पूर्वी चम्पारण के घोड़ासाहन निवासी मो. असगर (बदला हुआ नाम) की शादी 5 साल पहले नेपाल की निवासी कौसर (बदला हुआ नाम) के साथ हुई और उनका तीन साल का एक बेटा है.
फर्नीचर की दुकान चला रहे मो. असगर का जीवन खुशहाल था, लेकिन उन्हें अब अपनी बीवी की चिंता सताने लगी है. उनकी इस चिंता की वजह है बिहार की मतदाता सूची का ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ है, जो 25 जून से शुरू हुआ है और 26 जुलाई तक चलेगा.
इस अभियान के तहत जिन भी लोगों का नाम बिहार की मतदाता सूची में शामिल है, उन सबके एन्युमरेशन फॉर्म भरकर बीएलओ को जमा करना है. निर्वाचन आयोग की तरफ से जारी निर्देशों के मुताबिक, जिन मतदाताओं के नाम साल 2003 की मतदाता सूची में शामिल हैं, उन्हें सिर्फ एन्युमरेशन फॉर्म भरकर जमा करना है.
वहीं, जिन मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में 2003 के बाद शामिल हुए हैं उन्हें पहचान के तौर पर अपने मतदाता सूची में दर्ज अपने माता-पिता की जानकारी और अपनी पहचान के लिए एक दस्तावेज जमा करना होगा. निर्वाचन आयोग ने 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिनमें से कोई एक दस्तावेज जमा करना जरूरी है. मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस को इस सूची से बाहर रखा गया है यानी कि ये तीन दस्तावेज पहचान पत्र के तौर पर मान्य नहीं हैं. लेकिन, नेपाल की जिन महिलाओं की शादी बिहार में हुई है, उनके लिए क्या नियम है, ये चुनाव आयोग ने स्पष्ट नहीं किया और यही मो. असगर के लिए चिंता का सबब है.
मो. असगर कहते हैं, “मुझे नहीं पता कि क्या होगा. पत्नी कौसर की चिंता हो रही है कि कहीं उसे वापस नेपाल न भेज दिया जाए.”
कौसर का नाम मतदाता सूची में शामिल है और उसका बैंक खाता भी है. लेकिन नेपाल मूल के लोगों के लिए ये सब मान्य हैं कि नहीं मो. असगर को नहीं पता. उन्होंने क्विंट के साथ बातचीत में कहा-
“बीएलओ (बूथ लेवर अफसर) से हमलोगों ने पूछा था कि क्या होगा, तो वो कुछ बोल नहीं रहा है. वह सिर्फ फॉर्म (एन्युमरेशन फॉर्म) देकर चला गया है और बोला है कि अभी किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं है.”
वह इतने परेशान हैं कि इस रिपोर्टर से ही उल्टे पूछते हैं, “क्या करना होगा सर, आप ही बताइए.”
ये चिंता अकेले मो. असगर की नहीं है. उनके मोहल्ले में ही 10 से 15 महिलाएं नेपाल की हैं. वहीं, स्थानीय जनप्रतिनिधि के मुताबिक, घोड़ासाहन पंचायत में कम से कम 100 महिलाएं नेपाल मूल की हैं और उन सबके परिवार हैरान-परेशान हैं.
नेपाल से बेटी-रोटी का संबंध
बिहार के सात जिले – पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज, नेपाल सीमा से सटे हुए हैं. वर्ष 1950 में हुए शांति और मैत्री समझौते के तहत दोनों देश के बीच खुली सीमा है और एक दूसरे देशों में प्रवेश के लिए किसी तरह का पासपोर्ट नहीं लगता है. खुली सीमा और पासपोर्ट की अनिवार्यता नहीं होने की वजह से दोनों के बीच बेटी-रोटी का संबंध बेहद प्रगाढ़ है.
यही वजह है कि दोनों देशों के बीच शादियां भी काफी आम है. नेपाल सीमा से सटा बिहार का शायद ही कोई गांव होगा, जहां नेपाल की बहुएं नहीं होंगी.
सुरेखा से जब क्विंट ने पूछा कि क्या उनके पास नागरिकता प्रमाण पत्र है, तो उन्होंने जिज्ञासा के लहजे में पूछा–
"नागरिकता प्रमाण पत्र? वो क्या है? हमारे पास आधार कार्ड है. सब काम तो इसी से होता है. हमको नहीं पता कि नागरिकता वाला कैसे बनेगा.”
मुकेश अनुसूचित जाति से आते हैं और भूमिहीन हैं. उनकी रोजीरोटी का जरिया मजदूरी है. वह कहते हैं,
“नागरिकता के लिए दिल्ली जाना होगा, कागज पत्तर तैयार करना होगा. हमलोग उतना पढ़े भी नहीं हैं और उतना पैसा भी नहीं है कि ये सब करवायें.”
लोगों को चिंता है कि वोटर लिस्ट से उनकी नेपाली मूल की पत्नी का नाम कटेगा, तो इसका दूरगामी असर हो सकता है.
सुरेखा दुखी होकर कहती हैं, “वोट का अधिकार छिन जाएगा, तब तो हमारा सारा अधिकार ही छिन जाएगा, फिर तो हमको जब चाहे सरकार हमारे ससुराल से उठाकर नेपाल भेज देगा.”
