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Antibiotics बिना प्रिस्क्रिप्शन के नहीं मिलेगी, किस खतरे के कारण सरकार ने उठाया कदम?

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR), एक ग्लोबल हेल्थ कंसर्न बन चुका है. 2019 में 1.27 मिलियन वैश्विक मौतों के लिए जिम्मेदार था.

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DGHS On Antimicrobial Resistance: स्वास्थ्य मंत्रालय ने, एंटी-माइक्रोबियल दवाओं के "ओवर-प्रिस्क्रिप्शन" को कंट्रोल करने के प्रयास में, देश भर के डॉक्टरों को लिख कर कहा है कि "एंटी-माइक्रोबियल दवाएं लिखते समय अनिवार्य रूप से ऐसी दवा प्रिस्क्राइब करने के कारण बताएं."

एंटीबायोटिक दवाओं को बिना सही डॉक्टरी सलाह के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल या बिना जरूरत इस्तेमाल करने से दुनिया भर में कई मौतें हो रही हैं.

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस, एक ग्लोबल हेल्थ कंसर्न बन चुका है. 2019 में 1.27 मिलियन वैश्विक मौतों के लिए जिम्मेदार था.

क्या कहा है स्वास्थ्य मंत्रालय ने? सरकार ने ये कदम क्यों उठाया? क्या होता है एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस?

एक्सपर्ट से जानते हैं इन सवालों के जवाब.

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स्वास्थ्य मंत्रालय ने क्या कहा?

1 जनवरी को जारी एक पत्र में, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने लिखा:

“एंटी-माइक्रोबियल का दुरुपयोग और जरूरत से अधिक प्रयोग ड्रग-रेजिस्टेंट पैथोजेनों के उभरने के मुख्य कारणों में से एक है. रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट पाइपलाइन में कुछ ही नए एंटीबायोटिक होने के कारण, एंटीबायोटिक का समझदारी से उपयोग रेजिस्टेंस में देरी करने का एकमात्र विकल्प है.”

एंटीबायोटिक्स मूल रूप से ऐसी दवाएं होती हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म या उनके विकास को धीमा कर देती हैं.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2022 लैंसेट स्टडी का हवाला देते हुए यह भी बताया कि वैश्विक स्तर पर 4.95 मिलियन मौतें ड्रग-रेसिस्टेंट इन्फेक्शंस से जुड़ी हुई हैं.

“AMR आधुनिक चिकित्सा के कई लाभों को खतरे में डालता है. यह रेजिस्टेंट माइक्रोब से होने वाले इन्फेक्शन की प्रभावी रोकथाम और उपचार को खतरे में डालता है, जिसके कारण लंबे समय तक बीमारी होती है और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है. ट्रीट्मेंट में विफलताओं के कारण लंबे समय तक इन्फेक्शन बनी रहती है और सेकंड-लाइन दवाओं के अत्यधिक महंगे होने के कारण कई लोगों को इन बीमारियों का इलाज करने में परेशानी हो सकती है.
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की अपनी तरह की पहली रिपोर्ट में पाया गया कि 2019 में 1.2 मिलियन मौतें सीधे तौर पर एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस से जुड़ी थीं. यह एचआईवी और मलेरिया से भी अधिक है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी कहा है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स नियमों की अनुसूची एच और एच1 के तहत, फार्मासिस्ट भी एंटीबायोटिक्स तभी बेच सकते हैं, जब उन्हें वैलिड प्रिस्क्रिप्शन मिले.

यह देश भर के मेडिकल कॉलेजों से भी इसका पालन करने की अपील करता है.

सरकार ने ये कदम क्यों उठाया?

इस सवाल पर गुरुग्राम, सी के बिरला हॉस्पिटल के सीनियर कंसलटेंट डॉ. तुषार तायल कहते हैं,

"सरकार ने ये जो कदम उठाया है कि एंटीबॉयोटिक्स केवल वैलिड प्रिस्क्रिप्शन पर उपलब्ध होगी, ये बेहद जरुरी कदम था. अभी मरीज एंटीबॉयोटिक्स बिना वैलिड प्रिस्क्रिप्शन भी केमिस्ट से ले रहे थे. ऐसे हालात में कई बार मरीज वायरल बीमारी के लिए एंटीबायोटिक खा लेता है, जो नुकसानदायक होता है और कई बार ऐसा भी होता है कि बैक्टीरियल बीमारी के लिए सही एंटीबायोटिक नहीं खा रहा होता है जो परेशानी बढ़ाने का कारण बन जाता है."

एंटीबायोटिक का इस्तेमाल केवल बैक्टीरियल इन्फेक्शन में ही होता है और उसका इस्तेमाल केवल डॉक्टर की सलाह पर ही होना चाहिए.

डॉ. तुषार तायल एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस को भारत ही नहीं दुनिया भर के लिए एक बड़ी समस्या बताते हुए कहते हैं,

"एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के कारण एंटीबॉयोटिक्स का इस्तेमाल खत्म होता जा रहा है. कोई भी नई एंटीबायोटिक की खोज करने या बनाने और उसे लोगों के इस्तेमाल के लिए मार्केट में लाने में कई साल या दशक लग जाते हैं. जब-तक हमारे पास सही एंटीबायोटिक नहीं होगी तो हमारी बाद की पीढ़ी के लिए किसी भी बीमारी का इलाज करना बेहद मुश्किल हो जाएगा."
डॉ. तुषार तायल, कंसलटेंट- इंटरनल मेडिसिन, सी के बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम

क्या होता है एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस?

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के मायने समझाते हुए डॉ. तुषार तायल कहते हैं,

"दुनिया भर में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस नाम की समस्या बढ़ती जा रही है. इसमें होता ये है कि जो साधारण बैक्टीरिया से जुड़ी बीमारियां हैं, जो बहुत हल्के एंटीबॉयोटिक्स से ठीक हो सकती हैं वो एंटीबॉयोटिक्स के दुरुपयोग की वजह से वे बैक्टीरिया बहुत अधिक मजबूत हो गए हैं और नार्मल एंटीबॉयोटिक्स से ठीक नहीं हो रहे और उनको ठीक करने के लिए भी बहुत हाई लेवल की एंटीबॉयोटिक्स का इस्तेमाल करना पड़ रहा है.

"साथ ही बैक्टीरिया जो पहले मामूली इन्फेक्शन करते थे अब वो खतरनाक बीमारियों का कारण बन रहे हैं. इन सब हालातों से बचने के लिए सरकार ने ये कदम उठाया है, जो कि सराहनीय है. डॉक्टर और पब्लिक सभी को एंटीबॉयोटिक्स का इस्तेमाल बहुत सोच-समझ कर करना चाहिए."
डॉ. तुषार तायल, कंसलटेंट- इंटरनल मेडिसिन, सी के बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम

अक्सर लोग बिना सोचे-समझे, बिना डॉक्टर की सलाह एंटीबायोटिक दवा खा लेते हैं, जिससे हमें फायदा तो नहीं होता बल्कि ऐसा करने से जो हमारे अंदर गुड बैक्टीरिया हैं वो मर जाते हैं और हमारी वायरल बीमारी भी लंबी खिंच जाती है.

2022 लैंसेट स्टडी में कहा गया है कि AMR दुनिया भर में मानव स्वास्थ्य और पब्लिक हेल्थ केयर के लिए एक बड़ा खतरा है.

WHO के अनुसार, "वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि AMR के कारण 2050 तक हेल्थकेयर का खर्च 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकता है, और 2030 तक प्रति वर्ष 1 से 3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर GDP का नुकसान हो सकता है."

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