"मेरे सामने सबकुछ हुआ है. मेरे सामने मेरे बेटे को गोली मारी थी. मेरे साथ मारपीट की थी. मेरे घर में तोड़फोड़ की थी."
"इसके पैर में गोली मारी और कुंदन के पैर में गोली नहीं मारी. और गोली मारकर दोनों- कुंदन और अमित के हाथ में कट्टा थमा के फोटो खींच लिए थे."
ये बयान उत्तर प्रदेश में पुलिस बर्बरता की गवाही दे रहे हैं. ये बयान पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल है. जी हां... दो महीने के अंदर दो अलग-अलग केस में पुलिस को लेकर कोर्ट के बयान आए. एक केस में तो 12 पुलिसवालों के खिलाफ FIR दर्ज किया गया. दूसरे केस में जांच का आदेश दिया. ऐसे में यूपी पुलिस की विश्वनीयता पर प्रश्न चिन्ह खड़े हुए हैं और हम पूछ रहे हैं- जनाब ऐसे कैसे?
नोएडा: हत्या का आरोप और फिर एनकाउंटर
आगे बढ़ते हैं और शुरुआत करते हैं नोएडा एनकाउंटर मामले से. बात साल 2022 की है. सितंबर का महीना था. जेवर थाने में हत्या का एक मामला दर्ज होता है. पुलिस के मुताबिक, जांच में सोमेश गौतम का नाम आता है. पुलिस सोमेश और उसके साथी प्रवीण को कथित चोरी की मोटरसाइकिल के साथ गिरफ्तार करती है.
पुलिस के मुताबिक, सोमेश ने 15 लाख रुपये लेकर हत्या में शामिल होने की बात बताई थी. जब पुलिस सोमेश और प्रवीन की निशानदेही पर हत्या की वारदात में इस्तेमाल हथियार बरामद करने गई, इस दौरान दोनों ने पुलिस पर फायरिंग कर दी. जवाब में पुलिस ने फायरिंग की और एनकाउंटर में दोनों घायल हो गए.
मथुरा निवासी इंजीनियरिंग स्टूडेंट सोमेश के पिता तरुण गौतम ने मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए जून 2024 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. 14 फरवरी 2025 को ग्रेटर नोएडा की सीजेएम कोर्ट ने जेवर थाना के तत्कालीन SHO अंजनि कुमार समेत 12 पुलिसकर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज करने और मामले की जांच के आदेश दिए. जिसके बाद 8 अप्रैल 2025 को जेवर थाने में आईपीसी की धारा 307 यानी हत्या का प्रयास सहित 11 अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है.
लेकिन उस रात हुआ क्या था?
तरुण गौतम कहते हैं, "चार सितंबर 2022 की रात को पुलिस यहां आई थी. पुलिसवालों ने गाली-गलौज, मारपीट और तोड़फोड़ की. मेरे लड़के के बारे में पूछा. मैंने बताया कि वो दिल्ली है और गवर्मेंट कॉलेज से इंजीनियरिंग कर रहा है. फिर उन लोगों ने कहा कि 'तू झूठ बोल रहा है.' फिर खूब मारपीट की."
पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज FIR में मथुरा निवासी तरुण गौतम ने बताया कि इसके बाद 4 और 5 सितंबर, 2022 की रात को पुलिस उन्हें दिल्ली लेकर गई. सुबह 3:45 बजे वो लोग दिल्ली के शकरपुर स्थित सोमेश के कमरे पहुंचे. एफआईआर में कहा गया है, "सभी लोगों ने सोमेश को पकड़ लिया और मारपीट करते हुए गाड़ी में जबरदस्ती डाल दिया." इसके बाद पुलिस सोमेश और उनके पिता को दिल्ली से जेवर थाने लेकर आई. तरुण ने एफआईआर में पुलिस पर सोमेश को करंट लगाने और मारपीट करने का आरोप लगाया है.
