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'मरने के बाद भी सम्मान नहीं': गुजरात के गांवों में श्मशान घाट के लिए जूझते दलित

Gujarat Elections 2022: अहमदाबाद का एक गांव में तो दलितों के श्मशान घाट को कूड़ा फेंकने के काम लाया जा रहा

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Gujarat Elections 2022: गुजरात के अहमदाबाद जिले के देवकवाड़ा गांव में मई 2022 में चुना भाई वाल्मीकि की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. उनके बेटे राजेश और संजय को गर्दन तक का पानी पार करके पिता के अंतिम संस्कार करने के लिए एक ऐसे स्थान पर जाना पड़ा, जिसे गांव में दलित समुदाय का श्मशान माना जाता है.

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"क्या आपको यहां दूर-दूर तक श्मशान जैसा कुछ दिखाई दे रहा है?" संजय ने अपने घर से पांच किमी दूर देवकवाड़ा के बाहरी इलाके में इस एक बंजर जमीन को दिखाते हुए पूछा.

संजय ने कहा कि देवकवाड़ा में अलग-अलग जातियों के लोग अलग-अलग श्मशान घाट जाते हैं. उन्होंने कहा कि

"ठाकुर, पटेल, देसाई, और दलित- सभी के यहां अलग-अलग श्मशान हैं. उच्च जातियों के (श्मशान) में अच्छी रख-रखाव है, जबकि दलितों के श्मशान की हालत दयनीय हैं"

दलित समुदायों के सशक्तिकरण के लिए काम करने वाले एक एनजीओ, दलित फाउंडेशन के एक वर्कर कानू भाई के अनुसार गुजरात भर के गांवों में जाति के आधार पर अलग-अलग श्मशान एक आम बात है.

"ऐतिहासिक रूप से, यहां विभिन्न जाति समूहों के लिए अलग-अलग श्मशान हैं. मुझे नहीं पता कि यह वास्तव में कब शुरू हुआ. दलितों के श्मशान केवल नाम के लिए मौजूद हैं. जबकि उच्च जातियों के लोगों के पास सभी प्रकार की सुविधाएं हैं, उनके श्मशान में बैठने के लिए बेंच हैं, वहां पानी है पेड़ हैं और टाइलें लगी हैं"
कानू भाई, दलित अधिकार एक्टिविस्ट

क्विंट ने रामपुरा, इंद्रपुरा, नाथपुरा और देवकवाड़ा का दौरा किया जो अहमदाबाद के देट्रोज तालुका के गांव हैं और मुख्य शहर से लगभग 50 किमी दूर हैं. इनमें से प्रत्येक गांव में अलग-अलग जाति समूहों से संबंधित कम से कम 2-3 श्मशान घाट थे.

क्या गांवों में सबके लिए एक श्मशान घाट हो सकते हैं?

राजेश और संजय दोनों आशा करते हैं कि उनके गांव में सबके लिए एक ही श्मशान हो. राजेश ने कहा कि "शहर में सबके लिए एक ही होता है, हैं न?". उसने आगे कहा "शहर में हर कोई एक ही श्मशान में जाता है और किसी को भी नहीं लौटाया जाता है. हालांकि, हमारे गांव में हमें बताया जाता है कि हम पटेलों या अन्य दूसरी उच्च जातियों के लिए बनाए गए श्मशान घाट का उपयोग नहीं कर सकते हैं."

देवकावाड़ा से केवल 8 किमी दूर इंद्रपुरा नाम का एक गांव स्थित है. यहां के दलित श्मशान घाट को कूड़ा फेंकने के स्थान के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. यहां के सरपंच राजीव पटेल ने क्विंट को बताया कि उन्हें सबके लिए एक श्मशान से कोई एतराज नहीं है.

"मुझे कोई समस्या नहीं है अगर गांव में सभी के लिए एक श्मशान हो. हालांकि, ये परंपराएं हैं जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं. मैंने अपने गांव में पाटीदार समुदाय के श्मशान के लिए दीवार बनवाई है. दलित समुदाय के श्मशान के लिए भी हम बनाएंगे."
राजीव पटेल, सरपंच

देवकवाड़ा के रहने वाले और पाटीदार समुदाय के सदस्य शैलेश पटेल ने क्विंट को बताया कि उनके गांव में अलग-अलग जातियों के लोगों के लिए अलग-अलग कुएं, श्मशान और सार्वजनिक स्थान हैं.

उन्होंने कहा, "हमारे पास अलग-अलग जातियों के लोगों के लिए हमेशा अलग जगह रही है. हम नहीं चाहते कि कुछ भी बदले. अगर हम एक साथ बैठेंगे तो उनके हाथ-पैर हमारे रास्ते में आ जाएंगे."

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इन श्मशान घाटों के रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी है?

गुजरात के दैनिक अखबार दिव्य भास्कर द्वारा दायर 2016 की एक RTI के जवाब के अनुसार, राज्य सरकार अनुसूचित जाति के लोगों के लिए अलग श्मशान घाटों के लिए धन देती है. सरपंच राजीव पटेल ने क्विंट को बताया कि गांव में सार्वजनिक जगहों के रोजमर्रा के रख-रखाव की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत की होती है.

उन्होंने कहा, "पिछले साल मैंने गांव में पाटीदार श्मशान घाट की चारदीवारी बनाई थी. इसके बाद मैं दलित समुदाय के श्मशान घाट में काम करवाने की योजना बना रहा हूं."

पिछले 10 साल से गांव के सरपंच राजीव पटेल को यह जानकारी है कि दलितों के श्मशान घाट को कूड़ा फेंकने की जगह के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने कहा, "मैंने इसे (श्मशान घाट) 2 साल पहले साफ करवाया था. इसे फिर से साफ करवाऊंगा."

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