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"44 लाख खोए-टॉर्चर किया गया", अमेरिका से डिपोर्ट भारतीय, अलग-अलग कहानियां एक अंत

104 भारतीयों को लेकर एक अमेरिकी सैन्य विमान 5 फरवरी को अमृतसर के श्री गुरु रामदास जी हवाई अड्डे पर उतरा.

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प्रदीप, जसपाल और हरविंदर सिंह. ये जब 5 फरवरी को अमृतसर के श्रीगुरु राम दास जी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इंटरनेशनल टर्मिनल से बाहर आए. तब इनके साथ सिर्फ वापस आने की निराशा नहीं थी, बल्कि सपनों के टूटने का बोझ भी था. कोई जमीन बेच बाहर गया था तो कोई सोना गिरवी रख. सबकी अलग-अलग कहानियां थीं लेकिन अंत एक जैसा.

ये अमेरिका के सैन एंटोनियो, टेक्सास से डिपोर्ट किए गए उन 104 भारतीय प्रवासियों में से थे जो 5 फरवरी को यूएस सी -17 ग्लोबमास्टर सैन्य विमान में बैठकर भारत लाए गए थे. अमेरिका ने अवैध अप्रवासियों राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की आक्रामक कार्रवाई के बीच यह कदम उठाया. भारत लौटने वालों के परिवारों के लिए यह कहानी केवल निर्वासन के बारे में नहीं है- यह खोई हुई आशा, वित्तीय बर्बादी और भावनात्मक तबाही के बारे में भी है.

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'44 लाख रुपये खो गए, सपने तबाह हो गए'

हरविंदर सिंह की कहानी दिल दहला देने वाली है. होशियारपुर के 41 वर्षीय हरविंदर अपने दो बच्चों - 12 साल का बेटा और 11 साल की बेटी - के लिए बेहतर भविष्य की उम्मीद के साथ 10 महीने पहले अमेरिका चले गए थे.

उनके परिवार ने एक एजेंट पर भरोसा किया जिसने उन्हें आश्वासन दिया कि सब कुछ कानूनी रूप से किया जाएगा. लेकिन अंत में, हरविंदर को 'डंकी' के भयानक मार्ग पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. डंकी रूट यानी विदेश में जीवन की तलाश में कई हताश भारतीयों द्वारा अपनाया गया खतरनाक अवैध इमिग्रेशन रूट.

उनकी पत्नी कुलजिंदर कौर ने कांपती आवाज में द क्विंट को बताया कि पकड़े जाने पर, उन्हें भारत वापस भेजे जाने से पहले यातनाएं दी गईं.

उन्होंने अपने टूटे हुए अमेरिकी सपने की भयावह कीमत बताते हुए कहा, "हमने उसे अमेरिका भेजने के लिए 44 लाख रुपये खर्च किए. हमने इसके लिए गोल्ड लोन लिया और हमने अभी भी इसे पूरी तरह से चुकाया नहीं है. हम कर्ज में डूब रहे हैं."

कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलने और अपनी बचत खत्म हो जाने के कारण, वे अब जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

कुलजिंदर कौर ने कहा, "अमेरिकी सरकार के लिए ऐसा करना सही नहीं था, लेकिन अब हम पंजाब और केंद्र सरकार से इस संकट में हमारी मदद करने का अनुरोध करते हैं."

कौर ने हताश परिवारों का शोषण करने वाले धोखेबाज एजेंटों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की भी मांग की. उन्होंने कहा, “ये एजेंट जिंदगियां बर्बाद कर रहे हैं. इससे पहले कि और अधिक परिवारों को परेशानी हो, सरकार को उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए."

'मुंडा सड्डा, पैसे सड्डे डूबे, दुनिया स्वाद लेई जांदी आ'

दूसरी ओर, डिपोर्ट किए गए लोगों के कई परिवार, जिनके दिल पीड़ा से भरे हुए हैं, बस अकेले रहना चाहते हैं.

