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Delhi Ordinance Bill में क्या है? LG को कितनी पावर? दिल्ली सरकार पर क्या असर?

Arvind Kejriwal ने कहा, "पूरा देश समझ रहा है कि कैसे BJP दिल्ली के लोगों के वोट की ताकत को छीन रही हैं."

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राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक (National Capital Territory of Delhi (Amendment) Bill- 2023) संसद के दोनों सदनों- लोकसभा और राज्यसभा से पास हो गया है. यह बिल राजधानी दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर उपराज्यपाल (LG) को व्यापक शक्तियां देता है. विधेयक के पक्ष में 131 और विपक्ष में 102 वोटों के साथ बिल पारित किया गया. BJD और YSRCP सांसदों ने सत्तारूढ़ गठबंधन को वोट किया. ऐसे में आइए जानते हैं कि संशोधन विधेयक में क्या है?

Delhi Ordinance Bill में क्या है? LG को कितनी पावर? दिल्ली सरकार पर क्या असर?

  1. 1. अब तक क्या-क्या हुआ?

    विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच बिल पर बहस के दौरान तीखी नोक-झोंक हुई. यह बहस करीब आठ घंटों तक चली. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि यह विधेयक किसी भी तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन नहीं करता है.

    भारत की सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को दिल्ली दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और उसे सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और पुलिस को छोड़कर, राजधानी की ज्यादातर सेवाओं पर अधिकार दे दिया.

    इसके बाद केंद्र सरकार ने 19 मई को एक अध्यादेश पेश किया, जिसने दिल्ली सरकार को पोस्टिंग, ट्रांसफर, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मुद्दों पर दिल्ली के उपराज्यपाल को अधिकार देने की सिफारिश की. सरकार ने कहा कि...
    राष्ट्रीय राजधानी के रूप में दिल्ली के स्पेशल स्टेटस को ध्यान में रखते हुए, स्थानीय और राष्ट्रीय दोनों लोकतांत्रिक हितों को संतुलित करने के लिए, प्रशासन की एक योजना कानून द्वारा तैयार की जानी चाहिए. भारत सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) दोनों संयुक्त और सामूहिक जिम्मेदारी के जरिए लोगों की आकांक्षाओं के लिए काम करेगी.

    केजरीवाल सरकार ने कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने और राजधानी शहर में नौकरशाही पर नियंत्रण करने की कोशिश के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र सरकार की आलोचना की थी.

    3 अगस्त को दिल्ली विधेयक लोकसभा में पारित किया गया, इस दौरान विपक्षी दल के सदस्यों ने वॉकआउट करते हुए अपना विरोध दर्ज किया.

    संसद से पास हुए दिल्ली विधेयक ने उस अध्यादेश का स्थान ले लिया, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह फैसला सुनाए जाने के बाद जारी किया गया था कि निर्वाचित सरकार का दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण है.

    विधेयक का बचाव करते हुए अमित शाह ने कहा कि...

    "विपक्ष ने कहा है कि अधिकारियों को कैबिनेट नोट का मसौदा तैयार करने की शक्ति दी गई है. मैं दो सरकारों में रहा हूं. अधिकारी ही कैबिनेट नोट भेजते हैं, मैंने अब तक एक भी कैबिनेट नोट पर हस्ताक्षर नहीं किया है. मैंने फाइलों पर हस्ताक्षर किए हैं."

    अमित शाह ने आगे कहा कि विधेयक के प्रावधान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के कामकाज के लेनदेन नियम, 1993 का हिस्सा थे, जिसे कांग्रेस ने लागू किया था. हमने उन्हें विधेयक में शामिल कर लिया है. हम कुछ भी नया नहीं लाए हैं. नियमों को विधेयक का हिस्सा बनाया गया है क्योंकि दिल्ली में एक ऐसी सरकार है, जो नियमों का पालन नहीं करती है.

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  2. 2. Delhi Ordinance Bill क्या है? इससे दिल्ली सरकार पर क्या असर होगा?

    • दिल्ली सेवा विधेयक में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी के अधिकारियों से पूछताछ और निलंबन केंद्र के नियंत्रण में होगा.

    • यह बिल दिल्ली के उपराज्यपाल को कई मामलों पर अपने विवेक का प्रयोग करने का अधिकार होगा, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की सिफारिशें और दिल्ली विधानसभा के सत्र को खत्म करना, शुरू करना और इसका विघटन शामिल होगा.

