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अयोध्या: राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से इन कारसेवकों ने क्यों बनाई दूरी?

Ayodhya: कारसेवकों के एक दल का नेतृत्व करने वाले 55 वर्षीय संतोष दुबे राम मंदिर निर्माण से प्रसन्न है लेकिन उनकी अपनी कई शिकायतें भी हैं.

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अयोध्या (Ayodhya) में आयोजित हो रहे राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा (Pran Pratishtha) कार्यक्रम की तैयारियां जोरों पर हैं. राम भक्तों का उत्साह चरम पर है. वहीं दूसरी ओर 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कुछ कारसेवक श्री राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारियों के रवैये और प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के कथित राजनीति को लेकर नाराज हैं.

22 जनवरी 2024 को हो रहे कार्यक्रम के लिए उन तक निमंत्रण भी नहीं पहुंचा है.

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"राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर किए जा रहे हैं"

1992 में कारसेवकों के एक दल का नेतृत्व करने वाले 55 वर्षीय संतोष दुबे राम मंदिर निर्माण से प्रसन्न हैं लेकिन उनकी अपनी शिकायतें भी हैं.

"2 नवंबर 1992 को जिन्होंने गोली चलाई थी वही ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं. दूसरे सबको निमंत्रण बांटने वाले लोग हैं, भगवान इन सबको शक्ति दे, बल दे. ये जमीन घोटाले वाले लोग हैं. इनसे आप बहुत उम्मीद ना कीजिए. पांच मिनट में दो करोड़ की जमीन साढ़े 18 करोड़ में कर देते हैं. रामलला के नाम पर दुकानें तो बहुत चलती रहेंगी. धार्मिक भावनाएं सदा आहत होती रहेंगी. कोई दो राय नहीं है. पर हम जिस काम के लिए पैदा हुए थे, हमने वह काम कर दिया."
संतोष दुबे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अध्यक्ष मोहन भागवत और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी और आरएसएस के कई बड़े नेता प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं.

कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में हो रही कथित राजनीति का हवाला देते हुए जनवरी 22 के कार्यक्रम से दूरी बना ली है. 1992 में कार सेवक संतोष दुबे के नेतृत्व में योगदान देने वाले उनके साथी रवि शंकर पांडे का भी मानना है यह प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम आने वाले 2024 लोकसभा चुनाव से प्रभावित है.

उन्होंने कहा, "देखिए सच्चाई यह है इसको ब्रांड बनाया जा रहा है, पॉलिटिक्स हावी है. यह कहना नहीं चाहिए लेकिन यह सब आने वाले चुनाव के मद्देनजर किया जा रहा है. जितने भी कार्यक्रम हो रहे हैं ये धार्मिक रूप से नहीं, सब राजनीतिक रूप से हो रहे हैं. राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर किए जा रहे हैं"

6 दिसंबर 1992 की कहानी, कारसेवकों की जुबानी

कार सेवक बिंदू सिंह के चाचा विश्व हिंदू परिषद के बड़े नेता थे. श्री राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ से कारसेवक बिंदु को 22 जनवरी की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण भी आया है. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के पास सुरक्षा बलों के साथ अपनी तस्वीर को दिखाते हुए बिंदु सिंह कहती हैं कि उस समय उनका बेटा मात्र 25 दिन का था. जो घटना हुई उसकी यादें अभी भी उनकी आंखों के सामने ताजा हैं.

"किसी की कुछ भी समझ में नहीं आया. सन 1990 में मुलायम सिंह ने कहा था परिंदे भी पर नहीं मार सकते. फिर जैसे लग रहा था परिंदे ही उड़ते चले आए हो कहीं से. और फिर वो ढांचे पर चढ़ गए. कुछ नीचे, कुछ ऊपर. उस समय मेरा बच्चा 20 से 25 दिन का था. मेरी एक छोटी बहन प्रतिमा सिंह है. वो निकली और भाग के सीधे जाकर गुम्बद पर चढ़ गई. ऊपर एकदम! बाद में सुना था शायद इंटेलिजेंस भी खोज रही थी कि जो लड़की ऊपर चढ़ी थी वो कौन थी, लेकिन बताता कौन? मतलब महिला के नाम पर इकलौती वो थी जो ऊपर चढ़ गई थी."
कार सेवक बिंदू सिंह

कारसेवक रविशंकर पांडे बताते हैं कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की पूरी योजना पहले से तैयार थी. मस्जिद को तोड़ने के लिए हथियार भी उपलब्ध कराए गए थे.

उन्होंने कहा कि, "साढ़े दस बजे के आसपास सबलोग हर हर महादेव का नारा लगाते गए, वहां पर किसी के पास सब्बल था, किसी के पास हथौड़ा था, किसी के पास रस्सा था, किसी के पास त्रिशूल था. यह सब चीजे हमें एक हफ्ते पहले उपलब्ध करा दी गई थी. अब केवल यही था कि हर-हर महादेव का नारा लगाकर चढ़ाई कर देनी है. हमारे साथ दुर्गा पहलवान थे, जिनकी बड़ी बुलंद आवाज थी. अगर वो सरजू जी के इस पार से बोलते थे तो दूसरे छोर एकदम साफ आवाज सुनाई देती थी. यह तय हुआ कि दुर्गा पहलवान साहब हर हर महादेव का नारा लगाएंगे. जैसे आक्रमण होता है, ठीक वैसे ही सब दौड़े. जो भी सामने आया सबको हटाया गया. डरा करके, धमका करके सबको भगाया गया."

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