ADVERTISEMENTREMOVE AD

महादेवी वर्मा: नेहरू की डांट से रो पड़ीं,सन्यासिनी-स्वतंत्रता सेनानी की कहानी

Mahadevi Verma साहित्य अकादमी की सदस्यता हासिल करने वाली पहली कवयित्री थीं.

Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

झिलमिलाती रात मेरी!

सांझ के अंतिम सुनहले हास-सी चुपचाप आकर, मूक चितवन की विभा— तेरी अचानक छू गई भर,

बन गई दीपावली तब आँसुओं की पाँत मेरी!

झिलमिलाती रात मेरी!

ये पंक्तियां हिंदी की जानी-मानी कवयित्री महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) की कलम से निकली थीं, जिन्हें छायावाद के चार स्तंभों में से एक माना गया. आधुनिक हिंदी की मीरा के नाम से प्रसिद्ध महादेवी वर्मा एक कलमकार होने के साथ-साथ समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी पहचानी गईं. आजादी से पहले और बाद के हिंदुस्तान की गवाह बनने वाली महादेवी वर्मा का जीवन, उनकी कविताएं, समाज सुधार के कार्य और महिलाओं के लिए चेतना भाव आज भी हस्ताक्षर है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
महादेवी वर्मा साहित्य अकादमी की सदस्यता हासिल करने वाली पहली कवयित्री थीं, जिनको हिंदी के कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती बताया था.

उनका जन्म  मार्च 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में रंगों के पर्व होली के दिन हुआ था, शायद यही वजह है कि उन्हें होली बहुत पसंद थी. परिवार में कई पीढ़ियों के बाद बेटी ने जन्म लिया था, इस वजह से उन्हें घर की देवी मानते हुए उनका नाम महादेवी रखा गया.

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (University of Allahabad) से उन्होंने मास्टर डिग्री हासिल की. आगे चलकर इलाहाबाद शहर से उनका कभी न टूटने वाला रिश्ता बना. अशोकनगर में आज भी महादेवी वर्मा का घर उनका एहसास दिलाता है.

महादेवी वर्मा की कलम से बेबाकी, सजगता और सहजता की महक आती है. उन्होंने अपने अधिकार के लिए जंग लड़ी और महिलाओं को भी उनके अधिकारों से रूबरू करवाया, खुद के लिए लड़ना सिखाया. 1923 में महादेवी वर्मा ने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चांद’ का संपादन भी किया.

चिर सजग आंखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!

जाग तुझको दूर जाना!

 

अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले!

या प्रलय के आंसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले,

आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया

जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले,

पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!

जाग तुझको दूर जाना!

 

बांध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?

पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?

विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,

क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?

तू न अपनी छांह को अपने लिये कारा बनाना!

जाग तुझको दूर जाना!

बड़े भाई जैसे थे पंडित नेहरू

महादेवी वर्मा के मुताबिक उन्हें पंडित जवाहरलाल नेहरू से बड़े भाई जैसा प्यार मिला. 1984 में एक इंटरव्यू के दौरान बचपन का किस्सा साझा करते हुए वो बताती हैं कि जब वो छोटी थीं तो एक बार प्रधानाचार्या के साथ पंडित नेहरू के पास जाना हुआ. इस दौरान महादेवी अपना बस्ता अंदर भूलकर खेलती हुईं बाहर आ गईं. उसके बाद पंडित नेहरू उनका बस्ता लेकर बाहर आए और नाराज़गी जताते हुए बोले कि क्या पढ़ती है जब किताबें भूलते घूमती है.

महादेवी वर्मा पंडित नेहरू की डांट से रोने लगीं. उसके बाद नेहरू ने उन्हें बड़े ही प्यार से किताबों का महत्व समझाया. इस घटना के बाद से ही दोनों के बीच का संबंध भाई और बहन के रूप में बना रहा.

कहा जाता है कि महादेवी वर्मा ने एक सन्यासिनी जैसा जीवन जिया. उन्होंने जिंदगी भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी आईना नहीं देखा. उन्होंने अपने जीवन में ऐसे फैसले लिए जो उस दौर में कोई सोच भी नहीं सकता था. उनकी शादी छोटी उम्र में ही कर दी गई. उन्हें वैवाहिक जीवन से वैराग्य हो गया था.

वो अपने एक गीत में लिखती हैं...

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!

स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,

क्रंदन में आहत विश्व हँसा,

नयनों में दीपक-से जलते

पलकों में निर्झरिणी मचली!

