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बिहार चुनाव का बदलेंगे रुख या होंगे फ्लॉप, जनसुराज सहित नए दलों का क्या है गणित?

पूर्व कांग्रेस नेता आईपी गुप्ता और पूर्व IPS शिवदीप लांडे ने भी नई पार्टी का गठन किया है.

मोहन कुमार
राजनीति
Published:
<div class="paragraphs"><p>बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार जन सुराज, इंडियन इंकलाब सहित कई नई पार्टियां हिस्सा ले रही हैं.</p></div>
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बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार जन सुराज, इंडियन इंकलाब सहित कई नई पार्टियां हिस्सा ले रही हैं.

(फोटो: द क्विंट)

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बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार कई नई राजनीतिक पार्टियां मैदान में हैं. नए खिलाड़ियों के आने से राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ने की उम्मीद है, जिससे चुनाव पर असर पड़ सकता है. ये नए खिलाड़ी चुनाव परिणाम को बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के नेतृत्व में जन सुराज के गठन के बाद, दो और राजनीतिक दल का गठन हुआ. अभी तक किसी भी पार्टी ने बड़े गठबंधन का हिस्सा बनने की घोषणा नहीं की है.

ये पार्टियां हैं: पूर्व कांग्रेस नेता आईपी गुप्ता की इंडियन इंकलाब पार्टी (आईआईपी), और सिविल सेवा से इस्तीफा देने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे की हिंद सेना पार्टी.

द क्विंट से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार मनीष आनंद कहते हैं कि हम नई पार्टियों को सिरे से नहीं नकार सकते. नई पार्टियों के लिए जगह है- इसका सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली है. उनके मुताबिक, "इन पार्टियों के गठन के पीछे दो फैक्टर हैं, पहला- राजनीतिक महत्वकांक्षा और दूसरा क्षेत्रवाद. ये दोनों चीजें नई पार्टियों के लिए प्लेटफॉर्म का काम करती हैं."

इसके साथ ही वे कहते हैं,

"भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जैसी मेनस्ट्रीम पार्टियों में सैचुरेशन की स्थिति भी देखने को मिल रही है. जिसका नतीजा है कि जन सुराज जैसी नई पार्टियां आ रही हैं."

पूर्व आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह ने भी आप सबकी आवाज (राष्ट्रीय) नाम से पार्टी का गठन किया था. हालांकि, बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का जन सुराज में विलय कर दिया. इसके अलावा कुछ और पार्टियां भी हैं, जो पहले चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन बिहार की सियासत में नई मानी जाती है.

वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, "गंभीर राजनीति करने वालों में एक ही नई पार्टी है, वो है जन सुराज. बाकी पार्टियां बरसाती मेंढक हैं. हर चुनाव में कुछ नई पार्टियां आती हैं और फिर वो विलुप्त हो जाती हैं. फिर अगले चुनाव में किसी और नाम से खड़ी होती हैं. इसके पीछे एक बहुत बड़ा रैकेट भी है."

"जन सुराज बदलाव की लहर है"

बिहार में पदयात्रा करने के बाद प्रशांत किशोर ने पिछले साल गांधी जयंती के अवसर पर आधिकारिक तौर पर जन सुराज पार्टी के गठन की घोषणा की थी.

द क्विंट से बातचीत में जन सुराज पार्टी के अध्यक्ष मनोज भारती कहते हैं, "जन सुराज बदलाव की लहर है. हम लोगों को ये सिखाना चाह रहे हैं, लोगों को ये बताना चाह रहे हैं कि पिछले 35-40 सालों में उनके साथ जैसा बर्ताव हुआ है, वो धोखे से कम नहीं है."

"बिहार की जनता को एक नए विकल्प की ओर देखने की जरूरत है. अगर उनको लगता है कि ये नया विकल्प जन सुराज है, तो वो जन सुराज को वोट दें. हमारा पूरा का पूरा मुहिम, हमारा पूरा अभियान, पूरी प्रक्रिया इस सोच पर आधारित है. जनता इस बात को समझ गई तो इसी बात की लहर आने वाले चुनाव में दिखेगी."