एफआईआर के मुताबिक, "6 सितंबर 2022 की रात करीब 9 बजे पुलिस सोमेश को एक अज्ञात स्थान पर ले गई. सोमेश की आंखों पर पट्टी और दोनों हाथ पीछे की ओर बंधे थे. पुलिस ने गोली मारी जो सोमेश के पैर में लगी. जिससे वह घायल हो गया."एफआईआर के मुताबिक
पूरे मामले को लेकर सोमेश के पिता को खासा संघर्ष करना पड़ा. करीब 8 महीने की कानूनी लड़ाई के बाद पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है. वहीं पुलिस की गोली से घायल सोमेश की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई है. वे अब ठीक तरीके से चल-फिर भी नहीं सकते. इसके अलावा पुलिस केस की वजह से उन्हें सरकारी नौकरी हासिल करने में भी दक्कत आ रही है.
कानपुर: 5 साल पुराना एनकाउंटर केस
एनकाउंटर की एक और कहानी. ये कहानी भी यूपी की है. एनकाउंटर की वही कॉपी-पेस्ट स्क्रिप्ट. लेकिन इसमें एक ट्विस्ट है, जिसके बाद पुलिस सवालों के घेरे में आ गई.
मामला कानपुर का है. 21 अक्टूबर, 2020 को नजीराबाद के तत्कालीन थाना प्रभारी इंस्पेक्टर ज्ञान सिंह ने अरमापुर थाने में मुकदमा दर्ज कराया था. जिसके मुताबिक, उनके नेतृत्व में एक टीम मरियमपुर तिराहे पर चेकिंग कर रही थी. इस दौरान एक बाइक पर सवार दो लोग उनकी ओर आते दिखे. पुलिस ने बाइक सवार को रुकने का इशारा किया. लेकिन वे रूके नहीं और भागने लगे. पुलिस ने दोनों लोगों का पीछा किया. वे अरमापुर की ओर मुड़ गए. इस बात की सूचना वायरलेस पर दी गई तो अरमापुर थाना के प्रभारी निरीक्षक अजीत कुमार वर्मा ने भी घेराबंदी की.
खुद को घिरा पाकर दोनों लोगों ने मोटरसाइकिल छोड़ दी. पुलिस ने उन्हें सरेंडर करने के लिए कहा. लेकिन दोनों ने पिस्तौल निकाली और फायरिंग कर दी. जवाबी फायरिंग में दोनों के पैर में गोली लगी और वे घायल हो गए.
घायलों की पहचान अमित और कुंदन के रूप में हुई. पुलिस को अमित की जेब से दो सोने की चेन और 1,000 रुपए नकद मिले. उसके पास से 315 बोर की देसी पिस्तौल भी बरादम हुई. वहीं कुंदन के पास से एक सोने की चेन और एक चेन का टुकड़ा मिला था.
पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या के प्रयास और अवैध हथियार रखने सहित तीन केस दर्ज किए गए थे. मामले की सुनवाई 2022 में शुरू हुई. अभियोजन पक्ष ने दोनों आरोपियों के खिलाफ 10 गवाह पेश किए. गौर करने वाली बात है कि वे सभी पुलिसकर्मी थे. मामले में कोई स्वतंत्र सरकारी गवाह पेश नहीं किया गया.
