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Sickle Cell Disease : 2047 तक सिकल सेल की जकड़न से देश को मुक्ति कराने की तैयारी

सिकल सेल रोग के मैनेजमेंट के लिए कई तरह के उपचारों को शामिल किया गया है.

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Sickle Cell Disease: सिकल सेल रोग (SCD) जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है, जो हमारे रेड ब्लड सेल के हीमोग्लोबिन मॉलीक्‍यूल को प्रभावित करता है. हीमोग्लोबिन ही हमारे फेफड़ों से ऑक्‍सीजन को शरीर के दूसरे भागों तक पहुंचाता है. लेकिन सिकल सेल रोग से ग्रस्‍त मरीजों में हीमोग्लोबिन जीन में म्‍युटेशन के चलते असामान्य हीमोग्लोबिन–हीमोग्लोबिन S (HbS) बनता है.

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सिकल सेल रोग की प्रमुख जटिलताएं

सामान्य रेड ब्लड सेल्स गोल और लचीली होती हैं, जिसके चलते वे आसानी से ब्लड वेसल्स में प्रवाहित हो सकती हैं. लेकिन सिकल सेल रोग में हीमोग्लोबिन S की वजह से ये लाल ब्लड सेल्स कठोर हो जाती हैं और ऑक्‍सीजन रिलीज करने पर ये चंद्राकार या हंसिया का आकार ले लेती हैं. ये कोशिकाएं सामान्‍य लाल ब्लड सेल्स जैसी लचीली नहीं होती और इस वजह से कई तरह की जटिलताएं पैदा हो जाती हैं.

सिकल सेल रोग की प्रमुख विशेषताओं और जटिलताओं में शामिल हैं:

एनीमिया: सिकल सेल्स का जीवनकाल सामान्य लाल ब्लड सेल्स की तुलना में कम होता है, जिसके कारण हमारे ब्लड में लाल ब्लड सेल्स की कमी हो जाती है, जो एनीमिया का कारण बनता है.

दर्द का संकट: सिकल सेल की वजह से छोटे ब्लड वेसल्स में ब्लड फ्लो ब्‍लॉक हो सकता है, जिसके कारण बहुत अधिक दर्द हो सकता है और धीरे-धीरे दर्द बढ़कर परेशानी में बदल सकता है. ऐसा शरीर के अलग-अलग भागों में हो सकता है और कई घंटों या दिनों तक बना रहता है.

अंगों को नुकसान: बार-बार ब्लड फ्लो में रुकावट आने की वजह से कुछ अंग जैसे तिल्‍ली, जिगर, फेफड़ें, गुर्दे और दिमाग को नुकसान पहुंच सकता है.

संक्रमण: सिकल सेल रोग की वजह से इम्‍यून सिस्‍टम कमजोर पड़ता है जिसके कारण संक्रमण की आशंका बढ़ती है.

स्‍ट्रोक: सिकल सेल की वजह से दिमाग को पहुंचने वाला ब्लड फ्लो बाधित हो सकता है, जिससे खासतौर से बच्‍चों में स्‍ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है.

सिकल सेल रोग का मैनेजमेंट

सिकल सेल रोग शरीर में ऑटोसोमल रिसेसिव पैटर्न के रूप में जेनेटिक्स से प्राप्त होता है यानी अगर किसी व्यक्ति में म्‍युटेटेड जीन की दो कॉपी (हरेक पैरेन्‍ट से एक) होती हैं, तो उसे यह कंडीशन होती है. लेकिन यदि उसमें शरीर में म्‍युटेटेड जीन की एक कॉपी और एक नॉर्मल जीन होती है, तो उस स्थिति को सिकल सेल ट्रेट कहते हैं, जिसके लक्षण कुछ हल्‍के होते हैं और आमतौर पर यह सिकल सेल रोग का कारण नहीं बनता.

सिकल सेल रोग के मैनेजमेंट के लिए कई तरह के उपचारों को शामिल किया गया है, जिसमें अधिक परेशानी होने पर पेन मैनेजमेंट, खून चढ़ाना, दवाएं और कई बार बोन मैरो या स्‍टैम सेल ट्रांसप्‍लांटेशन भी शामिल होता है. अधिक कारगर उपचार और रोग को पूरी तरह से दूर करने के लिए शोध जारी है. जिन परिवारों में सिकल सेल रोग की हिस्‍ट्री होती है उनके लिए जेनेटिक काउंसलिंग भी जरूरी होती है ताकि वे यह समझ सकें कि वे इस कंडीशन को अपनी भावी संतानों को दे सकते हैं.

सिकल सेल रोग को 2047 तक खत्म करना है

हम सभी सिकल सेल रोग को 2047 तक पूरी तरह कंट्रोल करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं. हम इस वैश्विक समस्या का स्थानीय समाधान तलाशने की उम्मीद रखते हैं. इसके लिए भारतीय संसद द्वारा अपनाए गए तौर-तरीकों को अफ्रीका में दोहराने की योजना है.

इसमें बचाव की रणनीतियों में शिक्षा, इलाज और बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट को एक ही छत के नीचे उपलब्ध कराना शामिल है.

देश के लीडिंग चिकित्सा संस्थान के रूप में, फोर्टिस इसे अफ्रीका में दोहराने की योजना बना रहा है ताकि बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट के जरिए इसका इलाज किया जा सके. चूंकि अस्‍पताल के पास बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट में विशेषज्ञता है और भविष्‍य में यह उपचार का आधार बन सकता है. अस्‍पताल भविष्‍य में CRISPR-Cas9 टैक्‍नोलॉजी आधारित जीन थेरेपी का स्रोत भी बनेगा.

इस तरह, सरकारी एजेंसियों के साथ मिले-जुले प्रयासों और भारत और अफ्रीका में अपने स्थानीय पार्टनर्स के साथ मिलकर, इस खतरनाक रोग से ग्रस्त लोगों की जिंदगी में खुशियां लाना चाहते हैं ताकि वे दर्द और तकलीफ से उबर सकें.

भारत में जो कुछ इस क्षेत्र में हो रहा है उसे दुनिया भर में बड़े पैमाने पर दोहराया जा रहा है.

भारत में जो कुछ इस क्षेत्र में हो रहा है उसे दुनियाभर में बड़े पैमाने पर दोहराया जा रहा है. जिस तरह से हमारे देश ने कोविड के खिलाफ लड़ाई जीती और वैक्‍सीनेशन के मोर्चे पर हम दुनिया भर के लिए उदाहरण बने, उसी तरह से हेल्थ टैक्‍नोलॉजी और डॉक्टर अब इस रोग का सभी के लिए उपचार मुहैया कराने के लिए दुनिया के दूसरे देशों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं।

(फिट हिंदी के लिए ये आर्टिकल फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट में हेमेटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट विभाग के प्रिंसीपल डायरेक्‍टर, डॉ. राहुल भार्गव ने लिखा है.)

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