फिल्म एक्टर सोनाक्षी सिन्हा और जहीर इकबाल की इंटरफेथ शादी को ट्रोल करने वाले कम थे जो इसमें कुमार विश्वास भी शामिल होते दिख रहे हैं?
कवि से नेता और फिर नए नए कथावाचक बने कुमार विश्वास की कलम ने ही लिखा है
भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!
अब ये लिखने वाले जनाब कवि साहब किसी और की मोहब्बत के हकीकत में बदलते ही खुद नफरत का मंच सजाने लगे.
वो कहते हैं न बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. मामला कुछ ऐसा ही है.
आप इन दो बयानों को देखिए
बयान नंबर एक- "ये कितने भी खेत जोत लें अपने नफरत के ट्रैक्टर से, जबतक हम जैसे दो-चार जिंदा हैं, इनके खेत में चरस बोए रहेंगे."
बयान नंबर दो- "अपने बच्चों को रामायण पढ़ाइए. गीता पढ़ाइए. वरना ऐसा ना हो आपके घर का नाम तो रामायण हो लेकिन आपके घर की श्री लक्ष्मी कोई और उठा ले जाए."
साम्प्रदायिक नफरत और भाईचारे के दो छोर पर बैठे इस दोनों बयानों को एक ही इंसान ने दिया है. चौंक गए न?
पहला बयान कवि की भूमिका में कुमार विश्वास ने साल 2019 में इंदौर में दिया था. स्टेज पर राहत इंदौरी और जावेद अख़्तर मौजूद थे.
दूसरा बयान, सोनाक्षी और जहीर की इंटरफेथ शादी पर पॉलिटिकल सटायर नहीं बल्कि धार्मिक कुंठा का उदाहरण है.
कुमार विश्वास ने 21 दिसंबर 2024 को मेरठ महोत्सव के मंच पर रामायण और मां सीता का नाम लिया, फिर उन्होंने आगे जो कहा उससे उनपर यही आरोप लगे कि उन्होंने शत्रुघ्न सिंहा और उनकी बेटी सोनाक्षी सिन्हा का बिना नाम लिए ही उनपर तंज कसा है. हालांकि जब मामले ने तूल पकड़ा तब कुमार ने एक न्यूज चैनल पर कहा कि उन्होंने यह बात सोनाक्षी के लिए नहीं कही. बल्कि वो गाजियाबाद में जहां रहते हैं वहां कई घरों के नाम रामायण, गोकुल इत्यादि होते हैं. और उनकी बात उन लोगों से जुड़ी थी.
कमाल है न? कवि महोदय का लॉजिक देखिए. बात सोनाक्षी के लिए नहीं थी तब भी किसी और के घर में झांकने का अधिकार किसी और को कैसे मिल गया? कोई लड़की या लड़का किससे शादी करेगा ये फैसला कवि मंच पर करेंगे क्या?
कुमार विश्वास ने ही तो कहा था --
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
आज अगर जहीर दीवाना है सोनाक्षी दीवानी है, तो फिर पावन सी कहानी अपवित्र कैसे हो गई???
साल पहले तक नफरत के खिलाफ चरस बोने की बात करने वाले कुमार इसबार खुद नफरत का ट्रैक्टर लिए खेत जोतते दिख रहे हैं. हाय रे हृदय परिवर्तन.
मेरा भी हृदय परिवर्तन हुआ है
चलिए, मैं स्वीकार करता हूं कि ये सब सुनने के बाद मेरा भी हृदय परिवर्तन हुआ है. नहीं तो कुमार विश्वास वो कवि हैं जिनके गीत मैंने बशीर बद्र और मुन्नवर राणा से पहले पेनड्राइव और मेमोरी कार्ड में लाकर सुने थे. लेकिन मुशायरों के मंच से राष्ट्रवाद और भाईचारे की बात कहने वाले, हिंदी को मां तो उर्दू को मौसी बताने वाले कुमार विश्वास के आज दो चेहरे नजर आते हैं.
कभी भाईचारे का संदेश तो कभी नफरत का.
आपको थोड़ा फ्लैशबैक में ले चलते हैं, जब विश्वास साहब की कविता पर विश्वास था.
31 अगस्त 2014 को योगी आदित्यनाथ ने विवादित बयान दिया था कि दंगे वहीं होते हैं, जहां मुस्लिमों की आबादी ज्यादा होती है. इसपर जवाब देते हुए ‘शांतिदूत’ कुमार विश्वास ने एक फेसबूक पोस्ट में बताया था कि कैसे मुसलमान डायरेक्टर की फिल्म में, मुसलमान संगीतकार की धुन पर, मुसलमान एक्ट्रेस और मुसलमान एक्टर ने ‘मोहे पनघट पर नंदलाला’ गाने में कान्हा के नटखट स्वभाव को दिखाया था. तब कुमार विश्वास AAP में थे और सीधे लिख रहे थे कि सुनो योगी सुनो ! गुरु गोरखनाथ से लेकर कबीर तक यही हमारा हिंदुस्तान है ! राजनीति का जहर नहीं.
अब वही कुमार विश्वास मंच से सवाल करते हैं कि मस्जिदे तुमने बनाई मंदिरों को तोड़कर. क्या मस्जिदे बन नहीं सकती थी मंदिरों को छोड़कर. अरे सैकड़ों साल पुराने इस सवाल का जवाब आज के भारत का मुसलमान कैसे दे सकता है और क्यों देगा?
कुमार विश्वास ने लल्लनटॉप के शो में कहा था कि 'मैं भारतीय हिंदू हूं’, ‘मैं भारतीय मुसलमान हूं’, ‘मैं भारतीय सिख हूं’, ‘मैं भारतीय ईसाई हूं’, ‘मैं भारतीय बौद्ध हूं’, यही हम सबको बनना है. इससे क्या होगा कि ऊपर भारत होगा, उसके नीचे सारे लोग होंगे. अभी सब में झगड़ा चल रहा है, भारतीय कोई है ही नहीं."
कुमार जी अगर सब एक ही हैं तो एक एडल्ट हिंदू का एक एडल्ट मुस्लमान से कंसेंट यानी अपनी मर्जी से शादी करने में तकलीफ क्यों?
कुमार विश्वास 2018 में उर्दू वाले जश्न-ए-रेख्ता के मंच पर शायर की हैसियत से जाते हैं. उन्हें साहिर लुधियानवी से प्यार करने वालीं और इमरोज के साथ एक छत के नीचे रहने वालीं महान लेखिका अमृता प्रीतम को लेकर एक सवाल किया गया कि अमृता ने बदनामियों की कभी परवाह नहीं की. इस सवाल पर कुमार ने कहा कि बड़ा अच्छा नाम लिया. मुझे अमृता से पहले मां मीरा की याद आती है. लेकिन जब सोनाक्षी और जहीर इकबाल का इश्क मुक्कमल हो जाता है, उनकी शादी हो जाती है तो कुमार को लगता है कि घर की लक्ष्मी को कोई और ले चला गया.
कुमार विश्वास की कविताओं से प्रेम करने वाले जानना चाहेंगे कि दुबई से लेकर लखनऊ में मुशायरों के मंच से अदब के साथ गंगा-जमुनी तहजीब की दुहाई देने वाले कवि कुमार विश्वास की आखिर मजबूरी क्या थी?