क्या जातिगत राजनीति को भेद पाएगी जन सुराज?

बिहार की राजनीति में जाति फैक्टर हावी रहता है. प्रत्येक दल के अपने-अपने जातिगत समीकरण हैं. ऐसे में विकास और बदलाव की बात करने वाले प्रशांत किशोर के लिए वोटर्स को साधना एक बड़ी चुनौती मानी जा रही है.

जातीय आधार पर वोटिंग के सवाल पर भारती कहते हैं, "देश के लगभग हर राज्य में जातिगत आधार पर वोटिंग होती है. तो बिहार उससे अछूता नहीं है. ये तो कुछ राजनीतिक दलों ने अपने फायदे के लिए भ्रम फैला रखा है कि बिहार में जातिगत वोटिंग बहुत अधिक होती है."

"इतिहास से आप उदाहरण देखें. चाहें वह 1984 हो या फिर 1989, जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने थे. या फिर 2014 की बात हो, जब मोदी जी प्रधानमंत्री बने थे. उस वक्त लोगों ने जाति से उठकर केवल मुद्दों के आधार पर वोटिंग की थी. एक लहर होती है, जिसपर हर किसी का ध्यान आकृष्ट हो जाता है."

वरिष्ठ पत्रकार मनीष आनंद का मानना है कि जन सुराज के लिए स्थापित पार्टियों के जातिगत वोटबैंक में सेंध लगाना एक बड़ी चुनौती होगी. वे कहते हैं, "आरजेडी के पास 'MY' (मुस्लिम-यादव), बीजेपी के पास अपर कास्ट, नीतीश के पास महादलित और ईबीसी वोट है. इसमें अपनी जगह बनाने के लिए जन सुराज को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी."

इसके साथ ही वे कहते हैं, "ये कहना गलत होगा कि सिर्फ चार पार्टियों के पास ही सभी जातियों का वोट है. कास्ट पर किसी का 100 फीसदी प्रभाव नहीं होता है. कुछ खाली जगह भी होती है. ऐसे में प्रशांत किशोर बचे हुए वोटर्स को टारगेट करेंगे."

आईपी गुप्ता की एक आवाज पर भर गया था गांधी मैदान

इस साल 13 अप्रैल को पटना के गांधी मैदान में आयोजित पान महारैली से आईपी गुप्ता सुर्खियों में आए थे. इस कार्यक्रम में लाखों की संख्या में लोग जुटे. पूरा गांधी मैदान भर गया. इसी कार्यक्रम में उन्होंने इंडियन इंकलाब पार्टी (आईआईपी) के गठन का भी ऐलान किया. दरअसल, गुप्ता लंबे समय से तांती-ततवा (पान) समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने की मांग कर रहे हैं.

द क्विंट से बातचीत में आईपी गुप्ता कहते हैं, "78 सालों से हमारी कोई राजनीतिक भागीदारी नहीं है. बिहार में हमारी संख्या 1 करोड़ है. अपनी आरक्षण की मांग को सड़क से सदन तक ले जाने के लिए और अपने लोगों की ताकत को संरक्षित करने के लिए मैंने इंडियन इंकलाब पार्टी का गठन किया है. वोट के चोट से आरक्षण वापसी के नारे के साथ इंकलाब पार्टी का गठन हुआ है."

वे कहते हैं, "मेरे दिमाग में ये बात थी कि जब हम आंदोलन को गांधी मैदान में ले जाएंगे और एक भीड़ का शक्ल देंगे, तो फिर वहां से कहां जाएंगे? तब मैंने कहा कि सड़क के इस आंदोलन को, अब राजनीतिक रूप देना है. अपने लोगों को एक बैनर देना है, जहां से हम लोग संगठित रहें."