    • अब विधेयक राज्यसभा से भी पास हो गया है, मतलब यह मौजूदा अध्यादेश का स्थान ले लेगा, जो दिल्ली सरकार को ज्यादातर सेवाओं पर कंट्रोल देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश को रद्द कर देता है.

    विधेयक में कहा गया है कि ऑथोरिटीज, बोर्ड, आयोग, वैधानिक निकाय या पदाधिकारियों की नियुक्ति की शक्ति संसद के किसी भी कानून के लिए राष्ट्रपति के पास होगी और दिल्ली विधानमंडल के किसी भी कानून के लिए एलजी के पास होगी.
    • इस संबंध में अध्यादेश में कहा गया था कि किसी भी कानून के तहत अधिकारियों, बोर्डों, आयोगों, वैधानिक निकायों या पदाधिकारियों को नियुक्त करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होगी.

    • The Wire की एक रिपोर्ट के मुताबिक संसद से पास हुआ विधेयक, अध्यादेश की विवादास्पद धारा 3ए को हटा देता है, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली विधानसभा का संविधान की सातवीं अनुसूची की लिस्ट II की एंट्री 41 के तहत सेवाओं पर नियंत्रण नहीं होगा. यह उपराज्यपाल (LG) को सशक्त बनाता है और उन्हें कई महत्वपूर्ण मामलों में फाइनल ऑथोरिटी बनाता है.

    • विधेयक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (NCCSA) की स्थापना करता है, जो एलजी को सिफारिशें करेगा, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है.

    • NCCSA में मुख्यमंत्री शामिल होंगे, जो अध्यक्ष के रूप में काम करेंगे. दिल्ली के प्रमुख गृह सचिव, सदस्य सचिव के रूप में काम करेंगे और दिल्ली के मुख्य सचिव, सदस्य के रूप में काम करेंगे. प्रमुख गृह सचिव और मुख्य सचिव दोनों की नियुक्ति केंद्र सरकार करेगी.

    • NCCSA अखिल भारतीय सेवाओं (भारतीय पुलिस सेवा को छोड़कर) और DANICS (दिल्ली, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली (सिविल) सेवाएं) के ग्रुप-ए के सिविल सेवकों के ट्रांसफर और पोस्टिंग, सतर्कता, अनुशासनात्मक कार्यवाही और अभियोजन मंजूरी से संबंधित मामलों पर एलजी को सिफारिशें करेगा.

    यह विधेयक, अध्यादेश में शामिल उस प्रावधान को भी हटा देता है, जिसके तहत सिविल सेवा प्राधिकरण को केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को एक वार्षिक रिपोर्ट सौंपने की जरूरत होती है, जिसे संसद और दिल्ली विधान सभा में पेश किया जाएगा.
    • इस निकाय के फैसले बहुमत पर आधारित होंगे और इसलिए केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त सदस्यों के लिए मुख्यमंत्री के फैसलों को खारिज करने की संभावना पैदा होती है.

    • एलजी के पास NCCSA की सिफारिशों को मंजूरी देने या पुनर्विचार के लिए कहने का अधिकार होगा. मतभेद होने पर LG का फैसला NCCSA पर भी लागू होगा.

    • यह कानून दिल्ली में शांति और शांति को प्रभावित करने वाले मामलों, केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार के साथ दिल्ली सरकार के संबंधों को प्रभावित करने वाले मामलों पर LG को आखिरी फैसला देकर अहम मामलों पर आदेश जारी करने की निर्वाचित सरकार की शक्तियों को भी कम कर देता है.

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  3. 3. Delhi Ordinance Bill का विपक्षी दल विरोध क्यों कर रहे हैं?

    केंद्र सरकार ने बिल को संसद से पास करवा लिया है. तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने भी इसका विरोध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि इस बिल के विरोध में वोट करने के लिए भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (90) व्हीलचेयर पर बैठकर राज्यसभा की चर्चा में शामिल हुए. विपक्षी दलों के सांसदों ने दिल्ली अध्यादेश बिल पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं.

    दिल्ली सेवा विधेयक पर बहस पर अपना पक्ष रखते हुए, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने आरोप लगाया कि विधेयक के जरिए "शक्तियों के संवैधानिकता का उल्लंघन" हो रहा है. उन्होंने कहा कि देश अब "जबरदस्ती संघवाद" देख रहा है.

