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Delhi Elections Result 2025: "दिल्ली दंगे का जख्म, CAA-NRC आंदोलन इफेक्ट, मुसलमानों की कियादत मतलब लीडरशिप और इमोशनल मैसेज.." ये वो दाव था जो हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपना रही थी. लेकिन अब नतीजों के बाद ये कहा जा सकता है कि मामला 50-50 रहा.
AIMIM ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. ओखला और मुस्तफाबाद विधानसभा सीट और इन दोनों पर ही पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है.
अब सवाल ये है कि जब AIMIM दोनों सीट पर हार गई तो मामला 50-50 कैसे रहा? इस सवाल का जवाब आगे समझते हैं.
असदुद्दीन ओवैसी ने इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को एक सीट पर बड़ा नुकसान पहुंचाया है, या कहें आम आदमी पार्टी की हार की वजह ही AIMIM है.
जिन दो सीटों पर AIMIM ने चुनाव लड़ा था इसपर आम आदमी पार्टी का कब्जा था. ओखला सीट पर 10 साल से आम आदमी पार्टी के अमानतुल्लाह खान विधायक हैं, वहीं मुस्तफाबाद सीट पर 2020 में आम आदमी पार्टी जीती थी. लेकिन इस बार ओवैसी ने मुस्लिम बाहुल्य दोनों सीट से सीएए-एनआरसी आंदोलन से जुड़े लोगों को टिकट देकर मामला पलट दिया.
मुस्लिम बाहुल्य मुस्तफाबाद में 2020 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के हाजी यूनुस जीते थे और तब उन्हें 98 हजार के करीब वोट आए थे, लेकिन इस बार आप को 30 हजार कम यानी कि करीब 67 हजार वोट मिले हैं. तो क्या ये न समझा जाए कि आम आदमी पार्टी के वोट ताहिर हुसैन को ट्रांसफर हुए हैं?
ओखला सीट से शिफा-उर-रहमान का मुकाबला आम आदमी पार्टी के मौजूदा विधायक अमानतुल्लाह खान से था. अमानतुल्लाह खान लगातार दो बार ओखला के विधायक रह चुके हैं और अब तीसरी बार भी चुनाव जीत गए हैं. इस सीट पर आप, बीजेपी और AIMIM में कड़ा मुकाबला रहा. 2020 में अमानतुल्लाह खान 70 हजार से ज्यादा वोटों से जीते हासिल हुई थी, लेकिन इस बार AIMIM की वजह से ये मार्जिन सिर्फ 23 हजार का रह गया.
इस सीट पर AIMIM को 40 हजार के करीब वोट मिले हैं. वहीं बीजेपी दूसरे और कांग्रेस चौथे नंबर पर है.
दरअसल, अरविंद केजरीवाल ने सीएए-एनआरसी प्रोटेस्ट के दौरान कहा था कि अगर AAP की दिल्ली सरकार के नियंत्रण में दिल्ली पुलिस होती तो वह शाहीन बाग प्रोटेस्ट को तुरंत हटा देते.
इसके अलावा इन दोनों सीटों पर आम आदमी पार्टी से मुसलमान वोटर इसलिए भी नाराज थे कि आप के सीनियर लीडर-केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, आतिशी सिंह चुनाव प्रचार करने नहीं आए. विपक्षी पार्टियों ने ये भी मुद्दा बनाया कि आम आदमी पार्टी कों मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए इसलिए इनके बड़े नेताओं ने यहां आना जरूरी नहीं समझा.
सीएए विरोधी प्रदर्शन भारत में मुस्लिम राजनीति में एक मील का पत्थर था- यह दशकों में भारतीय मुसलमानों द्वारा किया गया सबसे बड़ा राष्ट्रव्यापी आंदोलन था. जामिया मिलिया इस्लामिया और शाहीन बाग में हुए विरोध प्रदर्शन में शिफा-उर-रहमान ने अहम भूमिका निभाई थी. साथ ही ये पहला मौका है जब CAA-NRC आंदोलन से जुड़ा कोई एक्टिविस्ट चुनावी राजनीति में आया हो.
शिफा-उर-रहमान और ताहिर हुसैन का चुनावी कैंपेन भी 'जेल के बदले वोट' और 'नाइंसाफी' के इर्दगिर्द घूमती रही. साथ ही दोनों को चुनावी कैंपेन के लिए कस्टडी पेरोल मिली थी. जिसके लिए शिफा और ताहिर चुनाव प्रचार के लिए सुबह जेल से आते और शाम होते ही वापस चले जाते. दोनों के साथ दर्जनों पुलिस होती. भले ही हथकड़ी न लगी हो लेकिन ताहिर और शिफा के कैंपेन के दौरान भी एक पुलिसकर्मी उनका हाथ पकड़े रहती.
शिफा और AIMIM के कार्यकर्ता इसी संदेश को लोगों तक पहुंचा रहे थे कि एक शख्स हमारे लिए जेल में बंद है, क्या हम उसे इस जेल का बदला वोट से नहीं दे सकते क्या.
चुनाव प्रचार के आखिरी दिन जेल जाने से पहले शिफा-उर-रहमान ने अपने भाषण में कहा था-
असदुद्दीन ओवैसी ने भी करीब 10 दिनों तक दिल्ली में ही कैंप किया. ओखला और मुसतफाबाद की सड़कों पर कई पदयात्रा किए. आम आदमी पार्टी को मुस्लिम विरोधी बताया. तेलंगाना, बिहार और महाराष्ट्र AIMIM के सीनियर लीडर और कई विधायक शिफा-उर-रहमान और ताहिर हुसैन के लिए दिल्ली की गलियों में वोट मांगने के लिए घूम रहे थे. हालांकि सीट के हिसाब से AIMIM को फायदा तो नहीं हुआ लेकिन वोट शेयर और राजनीतिक संदेश के हिसाब से नुकसान भी नहीं है.
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