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Edward Snowden: भारत समेत 27 देशों ने नहीं दी शरण, पुतिन ने क्यों दी नागरिकता?

Edward Snowden ने जो खुलासा किया उससे अमेरिका उनसे स्थाई तौर पर खफा हो गया

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अमेरिकी सरकार के इलेक्ट्रॉनिक निगरानी कार्यक्रम की जानकारी लीक करने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NSA) के पूर्व कांट्रैक्टर एडवर्ड स्नोडेन अब आधिकारिक रूप से रूस के नागरिक बन गए हैं. हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने व्हिसल ब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन को रूस की नागरिकता देने वाले आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं. पुतिन के इस कदम के कई मायने हैं, शायद वे इसके जरिए यह संदेश देना चाहते हैं कि जब लोकतंत्र की दुहाई देने वाले किसी भी देश ने अमेरिकी एजेंसियों की करतूतों से पर्दा उठाने शख्स को मानवीय आधार पर शरण नहीं दी तब रूस ने उसे न केवल पनाह दी बल्कि अब नागरिकता भी प्रदान की. आइए जानते हैं कौन हैं एडवर्ड स्नोडेन, कहां-कहां इन्होंने शरण मांगी और आखिर रूस कैसे पहुंचे?

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पहले जानिए क्या है पूरा मामला?

मई 2013 में एडवर्ड स्नोडेन अपने साथ गुप्त दस्तावेज लेकर अमेरिका से भाग निकले थे और हांगकांग में जाकर कुछ सीक्रेट फाइलों का खुलासा किया था. इन फाइलों में बताया गया था कि कैसे अमेरिकी खुफिया एजेंसियां घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निगरानी कर रही हैं. इस खुलासे के बाद व्हाइट हाउस में हडकंप मच गया था.

एडवर्ड ने पत्रकारों को डॉक्यूमेंट लीक किए थे, इसके बाद वे व्हिसिल ब्लोअर बन गए थे. हांगकांग में उन्होंने द गार्जियन के ग्लेन ग्रीनवाल्ड, द वाशिंगटन पोस्ट के बार्टन गेलमैन जैसे पत्रकारों और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता लौरा पोइट्रास को डॉक्यूमेंट दिए थे.

स्नोडेन ने जो गुप्त जानकारी लीक की थी उसके बाद पूरी दुनिया में राजनयिक तनाव बढ़ गया था. स्नोडेन ने खुफिया जानकारी साझा करने पर अपनी बात रखते हुए कहा था कि उन्होंने यह खुलासा इसलिए किया क्योंकि उनका मानना ​​​​था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां बहुत आगे बढ़ रही थीं और नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन कर रही थीं. एक बार स्नोडेन ने कहा था कि उन्हें एक जासूस के तौर पर प्रशिक्षित किया गया था.

स्नोडेन ने पत्रकारों को जो सूचनाएं दी थीं उन पर आधारित स्टोरी की वजह से द वाशिंगटन पोस्ट और द गार्जियन को पब्लिक सर्विस के लिए पुलित्जर पुरस्कार बोर्ड ने मेडल से सम्मानित किया था.

अमेरिका में उन पर जासूसी का आरोप लगाते हुए, भगोड़ा घोषित कर दिया था और उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया था. अमेरिकी सरकार ने स्नोडेन पर अमेरिकी सरकारी संपत्ति की चोरी, राष्ट्रीय सुरक्षा सूचना के अनाधिकृत संचार और जानबूझ कर वर्गीकृत खुफिया सामग्री को उजागर करने के आरोप लगाए थे. 2013 से ही अमेरिका सरकार एडवर्ड को वापस देश वापस लाना चाहती है ताकि उस पर मुकदमा चलाया जा सके, लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है.

व्हाइट हाउस की तरफ से पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि एडवर्ड के लिए माफी की कोई गुंजाइश नहीं है. उन्हें अमेरिका लौटना होगा और खुद पर लगे आरोपों का सामना भी करना होगा.

