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रेप का आरोप- बुलडोजर से गिराया घर, 4 साल बाद निर्दोष साबित तो छलका शफीक का दर्द

पूर्व बीजेपी नेता शफीक अंसारी पर साल 2021 में रेप का आरोप लगा था और मार्च 2022 में उनका घर गिरा दिया गया था.

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मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के राजगढ़ जिले के पूर्व बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष शफीक अंसारी (Shafiq Ansari) को कोर्ट ने 4 साल बाद रेप के आरोपों से बरी कर दिया. 14 फरवरी को प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश सारंगपुर ने फैसला सुनाया.

दरअसल, अंसारी के खिलाफ एक महिला ने 4 मार्च 2021 को रेप का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज करवाया था. जिसके एक साल बाद 13 मार्च 2022 को पुलिस की मौजूदगी में प्रशासन ने उनके घर को अवैध बताते हुए बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया था.

हालांकि, अंसारी का मामले की शुरुआत से ही कहना था कि उनके खिलाफ फर्जी केस दर्ज करवाया गया था. बुलडोजर एक्शन को भी उन्होंने अवैध बताया था. इसके खिलाफ अब वो कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.

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महिला ने एक महीने बाद दर्ज करवाया था FIR

सारंगपुर थाने में दर्ज एफआईआर में स्थानीय महिला ने आरोप लगाया था कि 4 फरवरी, 2021 को वह अपने बेटे की शादी के लिए मदद मांगने के लिए शफीक अंसारी के घर गई थी. इस दौरान शफीक अंसारी ने उसके साथ रेप किया और जान से मारने की धमकी दी.

महिला की शिकायत पर पुलिस ने शफीक अंसारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 342 (बंधक बनाना), 376 (रेप) और 506 (ii) (धमकी देना) के तहत FIR दर्ज किया था.

इस घटनाक्रम को याद करते हुए द क्विंट से बातचीत में शफीक अंसारी बताते हैं जिस महिला ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी, उसने सरकारी जमीन पर अवैध रूप से घर बना लिया था. स्थानीय लोगों की आपत्ति के बाद इसकी शिकायत उन्होंने मुख्यमंत्री से लेकर बड़े अधिकारियों से की थी. एसडीएम की जांच के बाद 5 फरवरी 2021 को प्रशासन ने महिला का घर गिरवा दिया था.

अंसारी का दावा है कि इसी बात को लेकर महिला नाराज थी और साजिश के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज करवाया था.

"महिला ने मेरे खिलाफ आरोप लगाया था कि 4 फरवरी की रात को वो मेरे घर पर मदद के लिए आई थीं. इस दौरान मैंने उसका रेप किया. जबकि उस रात मैं अपने घर पर था ही नहीं. मैं भोपाल में था. सबसे बड़ी बात है कि महिला ने जिस तारीख को रेप करने का आरोप लगाया, उस दिन वो भी सारंगपुर में नहीं थी. महिला ने ये बात कोर्ट में भी स्वीकार की है."
शफीक अंसारी

"मामला निपटाने के आश्वासन के बाद पलटी पुलिस"

गौरतलब है कि शफीक अंसारी के खिलाफ 4 मार्च 2021 को एफआईआर दर्ज करवाई गई थी. इसके बाद वो थाने भी गए थे. लेकिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया और जांच की बात कही. वो कहते हैं, "5 महीने तक पुलिस जांच और मामले को अपने स्तर पर निपटाने का आश्वासन देती रही. इस दौरान पुलिस ने न तो मुझे गिरफ्तार किया और न ही मुझे कभी परेशान किया."

शफीक बताते हैं कि रेप के एक मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के आदेश के बाद पूरा मामला पलट गया. दरअसल, ग्वालियर बेंच ने रेप के एक मामले में पांच पुलिस अधिकारियों के ट्रांसफर के आदेश दिए थे.

"हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद मुझे तत्कालीन थाना प्रभारी वीरेंद्र धाकड़ का फोन आया था. उन्होंने मुझसे कहा कि वो अब इस मामले में मेरी कोई मदद नहीं कर पाएंगे और अब मैं जमानत करवा लूं. इसके बाद मैंने एसपी साहब से भी बात की. लेकिन उन्होंने भी मदद से इनकार कर दिया और कोर्ट से मामले को निपटा लेने के लिए कहा."
शफीक अंसारी

शफीक बताते हैं कि उन्होंने सितंबर 2021 में अग्रिम जमानत के लिए एमपी हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में दो बार आवेदन किया, जो खारिज हो गया. इसके बाद उन्होंने फरवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन वहां से भी निराशा हाथ लगी.

"DGP से शिकायत के बाद मेरा घर गिरा दिया गया"

शफीक बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद उन्होंने 7 मार्च 2022 को पूरे मामले को लेकर DGP को पत्र लिखा था. जिसमें उन्होंने तत्कालीन एसपी प्रदीप शर्मा पर जांच को प्रभावित करने और तत्कालीन थाना प्रभारी पर जांच रिपोर्ट नहीं देने का आरोप लगाया था.

द क्विंट के पास मौजूद शिकायत पत्र में शफीक अंसारी ने लिखा था, "एसपी राजगढ़ प्रदीप शर्मा के रवैये से उनकी जांच पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, इसलिए प्रकरण की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए."

