ADVERTISEMENTREMOVE AD

5-11 साल के बच्चों को कॉर्बीवैक्स: क्या एफिशिएंसी डेटा की कमी चिंता जगाती है?

DCGI ने 5 से 11 साल की उम्र के बच्चों के लिए Corbevax कोविड-19 वैक्सीन की सिफारिश की है. क्या यह सुरक्षित है?

Published
story-hero-img
i
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

ओमिक्रॉन (Omicron) और इसके सब-वेरिएंट्स की बदौलत दुनिया के देशों में कोविड के मामलों में उछाल के बाद भारत में कोविड के मरीज एक बार फिर बढ़ रहे हैं.

स्कूल पूरी क्षमता से चल रहे हैं और ज्यादातर बच्चों को वैक्सीन नहीं लगी है, ऐसे में कह सकते हैं कि आने वाली लहर बच्चों के लिए सबसे खराब समय पर आ रही है.

बच्चे अभी तक वैक्सीन बनाने वालों की प्राथमिकता सूची में नहीं रहे हैं. लेकिन इसमें बदलाव हो सकता है, खासतौर से यह देखते हुए कि देश में वयस्क आबादी के एक बड़े हिस्से को कम से कम एक डोज लगाई जा चुकी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
भारत की ड्रग्स रेगुलेटरी संस्था ड्रग्स कंट्रोल जनरल ऑफ इंडिया(DCGI) की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (SEC) ने 5 से 11 साल की उम्र के बच्चों के लिए बायोलॉजिकल ई (Biological E) कंपनी की कॉर्बीवैक्स कोविड वैक्सीन की सिफारिश की है, जिसका मतलब है कि इसे जल्द ही आपात स्थिति में इस्तेमाल (Emergency Use Authorisation EUA) की मंजूरी भी दे दी जाएगी. रिपोर्टें बताती है कि SEC द्वारा इस आयु वर्ग के लिए कोवैक्सिन (Covaxin) को भी हरी मंजूरी दे दी गई है.

बच्चों के लिए वैक्सीन को भी मंजूरी के लिए उसी नियामक प्रक्रिया से गुजरना होता है, मगर जहां तक भारत में कोविड वैक्सीन का संबंध है, सुरक्षा और असर का डेटा सार्वजनिक रूप से न के बराबर उपलब्ध है.

उदाहरण के लिए, इस आयु वर्ग के लिए या यहां तक कि वयस्कों में भी कॉर्बीवैक्स के लिए कोई क्लीनिकल ट्रायल डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है.

क्या इसका मतलब यह है कि वे सुरक्षित नहीं हैं? ऐसा नहीं है.

फिट ने बच्चों के लिए कॉर्बीवैक्स के सुरक्षित होने और इसके असर के आंकड़ों के बारे में विशेषज्ञों से बात की, और जाना कि वयस्कों के मुकाबले बच्चों के लिए कोविड वैक्सीन की मंजूरी क्यों ज्यादा मुश्किल थी.

भारत में बच्चों के लिए कोविड वैक्सीन: हम कहां हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्रिसमस से पहले एनाउंस किया कि देश में 15 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को कोविड की वैक्सीन उपलब्ध करा दी जाएगी. इसके बाद एक घोषणा की गई कि इस आयु वर्ग को केवल कोवैक्सिन दी जाएगी, हालांकि सबसे पहले ज़ायडस कैडिला की वैक्सीन (Zydus Cadila's vaccine) को 12 वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों में इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी गई थी.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family) ने मार्च में 12 से 14 साल के बच्चों को भी वैक्सीन कवरेज में शामिल किया, लेकिन इस बार तय की गई वैक्सीन बायोलॉजिकल ई की प्रोटीन सब-यूनिट वैक्सीन- कॉर्बीवैक्स थी.

यही अब 5 से 11 साल के बच्चों को देने की तैयारी है.

लेकिन एफिशिएंसी और सेफ्टी डेटा के अभाव में आप कैसे जान सकते हैं कि बच्चों को इस लहर से और भविष्य में कोविड की किसी भी लहर से बचाने के लिए यह वैक्सीन ‘पर्याप्त अच्छी’ है?

बच्चों के लिए क्लिनिकल ट्रायल डेटा उलझन भरा है

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) की एक इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. विनीता बल ने फिट को बताया, कोविड से पहले बड़े पैमाने पर वैक्सीन बच्चों के लिए होती थीं न कि बड़ों के लिए,

“चूंकि कोविड एक महामारी थी और यह पूरी तरह बेकाबू थी, इसलिए वैक्सीन बहुत तेजी से विकसित की गई थी. एक मायने में कोविड की वैक्सीन बनाने की होड़ लगी थी.”
डॉ. विनीता बल, इम्यूनोलॉजिस्ट और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER), पुणे में रिसर्चर

वह बताती हैं, इसलिए कोविड वैक्सीन के विकास की प्रक्रिया पारंपरिक वैक्सीन बनाने से बहुत अलग है. यह बात बच्चों की कोविड वैक्सीन पर भी लागू होती है.

