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पहलगाम आतंकी हमला: सुरक्षा बलों की निश्चिंतता या इंटेलिजेंस की नाकामी?

संजीव कृष्ण सूद लिखते हैं कि जिस क्षेत्र में लंबे समय से संघर्ष चल रहा है, वहां लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं है.

संजीव कृष्ण सूद
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए लोगों को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दी श्रद्धांजलि.</p><p></p></div>
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पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए लोगों को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दी श्रद्धांजलि.

(फोटो: ट्विटर/@AmitShah)

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पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों पर हमला सिर्फ कायरतापूर्ण कृत्य नहीं है, बल्कि यह कश्मीर और कश्मीरियों की आत्मा पर हमला है. इस कृत्य के जरिए आतंकवादियों ने पिछले कुछ महीनों से घाटी में कायम शांति और सौहार्द को गहरा आघात पहुंचाया है.

यह हमला ऐसे समय हुआ है जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत के आधिकारिक दौरे पर हैं. गौर करने वाली बात है कि यह हमला पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के संबोधन के कुछ ही दिनों बाद हुआ है. विदेश में बसे पाकिस्तानों को संबोधित करते हुए जनरल मुनीर ने इस बात पर जोर दिया था कि कश्मीर पाकिस्तान का ताज है.

यह तो तय है कि कश्मीर में अशांति फैलाने में पाकिस्तान का हाथ है और इस हमले की योजना और क्रियान्वयन आतंकवादियों ने पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं के इशारे पर किया होगा. हालांकि, हमें उन आंतरिक कारकों का भी विश्लेषण करना चाहिए, जिसकी वजह से आतंकवादियों ने इस कृत्य को अंजाम दिया.

सुरक्षा बलों की निश्चिंतता

ऐसा लगता है कि आतंकवादियों की ओर से लंबे समय से कोई गतिविधि न होने के कारण सुरक्षा बल निश्चिंत हो गए थे.

पिछले एक साल में पीर पंजाल पर्वतमाला के दक्षिण में बढ़ी गतिविधियों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत थी- और ऐसा प्रतीत होता है कि वहां बड़ी संख्या में सैनिकों को भेजा गया है. आतंकवादियों को यह भी पता रहा होगा कि अमरनाथ यात्रा की तैयारी के लिए अब से लगभग एक महीने बाद इस क्षेत्र में सैनिकों की भारी तैनाती हो जाएगी- और तब उनके लिए इस प्रकार का हमला करना मुश्किल हो जाएगा.

पहले भी आतंकवादियों ने अपनी गतिविधियों के लिए गर्मी के सीजन को सबसे सुविधाजनक समय पाया है.

दर्रे खुल जाते हैं और उनके संचालकों से तालमेल बिठाने के साथ ही रसद की व्यवस्था करना आसान हो जाता है. इससे स्लीपर सेल को सक्रिय होने का मौका मिल जाता है. सुरक्षा बल शायद इस बात पर ध्यान नहीं दे पाए. यह वह समय भी है जब बड़ी संख्या में पर्यटक कश्मीर आते हैं, जो आतंकवादियों के लिए आसान टारगेट होते हैं.

खुफिया एजेंसियां क्या कर रही थीं?

मुख्य मुद्दा यह है कि खुफिया एजेंसियां ​​क्या कर रही थीं? क्या उन्हें आतंकवादियों की संभावित कार्रवाई के कोई संकेत मिले थे? अगर हां, तो क्या उन्होंने सुरक्षा बलों के साथ कोई कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी साझा की?

उम्मीद है कि पिछले कुछ सालों में उनका ध्यान उग्रवादियों की गतिविधियों के बारे में सूचना प्राप्त करने और उसका प्रसार करने के वास्तविक कार्य से हटकर राजनीतिक गतिविधियों के बारे में सूचना प्राप्त करने पर केंद्रित नहीं हुआ है.

दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि घटना को सांप्रदायिक रंग देने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए.

कई चैनल अज्ञात सूत्रों के हवाले से कह रहे हैं कि आतंकवादियों ने पर्यटकों से नाम पूछने के बाद उन पर गोली चलाई. यह आतंकवादियों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी की खबरों के विपरीत है.

इस घटना में पाकिस्तान का हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन कई लोग पहले से ही बालाकोट हमले की तर्ज पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. हालांकि, सभी कारकों का ठीक से विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है.

अगर बालाकोट हमले और उसके बाद की घटनाओं का निष्पक्ष विश्लेषण किया जाए, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि केवल गंभीर बैक चैनल वार्ता ही तनाव को बढ़ने से और हालात को नियंत्रण से बाहर होने से रोक सकती है. बलूचिस्तान में समस्याओं से घिरे होने के बावजूद, पाकिस्तान में जवाबी कार्रवाई करने और तनाव बढ़ाने की क्षमता बनी हुई है.

इस कायरतापूर्ण हमले ने एक बार फिर घाटी में हमारे सुरक्षा तंत्र की खामियों को उजागर कर दिया है, साथ ही हमारी खुफिया जानकारी की कमी, परिचालन संबंधी ढिलाई और समन्वय की कमी की ओर भी इशारा किया है.
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इस हमले का उद्देश्य शांति भंग करना और भय पैदा करना था, जिसमें यह सफल रहा है. हम पिछली गलतियों से सबक लेने में बार-बार विफल रहे हैं.

एक ऐसे क्षेत्र में जहां लंबे समय से संघर्ष चलता आ रहा हो और जहां उग्रवादी बार-बार अपने चुने हुए वक्त और जगह पर हमले करते हों—वहां निश्चिंतता की कोई गुंजाइश नहीं है.

यह हमला नीति नियोजकों की दूरदर्शिता की कमी को भी उजागर करता है, जो इस गंभीर समस्या के अंतर्निहित कारणों पर ध्यान देने में विफल रहे हैं और केवल मारे गए या आत्मसमर्पण करने वाले आतंकवादियों की संख्या के बारे में ही सोचते हैं या फिर यह सोचते हैं कि अनुच्छेद 370 में संशोधन से शांति आ जाएगी.

यह हमला कश्मीर की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा, क्योंकि इससे पर्यटन उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है.

केंद्र शासित प्रदेश में खुफिया तंत्र को दुरुस्त करना और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सुरक्षा बल कभी भी अपनी चौकसी में ढील न दें.

(संजीव कृष्ण सूद (सेवानिवृत्त) बीएसएफ के अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में काम कर चुके हैं और एसपीजी में भी रहे हैं. उनका ट्विटर हैंडल @sood_2 है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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