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Akhlaq Lynching: 10 साल में भी इंसाफ नहीं, अफवाह के शिकार हर पीड़ित की यही कहानी

गौकशी की अफवाह के शिकार हुए लोग और इंसाफ का इंतजार करते पीड़ित परिवारों की कहानी

Siddharth Sarathe
वेबकूफ
Published:
<div class="paragraphs"><p>उत्तरप्रदेश के दादरी में हुई लिंचिंग के मामले में आरोपियों को बरी करने की मांग की जा रही है&nbsp;</p></div>
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उत्तरप्रदेश के दादरी में हुई लिंचिंग के मामले में आरोपियों को बरी करने की मांग की जा रही है 

फोटो : Altered by The Quint

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गौकशी की एक अफवाह और उससे अखलाक (Akhlaq) की बेरहमी से हुई हत्या. ये हेडलाइन मीडिया में आपने कई बार रिपीट होते हुए देखी होगी. पर एक दशक बाद अखलाक को इंसाफ मिलना तो दूर अब हत्या के आरोपियों को ही बरी कराने की मांग की जा रही है. मांग कौन कर रहा है? कोई भीड़ नहीं, बल्कि एक राज्य की सरकार.

सरकार जिसका काम होता है लॉ एंड ऑर्डर कायम करना. न सिर्फ कायम करना, बल्कि ये सुनिश्चित करना कि आगे कभी भी किसी की हत्या अफवाह के चलते न हो. ये मामला इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि अफवाहें कितनी खतरनाक हो सकती हैं, और ये लोगों की जान तक ले लेती हैं.

गौकशी की अफवाह से जुड़े हिंसा के मामलों में एक ऐसा पैटर्न देखने को मिलता है, जहां क्राइम साबित करने की सारी जिम्मेदारी पीड़ित परिवार पर होती है, न कि स्टेट पर या पुलिस पर.

28 सितंबर 2015 को अखलाक उत्तरप्रदेश के दादरी में अपने बेटे के साथ घर पर सो रहे थे. तभी अफवाह उड़ी कि उनके घर पर गाय का मांस रखा हुआ है. भीड़ ने हमला किया और अखलाक की हत्या कर दी. क्या ये अफवाह सच थी? अब तक तो इसका कोई सुबूत सामने नहीं आया. दावा किया गया कि अखलाक के घर से बीफ बरामद हुआ है. इसको लेकर परिवार पर अलग से केस भी दर्ज हुआ. पर अखलाक का परिवार लगातार इन आरोपों से इनकार करता रहा है.

पिछले महीने पब्लिक प्रोसीक्यूटर यानी सरकार के वकील ने लोकल कोर्ट से कहा कि चूंकि इस केस में असल आरोपियों की पहचान पुख्ता तरीके से नहीं हो पा रही है, इसलिए उन्हें बरी कर दिया जाना चाहिए. ये भी कहा गया कि चश्मदीदों के बयान आपस में मेल नहीं खाते. तो सवाल ये उठता है कि क्या पुलिस ने हत्या के वक्त आरोपियों के खिलाफ सुबूत नहीं जुटाए? क्या इतना मजबूत केस बना ही नहीं कि एक हत्या के आरोपियों को सजा मिल सके?

बात सिर्फ एक राज्य या एक थाने की पुलिस की लापरवाही की नहीं है. गौकशी की अफवाह के चलते हुई हिंसा से जुड़ी हमारी इन पिछली ग्राउंड रिपोर्ट्स को देखिए.

हरियाणा के चरखी दादरी में 27 अगस्त 2024 को एक प्रवासी मजदूर साबिर के साथ हिंसा होती है. पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे कि वो गौकशी के आरोपों को लेकर परिवार से पूछताछ करती रही, पर वक्त रहते भीड़ पर एक्शन होता, तो साबिर की जान बच सकती थी.

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ऐसा ही यूपी के हापुड़ में हुई कासिम की हत्या के मामले में देखने को मिला था. जब आरोपियों को कोर्ट से बरी कर दिया गया था. लेकिन, एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आया जहां आरोपियों ने खुद कुबूला कि मर्डर उन्होंंने ही किया है. इसके बाद आरोपियों को सजा हुई. यहां पुलिस के हिस्से की इनवेस्टिगेशन पत्रकार ने की.

लिस्ट बहुत लंबी है..... 

  • 2023 में हरियाणा में जुनेद और नासिर की हत्या कर उनकी गाड़ी को जला दिया गया था. आरोप था गौ-तस्करी का, लेकिन जांच में कई गंभीर सवाल पुलिस की भूमिका और भीड़ की हिंसा पर उठे थे.

  • राजस्थान के अलवर में पहलू खान की 2017 में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी, आरोप यही कि वह गायों की तस्करी कर रहे थे. जबकि उनके पास मवेशियों को ले जाने के कागज़ात मौजूद थे. केस में मुख्य आरोपियों को क्लीन चिट मिल गई थी और पहलू खान के परिवार को उल्टा टारगेट किया गया था कि कागज़ात फर्जी हैं. बाद में पुलिस की भूमिका और शुरुआती FIR पर सवाल उठे.

  • महाराष्ट्र के धुले में 2018 में दो मुस्लिम युवकों को सिर्फ इस अफवाह पर मार दिया गया कि वे 'बच्चा-चोर' गिरोह का हिस्सा हैं और गायों की तस्करी करते हैं. बाद में पुलिस ने साफ किया कि न तो गाय-संबंधी कोई अपराध था और न ही कोई गिरोह. भीड़ ने सोशल मीडिया की अफवाह के आधार पर दोनों की हत्या कर दी.

  • झारखंड के रामगढ़ में अलीमुद्दीन उर्फ असगर अली की 2017 में भीड़ ने हत्या की थी, आरोप था कि उसकी गाड़ी में बीफ है. जिस गाड़ी को सबूत बताया गया, वो घटना के वक्त वहां थी ही नहीं.

  • मध्यप्रदेश के सतना में 2018 में दो आदिवासियों के साथ बेरहमी से मारपीट की गई. एक की मौत हो गई. बाद में जांच में सामने आया कि दोनों लकड़ी बीनने गए थे और कोई मांस बरामद नहीं हुआ था.

(अफवाह के शिकार लोगों की ये कहानियां, हम आप तक पहुंचा रहे हैं अपनी इस खास सीरीज में जिसका नाम है एक अफवाह की कीमत, Fake News Real Impact. यहां हम ग्राउंड पर जाकर अफवाह के शिकार लोगों से समझने की कोशिश करते हैं कि एक अफवाह ने उनकी जिंदगी को कैसे बदलकर रख दिया. फिर चाहे वो गौकशी की अफवाह हो, हेल्थ से जुड़ा कोई Rumor हो या फिर चोरी की अफवाहों के चलते लोगों के साथ हो रही मारपीट.)

इस सीरीज का मकसद है ये दिखाना कि अफवाहें कितनी खतरनाक हो सकती हैं. आप इस काम में हमारी मदद कर सकते हैं हमारे मेंबर बनकर. मेंबर बनने के लिए दिए गए QR CODE पर क्लिक करें. और सबसे जरूरी बात—हमारे यूट्यूब चैनल पर जाकर इस प्लेलिस्ट पर क्लिक करें और हमारी सभी ग्राउंड रिपोर्ट्स देखें.

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