13 अप्रैल को पटना के गांधी मैदान में आईपी गुप्ता ने पान महारैली की थी.

(फोटो: स्क्रीनशॉट)

हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी का मानना है कि बिहार में सिर्फ एक जाति के भरोसे राजनीति करना मुश्किल है. वे कहते हैं, "मुझे उनकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं लगती है. एक जाति के आधार पर बिहार की राजनीति में बदलाव की बात करना समझ से परे है."

"अगर सबको साथ लेकर चलते और उसमें तांती-ततवा पूरी तरह से साथ होती तो कोई बात होती. जैसे आरजेडी का 'MY' समीकरण है, उस तरह से वो भी कोई समीकरण तैयार करते तो कुछ हो सकता था. सिर्फ तांती-ततवा के भरोसे बिहार में वे सर्वाइव नहीं कर पाएंगे."

सियासी मैदान में उतरे पूर्व IPS शिवदीप लांडे

विधानसभा चुनाव से पहले 2006 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे शिवदीप लांडे ने खाकी छोड़ खादी धारण कर लिया है. इस साल अप्रैल महीने में उन्होंने हिंद सेना पार्टी के गठन का ऐलान किया. गौरतलब है कि पिछले साल सितंबर में भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा देने के बाद से ही लांडे की राजनीतिक एंट्री को लेकर कयास लगाए जा रहे थे.

पटना में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव लड़ने के सवाल पर लांडे ने कहा था कि उनकी पार्टी सौ फीसदी विधानसभा चुनाव लड़ेगी और सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. हालांकि, उन्होंने ये नहीं बताया था कि वे किस सीट से चुनाव लड़ेंगे.

अररिया में जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान शिवदीप लांडे 

(फोटो: स्क्रीनशॉट)

प्रवीण बागी कहते हैं, "शिवदीप लांडे ने जरूर धूमधाम से शुरुआत की थी, लेकिन वे खामोश हो गए. उनकी क्या गतिविधि चल रही है, न मीडिया को मालूम है और न ही आम आदमी को."

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कौन पार्टी कितने सीटों पर लड़ेगी चुनाव?

जन सुराज ने किसी भी गठबंधन से इनकार किया है. पार्टी अपने दम पर प्रदेश की सभी 243 सीटों पर ताल ठोकने की तैयारी में है. पार्टी ने चार महीने पहल ही उम्मदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी था.

मनोज भारती कहते हैं, "हम किसी भी तरह के प्री पोल या पोस्ट पोल अलायंस में विश्वास नहीं रखते हैं. हमें व्यवस्था बदलने की मुहिम शुरू करनी है और व्यवस्था बदलने के लिए शासन में आना केवल पहला कदम है. हम व्यवस्था में परिवर्तन कर सकें, इसके लिए हम अकेले 243 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं."

मनीष आनंद बताते हैं कि जन सुराज पार्टी की हर पोलिंग बूथ पर कमेटी भी बन गई है. पार्टी व्यवस्थित तरीके से मेहनत कर रही है.

दूसरी तरफ इंकलाब पार्टी जातिगत वोटर्स के संख्याबल के हिसाब से चुनाव लड़ने की तैयारी में है. आईपी गुप्ता ने बताया कि उनकी पार्टी 158 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है.

"मेरा उद्देश्य आरक्षण हासिल करना है. ये एक राजनीतिक आंदोलन है. मैं सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने वाला शिगूफा नहीं छोड़ रहा हूं. हमारी जहां ताकत है, हम वहीं लड़ेंगे. बिहार में 158 ऐसी सीटें हैं, जहां हमारे समुदाय के वोटर्स की संख्या 10 से 80 हजार तक है. हम उन विधानसभा सीटों पर तैयारी कर रहे हैं."

'वोटकटवा' साबित होंगी नई पार्टियां?