मानवीय आधार पर कई देशों से मांगी शरण

मई 2013 में अमेरिका से गोपनीय सूचनाओं से भरा लैपटॉप लेकर एडवर्ड स्नोडेन हांगकांग पहुंचे थे. इसके बाद वे मास्को हवाई अड्डे पर पहुंचे थे, जहां वे इक्वाडोर जाना चाहते थे, लेकिन तब तक उनका पासपोर्ट अमेरिका ने रद्द कर दिया था जिसकी वजह से वे मास्को के ट्रांजिट जोन में फंस गए थे. अमेरिकी जासूसी कारनामों को उजागर करने वाले एडवर्ड स्नोडेन ने भारत समेत 20 से अधिक देशों से शरण मांगी थी. 30 जून 2013 को विकीलीक्स की कानूनी सलाहकार साराह हैरिसन ने स्नोडेन की ओर से इस संबंध में आवेदन किया था.

विकीलीक्स ने एक बयान में कहा गया था कि "विकीलीक्स किसी लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक शरण पाने में स्नोडेन की पूरी मदद करेगी."

शरण मांगने के संबंध में आवेदन कई देशों को किए गए थे जिनमें ऑस्ट्रिया, बोलिविया, ब्राजील, चीन, क्यूबा, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इटली, आयरलैंड, नीदरलैंड, निकारागुआ, नार्वे, पोलैंड, स्पेन, स्विस कनफेडरेशन तथा वेनेजुएला शामिल जैसे नाम शामिल थे. लेकिन ओबामा प्रशासन ने विभिन्न देशों को चेतावनी दी थी कि स्नोडेन को शरण प्रदान नहीं की जाए, क्योंकि वह जासूसी तथा गोपनीय दस्तावेजों को लीक करने के आरोपों में अमेरिका में वांटेड हैं.

एक बयान में खुद एडवर्ड ने कहा था कि जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन ऐसे देश थे जिन्होंने शरण देने से इनकार कर दिया था.

  • इक्वेडोर से शरण मांगी थी. जिसकी पुष्टि इक्वेडोर के विदेश मंत्री ने ट्विटर पर की थी. लेकिन एडवर्ड को शरण नहीं मिली थी.

  • इटली की ओर से कहा गया था कि वे एडवर्ड स्नोडेन के शरण देने वाले आवेदन को स्वीकार नहीं कर सकते हैं, क्योंकि कानून और राजनीतिक हालात इसकी इजाजत नहीं देते हैं.

  • फ्रांस ने कहा था कि उसने स्नोडेन के शरण की मांग को ठुकरा दिया है.

  • एडवर्ड स्नोडेन ने मॉस्को में भारतीय दूतावास के जरिए भारत में शरण दिए जाने का अनुरोध किया था लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मांग को ठुकरा दिया था.

  • ब्राजील ने एडवर्ड को स्थाई शरण देने से इन्कार कर दिया था.

विकिलीक्स वेबसाइट पर पोस्ट किए गए अपने पत्र में स्नोडेन ने ओबामा प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा था कि बिना किसी गलती के उन्हें ऐसा व्यक्ति बना दिया गया जिनका कोई देश नहीं है. ओबामा पर आरोप लगाते हुए स्नोडेन ने कहा था कि राष्ट्रपति ने उपराष्ट्रपति को आदेश दिया है कि वह उन देशों के नेताओं पर मेरी शरण याचिका रद्द करने का दबाव बनाएं जिनसे मैंने सुरक्षा का अनुरोध किया है. इसके आगे स्नोडेन ने कहा था कि विश्व नेता का इस प्रकार से धोखा देना न्याय नहीं है.
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सबने ठुकराया रूस ने अपनाया

हांगकांग में रहकर एडवर्ड स्नोडेन को ये समझ आ चुका था कि अमेरिका वापस जाना अब उसके लिए आसान नहीं है, वहां उनको जान का भी खतरा है. इसके बाद एडवर्ड रूस जाने का विकल्प तलाशने लगे और रूस की सरकार से पनाह देने की मांग की.