21 वर्षीय प्रदीप सिंह के पिता ने द क्विंट से बात करते हुए कहा, "मुंडा सड्डा, पैसे सड्डे डूबे, दुनिया स्वाद लेई जांदी आ (वह हमारा बच्चा है, हमने अपना पैसा खो दिया और अब दुनिया हमारे दर्द पर मजे ले रही है.)"

उन्होंने आगे कहा कि अपने बेटे को विदेश भेजने के लिए ढेर सारी रकम खर्च करने के बाद उसे अमेरिका से खाली हाथ लौटते देखने का दर्द असहनीय था.

"हम इसके बारे में बात नहीं करना चाहते. कृपया, हमें शांति से रहने दें," वे उस खराब सपने को फिर से न याद करना चाहते हैं और न दुहराना चाहते हैं.

प्रदीप का परिवार अकेला नहीं है. गुरदासपुर के हरदोवाल में जसपाल सिंह का परिवार भी दुख और निराशा में डूबा हुआ है. अमेरिका से डिपोर्ट किए जाने की खबर मिलने के बाद से उनकी पत्नी और मां अस्वस्थ हैं.

उनके एक करीबी रिश्तेदार ने कहा, "हम इंटरव्यू देने या किसी भी चीज के बारे में बात करने की स्थिति में नहीं हैं," उनके न चाहते निकले शब्दों की तुलना में उनकी चुप्पी ने बहुत कुछ कह दिया.

इन निर्वासित अप्रवासियों और उनके परिवारों के लिए, भविष्य अनिश्चित बना हुआ है. अब उनकी एकमात्र इच्छा शांति से रहना और टूटे हुए सपनों के खंडहरों से अपने जीवन को फिर से बनाने का रास्ता ढूंढना है.

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'मौत से बदतर हालात'

अमेरिका से डिपोर्ट किए गए भारतीयों में दो युवक उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हैं. हाईस्कूल पास देवेंद्र सिंह अवैध तरीके से 29 नवंबर 2024 को अमेरिका के लिए निकले थे.

देवेंद्र सिंह ने क्विंट हिंदी को अवैध रास्ते से अमेरिका पहुंचने की आपबीती सुनाई. उन्होंने बताया कि वह सबसे पहले भारत से थाईलैंड गए, फिर वियतनाम और चीन होते हुए एल साल्वाडोर पहुंचे. वहां से वह पहले ग्वाटेमाला और फिर मेक्सिको के रास्ते अमेरिका में प्रवेश किया. लेकिन इस सफर में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

"अमेरिका पहुंचाने वाले माफिया ने हमें अपने घरों में रखा. वो धीरे-धीरे पैसे मांगते रहे. बॉर्डर पर लोहे की सीढ़ी लगाकर हमें अमेरिका में प्रवेश कराया गया. वहां अमेरिकी सेना ने हमें पकड़कर कैंप में डाल दिया. कैंप में बेहद खराब स्थिति होती है. खाने के लिए केवल इतना ही दिया जाता है कि जिंदा रहा जा सके. ठंड में केवल एक कपड़े में रहना पड़ा."
देवेंद्र सिंह

देवेंद्र ने बताया कि उनका सपना अमेरिका में नौकरी कर ट्रक चलाने का था, लेकिन अब वह कभी वापस नहीं जाना चाहते. वो कहते हैं, "पहले अमेरिका में लोगों को बुलाया जाता था, लेकिन अब उन्हें वहां से भगाया जा रहा है. यह सब अवैध तरीके से ही होता है, क्योंकि कानूनी तरीके से वहां पहुंचना बहुत मुश्किल है."

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द क्विंट के पास मौजूद डिपोर्ट किए गए यात्रियों के घोषणापत्र के अनुसार, 33 गुजरात से, 33 हरियाणा से, 30 पंजाब से, तीन चंडीगढ़ से और दो महाराष्ट्र से हैं.