शफीक आरोप लगाते हुए कहते हैं, "इस पत्र के बाद एसपी प्रदीप शर्मा मेरे से नाराज हो गए थे और करीब एक हफ्ते बाद यानी 13 मार्च 2022 को उन्होंने मेरा मकान तुड़वा दिया."

वो बताते हैं कि फरारी के दौरान वो पुलिस अधिकारियों के संपर्क में थे. जिस दिन उनके घर पर कार्रवाई हो रही थी, उस दिन उन्होंने एसपी और टीआई को फोन किया था और पेशी के लिए एक दिन की मोहलत मांगी थी. लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी.

वो आगे बताते हैं, "एसपी ने उनसे कहा था कि इसमें (घर गिराने में) उनका कोई हाथ नहीं है. ये कार्रवाई नगर पालिका के द्वारा की जा रही है. वहीं टीआई ने उन्हें बताया था कि कार्रवाई को लेकर ऊपर से आदेश थे. स्थानीय स्तर पर वो कुछ नहीं कर सकते हैं."

इन आरोपों को लेकर द क्विंट ने तत्कालीन राजगढ़ एसपी प्रदीप शर्मा से संपर्क किया. लेकिन उन्होंने किसी प्रकार की टिप्पणी करने से मना कर दिया. घर तुड़वाने के आरोप पर उन्होंने कहा, "घर गिराना नगर पालिका का काम होता न की पुलिस का."

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"हमें कोई नोटिस तक नहीं दिया गया था"

शफीक अंसारी कहते हैं, "हमारा मकान किसी भी तरह से अवैध नहीं था. न तो हमें कोई नोटिस दिया गया और न ही हमें कागजात दिखाने का मौका दिया गया. घर तोड़ने को लेकर कोई आदेश भी पारित नहीं हुआ था. बावजूद इसके कार्रवाई की गई."

वो आगे कहते हैं,

"13 मार्च को मेरा घर गिराने के बाद वे (पुलिस-प्रशासन) मेरे परिजनों को परेशान करने लगे. मेरे रिश्तेदारों को धमकियां दी जाने लगी. मेरे दूसरे ठिकानों पर भी कार्रवाई के लिए पुलिस-प्रशासन की गाड़ियां भेजी गई."

इसके बाद 14 मार्च 2022 को शफीक अंसारी ने SDOP कार्यालय में सरेंडर किया. अगले दिन उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. 3 महीने जेल में रहने के बाद उन्हें हाईकोर्ट से जमानत मिली थी.

शफीक कहते हैं इस दौरान मेरे परिवार को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा.

शफीक अंसारी का दावा है कि जुलाई, 2013 में सारंगपुर नगर पालिक की ओर से उनकी पत्नी शकीला बी के नाम से मकान का प्रमाण पत्र जारी किया गया था. उन्होंने इसकी एक कॉपी द क्विंट को भी मुहैया करवाई है. हालांकि, द क्विंट इसकी पुष्टि नहीं करता है.

शफीक कहते हैं कि मकान गिराए जाने के खिलाफ वो कोर्ट जाएंगे. इसके लिए उनके वकील तैयारी कर रहे हैं.

द क्विंट ने बुलडोजर एक्शन को लेकर सारंगपुर नगर पालिका के तत्कालीन सीएमओ अशोक भमोरिया से भी संपर्क करने की कोशिश की है, लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई है. जैसे ही उनसे बात होगी, इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जून 2022 में अशोक भमोरिया को दस हजार रुपये की रिश्‍वत लेते हुए लोकायुक्‍त पुलिस ने रंगे हाथों गिरफ्तार किया था. इसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था. इसके बाद वे छिंदवाड़ा नगर निगम में रहे, जहां से रिटायर हो चुके हैं.

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"आरोप साबित करने में असफल रहा अभियोजन पक्ष"

सेशन कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, "अभियोजन पक्ष आरोपी द्वारा महिला को घर में बंद करने, उसके साथ रेप करने और जान से मारने की धमकी देने की बात को साबित करने में पूरी तरह से असफल रहा है."

कोर्ट ने कहा,

"मकान तोड़े जाने के कारण ही पीड़िता ने अभियुक्त शफीक अंसारी के खिलाफ रेप की रिपोर्ट दर्ज कराई है. इस तरह से अभियुक्त द्वारा पीड़िता को बंधक बनाना, रेप करना और जान से मारने की धमकी देना साबित नहीं होता है."

इसके साथ ही कोर्ट अंसारी के दोनों बेटों मोहम्मद एहसान और इकबाल को रेप के आरोपी की मदद करने और शासकीय कार्य में बाधा डालने के मामले में दोषमुक्त किया है. बता दें कि पुलिस ने दोनों के खिलाफ IPC की धारा 341, 353 और 212 के तहत मामला दर्ज किया था.

अंसारी के वकील ओपी विजयवर्गीय ने द क्विंट से कहा, "पहला- मामले में देरी से एफआईआर दर्ज हुई थी. दूसरा- कथित घटना के दिन महिला की सारंगपुर में उपस्थिति भी संदिग्ध थी. तीसरा- एफआईआर दर्ज होने से पहले महिला ने DIG को एक शिकायत पत्र दिया था, उसमें घटना कुछ और बताया गया था. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है."

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