पुलिस की कहानी में कई खामियां
सुनवाई के दौरान एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया, जिसके बाद पूरा केस ही पलट गया. दरअसल, कोर्ट ने पाया कि आरोपियों के कब्जे से बरामद पिस्तौल 13 साल पहले यानी 2007 में एक अन्य मामले में मालखाने में जमा थी. इसके अलावा, पुलिस की कहानी में कई और खामियां पाई गईं:
पुलिस ने रिकवरी मेमो में पुलिस स्टेशन से निकलने का समय और स्थान दर्ज नहीं किया
पुलिस ने स्वतंत्र गवाह पेश करने के लिए “उचित प्रयास” नहीं किए
फायरिंग में दोनों लोगों को गोली लगी, लेकिन किसी पुलिसकर्मी को चोट नहीं आई
कोर्ट ने दो पुलिस निरीक्षकों के बयानों में भी विरोधाभास पाया
मरियमपुर चौराहे पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, लेकिन फुटेज दाखिल नहीं किया गया
1 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने दोनों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने उनके पास से हथियारों की झूठी बरामदगी दिखाकर उन्हें गलत तरीके से फंसाया है. बता दें कि अमित को पहले ही जमानत मिल गई थी. वहीं कुंदन भी जेल से रिहा हो गए हैं.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनय सिंह ने कानपुर के पुलिस आयुक्त को पूरे मामले की विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं. साथ ही तीन महीने में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है. अगर जांच में यह साबित होता है कि पुलिस ने अवैध रूप से मालखाने से पिस्टल निकाली और फर्जी मुकदमा दर्ज किया है तो संबंधित अधिकारी और उनकी टीम के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए भी कहा है.
"हमने कर्ज ले-लेकर केस लड़ा"
पिछले 5 सालों में अमित और कुंदन के परिवार को बहुत कुछ झेलना पड़ा है. द क्विंट से बातचीत में अमित के भाई सुमित कहते हैं,
यही असर पड़ा कि बीवी-बच्चे दूर रहे हैं. मां-बाप के इतने पैसे खर्च हुए हैं. पांच साल जेल काटना पड़ा. इसका भुगतान कौन करेगा. या तो पुलिसवाले भरें या फिर सरकार भरवाये पुलिस से, जो पुलिसवालों ने किया है. हम तो यही इंसाफ मांगेंगे अपना. जो हम लोगों को पांच साल में इतनी तकलीफें हुईं. हमने कर्ज ले-लेकर केस लड़ा. अपना खून-पसीना लगाकर कमाते हैं, रिक्शा चलाते हैं. 10-10 रुपये सवारी चलाते हैं, तब दिनभर में 500 रुपये कमाते हैं.
उत्तर प्रदेश में पुलिस एनकाउंटर को लेकर सवाल उठते रहे हैं. चाहें वो सुल्तानपुर का मंगेश यादव एनकाउंटर का मामला हो या फिर गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर केस.
आंकड़े क्या कहते हैं?
अगर आंकड़ों की बात करें तो हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, योगी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान 31 मार्च 2017 से 21 मार्च 2022 के बीच पुलिस मुठभेड़ में 158 अपराधी मारे गए. मतलब हर दो महीने में लगभग पांच अपराधी मारे गए. जबकि दूसरे कार्यकाल में 25 मार्च 2022 से 5 सितंबर 2024 के बीच 49 अपराधी पुलिस मुठभेड़ में ढेर हुए. मतलब हर दो महीने में लगभग तीन अपराधी मारे गए.
पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया है कि जब भी किसी शख्स की पुलिस मुठभेड़ में मौत होती है और अगर फर्जी मुठभेड़ के आरोप लगते हैं तो अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए.
2022 में राज्यसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, 2016-17 से लेकर 2021-22 के बीच 'पुलिस मुठभेड़ में मौतों' को लेकर देशभर में 813 मामले दर्ज किए गए. इनमें से 459 मामलों का निपटारा हो गया है. जबकि, 354 मामले लंबित हैं.
2022 NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य पुलिस कर्मियों के खिलाफ 2,614 मामले दर्ज किए गए थे. इनमें से 1,113 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया. 12 को दोषी करार दिया गया, जबकि 282 बरी हुए. मानवाधिकार उल्लंघन के तहत एनकाउंटर किलिंग को लेकर सिर्फ 6 मामले दर्ज हुए. जिसमें 15 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया. बहरहाल, NCRB की ताजा रिपोर्ट नहीं आई है.