मेरा पग-पग संगीत-भरा,

श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,

मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल,

चिंता का भार, बनी अविरल,

रज-कण पर जल-कण हो बरसी

नवजीवन-अंकुर बन निकली!

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत में महिला कवि सम्मेलन की शुरुआत

महादेवी वर्मा ने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की शुरुआत की. उन्होंने 1944 में इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की और पंडित इलाचंद्र जोशी के सहयोग से इसका सम्पादन संभाला. उन्होंने गांधीजी से जनसेवा का व्रत लिया और आगे चलकर स्वंतत्रता संग्राम का हिस्सा भी बनीं.

महादेवी वर्मा की कविताओं में अकेलेपन का दर्द भी झलकता है. उनकी रचनाएं उनकी जिंदगी के हर पहलू को बयां करती हैं.

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला!

घेर ले छाया अमा बन,

आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन,

और होंगे नयन सूखे,

तिल बुझे औ, पलक रूखे,

आर्द्र चितवन में यहां

शत विद्युतों में दीप खेला!

दूसरी होगी कहानी,

शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खाई निशानी,

आज जिस पर प्रलय विस्मित,

मैं लगाती चल रही नित,

मोतियों की हाट औ,

चिनगारियों का एक मेला!

प्रतापगढ़ के पीबी कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर शिव प्रताप सिंह क्विंट से बात करते हुए कहते हैं कि महादेवी वर्मा ने महिलाओं और उनकी स्थिति के बारे में हमेशा बात की. उनके द्वारा कहे गए कथनों में महिलाओं की शिक्षा से संबंधित बाते हैं भी मिलती हैं. महादेवी वर्मा ने कहा था कि जब एक पुरुष शिक्षित होता है तो वो सिर्फ अकेला अपने लिए होता है लेकिन जब एक स्त्री शिक्षित होती है तो बड़ी उपलब्धि होती है, एक ही साथ दो परिवार शिक्षित होते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया. साथ ही वे इसकी प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं, अपने समय में यह कार्य महिला-शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावी कदम था.

साल 1919 में महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद के क्रास्थवेट कॉलेज में दाखिला लिया, वहां उनकी मुलाकात सुभद्रा कुमारी चौहान से हुई और दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती हुई.

एक चित्रकार भी थीं महादेवी वर्मा

संपादक और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेई अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं कि छायावादियों में राजनैतिक और सामाजिक रूप में सबसे अधिक सक्रिय महादेवी थीं और वो सक्रियता उनके गद्य में आना शुरू हुई. उन्होंने कहा कि हिंदी में ऐसे दो ही लेखक हुए हैं जिन्होंने चित्रकारी भी की है: महादेवी और शमसेर बहादुर सिंह. शमसेर के चित्र कलात्मकता की दृष्टि से शानदार हैं लेकिन महादेवी के चित्र बहुत ही बहते हुए हैं.

1936 में महादेवी वर्मा ने नैनीताल से 25 किलोमीटर दूर रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गांव में एक बंगला बनवाया, जिसका नाम उन्होंने मीरा मन्दिर रखा. वहां रहकर गांव के शिक्षा और विकास के लिए काम किया और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का भी प्रयास किया. वर्तमान में इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है.

उन्हें 'नीरजा’ के लिये 1934 में सक्सेरिया पुरस्कार और 1942 में ‘स्मृति की रेखाएं’ के लिये ‘द्विवेदी पदक’ प्राप्त हुए.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

1940 में जब उनके चारों काव्य संग्रह एक साथ यामा शीर्षक से प्रकाशित किया गया तब उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ.

1943 में उन्हें ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ एवं ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आजादी के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गयीं. 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिये ‘पद्म भूषण’ प्रदान किया गया. 1971 में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला थीं. 1988 में उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.

सन 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय, 1977 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा 1984 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने महादेवी वर्मा को डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया.

भारत की 50 यशस्वी महिलाओं में शामिल हैं महादेवी वर्मा

16 सितंबर 1991 को भारत सरकार के डाकतार विभाग द्वारा जयशंकर प्रसाद के साथ उनके सम्मान में 2 रुपये का एक युगल टिकट भी जारी किया गया.

महादेवी वर्मा की रचनाओं में न केवल महिलाओं की स्थिति और अधिकारों का विस्तृत वर्णन किया गया है बल्कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों पर भी तीखे शब्दों में आलोचना की गई है. महादेवी वर्मा को महिला मुक्तिवादी भी कहा जाता है. वो भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में शामिल हैं. 11 सितम्बर 1987 में 80 वर्ष की उम्र में महादेवी वर्मा ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×