वह कहती हैं, “जाहिर है कि शुरू में बहुत (वयस्कों में) अधिक टेस्टिंग की गई थी, यहां न सिर्फ उनकी संख्या ज्यादा है, बल्कि असर की भी जांच की गई थी.”

इम्यूनोलॉजिस्ट और वैक्सीनोलॉजिस्ट डॉ. चंद्रकांत लहरिया के अनुसार, यह एक वजह है कि बच्चों में एफिशिएंसी का टेस्ट नहीं किया गया.

“एफिशिएंसी की जांच के लिए बड़े पैमाने पर डेटा की जरूरत होती है, जैसे कि कम से कम 30,000 सैंपल. इसके बाद कोई अलग एफिशिएंसी ट्रायल नहीं होता है.”
डॉ. चंद्रकांत लहरिया
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वह कहते हैं, इसके बजाय छोटे बच्चों में क्लिनिकल ट्रायल में जो चीज जांची जाती है, वह है इम्यून प्रतिक्रिया और सेफ्टी (immunogenicity and safety).

डॉ. लहरिया कहते हैं, “आपको देखना होता हैं कि वयस्कों में जितने एंटीबॉडी का उत्पादन हो रहा है, उतना बच्चों में पैदा हो रहा है या नहीं और कितनी देर में होता है.”

विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों के लिए कुछ वैक्सीन को इस इम्युनोजेनेसिटी डेटा के आधार पर मंजूरी दी गई थी न कि एफिशिएंसी डेटा के आधार पर.

IISER, पुणे में इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. सत्यजीत रथ कहते हैं, “इस सोच के साथ कि अच्छा एंटीबॉडी रिस्पांस भरपूर सुरक्षा देगा विकल्प टेस्टिंग में सवाल यह रखा जाता है कि क्या वैक्सीन अच्छी एंटीबॉडी रिप्सांस पैदा करती है. ऐसा लगता है कि बच्चों के लिए वैक्सीन की सिफारिश/मंजूरी के लिए इस बिंदु को ध्यान में रखा गया गया है.”

डॉ. रथ का कहना है कि, ऐसा नहीं है कि बच्चों में कोविड वैक्सीन का ट्रायल मुश्किल है, बल्कि कोविड वैक्सीन का ट्रायल आमतौर पर कुछ समय बाद मुश्किल हो जाता है क्योंकि “कई वालंटियर्स को पहले ही ट्रायल में शामिल किया जा चुका है, (और) असल जिंदगी में सुरक्षा के लिए एक कारगर ट्रायल आसान नहीं रह जाता है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कॉर्बीवैक्स क्यों? कीमत बनाम लाभ

कॉर्बीवैक्स कोविड वैक्सीन, हरी झंडी मिलने से पहले इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं सुना गया था और अब भी बहुत कुछ नहीं बदला है. याद करें कि शुरुआती दिनों में कोवैक्सिन और कोविशील्ड को प्रेस में किस तरह का प्रचार मिला था?

एक तथ्य यह भी है कि कॉर्बीवैक्स को अभी तक किसी और देश में मंजूरी नहीं मिली है या इस्तेमाल नहीं की गई है.

इस अपेक्षाकृत नई वैक्सीन को लेकर अभिभावकों में थोड़ी फिक्र पैदा हो गयी है, कई लोगों ने अपने बच्चों को इसे दिलाने से पहले ‘रुक कर इंतजार करने’ का विकल्प चुना है.

डॉ. बल कहती हैं, वैक्सीन उतनी नई नहीं है जितना आप सोच रहे हैं.

यह आजमाया-परखा वैक्सीन प्लेटफॉर्म है.

डॉ. विनीता बल बताती हैं, “कॉर्बीवैक्स पारंपरिक वैक्सीन के बहुत करीब है, और वैक्सीनेशन का एक कारगर तरीका है, जिससे हम परिचित हैं. इस समय इस्तेमाल की जा रही हमारी कई वैक्सीन प्रोटीन-आधारित वैक्सीन हैं, जिनके साथ असर बढ़ाने वाले तत्व मिलाए हुए हैं.”

“हमारे पास वैक्सीन के इस्तेमाल का इतिहास है, खासतौर से बच्चों में. इसलिए उन मायनों में मैं इस खास आयु वर्ग के लिए कॉर्बीवैक्स को सुरक्षित वैक्सीन में से एक मानूंगी.”
डॉ. विनीता बल, इम्यूनोलॉजिस्ट और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER), पुणे में रिसर्चर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

डॉ. बल का कहना है, “बेशक एलर्जी के साइड इफेक्ट के कुछ मामले होंगे जिन्हें आप पूरी तरह खत्म नहीं कर सकते.”

