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ईरान में कभी हिजाब पहनने पर पाबंदी थी और महिलाओं ने इसका विरोध किया था

Mahsa Amini Death: ईरान की ‘मोरल पुलिस’ और महिलाओं को अपनी मर्जी से जीने की आजादी देने से रोकने का पूरा इतिहास

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Iran Anti-Hijab Protest: साल 1936 में ईरान के पहलवी घराने के पहले शाह रेजा शाह पहलवी ने कशफ-ए-हिजाब नाम से पहला सख्ती वाला सरकारी आदेश पारित किया था. रेजा शाह पहलवी ईरान में साल 1925 से 1941 तक शासक थे.  

पहलवी, ईरानी समाज को आधुनिक और सेकुलर बनाना चाहते थे. कुछ-कुछ वैसे ही जैसे टर्की में मुस्तफा कमाल अतातुर्क कर रहे थे. उन्होंने महिलाओं को पूरे शरीर (चाडोर) और हेडस्कार्फ (हिजाब) को ढंकने वाले पारंपरिक इस्लामी पर्दा पहनने पर पाबंदी लगा दी थी. पाबंदियों को सख्ती से लागू किया गया था, पुलिस ने तब उन महिलाओं के पर्दे लेकर फाड़ दिए जिन्होंने तब हिजाब पहनकर सड़कों पर चलने की हिमाकत की थी.  

फिर वक्त पलटा. चार दशक के बाद 1979 की ईरानी क्रांति हुई. ईरान ने 1981 में एक कानून पारित किया.  इसमें सार्वजनिक रूप से महिलाओं के लिए हिजाब पहनना जरूरी बना दिया गया.  इस कानून के पारित होने के 41 साल बाद, ऐसा लगता है कि पहली बार ईरान में महिलाएं "मोरल पोलिसिंग नीति" जिसे गश्त-ए इरशाद के रूप में जाना जाता है, के खिलाफ भड़क उठी हैं.

पुलिस हिरासत में 22 वर्षीय महसा अमिनी की मौत, जिसे पुलिस ने वाजिब तरीके से हिजाब नहीं पहनने के लिए हिरासत में लिया था, ने सरकार के खिलाफ देश भर में विरोध की लहर को खड़ा कर दिया है जो शायद लोकप्रिय विद्रोह जैसा बन गया है.  

उनकी मौत की कसूरवारी उस मोरल पुलिसिंग पर डाली जा रही है, जो ईरान के कानून को लागू करने से जुड़ी एक अर्धसैनिक शाखा है. जनता के गुस्से को देखते हुए ग्रेटर तेहरान की मोरल पुलिसिंग विभाग के पुलिस प्रमुख कर्नल अहमद मिर्जाई को दो दिन पहले निलंबित कर दिया गया.

आखिर ये अर्धसैनिक समूह, गश्त-ए इरशाद कैसे बना है? हकीकत में उनका काम क्या है और वो करते क्या हैं ?

ईरान में ‘मोरल पुलिस’ का लंबा इतिहास

1979 की क्रांति के बाद से ईरान में "मोरल पुलिस" के अलग अलग शक्ल बने. जैसा कि हमने ऊपर बताया कि पहलवी के शासन में ईरान ने हिजाब के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई. लेकिन तब कई लोगों ने इसे पसंद नहीं किया. ईरानी लोगों के लिए सरकार दुश्मन जैसी लगने लगी थी. फिर ईरानी क्रांति के दौरान, कई महिलाओं ने सरकारी आदेशों को तोड़ने के लिए ही हिजाब पहना.  

विडंबना यह है कि ईरान के इस्लामी गणराज्य के पहले नेता अयातुल्ला खुमैनी, जिन्होंने सत्ता में आने के बाद सार्वजनिक रूप से हिजाब उतारने पर प्रतिबंध लगा दिया था, ने हिजाब को क्रांति के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया. हिजाब पहनने की मांग और शाह के शासन के प्रति नाराजगी जताने के लिए उन्होंने महिलाओं की तारीफ की थी.

उन्होंने कहा था, "आप महिलाओं ने साबित कर दिया है कि आप इस आंदोलन में सबसे आगे हैं. हमारे इस्लामी आंदोलन में आपकी बड़ी हिस्सेदारी है. हमारे देश का भविष्य आपके समर्थन पर निर्भर करता है. " महिलाओं को कम ही पता था कि नया शासन पिछले से कुछ भी अलग नहीं होगा. महिलाएं अपने चुनने की आजादी के लिए लड़ रही थीं लेकिन वो समझ ही नहीं पाईं कि ये विकल्प शायद उनके पास था ही नहीं.  