हांगकांग छोड़ने के बाद एडवर्ड स्नोडेन ने 2013 में जून से लेकर अगस्त तक का समय मॉस्को हवाई अड्डे पर बिताया था. खुलासा करने के बाद स्नोडेन 23 जून को हांगकांग से मॉस्को गए थे, अगस्त 2013 में स्नोडेन के वकील अनातोली कुशेरेना ने कहा था कि स्नोडेन को शेरेमेत्येवो एयरपोर्ट के ट्रांजिट जोन से रूस के इलाके में जाने के लिए जरूरी कागजात मिल गए हैं. इस प्रकार रूस ने उन्हें शरण दी थी.

रूस के फैसले का एडवर्ड स्नोडेन ने स्वागत किया और रूस को धन्यवाद दिया था.

विकीलीक्स वेबसाइट पर जारी बयान में स्नोडेन ने कहा था कि "पिछले आठ सप्ताहों से हमने देखा है कि ओबामा प्रशासन ने घरेलू या अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के प्रति कोई सम्मान नहीं जताया है. लेकिन आखिरकार कानून जीत रहा है. मैं रूस का धन्यवाद देता हूं कि उसने अपने कानून और अंतर्राष्ट्रीय दायित्व के तहत मुझे शरण दी है."

वहीं व्हाइट हाउस के तत्कालीन प्रवक्ता जे कार्नी ने कहा था कि "हम इससे बेहद निराश हैं कि रूस ने हमारे स्पष्ट और कानून के तहत अनुरोध के बावजूद ऐसा कदम उठाया है. हमने सार्वजनिक रूप से और निजी रूप से यही अनुरोध किया था कि स्नोडेन को अमेरिका भेजा जाना चाहिए ताकि वे अपने खिलाफ लगे आरोपों का सामना कर सके."

शुरुआत में रूस की सरकार ने एडवर्ड को एक साल तक देश में रहने की इजाजत दी थी, इसके बाद इस समय-सीमा को बढ़ा दिया गया.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2017 में अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी के अवैध सर्विलांस का भंड़ाफोड़ करने वाले एडवर्ड स्नोडेन का समर्थन किया था. पुतिन ने कहा था कि स्नोडेन का अमेरिकी सीक्रेट्स को लीक करना गलत था, लेकिन स्नोडेन का काम देशद्रोही नहीं था.
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रूस ने 2020 में स्नोडेन को स्थायी निवास का अधिकार दिया था, जिसके बाद उनके लिए रूसी नागरिकता लेने का रास्ता साफ हो गया था. स्नोडेन 2013 से रूस में रह रहे थे, अब पुतिन ने एक आदेश पर हस्ताक्षर कर दिया है जिससे उनको रूस की नागरिकता मिल गई है. न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक अब स्नोडेन की पत्नी भी रूस की नागरिकता के लिए आवेदन करेंगी.

पुतिन क्या संदेश देना चाहते हैं?

रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण किये जाने के बाद से अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि पुतिन का यह कदम अमेरिका को एक करारा जवाब है.

पहले से ही वाशिंगटन और मॉस्को के बीच संबंध दशकों में अपने सबसे निचले बिंदु पर हैं. ऐसे में रूस द्वारा यूक्रेन में जो कुछ किया जा रहा है उससे और कड़वाहट आई है.

अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के तौर पर कार्य कर चुके जेम्स क्लैपर ने पुतिन के इस कदम के बाद कहा है कि "स्नोडेन को नागरिकता प्रदान करने का फैसला "बहुत ही उत्सुक समय" के साथ आया है. ऐसे में एक बार फिर यह सवाल उठता है कि एडवर्ड ने रूसियों के साथ आखिर क्या कुछ साझा किया है?"

अमेरिका में वापसी की संभावना

स्नोडेन रूस में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं. वे बहुत ही लो प्रोफाइल जीवन व्यतीत कर रहे हैं. एक बार उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें निष्पक्ष सुनवाई की गारंटी दी गई तो वह अमेरिका लौट आएंगे. 2020 में जब उन्हें रूस ने स्थायी निवास का अधिकार दिया तब इसके कुछ महीने पहले ही तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि वह स्नोडेन के लिए क्षमा पर विचार कर रहे थे.

रूस द्वारा नागरिकता देने के बाद अब स्नोडन शायद ही कभी अमेरिका पहुंच पाएंगे. अभी तक नागरिकता को लेकर स्नोडेन की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

अगर स्नोडेन अमेरिका आते हैं तो उन पर मुकदमा चलेगा जिसमें 30 साल की सजा भी हो सकती है.

