता नहीं डाल सकता.

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2020 में, पश्चिम बंगाल में अपने गृहनगर बरुईपुर वापस जाने के बाद, मैंने फिर से आवेदन किया. पुलिस सत्यापन के दौरान मेरा आवेदन फिर से खारिज कर दिया गया क्योंकि उन्होंने मेरी राष्ट्रीयता पर सवाल उठाना शुरू कर दिया क्योंकि मेरे पास मेरा जन्म प्रमाण पत्र नहीं था.

पूरी प्रक्रिया मेरे लिए निराशाजनक हो गई. जब मैंने उनके साथ मुश्किल से ही समय बिताया था तो मेरे पास अपने माता-पिता के दस्तावेज कैसे होने चाहिए थे?

द क्विंट की माई रिपोर्ट ने वरिष्ठ अधिकारियों, पासपोर्ट कार्यालय, मेरे अनाथालय, स्थानीय पुलिस से संपर्क कराने में मेरी मदद की और उन्होंने बाल कल्याण समिति से भी बात की.

जुलाई 2022 में, बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष वरुण पाठक ने पूर्वोत्तर दिल्ली के संबंधित डीसीपी को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने प्रक्रिया को तेज करने के लिए कहा क्योंकि मेरे सभी दस्तावेज जमा किए गए थे.

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मैं बहुत खुश हूं, आखिरकार मेरा पासपोर्ट मेरे पास है और अब, मैं अपने भविष्य के बारे में सोच सकता हूं. एक क्रूज पर काम करना मेरा हमेशा से सपना रहा है और अब जब मेरा पासपोर्ट यहां है, तो मैं वहां नौकरियों के लिए आवेदन करना शुरू कर सकता हूं.

द क्विंट ने बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष वरुण पाठक से उनकी प्रतिक्रिया के लिए बात की.

वह दिल्ली के बच्चों के घर में पले-बढ़े. उसके लिए अपने सारे दस्तावेज हासिल करना एक संघर्ष था. लेकिन उनका संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ, उन्हें कुछ अन्य लोगों के साथ लंबित पुलिस सत्यापन जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ा

हमने इस संबंध में संबंधित डीसीपी को पत्र भेजकर पासपोर्ट आवेदन की स्थिति और यह क्यों लंबित है, यह पूछा. हमने एक प्रति पूर्वोत्तर दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट, भारत सरकार के संयुक्त सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और विदेश मंत्रालय को भी भेजी.

उसके बाद भी काफी समय लगा लेकिन अब हम बहुत खुश हैं, विशाल भी खुश हैं. हम भी प्रक्रिया से संतुष्ट हैं. आखिरकार उसे अपना पासपोर्ट मिल गया, जो उसका अधिकार है.

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