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क्रांति के बाद ईरान में पहली ऑर्गेनाइज्ड मोरल पुलिस "बसिज" नामक एक अर्धसैनिक स्वयंसेवक मिलिशिया की थी. इसके स्वयंसेवकों को ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) में भाग लेने के लिए बनाया गया था.  

लेकिन अब बासिज,  इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के पांच बलों में से एक है. यह छात्रों के ड्रेस कोड और चालचलन की निगरानी के लिए हर ईरानी विश्वविद्यालय में मौजूद है. दरअसल विश्वविद्यालय एक ऐसी जगह होती है जहां पहली बार कोई ईरानी महिला और पुरुष को एक साथ शैक्षणिक माहौल में संपर्क में आते हैं.  

यहां तक कि ऐसे समूह जो ईरानी सरकार के कंट्रोल में नहीं थे, उन्होंने भी ‘मोरल पुलिस’ की तरह काम करने की कोशिश की है.  ऐसा ही एक समूह "जुंदाल्लाह" है, जो एक सुन्नी आतंकवादी संगठन है जो ईरान में सुन्नियों के लिए समान अधिकारों के लिए लड़ रहा है. इस संगठन को संयुक्त राज्य अमेरिका ने साल 2010 में एक विदेशी आतंकवादी संगठन बताया था. रॉयटर्स के अनुसार, जुंदाल्लाह सड़कों पर गश्ती करता है और हिजाब को लेकर अपनी कायदे कानून चलाता है और इस तरह वह एक संस्थागत पुलिस बन गई.
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कैसे काम करता है गश्त-ए-इरशाद

गश्त-ए इरशाद दरअसल गश्ती दल के तौर पर काम करता है. इनके पास एक वैन होता है और इसमें पुरुष और हिजाब पहनी महिलाएं होती हैं.  

उनका काम शॉपिंग सेंटर और मेट्रो स्टेशनों जैसे व्यस्त सार्वजनिक स्थानों पर खड़े होकर निगरानी रखना है. ड्रेस कोड तोड़ने जाने पर वो महिलाओं और दूसरों को हिरासत में लेते हैं. ठीक से हिजाब नहीं पहने जाने को भी वो कानून का उल्लंघन मानते हैं.  हिजाब पहनने का सही तरीका क्या है.. यह सब गश्ती दल के एजेंटों पर निर्भर करता है. यह ज्यादा मेकअप से लेकर कम सिर ढंकने तक कुछ भी हो सकता है.

हिरासत में ली गई महिलाओं को तब पुलिस स्टेशन ले जाया जाता है, फिर एक "सुधार सुविधा" या " रीएजुकेशन सेंटर" में ले जाया जाता है जहां उन्हें बताया जाता है कि कैसे कपड़े और किस तरह से इसे पहनना है. फिर उन्हें आमतौर पर उसी दिन पुरुष रिश्तेदारों के पास छोड़ा जाता है. पुरुष रिश्तेदार उनके लिए निर्देशों के हिसाब से कपड़े लाते हैं.

अमिनी के मामले में, उसे एक पुलिस स्टेशन ले जाया गया और उसके परिवार को बताया गया कि को "री-एजुकेशन " सत्र के बाद उसे रिहा कर दिया जाएगा. लेकिन अमिनी को कोमा की हालत में हॉस्पिटल लाया गया. द गार्जियन न्यूज पेपर के मुताबिक, उसके सिर के एक सीटी स्कैन में हड्डी फ्रैक्चर, ब्रेन पर चोट और बहुत ज्यादा खून बहना दिखाया गया है. ये सब बताता है कि उसकी मृत्यु सिर पर मारे जाने से हुई है.  

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गश्त-ए-इरशाद के निशाने पर आमतौर पर शहरों की अमीर महिलाएं होती हैं. इनको लेकर ये आशंका रहती है कि वो पश्चिमी कपड़ों की शौकीन होती हैं और सख्त ड्रेस कोड तोड़ने की आशंका उनको लेकर ज्यादा रहती है. यहां तक कि पश्चिमी देशों के युवाओं की तरह बाल रखने वाले पुरुषों को भी मोरल पुलिस अपने निशाने पर ले लेती है.

गश्त-ए-इरशाद की चंगुल से बचने के लिए अब वहां एक एंड्रॉइड एप्लिकेशन भी लोगों ने बनाया है. यह लोगों को ‘मोरल पुलिस चौकियों’ से बचने में मदद करता है. एप्लिकेशन को सफल बनाने के लिए जरूरी डेटा क्राउडसोर्स से जुटाई जाती है. इसमें यूजर्स नक्शे पर गश्ती वैन के बारे में बताते हैं और जब बड़ी संख्या में लोग ऐसा करते हैं, तो दूसरे यूजर्स के लिए स्थान को चिह्नित करते हुए अलर्ट दिखने लगता है.  

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