ADVERTISEMENTREMOVE AD

दलित, आदिवासी छात्रों की आत्महत्या पर CJI- सामाजिक बदलाव में जजों की अहम भूमिका

CJI नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के 19वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में भाषण दे रहे थे.

Published
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार, 25 फरवरी को कहा कि वंचित समुदायों के छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं आम होती जा रही हैं और शोध से पता चलता है कि ऐसे ज्यादातर छात्र दलित और आदिवासी समुदायों से हैं.

प्रधान न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि भारत में न्यायाधीशों की अदालतों के अंदर और बाहर समाज के साथ सामाजिक परिवर्तन पर जोर देने के लिए संवाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सीजेआई नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद (एनएएलएसएआर) के 19वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में मुख्य भाषण दे रहे थे. उन्होंने कहा,

शैक्षिक पाठ्यक्रम को छात्रों के बीच करुणा की भावना पैदा करनी चाहिए और अकादमिक नेताओं को भी छात्रों की चिंताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मेरी संवेदना इन छात्रों के परिवार के सदस्यों के साथ है, लेकिन मैं यह भी सोच रहा हूं कि हमारे संस्थान कहां गलत हो रहे हैं, जिस कारण छात्रों को अपना बहुमूल्य जीवन गंवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा, "इन उदाहरणों में हाशिये पर रहने वाले समुदायों के छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं. ये संख्याएं सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, ये कभी-कभी सदियों के संघर्ष की कहानियां हैं."

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि देश में हमारे वरिष्ठ शिक्षाविद् प्रोफेसर सुखदेव थोराट ने कहा है कि आत्महत्या से मरने वाले ज्यादातर छात्र दलित और आदिवासी हैं और यह एक पैटर्न दिखाता है, जिस पर हमें सवाल उठाना चाहिए.

उन्होंने कहा,

"75 वर्षो में हमने प्रतिष्ठित संस्थान बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन इससे अधिक हमें सहानुभूति के संस्थान बनाने की जरूरत है, जैसा कि मैंने एक समाचार लेख में पढ़ा. आप में से कुछ लोग सोच रहे होंगे कि प्रधान न्यायाधीश इस मुद्दे पर क्यों बोल रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि भेदभाव का मुद्दा सीधे तौर पर शिक्षण संस्थानों में सहानुभूति की कमी से जुड़ा हुआ है."
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़
ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रधान न्यायाधीश ने जोर देकर कहा, "इसी तरह, भारत में न्यायाधीशों की अदालतों के अंदर और बाहर समाज के साथ संवाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ताकि सामाजिक परिवर्तन को आगे बढ़ाया जा सके"

उन्होंने कहा, "मेरा प्रयास उन संरचनात्मक मुद्दों पर प्रकाश डालने का भी है, जो हमारे समाज का सामना करते हैं, इसलिए सहानुभूति को बढ़ावा देना पहला कदम होना चाहिए, जो शैक्षणिक संस्थानों को उठाना चाहिए. सहानुभूति का पोषण अभिजात वर्ग और बहिष्कार की संस्कृति को समाप्त कर सकता है."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वंचित समुदायों के छात्रों द्वारा सामना किए जाने वाले सामाजिक भेदभाव पर उन्होंने प्रवेश परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर छात्रावास के कमरों के आवंटन को रोकने का सुझाव दिया, जिससे जाति आधारित अलगाव होता है.

उन्होंने सामाजिक श्रेणियों के साथ छात्रों द्वारा प्राप्त अंकों की सूची बनाने जैसी प्रथाओं का भी विरोध किया. सीजेआई ने कहा कि दलित और आदिवासी छात्रों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने के लिए उनसे अंक मांगना, उनकी अंग्रेजी दक्षता का मजाक बनाना और उन्हें अक्षम करार देना अनुचित है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सहानुभूति जताना केवल एक व्यक्तिगत गुण नहीं है, बल्कि इसके लिए हमारे शैक्षणिक संस्थानों सहित न्यायपालिका के भीतर और बाहर जीवन के हर क्षेत्र में संस्थागत परिवर्तन की जरूरत है.

उन्होंने कहा, "उस अर्थ में, मेरा मानना है कि हमदर्दी कानूनी शिक्षा की स्थिति को व्यापक रूप से प्रतिबिंबित करने में मदद कर सकती है .

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×