    प्रस्तावित विधेयक भारतीय गणतंत्र के इतिहास में एक गंभीर अध्याय का प्रतिनिधित्व करता है, जो एक अध्यादेश को मंजूरी देने की मांग कर रहा है, जो कई मायनों में हमारी लोकतांत्रिक विरासत और संघवाद की भावना पर हमला है.
    शशि थरूर, कांग्रेस सांसद

    कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने संसद के बाहर मीडिया से बात करते हुए कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियां छीनना असंवैधानिक है. चुनी हुई सरकार की शक्तियां छीनना संविधान के खिलाफ है, चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो.

    "राजनीतिक धोखाधड़ी और संवैधानिक पाप"

    आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा (Raghav Chadha) ने बीजेपी की केंद्र सरकार के दिल्ली सेवा विधेयक की कड़ी आलोचना की. उन्होंने बिल को ‘राजनीतिक धोखाधड़ी’ और ‘संवैधानिक पाप’ करार दिया. सांसद राघव चड्ढा ने विधेयक को सदन में अब तक प्रस्तुत सबसे अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक और अवैध कानून बताया है.

    कभी बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी संसद में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते थे लेकिन, अब वही बीजेपी दिल्ली सरकार के अधिकार कम कर रही है.
    राघव चड्ढा, AAP सांसद
    बीजेपी को याद दिलाते हुए राघव चड्ढा ने ‘नेहरूवादी’ रुख अपनाने का आरोप लगाया और कहा कि यह उनके तात्कालिक एजेंडे के अनुकूल है.

    संसद से बिल पास होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधेयक पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बीजेपी सरकार ने राज्य के लोगों के वोट और अधिकारों का अपमान किया है.

    ये काला कानून जनतंत्र के खिलाफ है, जनतंत्र को कमजोर करता है. अगर जनतंत्र कमजोर होता है तो हमारा भारत कमजोर होता है. पूरा देश समझ रहा है कि इस बिल के माध्यम से कैसे आप दिल्ली के लोगों के वोट की ताकत को छीन रहे हैं. दिल्ली के लोगों को गुलाम और बेबस बना रहे हैं. उनकी सरकार को निरस्त कर रहे हैं.
    अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली

    सीएम केजरीवाल ने केंद्र सरकार की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि मैं आपकी जगह होता तो कभी ऐसा नहीं करता. अगर कभी देश और सत्ता में चुनना हुआ तो देश के लिए सौ सत्ता कुर्बान. सत्ता तो क्या, देश के लिए सौ बार अपने प्राण भी कुर्बान.

    सीएम केजरीवाल ने कहा कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने आज संसद में दिल्ली के लोगों को गुलाम बनाने वाला गैर-संवैधानिक कानून पास करा कर दिल्ली के लोगों के वोट और अधिकारों का अपमान किया है.

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विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच बिल पर बहस के दौरान तीखी नोक-झोंक हुई. यह बहस करीब आठ घंटों तक चली. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि यह विधेयक किसी भी तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन नहीं करता है.

अब तक क्या-क्या हुआ?

भारत की सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को दिल्ली दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और उसे सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और पुलिस को छोड़कर, राजधानी की ज्यादातर सेवाओं पर अधिकार दे दिया.

इसके बाद केंद्र सरकार ने 19 मई को एक अध्यादेश पेश किया, जिसने दिल्ली सरकार को पोस्टिंग, ट्रांसफर, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मुद्दों पर दिल्ली के उपराज्यपाल को अधिकार देने की सिफारिश की. सरकार ने कहा कि...
राष्ट्रीय राजधानी के रूप में दिल्ली के स्पेशल स्टेटस को ध्यान में रखते हुए, स्थानीय और राष्ट्रीय दोनों लोकतांत्रिक हितों को संतुलित करने के लिए, प्रशासन की एक योजना कानून द्वारा तैयार की जानी चाहिए. भारत सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) दोनों संयुक्त और सामूहिक जिम्मेदारी के जरिए लोगों की आकांक्षाओं के लिए काम करेगी.

केजरीवाल सरकार ने कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने और राजधानी शहर में नौकरशाही पर नियंत्रण करने की कोशिश के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र सरकार की आलोचना की थी.

3 अगस्त को दिल्ली विधेयक लोकसभा में पारित किया गया, इस दौरान विपक्षी दल के सदस्यों ने वॉकआउट करते हुए अपना विरोध दर्ज किया.