बिहार की राजनीति पिछले 50 सालों से लालू यादव, नीतीश कुमार और दिवंगत रामविलास पासवान के इर्द-गिर्द घूमती रही है. लेकिन मैदान में नई पार्टियों के आने से बीजेपी, जेडीयू, आरजेडी जैसे स्थापित दलों की चुनौती बढ़ सकती है. नई पार्टियों को 'वोटकटवा' यानी वोट काटने वाली पार्टी के रूप में भी देखा जा रहा है.

2024 में प्रदेश की चार सीटों पर हुए उपचुनाव में जन सुराज ने हिस्सा लिया था. ये पहला मौका था जब पार्टी चुनावी मैदान में उतरी थी. तीन सीटों पर जन सुराज तीसरे पायदान पर रही, जबकि एक सीट पर चौथे नंबर पर थी. पार्टी ने उपचुनाव में 10% वोट हासिल किए थे. जन सुराज के आने से गया की इमामगंज और बेलागंज सीट पर आरजेडी का खेल खराब हो गया था.

'वोटकटवा' के सवाल पर भारती कहते हैं, "हमें कितने वोट मिलेंगे ये हमारी चिंता नहीं है. ये चिंता दूसरे राजनीतिक दलों की है, जो देख रहे हैं कि उनका influence कैसे कम होता जा रहा है. इसलिए दूसरे राजनीति दल हमें तरह-तरह के टर्म दे रहे हैं. हमारा ध्यान कितने वोट मिलेंगे इसपर नहीं है, हमारा ध्यान इसपर है कि बिहार में कितने लोग हमारी बात समझ रहे हैं. जितने ज्यादा लोग समझेंगे, वे हमसे जुड़ते जाएंगे और हमें वोट देंगे."

वहीं आईपी गुप्ता दावा करते हुए कहते हैं कि तांती-ततवा के बिना बिहार में सीएम बनना मुश्किल है. इस बात को वे इस तरह से समझाते हैं,

"पिछले चुनाव के नतीजों को देखें तो कई सीटों पर जीत-हार का अंतर बहुत कम था. अगर सभी सीटों के हिसाब से औसत देखें तो ये 5 हजार होता है. वहीं 158 सीटों पर हम 10 से 80 हजार के बीच में हैं. अगर हम 50 सीटों पर भी मारक क्षमता में आ गए, तो दूसरी पार्टियां कहां जाएगी."

मनीष आनंद कहते हैं, "यूपी और बिहार के पिछले चुनावों पर नजर डालें तो पता चलता है कि छोटी पार्टियों ने भी अपनी जगह बनाई है. जैसे मुकेश सहनी की VIP. जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) भी एक नई पार्टी के तौर पर आई और खुद को स्थापित किया."

RLM और द प्लूरल्स भी मैदान में

उपेंद्र कुशवाह की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) भी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ेगी. 2023 में जेडीयू से इस्तीफे के बाद कुशवाह ने आरएलएम पार्टी बनाई थी. फिलहाल, उनकी पार्टी बिहार में एनडीए का हिस्सा है.

पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में कुशवाहा ने काराकाट से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वे तीसरे स्थान पर रहे. ऐसे में इस बार का चुनाव उनके और उनकी पार्टी के लिए किसी बड़ी परीक्षा से कम नहीं है.

बता दें कि इससे पहले कुशवाहा की पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक समता पार्टी था. 2015 विधानसभा चुनाव में NDA के तहत आरएलएसपी ने 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और उसे 2 पर जीत मिली. जबकि 2020 में सेकुलर फ्रंट का हिस्सा रही आरएलएसपी का खाता भी नहीं खुल सका.

वहीं पुष्पम प्रिया चौधरी की द प्लूरल्स पार्टी दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है. 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी की बुरी हार हुई थी. पार्टी अध्यक्ष पुष्पम प्रिया भी अपनी सीट नहीं निकाल पाईं थी, उन्होंने बांकीपुर और बिस्फी से चुनाव लड़ा था.

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