ADVERTISEMENTREMOVE AD

'गांव में न पानी है, न नौकरी': आदिवासी महिलाओं ने क्यों लौटाई मुफ्त में मिली साड़ियां?

Lok Sabha Election 2024: "अगर आपने हमें नौकरी दी होती, तो हम ये साड़ियां खुद खरीद पाते. मोदी सरकार हमें साड़ी देने वाली कौन होती है?"

Published
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

Lok Sabha Election2024, Ground Report: "अगर आपने हमें नौकरी दी होती, तो हम ये साड़ियां खुद खरीद पाते. मोदी सरकार हमें साड़ी देने वाली कौन होती है? आपको लगता है कि हम अपने कपड़े नहीं खरीद सकते? हम इनसे अच्छी साड़ियां खरीदेंगे. हमें काम चाहिए, हम मेहनती हैं. हम घर पर नहीं बैठे हैं."

यह कहना है महाराष्ट्र के पालघर के एक आदिवासी गांव वसंतवाड़ी की स्थानीय निवासी लाडकुबाई (52) का.

वसंतवाड़ी लगभग 250 परिवारों वाला एक गांव है. इसने अप्रैल की शुरुआत में एक छोटा लेकिन बहुत महत्वपूर्ण विद्रोह किया.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुंबई से लगभग 120 किमी दूर इस गांव के अंदर आप टूटी हुई सड़कें, अस्थायी घर, हैंडपंपों पर पानी भरती महिलाएं और बच्चों के साथ-साथ एक और चीज आपको नजर आएगी- लोगों के हाथों में एक साड़ी और एक बैग जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर के साथ-साथ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKAY) का विज्ञापन भी है.

चुनावों की घोषणा होने और 16 मार्च को आदर्श आचार संहिता लागू होने से कुछ दिन पहले ही कई गांवों के लोगों को सरकारी राशन की दुकानों पर ये बैग और साड़ियां मिलीं. वे यहां केंद्र की PMGKAY योजना के तहत मुफ्त राशन लेने गए थे.

पिछले साल नवंबर में, महाराष्ट्र सरकार ने 2028 तक सरकार की पसंद के त्योहार के दौरान हर साल 'अंत्योदय' राशन कार्ड रखने वाली महिलाओं को मुफ्त साड़ी प्रदान करने की योजना शुरू की थी.

लेकिन 3 और 8 अप्रैल 2024 को, पालघर के 23 गांवों की सैकड़ों आदिवासी महिलाओं ने, सामाजिक कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में, जव्हार और दहानू तहसीलदार कार्यालयों तक मार्च किया और इनमें से 300 से अधिक साड़ियां और 700 बैग वापस कर दिए.

उनका कहना है कि हमें मुफ्त की चीजें मत दीजिए, हमें नौकरियां दीजिए, बेहतर स्कूल, बेहतर सड़कें और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं दीजिए.

'पानी की आपूर्ति नहीं, नौकरियां नहीं, हम मुफ़्त साड़ियों का क्या करेंगे?'

गांव में बुनियादी सुविधाओं के आभाव की स्थिति में ग्रामीणों ने मुफ्त साड़ी और बैग मिलने के औचित्य पर सवाल उठाया.

22 साल की ममता वत्था ने कहा, "हमें ये साड़ियां और बैग नहीं चाहिए. पानी के लिए, हम कभी-कभी सुबह 4 या 5 बजे उठ जाते हैं. यहां कोई रोशनी नहीं है, लेकिन फिर भी हम पानी लाने के लिए सुबह 4 बजे उठते हैं. इसके अलावा, सड़कें भी खराब हैं आपको कभी-कभी पानी लेने के लिए निकटतम बोरवेल तक कम से कम 30 मिनट तक चलना पड़ता है. हम अपने सिर पर दो-तीन बर्तन रखते हैं, और कमर पर एक और. यही स्थिति है. हमें हर घर में नल चाहिए.''

आप यहां देख सकते हैं पूरी रिपोर्ट.

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×