संसद से पास हुए दिल्ली विधेयक ने उस अध्यादेश का स्थान ले लिया, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह फैसला सुनाए जाने के बाद जारी किया गया था कि निर्वाचित सरकार का दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण है.

विधेयक का बचाव करते हुए अमित शाह ने कहा कि...

"विपक्ष ने कहा है कि अधिकारियों को कैबिनेट नोट का मसौदा तैयार करने की शक्ति दी गई है. मैं दो सरकारों में रहा हूं. अधिकारी ही कैबिनेट नोट भेजते हैं, मैंने अब तक एक भी कैबिनेट नोट पर हस्ताक्षर नहीं किया है. मैंने फाइलों पर हस्ताक्षर किए हैं."

अमित शाह ने आगे कहा कि विधेयक के प्रावधान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के कामकाज के लेनदेन नियम, 1993 का हिस्सा थे, जिसे कांग्रेस ने लागू किया था. हमने उन्हें विधेयक में शामिल कर लिया है. हम कुछ भी नया नहीं लाए हैं. नियमों को विधेयक का हिस्सा बनाया गया है क्योंकि दिल्ली में एक ऐसी सरकार है, जो नियमों का पालन नहीं करती है.

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Delhi Ordinance Bill क्या है? इससे दिल्ली सरकार पर क्या असर होगा?

  • दिल्ली सेवा विधेयक में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी के अधिकारियों से पूछताछ और निलंबन केंद्र के नियंत्रण में होगा.

  • यह बिल दिल्ली के उपराज्यपाल को कई मामलों पर अपने विवेक का प्रयोग करने का अधिकार होगा, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की सिफारिशें और दिल्ली विधानसभा के सत्र को खत्म करना, शुरू करना और इसका विघटन शामिल होगा.

  • अब विधेयक राज्यसभा से भी पास हो गया है, मतलब यह मौजूदा अध्यादेश का स्थान ले लेगा, जो दिल्ली सरकार को ज्यादातर सेवाओं पर कंट्रोल देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश को रद्द कर देता है.

विधेयक में कहा गया है कि ऑथोरिटीज, बोर्ड, आयोग, वैधानिक निकाय या पदाधिकारियों की नियुक्ति की शक्ति संसद के किसी भी कानून के लिए राष्ट्रपति के पास होगी और दिल्ली विधानमंडल के किसी भी कानून के लिए एलजी के पास होगी.
  • इस संबंध में अध्यादेश में कहा गया था कि किसी भी कानून के तहत अधिकारियों, बोर्डों, आयोगों, वैधानिक निकायों या पदाधिकारियों को नियुक्त करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होगी.

  • The Wire की एक रिपोर्ट के मुताबिक संसद से पास हुआ विधेयक, अध्यादेश की विवादास्पद धारा 3ए को हटा देता है, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली विधानसभा का संविधान की सातवीं अनुसूची की लिस्ट II की एंट्री 41 के तहत सेवाओं पर नियंत्रण नहीं होगा. यह उपराज्यपाल (LG) को सशक्त बनाता है और उन्हें कई महत्वपूर्ण मामलों में फाइनल ऑथोरिटी बनाता है.

  • विधेयक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (NCCSA) की स्थापना करता है, जो एलजी को सिफारिशें करेगा, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है.

  • NCCSA में मुख्यमंत्री शामिल होंगे, जो अध्यक्ष के रूप में काम करेंगे. दिल्ली के प्रमुख गृह सचिव, सदस्य सचिव के रूप में काम करेंगे और दिल्ली के मुख्य सचिव, सदस्य के रूप में काम करेंगे. प्रमुख गृह सचिव और मुख्य सचिव दोनों की नियुक्ति केंद्र सरकार करेगी.

  • NCCSA अखिल भारतीय सेवाओं (भारतीय पुलिस सेवा को छोड़कर) और DANICS (दिल्ली, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली (सिविल) सेवाएं) के ग्रुप-ए के सिविल सेवकों के ट्रांसफर और पोस्टिंग, सतर्कता, अनुशासनात्मक कार्यवाही और अभियोजन मंजूरी से संबंधित मामलों पर एलजी को सिफारिशें करेगा.

यह विधेयक, अध्यादेश में शामिल उस प्रावधान को भी हटा देता है, जिसके तहत सिविल सेवा प्राधिकरण को केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को एक वार्षिक रिपोर्ट सौंपने की जरूरत होती है, जिसे संसद और दिल्ली विधान सभा में पेश किया जाएगा.
  • इस निकाय के फैसले बहुमत पर आधारित होंगे और इसलिए केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त सदस्यों के लिए मुख्यमंत्री के फैसलों को खारिज करने की संभावना पैदा होती है.

  • एलजी के पास NCCSA की सिफारिशों को मंजूरी देने या पुनर्विचार के लिए कहने का अधिकार होगा. मतभेद होने पर LG का फैसला NCCSA पर भी लागू होगा.

  • यह कानून दिल्ली में शांति और शांति को प्रभावित करने वाले मामलों, केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार के साथ दिल्ली सरकार के संबंधों को प्रभावित करने वाले मामलों पर LG को आखिरी फैसला देकर अहम मामलों पर आदेश जारी करने की निर्वाचित सरकार की शक्तियों को भी कम कर देता है.

Delhi Ordinance Bill का विपक्षी दल विरोध क्यों कर रहे हैं?

केंद्र सरकार ने बिल को संसद से पास करवा लिया है. तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने भी इसका विरोध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि इस बिल के विरोध में वोट करने के लिए भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (90) व्हीलचेयर पर बैठकर राज्यसभा की चर्चा में शामिल हुए. विपक्षी दलों के सांसदों ने दिल्ली अध्यादेश बिल पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं.

दिल्ली सेवा विधेयक पर बहस पर अपना पक्ष रखते हुए, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने आरोप लगाया कि विधेयक के जरिए "शक्तियों के संवैधानिकता का उल्लंघन" हो रहा है. उन्होंने कहा कि देश अब "जबरदस्ती संघवाद" देख रहा है.

प्रस्तावित विधेयक भारतीय गणतंत्र के इतिहास में एक गंभीर अध्याय का प्रतिनिधित्व करता है, जो एक अध्यादेश को मंजूरी देने की मांग कर रहा है, जो कई मायनों में हमारी लोकतांत्रिक विरासत और संघवाद की भावना पर हमला है.
शशि थरूर, कांग्रेस सांसद

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने संसद के बाहर मीडिया से बात करते हुए कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियां छीनना असंवैधानिक है. चुनी हुई सरकार की शक्तियां छीनना संविधान के खिलाफ है, चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो.

"राजनीतिक धोखाधड़ी और संवैधानिक पाप"

आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा (Raghav Chadha) ने बीजेपी की केंद्र सरकार के दिल्ली सेवा विधेयक की कड़ी आलोचना की. उन्होंने बिल को ‘राजनीतिक धोखाधड़ी’ और ‘संवैधानिक पाप’ करार दिया. सांसद राघव चड्ढा ने विधेयक को सदन में अब तक प्रस्तुत सबसे अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक और अवैध कानून बताया है.

कभी बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी संसद में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते थे लेकिन, अब वही बीजेपी दिल्ली सरकार के अधिकार कम कर रही है.
राघव चड्ढा, AAP सांसद
बीजेपी को याद दिलाते हुए राघव चड्ढा ने ‘नेहरूवादी’ रुख अपनाने का आरोप लगाया और कहा कि यह उनके तात्कालिक एजेंडे के अनुकूल है.

संसद से बिल पास होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधेयक पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बीजेपी सरकार ने राज्य के लोगों के वोट और अधिकारों का अपमान किया है.

ये काला कानून जनतंत्र के खिलाफ है, जनतंत्र को कमजोर करता है. अगर जनतंत्र कमजोर होता है तो हमारा भारत कमजोर होता है. पूरा देश समझ रहा है कि इस बिल के माध्यम से कैसे आप दिल्ली के लोगों के वोट की ताकत को छीन रहे हैं. दिल्ली के लोगों को गुलाम और बेबस बना रहे हैं. उनकी सरकार को निरस्त कर रहे हैं.
अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली

सीएम केजरीवाल ने केंद्र सरकार की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि मैं आपकी जगह होता तो कभी ऐसा नहीं करता. अगर कभी देश और सत्ता में चुनना हुआ तो देश के लिए सौ सत्ता कुर्बान. सत्ता तो क्या, देश के लिए सौ बार अपने प्राण भी कुर्बान.

सीएम केजरीवाल ने कहा कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने आज संसद में दिल्ली के लोगों को गुलाम बनाने वाला गैर-संवैधानिक कानून पास करा कर दिल्ली के लोगों के वोट और अधिकारों का अपमान किया है.

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