बुधवार, 5 फरवरी को निर्वासित भारतीय यात्रियों के आने के वक्त व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की गई थी. द क्विंट से बात करने वाले सूत्रों के अनुसार, पंजाब और हरियाणा के अलावा दूसरे राज्यों के भारतीयों को हवाई अड्डे से ही कमर्शियल फ्लाइट्स के माध्यम से उनके मूल राज्यों में वापस भेज दिया गया, जबकि अन्य को मीडिया के ध्यान से बचने के लिए हवाई अड्डे से एक गुप्त सड़क के माध्यम से ले जाया गया.

पंजाब के एनआरआई मामलों के मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल भी अमृतसर हवाईअड्डे गए और डिपोर्ट किए गए कुछ भारतीयों से बात की.

उन्होंने बुधवार को प्रेस को संबोधित करते हुए कहा था, "वापस लौटे सभी लोग ठीक हैं. उनके लैंड करने पर उन्हें भोजन और चाय दी गई. उनकी कागजी कार्रवाई चल रही है."

उन्होंने केंद्र सरकार से अवैध रास्ते से अमेरिका जाने की इस समस्या का समाधान खोजने के लिए ट्रंप प्रशासन के साथ चर्चा करने का भी आग्रह किया.

धालीवाल ने कहा, "यह भारत और अमेरिका के बीच एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ चर्चा करने और समाधान खोजने का अनुरोध करूंगा. प्रधानमंत्री को अमेरिका में भारतीयों के सिर पर लटक रही निर्वासन और कारावास की तलवार के खिलाफ ढाल के रूप में कार्य करना चाहिए."

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भारत सरकार विदेश में भारतीयों के कल्याण से जुड़े विधेयक पर काम कर रही

इस बीच, भारत सरकार ने कहा कि वह विदेशों में भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा के लिए और "विदेशी रोजगार के लिए सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित प्रवासन" सुनिश्चित करने के लिए एक कानून बनाने पर "गंभीरता से विचार" कर रही है.

यह जानकारी कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति द्वारा चल रहे बजट सत्र के बीच सोमवार, 3 फरवरी को लोकसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट से सामने आई.

समिति से किए एक खास सवाल के जवाब में, विदेश मंत्रालय ने कहा है कि प्रस्तावित इमिग्रेशन बिल - ओवरसीज मोबिलिटी (सुविधा और कल्याण) विधेयक, 2024 - 1983 के इमिग्रेशन कानून की जगह लेगा.

विदेश मंत्रालय ने जवाब में कहा, “इसका उद्देश्य एक सक्षम ढांचा स्थापित करना है जो विदेशी रोजगार के लिए सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित प्रवासन को बढ़ावा देगा. प्रस्तावित मसौदा संबंधित मंत्रालयों के पास परामर्श के अधीन है. आंतरिक परामर्श के बाद मसौदा 15/30 दिनों के लिए सार्वजनिक परामर्श के लिए रखा जाएगा, उसके बाद संशोधित मसौदे पर कैबिनेट नोट के मसौदे के साथ अंतर मंत्रालयी परामर्श किया जाएगा.”

इससे पहले, 31 जनवरी को, विदेश मंत्रालय ने उन भारतीय नागरिकों की वापसी की सुविधा के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की थी जो कथित तौर पर अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे थे और जिन्हें निर्वासित किया जाना था.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने भी अवैध आप्रवासन के खिलाफ सरकार के रुख को दोहराया था और संगठित अपराध से इसके संबंध पर प्रकाश डाला था.

उन्होंने कहा था, "भारत अवैध प्रवास का दृढ़ता से विरोध करता है, खासकर क्योंकि यह संगठित अपराध के अन्य रूपों से जुड़ा हुआ है. भारत-अमेरिका प्रवास और गतिशीलता सहयोग के हिस्से के रूप में, दोनों पक्ष अवैध प्रवास को रोकने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं, साथ ही भारत से अमेरिका में कानूनी प्रवास के लिए और अधिक रास्ते भी बना रहे हैं."

उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार भारत भेजे जाने वाले व्यक्तियों की राष्ट्रीयता सहित उचित वेरिफिकेशन सुनिश्चित करेगी.

(इनपुट- अमित सैनी)

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