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एक नजर एडवर्ड के जीवन पर

  • एडवर्ड जोसेफ स्नोडेन का जन्म 21 जून 1983 को हुआ था.

  • उनके पिता का नाम लोनी और मां का नाम एलिजाबेथ है.

  • स्नोडन की बड़ी बहन हैं जिनका नाम जेसिका है.

  • स्नोडेन का शुरुआती जीवन उत्तरी कैरोलिना के तट पर एलिजाबेथ सिटी में बीता था.

  • बाद में इनका परिवार डीसी के कम्यूटर बेल्ट के भीतर मैरीलैंड चला गया था.

  • बीमारी की वजह से स्नोडेन की पढ़ाई में बाधा आ गई थी. वही बाद में जब उनके माता-पिता अलग हो गए तो उनकी पढ़ाई छूट गई थी. वे हाई स्कूल खत्म नहीं कर पाए थे.

  • 1999 में 16 साल की उम्र में स्नोडेन ने ऐनी एरुंडेल कम्युनिटी कॉलेज में दाखिला लिया, जहां उन्होंने कंप्यूटर कोर्स किया.

  • माता-पिता के तलाक के बाद, स्नोडेन एक रूममेट के साथ रहते थे और फिर बाद में अपनी मां के साथ बाल्टीमोर के पश्चिम में एलिकॉट सिटी में रहने लगे थे.

  • स्नोडेन का ध्यान कंप्यूटर पर था. उनके लिए इंटरनेट "मानव इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार" था.

2003 में इराक पर अमेरिकी आक्रमण ने स्नोडेन को सेना में करियर बनाने के बारे में प्रेरित किया. खुद स्नोडेन ने एक बार कहा था कि "मैं इराक युद्ध में लड़ना चाहता था क्योंकि मुझे लगा कि एक इंसान के रूप में मेरा दायित्व है कि मैं लोगों को उत्पीड़न से मुक्त करने में मदद करूं."
  • इसके बाद स्नोडेन 2004 में अमेरिकी सेना में शामिल हो गए लेकिन प्रशिक्षण के दौरान उनके दोनों पैर टूट जाने के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई.

  • राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी में 2005 में पहली बार उन्हें सुरक्षा गार्ड का काम मिला. उन्हें मैरीलैंड विश्वविद्यालय में स्थित एजेंसी के एक केंद्र के सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

  • इसके बाद वे 2006 में खुफिया एजेंसी सीआईए चले गए और सूचना प्रौद्योगिकी तंत्र की सुरक्षा पर काम करने लगे.

  • औपचारिक शिक्षा न होने के बावजूद एडवर्ड स्नोडेन के पास कंप्यूटर की अच्छी जानकारी थी, जिसकी बदौलत उन्हें खुफिया सेवा में तरक्की मिलती गई.

  • 2007 में स्नोडेन को जेनेवा में राजनयिक दर्जे वाला सीआईए का एक पद भी दिया गया था. जहां बाद में सरकारी काम से वे निराश हो गए थे.

गार्डियन अखबार को उन्होंने बताया था कि ''जेनेवा में मैंने जो देखा उसने मुझे निराश किया कि मेरी सरकार कैसे काम कर रही है? और इसका दुनिया पर क्या असर हो रहा है? वहां मुझे लगा कि मैं कुछ ऐसी चीजों का हिस्सा था, जो फायदे से अधिक नुकसान पहुंचाने के लिए की जा रही थीं.'' ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद स्नोडेन उन्हें बेहद नापसंद करने लगे थे.
  • स्नोडेन ने 2009 में सीआईए की नौकरी छोड़ दी. इसके बाद वे राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NSA) में ठेके पर काम करने वाली कंपनियों में काम करने लगे. रिपोर्ट्स के मुताबिक स्नोडेन को वहां दो लाख डॉलर की तनख्वाह मिलती थी.

  • 2009 और 2012 के बीच उन्होंने इस बात का पता लगाया कि NSA निगरानी कैसे करती है और 2013 में उन्होंने भांड़ा फोड़ दिया.

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