ADVERTISEMENTREMOVE AD

World Cup में कश्मीरी बल्ले का डेब्यू, लेकिन लकड़ी की कमी से उद्योग पर संकट | My Report

अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के क्रिकेटर कश्मीर विलो से बने बल्ले का उपयोग कर रहे हैं.

Published
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

जब हम दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में क्रिकेट बैट फैक्ट्री, Gr8 स्पोर्ट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड फोव्जुल कबीर से मिले टो उन्होंने हमें बताया- "हम वनडे विश्व कप में डेब्यू कर रहे हैं. यह हम सभी के लिए बहुत खुशी की बात है"

ADVERTISEMENTREMOVE AD

घाटी में सौ सालों से अधिक समय से कश्मीरी विलो बैट का निर्माण किया जा रहा है. वनडे विश्व कप 2023 हमारे क्रिकेट बैट उद्योग के लिए काफी अच्छा साबित हुआ है. क्योंकि तीन टीम - अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के खिलाड़ी फोव्जुल की फैक्ट्री में बने बल्लों से खेल रहे हैं.

भारत में क्रिकेट एक धर्म है, और 12 साल बाद वनडे विश्व कप का आयोजन भारत में हो रहा है, प्रशंसकों के बीच इस खेल का भारी क्रेज देखा जा रहा है. जिस कारण उद्योग को काफी बढ़ावा मिला है.

"इस टूर्नामेंट से हमारी बिक्री में बढ़ोतरी हुई है. पहले हम सिर्फ क्रिकेट बैट्स बे बेचते थे. अब हम दूसरी चीजें भी बेच रहे हैं."
-फोव्जुल कबीर

कश्मीरी विलो बैट बनाम इंग्लिश विलो बैट

साल 2023 मुख्य रूप से अनंतनाग और पुलवामा में मौजूद कश्मीर के बैट उद्योग लिए भी खास है, क्योंकि कश्मीर विलो आईसीसी टूर्नामेंटों में अंग्रेजी विलो बल्ले के साथ मुकाबला करेगा, अंग्रेजी विलो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों के बीच अधिक लोकप्रिय हैं.

कारीगर सुनील कुमार ने बल्ले की सतह को रेतते हुए हमें बताते हैं, "कश्मीरी और अंग्रेजी विलो में कोई अंतर नहीं है. इन बल्लों में काफी ताकत होती है. कश्मीर विलो बैट इंग्लिश विलो को कड़ी टक्कर देता हैं. मैं कहूंगा कि कश्मीरी बल्ले इंग्लैंड के विलो बल्ले से बेहतर हैं.

बल्लों के बनाने की एक लंबी प्रक्रिया है, और कश्मीर में उगाए जाने वाले विलो से लकड़ी प्राप्त करने में एक साल से अधिक समय लगता है.

"पेड़ो को काट कर लगभग डेढ़ साल तक सुखाया जाता है इसके बाद विलो लकड़ी निकालते है, फिर सूखे विलो को चिकना किया जाता है और बल्ले के आकार में काटने के लिए मिल में भेजा जाता है जिससे बैट बनाया जाता है. बाद में इसे मशीन से रगड़ा दिया जाता है, जिसके बाद बल्ला तैयार हो जाता है"
मोहम्मद शाहिद, कारीगर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

पिछले एक दशक में, कश्मीर बैट उद्योग ने 300 करोड़ रुपये के राजस्व की बढ़ोतरी की है, जिससे एक लाख से अधिक स्थानीय कश्मीरियों और यूपी, बिहार, झारखंड आदि के लोगों को रोजगार मिला है.

उन्होंने कहा, 'इससे पहले हम साधारण बल्ले बनाते थे जिनका इस्तेमाल नरम ओर हार्ड टेनिस गेंद से खेलने के लिए किया जा सकता था. धीरे-धीरे हमें एक्सपोजर मिला. पिछले कुछ साल में हमने सुधार किया है. पिछले पांच वर्षों में, कश्मीर में भी खेलों के प्रति रुचि बढ़ी साथ ही हमने पेशेवर क्रिकेटरों को देखना शुरू कर दिया और बाजार में बल्ले बेचने के लिए उनके क्रिकेट बैट प्रोफाइल (डिजाइन) का इस्तेमाल किया.

न्यू सीलैंड स्पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के लिए काम करने वाले इरफान ने हमें बताया कि वे कई  राज्यों -गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बल्ले बेच रहे हैं.

उत्पादन बंद होने के कगार पर

दक्षिण कश्मीर में राजमार्ग के किनारे लगभग 400 बैट कारखाने हैं, और पिछले कुछ वर्षों में, बल्लों की मांग कई गुना बढ़ गई है, जिस कारण विलो की काफी कमी हो गई है.

हम एक सदी से अधिक समय से पेड़ों को काट रहे हैं और उनसे बैट बना रहे हैं. हमने कभी भी उम्मीद नहीं की थी कि विलो के विलुप्त होने का सामना करना पड़ सकता है. विलो की मांग अधिक बढ़ गई है और आपूर्ति लगभग 70% कम हो गई है.

बैट निर्माताओं को लगता है कि पेड़ लगाने के उनके प्रयास उद्योग की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए काफी नहीं होंगे, और जिस कारण रोजगार के लिए उन्हें सरकार की मदद की जरूरत पड़ेगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

उन्होंने कहा, "पहल सरकार की ओर से होनी चाहिए थी. सरकारी भूमि, आर्द्रभूमि, नदी के किनारे और अन्य सरकारी स्वामित्व वाले क्षेत्र हैं जहां पेड़ लगाए जा सकते हैं. यदि सरकार एक स्थायी अभियान के तहत एक साल में 100,000 पेड़ नहीं लगाती है तो हम सभी अगले पांच साल में बेरोजगार हो जाएंगे"

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×