श्रीखंडी भिट्ठा पश्चिमी पंचायत की मुखिया आशा यादव के पति अरुण कुमार यादव ने कहा,
“मेरे विस्तृत परिवार में 6-7 बहुएं नेपाल की हैं. हमलोग खुद परेशान हैं कि निर्वाचन आयोग उनके साथ क्या करेगा.” नागरिकता प्रमाण पत्र के सवाल पर वह कहते हैं, “ये सब हमलोगों को कहां मालूम था? और अभी एक महीने में ये सब कैसे बनेगा?”
श्रीखंडी भिट्ठा पूर्वी पंचायत की मुखिया रेणुका शाह कहती हैं, “लोगों ने अपनी नेपाली मूल की पत्नी के नाम पर जमीन ले ली है, पत्नी के नाम पर बैंक अकाउंट है जिसमें पैसे आते हैं. अगर उनका नाम वोटर लिस्ट से हट जाएगा, तो उनके नाम पर जो जमीन है, बैंक अकाउंट है, उन सबका क्या होगा?”. उन्होंने आगे कहा,
“हमने बीएलओ से पूछा था कि नेपाली मूल की महिलाओं का क्या होगा? तो उन्होंने बताया कि अगर वे उन महिलाओं को जानते होंगे, तो उनका एन्युमरेशन फॉर्म नहीं लेंगे.” “अभी तो चुनाव आयोग ने नियम बनाया है कि सबका कागज लेना है, लेकिन हमारी तरफ का बीएलओ नेपाली मूल की महिलाओं का फॉर्म नहीं ले रहा है.”
वहीं, सदानंद चौपाल ने कहा, “अधिकारियों ने हमलोगों से कहा है कि नेपाली महिलाओं को लेकर अभी तक कोई निर्देश नहीं आया है. फॉर्म जमा करने के बाद चुनाव आयोग से निर्देश आयेगा, तो उसी हिसाब से दस्तावेज मांगा जाएगा.”
इस मामले पर क्विंट ने सुपौल के डीएम सावन कुमार से बात की. उन्होंने बताय कि नेपाल की जो महिलाएं शादी कर यहां रह रही हैं उनसे नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत जारी नागरिकता प्रमाण पत्र लिया जाएगा.
मगर क्या वे लोग नागरिकता प्रमाण पत्र लेते हैं, उनमें इसको लेकर जागरूकता है? इस सवाल पर उन्होंने कहा,"लोगों को नियम तो पता होना चाहिए."
वहीं मोतिहारी के डीएम सौरभ जोरवाल ने क्विंट को बताया कि सिटिजनशिप सर्टिफिकेट के लिए आवेदन तो आते रहते हैं, लेकिन उनके पास फिलहाल कोई आंकड़ा नहीं है.
आधार मान्य नहीं, पर आधार ले रहे बीएलओ
बिहार के गया जिले का बाराचट्टी, जिले से सटा हुआ है. यहां के लोगों की झारखंड में शादियां आम हैं. बाराचट्टी निवासी विजय कुमार के घर में तीन बहुएं झारखंड की हैं और उन सब की शादी 10 से 15 साल पहले हुई है व उनके नाम भी वोटर लिस्ट में हैं.
उन्होंने कहा कि उनकी पंचायत में 12000 वोटर हैं जिनमें से 10 फीसदी वोटर झारखंड की महिलाएं हैं.
विजय कुमार पिछले कुछ दिनों से इस बात को लेकर चिंतित थे कि उनका नाम वोटर लिस्ट में रहेगा कि नहीं. लेकिन, बीएलओ ने उन्हें बताया कि दस्तावेज के रूप में केवल आधार कार्ड देना है, तो उन्होंने राहत की सांस ली. उन्होंने बताया,
“तीनों का आधार कार्ड बना हुआ है. बीएलओ बोला कि आधार कार्ड से काम हो जाएगा, तो हमलोग फॉर्म भरवा कर आधार कार्ड के साथ जमा कर दिये हैं.”
इस रिपोर्टर ने कम से कम एक दर्जन मतदाताओं से इस संबंध में बात की, तो ज्यादातर लोगों ने बताया कि उनसे पहचान पत्र के तौर पर आधार कार्ड की जानकारियां ली जा रही हैं.
लेकिन, दिलचस्प बात है कि निर्वाचन आयोग जिन 11 तरह के दस्तावेजों को पहचान पत्र के तौर पर मान्यता दी है, उनमें आधार कार्ड शामिल नहीं है. इससे पता चलता है कि बीएलओ को भी पूरी प्रक्रिया की सटीक जानकारी नहीं है. जमीन पर तो ये भी हो रहा है कि कई बीएलओ वोटरों से कोई पहचान पत्र ही नहीं ले रहे.
नालंदा जिले के एक बीएलओ ने तो क्विंट को ये तक कह दिया कि सरकारी के निर्देशानुसार अभी किसी दस्तावेज की जरूरत ही नहीं है इसलिए वे सिर्फ एन्युमरेशन फॉर्म भरवा रहे हैं. उन्होंने बताया,
“4 जुलाई तक तो ये था कि ये कागज लगेगा, वो कागज लगेगा, लेकिन 5 जुलाई की सुबह कॉल आ गया कि कोई डाक्यूमेंट नहीं लेना है, फोटो भी नहीं. पदाधिकारी का आदेश है कि कोई प्रमाण पत्र नहीं मांगना है.”
इसको लेकर भी क्विंट ने बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी को मेल भेजा है, उनकी प्रतिक्रिया आने पर स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी.