दिल्ली के दिल में क्या है? इसका पता सबको चल गया है. विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को बड़ी जीत मिली है. इसी के साथ बीजेपी 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने जा रही है. वहीं अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) को हार का सामना करना पड़ा है. जीत की हैट्रिक लगाने का सपना भी टूट गया है.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी 48 पर जीत हासिल करती दिख रही है. वहीं आम आदमी पार्टी को 22 सीटों से संतोष करना पड़ रहा है. पिछले चुनाव के मुकाबले AAP का 10% वोट शेयर गिरा है और पार्टी को 40 सीटों का नुकसान हुआ है.
अब सवाल है कि पिछले 10 सालों से दिल्ली की सत्ता संभाल रही आम आदमी पार्टी से कहां चूक हुई? चलिए आपको वो 5 कारण बताते हैं, जिसकी वजह से इस बार AAP का झाड़ू नहीं चला और कमल खिला है.
1. मिडिल क्लास ने छोड़ा साथ
2015 और 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की बंपर जीत में मिडिल क्लास का बड़ा हाथ था. लेकिन अबकी बार के नतीजों से साफ है कि ये वोट बैंक भारतीय जनता पार्टी में शिफ्ट हुआ है.
पश्चिमी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली, सेंट्रल दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और नई दिल्ली ऐसे इलाके हैं, जहां मिडिल क्लास वोटर्स बड़ी संख्या में हैं. 2020 में आम आदमी पार्टी ने इन इलाकों की करीब 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार बीजेपी ने बढ़त हासिल की है.
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली सीट से चुनाव हार गए हैं. इसके अलावा, जंगपुरा से मनीष सिसोदिया, राजेंद्र नगर सीट से AAP के दुर्गेश पाठक हार गए हैं. मालवीय नगर से सोमनाथ भारती को हार का सामना करना पड़ा है. AAP के सीनियर नेताओं की हार से साफ है कि मिडिल क्लास पार्टी से खुश नहीं थी.
दूसरी तरफ केंद्रीय बजट में 12 लाख तक की कमाई को टैक्स फ्री करने का फैसला बीजेपी के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ है. केंद्र सरकार के इस फैसले से मिडिल क्लास में पॉजिटिव मैसेज गया, जिससे पार्टी को चुनाव में फायदा हुआ है.
2. पूर्वांचली वोटर्स भी छिटके
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को पूर्वांचली वोटर्स ने भी झटका दिया है. दिल्ली में करीब 30 फीसदी पूर्वांचली वोटर्स हैं. पिछले दो चुनावों में पूर्वांचलियों ने केजरीवाल का साथ दिया था. लेकिन इस बार पूर्वांचली वोटर्स ने झाड़ू छोड़, कमल का निशान उठा लिया है.
दिल्ली की 20 सीटों पर पूर्वांचली वोटर्स का असर माना जाता है. इनमें से 14 सीटें ऐसी हैं, जहां पूर्वांचल के वोटर्स हार-जीत तय करते हैं. इनमें से 11 सीटों पर आम आदमी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. पार्टी सिर्फ तीन सीट ही अपने नाम कर पाई. द्वारका, लक्ष्मी नगर, करावल नगर, पटपड़गंज, राजिंदर नगर, संगम विहार, शालीमार बाग जैसी सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार जीते हैं.
अगर पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें 20 सीटों में से 17 पर आम आदमी पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की थी. वहीं बीजेपी का आंकड़ा तीन पर सिमट गया था. हालांकि, इस बार बीजेपी ने कमबैक किया है.
3. एंटी इनकंबेंसी और भ्रष्टाचार
सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के लिए एंटी इनकंबेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर से निपटना एक बड़ी चुनौती थी. AAP के खराब प्रदर्शन के पीछे इसे भी बड़ा मुद्दा माना जा रहा है. इसके अलावा पार्टी को भ्रष्टाचार के आरोपों का भी सामना करना पड़ रहा था. दिल्ली शराब नीति मामले से लेकर जल बोर्ड, स्कूल क्साल रूम और मुख्यमंत्री आवास नवीनीकरण मामले में घोटाले के आरोप लगे थे.
पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और सांसद संजय सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जा चुके हैं. सितंबर में AAP विधायक अमानतुल्लाह खान को ED ने मनी लॉन्डिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था. इन गिरफ्तारियों से पार्टी की इमेज को डेंट लगा.
इसके अलावा मूलभूत सुविधाओं को लेकर भी वोटर्स में सरकार के प्रति नाराजगी थी. गर्मियों में पानी की किल्लत से लेकर शहर में गंदगी और खराब सड़कों को लेकर लोग काफी खफा थे. वहीं यमुना की सफाई और वायु प्रदूषण को लेकर भी AAP सरकार पर सवाल उठ रहे थे. बीजेपी ने चुनाव में इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाया, जिससे AAP को नुकसान हुआ है.
दूसरी तरफ, पिछले कुछ सालों में AAP सरकार और दिल्ली के एलजी के बीच तकरार भी देखने को मिली है. जिससे जनता से जुड़े कई मुद्दे राजनीति की भेंट चढ़ गए और विकास के काम भी प्रभावित हुए हैं. पब्लिक इस खींचतान से भी थक गई थी और उसने दूसरा विकल्प चुनना बेहतर समझा.
4. केजरीवाल के सीएम बनने पर सस्पेंस
पिछले साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भ्रष्टाचार के आरोप में ED ने अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया था. फिलहाल, वो जमानत पर बाहर हैं. जमानत देते हुए कोर्ट ने कुछ शर्तें भी लगाई थीं, जैसे- केजरीवाल किसी भी फाइल पर दस्तखत नहीं कर पाएंगे. इसके साथ ही उनके दफ्तर जाने पर भी पाबंदी रहेगी. किसी भी सरकारी फाइल पर तब तक दस्तखत नहीं करेंगे जब तक ऐसा करना जरूरी न हो.
इसके बाद सितंबर 2024 में केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और आतिशी ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. ऐसे में सवाल था कि जमानत की शर्तों के बीच क्या चुनाव जीतने के बाद केजरीवाल फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल पाएंगे? ये एक ऐसा सवाल था जिसने मतदाताओं के मन में डाउट क्रिएट किया.
5. अकेले चुनाव लड़ने का फैसला
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था. खुद अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन की संभावनाओं को खारिज किया था. चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो पता चलता है कि केजरीवाल का ये फैसला गलत साबित हुआ है.
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कम से कम ग्यारह सीटों पर तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार को बीजेपी की जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिले हैं. इनमें वे सीटें भी शामिल हैं, जहां पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज मामूली अंतर से हारे हैं.
नई दिल्ली सीट से केजरीवाल 4000 वोट से हारे हैं, वहां कांग्रेस के संदीप दीक्षित को 4500 वोट मिले हैं. जबकि जंगपुरा सीट से मनीष सिसोदिया को सिर्फ 675 वोटों से हार का सामना करना पड़ा, यहां कांग्रेस के फरहाद सूरी को 7350 वोट मिले हैं. महरौली में कांग्रेस उम्मीदवार चौथे नबंर पर रहे, लेकिन उन्हें जीत के अंतर से अधिक वोट मिले हैं.
अगर कांग्रेस और AAP ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा होता तो गठबंधन को कम से कम 12 सीटें और मिल सकती थी और चुनाव का नतीजा कुछ और हो सकता था.