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Vandana Das Bill:शशि थरूर ने बताया हेल्थ वर्कर्स की सुरक्षा वाले बिल में क्या है

इस बिल का उद्देश्य स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा को नॉन-बेलेबल अपराध बनाना है.

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(अपने शुगर स्मार्ट कैंपेन द्वारा, फिट डायबिटीज से जूझ रहे व्यक्तियों और समुदायों की कहानियां बता रहा है. क्या आपके पास डायबिटीज विशेषज्ञ के लिए कोई प्रश्न है? हमें अपने सवाल fit@thequint.com पर भेजें, और डॉक्टर से उत्तर प्राप्त करें.)

4 अगस्त को, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने लोकसभा में एक प्राइवेट बिल पेश किया जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सा संस्थानों को हिंसा से बचाना है.

उन्होंने कहा युवा डॉक्टर, डॉ. वंदना दास ने उन्हें, द हेल्थकेयर पर्सनेल एण्ड हेल्थकेयर इन्स्टिच्यूशन्ज (प्रोहिबिशन ऑफ वायोलेंस एंड डैमेज टू प्रॉपर्टी) बिल, 2023 प्रपोज करने के लिए प्रेरित किया. डॉ. वंदना दास की इस साल केरल के कोल्लम जिले के एक सरकारी अस्पताल में एक मरीज द्वारा हत्या कर दी गई थी.

फिट से बात करते हुए शशि थरूर ने कहा कि अगर बिल पास हो जाता है, तो वह चाहेंगे कि इसे डॉ. वंदना दास ऐक्ट कहा जाए.

इस बिल की आवश्यकता क्यों है? इसमें क्या शामिल है? बता रहे हैं, शशि थरूर.

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बिल में क्या प्रावधान हैं?

शशि थरूर: मौखिक दुर्व्यवहार सहित स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा के सभी ऐक्ट्स को नॉन-कॉगनिसेबल और नॉन-बेलेबल अपराध बनाने के लिए यह बिल पेश किया गया था. 

यह स्वास्थ्य कर्मियों की परिभाषा को बढ़ाते हुए अपने दायरे में पैरामेडिकल छात्रों और श्रमिकों, अस्पतालों और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के प्रशासनिक कर्मचारियों और आशा कार्यकर्ताओं को शामिल करता है.

यह बिल, एक्ट के तहत दर्ज मामलों की जांच पूरी करने और आरोपियों को सजा सुनाने के लिए एक निश्चित समय सीमा प्रदान करता है.

यह समयबद्ध तरीके से सुनवाई पूरी करने के लिए प्रत्येक जिले में डेजिग्नेटेड विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान करता है.

"इसलिए, प्रस्तावित बिल जल्द से जल्द ऐसी हिंसा पर रोक लगाकर डॉक्टरों और सभी स्वास्थ्य कर्मियों के लिए एक सुरक्षित कार्य वातावरण को बढ़ावा देगा और राज्य कानूनों के लिए एक मॉडल के रूप में काम करेगा."

इस बिल की आवश्यकता क्यों है?

शशि थरूर: हालांकि स्वास्थ्य कर्मियों या सुविधाओं के खिलाफ हमले के मामलों की संख्या पर कोई केंद्रीय डेटा नहीं है, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का अनुमान है कि सभी डॉक्टरों में से 75% को अपनी सेवा के दौरान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ता है और गंभीर हिंसा के मामले रिपोर्ट कम किए जाते हैं.

"वर्तमान में, कोई भी राष्ट्रीय स्तर का कानून इस मुद्दे को व्यापक और स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं करता है."

जबकि इंडियन पीनल कोड और कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर में हिंसा के मामलों से निपटने के प्रावधान हैं, लेकिन वे अद्वितीय (unique) चुनौतियों और जोखिमों का सामना करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.

स्वास्थ्य कर्मियों को यह सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पहले भी तो कोई बिल पेश किया गया था. उसे वापस क्यों लिया गया?

शशि थरूर: 2019 में, सरकार ने हेल्थ केयर सर्विस पर्सनेल एण्ड फिजिकल इस्टैब्लिशमेंट प्रोहिबिशन ऑफ वायलेंस एण्ड डैमेज टू प्रॉपर्टी बिल नामक एक ड्राफ्ट बिल पेश किया था, जो ऐसी हिंसा को नॉन-बेलेबल और नॉन-कॉगनिसेबल अपराध बना देता, और जिसमें अधिकतम जेल की सजा पांच साल होती.

लेकिन, संसद में इस पर विचार होने से पहले ही इसे वापस ले लिया गया.

जब मैंने स्वास्थ्य मंत्री को इसका विरोध करने के लिए लिखा, तो उन्होंने मुझे जो कारण बताया वह यह था कि सरकार को लगता है कि चार्टर अकाउंटेंट और बैंकर जैसे दूसरे पेशे भी इसी तरह के बिल की मांग करेंगे.

"मुझे नहीं लगता कि उन्हें जिन खतरों का सामना करना पड़ता है, वे किसी भी तरह से डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों के सामने आने वाले खतरों से तुलनीय हैं."

यह समझना जरूरी है कि यह सिर्फ चिकित्सा बिरादरी का मुद्दा नहीं है. स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा स्वास्थ्य प्रणाली को कमजोर करती है और रोगियों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं की क्वालिटी को प्रभावित करती है.

"अगर यह पास हो जाता है, तो मुझे आशा है और मेरा आग्रह है कि आदर्शवादी 25 वर्षीय डॉक्टर के महान बलिदान की याद में इसे डॉ. वंदना दास एक्ट कहा जाए."
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