“दोहराव कितना है, और हमें यह देखना है कि हम वैक्सीन से पैदा हुई समस्याओं के खिलाफ वैक्सीन से मिले फायदे को कैसे संतुलित करते हैं. मुझे लगता है कि फायदा कई गुना ज्यादा है.”
डॉ. विनीता बल, इम्यूनोलॉजिस्ट और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER), पुणे में रिसर्चर

… और यह कहीं ज्यादा व्यावहारिक भी है

कई लोगों के मन में यह सवाल भी है, ‘छोटे बच्चों के लिए कॉर्बीवैक्स क्यों, कोविशील्ड या कोवैक्सिन क्यों नहीं? आखिरकार हमारे पास पहले से ही बड़ों में इन वैक्सीन का असल दुनिया का सुरक्षा और असर का डेटा है.’

डॉ. बल का कहना है कि, “यह सुविधा का मामला है, जिसके चलते 5 से 11 साल के बच्चों के लिए कॉर्बीवैक्स की सिफारिश की गई है.”

पहली बात कोविशील्ड का 18 साल से कम उम्र के बच्चों में बिल्कुल भी टेस्ट नहीं किया गया है. कोवैक्सिन जो इस आयु वर्ग के लिए DCGI की मंजूरी के लिए कतार में है, में आपूर्ति और उत्पादन की समस्या है.

डॉ. बल कहती हैं, कोवैक्सिन 15 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों के लिए शुरू की गई थी, लेकिन “यह बहुत अच्छा विचार नहीं था क्योंकि पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध नहीं थी.”

‘पारदर्शिता से मदद मिलती’

क्लिनिकल ट्रायल डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं होने से वैक्सीन पर भरोसे को मजबूती नहीं मिलती है, हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं है कि वैक्सीन भरोसे के लायक नहीं है. नतीजों के बारे में पारदर्शिता की कमी एक समस्या है.

डॉ. लहरिया कहते हैं, “अच्छा होता अगर इसे सार्वजनिक किया जाता, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि ट्रायल डेटा SEC और DCGI ने देखा होगा. सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है, लेकिन डेटा है.”


वयस्कों में वैक्सीन का डेटा भी शुरू से ही सार्वजनिक नहीं किया गया है. डॉ. बल कहती हैं, “कोवैक्सिन फेज-3 ट्रायल डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया है. जाइडस कैडिला (Zydus Cadila) वैक्सीन की एफिशिएंसी का डेटा भी जारी नहीं किया गया है.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD
“अगर डेटा को कम से कम मेडआर्काइव्स (medarchives) या ऐसे किसी प्री-प्रिंट सर्वरों में रखा जाता ताकि डेटा हासिल किया जा सके, तो भी मुझे बहुत इत्मीनान होता. पारदर्शिता बहुत मददगार होगी.”
डॉ. विनीता बल, इम्यूनोलॉजिस्ट और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER), पुणे में रिसर्चर

बच्चों का वैक्सीनेशन करें या न करें

अभी भी सोच रहे हैं कि बच्चों को वैक्सीन लगानी चाहिए या नहीं?

इस सवाल पर विशेषज्ञ बंटे हुए हैं. डॉ. लहरिया का मानना है कि स्वस्थ बच्चों को कोविड की वैक्सीन की जरूरत नहीं है. वह कहते हैं, “भारतीय वैक्सीन के उम्र के अंतर और कारगर होने का कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन हम जो बात जानते हैं वह यह है कि जहां तक मध्यम से लेकर गंभीर बीमारी का संबंध है किसी भी आयु वर्ग के स्वस्थ बच्चों में खराब नतीजों का खतरा कम होता है.”

हालांकि डॉ. लहरिया का कहना है कि पहले से बीमार बच्चों को कोविड के टीके दिए जाने चाहिए.

दूसरी ओर डॉ. बल सभी बच्चों को वैक्सीन लगाने का पुरजोर समर्थन करती हैं.

वह कहती हैं, “हमारे पास देश में बच्चों के लिए, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए कोई सीरो सर्वे (seroprevalence) डेटा नहीं है.”

“बच्चों को वैक्सीनेशन की जरूरत होती है क्योंकि इससे उनके माता-पिता को दिमागी इत्मीनान मिलेगा और साथ ही बच्चे नियमित रूप से स्कूल जाना शुरू कर सकेंगे और उनका अस्त-व्यस्त सामाजिक जीवन, मानसिक स्वास्थ्य और शैक्षणिक जीवन शायद ‘सामान्य’ होने लगेगा.”
डॉ. विनीता बल, इम्यूनोलॉजिस्ट और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER), पुणे में रिसर्चर
Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×