Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Hindi Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-20197 गलत सर्जरी: कैसे एक 'फर्जी डॉक्टर' को मध्य प्रदेश के अस्पताल में मिली नौकरी

7 गलत सर्जरी: कैसे एक 'फर्जी डॉक्टर' को मध्य प्रदेश के अस्पताल में मिली नौकरी

मध्य प्रदेश: दमोह के एक अस्पताल में सात मरीजों की मौत के बाद सालों से धोखा दे रहे 'फर्जी डॉक्टर' का पर्दाफाश हुआ.

अनुष्का राजेश
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>नरेंद्र विक्रमादित्य यादव  को सोमवार, 7 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से गिरफ्तार किया गया.</p></div>
i

नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को सोमवार, 7 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से गिरफ्तार किया गया.

(फोटो: अरूप मिश्रा/द क्विंट)

advertisement

लंदन में प्रशिक्षित कॉर्डियोलॉजिस्ट यानी हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में दिखावा करने वाले नरेंद्र विक्रमादित्य यादव (Narendra Vikramaditya Yadav) को सोमवार, 7 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से गिरफ्तार किया गया. ये कार्रवाई उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर के एक दिन बाद हुई.

जनवरी और फरवरी के बीच मध्य प्रदेश के दमोह स्थित मिशन अस्पताल में यादव के कार्यकाल के दौरान हर्ट सर्जरी के बाद कम से कम सात मरीजों की कथित रूप से मौत हो गई थी.

इस गिरफ्तारी से सालों से चल रहे फर्जीवाड़े से पर्दा उठा है, दूसरी तरफ भारत के अस्पतालों में नियुक्ति प्रक्रियाओं और वेरिफिकेशन प्रोटोकॉल पर भी गंभीर सवाल खड़े हुए हैं.

नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को ब्रिटेन के प्रसिद्ध कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. जॉन कैम का गलत तरीके से नाम इस्तेमाल करने पर 2023 की शुरुआत में मेडिकल प्रोफेशनल्स की ओर से ऑनलाइन आलोचना का सामना करना पड़ा था. यहां तक ​​कि डॉ. कैम ने खुद भी उसको एक्सपोज किया था.

तो फिर, ऐसे जाने-माने धोखेबाज को एक प्रतिष्ठित अस्पताल ने कैसे काम पर रखा और मरीजों की सर्जरी करने की अनुमति दी?

फरवरी में शिकायत, लेकिन एक महीने से अधिक समय तक नजरअंदाज किया गया

दमोह निवासी कृष्णा पटेल ने द क्विंट से बात करते हुए बताया कि उन्हें जनवरी में पहली बार उनके दादा का इलाज कर रहे कॉर्डियोलॉजिस्ट को लेकर संदेह हुआ था.

"30 जनवरी को जब मेरे दादा जी ने सीने में दर्द की शिकायत की तो मैं उन्हें मिशन अस्पताल ले गया. नर्सिंग स्टाफ ने कहा कि उन्हें मेजर हर्ट अटैक हुआ है और डॉक्टर उन्हें तभी देखेंगे जब हम 50,000 रुपए का पेमेंट करेंगे."

पेमेंट करने और डॉ. जॉन कैम से कंसल्टेशन के बाद, कृष्णा को बताया गया कि उनके दादा की धमनियों में कई ब्लॉकेज हैं और उनका ओपन-हार्ट सर्जरी करना होगा. अस्पताल में सर्जरी की सुविधाएं नहीं होने की वजह से उन्हें अपने दादा को दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए कहा गया.

कृष्णा ने बताया कि जब उन्होंने एंजियोग्राफी रिपोर्ट और वीडियो मांगे तो डॉक्टर ने उन्हें देने से मना कर दिया, जिसके बाद दोनों के बीच तीखी बहस हुई. कृष्णा के लिए यह पहला अलर्ट था.

इसके बाद कृष्णा अपने दादा को जबलपुर के दूसरे अस्पताल में ले गए, जहां उन्हें बताया गया कि उनके दादा की धमनियों में कुछ ब्लॉकेज है, लेकिन इसके लिए ओपन-हार्ट सर्जरी की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि यह दूसरा अलर्ट था.

यहीं से उन्होंने उस डॉक्टर की जांच शुरू की जिसने मिशन अस्पताल में उनके दादा का इलाज किया था. नरसिंहपुर और जबलपुर में अस्पताल के कुछ कर्मचारियों से बात करने के बाद उन्हें पता चला कि डॉक्टर का अतीत संदिग्ध था.

"नरसिंहपुर के लक्ष्मी नारायण मेमोरियल अस्पताल में मुझे पता चला कि इस डॉक्टर को नौकरी से निकाल दिया गया था क्योंकि वह नौकरी के लिए वैध दस्तावेज पेश नहीं कर पाया था. तब मुझे यकीन हो गया कि वो वैध डॉक्टर नहीं है."

इसके बाद कृष्णा ने दमोह बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष दीपक तिवारी से संपर्क किया और उन्हें स्थिति से अवगत कराया. साथ ही मिशन अस्पताल में मरीजों का इलाज करने वाले फर्जी कॉर्डियोलॉजिस्ट को लेकर अपनी आशंका भी जाहिर की.

दीपक तिवारी ने द क्विंट को बताया, "जब हमने उन मरीजों के परिवारों से बात की, जिनका इलाज उस डॉक्टर ने किया था और मौत हो गई थी, तो हमें पता चला कि उन सभी को बताया गया था कि मरीजों की मौत हार्ट अटैक के कारण हुई थी, और उन पर पोस्टमॉर्टम न कराने का दबाव बनाया गया था."

भारत में किसी भी डॉक्टर को उस राज्य में प्रैक्टिस करने के लिए राज्य चिकित्सा परिषद में पंजीकृत होना आवश्यक है, लेकिन दीपक तिवारी के अनुसार, यादव (डॉ जॉन कैम के नाम से) का मध्य प्रदेश चिकित्सा परिषद में पंजीकरण नहीं था.

"हमने इन सभी सूचनाओं की एक फाइल तैयार की और इसे 15 फरवरी के आसपास कलेक्टर और सीएमएचओ (मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी) कार्यालय को भेजा. हालांकि, एक महीने से अधिक समय तक कोई कार्रवाई नहीं की गई."
दीपक तिवारी, अध्यक्ष, दमोह बाल कल्याण समिति

क्विंट ने सीएमएचओ कार्यालय से संपर्क किया है. जवाब मिलते ही स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.

दीपक तिवारी ने बताया कि कोई कार्रवाई नहीं होने पर शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) तक की गई.

शुक्रवार, 4 अप्रैल को एनएचआरसी के सदस्य प्रियांक कानूनगो ने अपने सोशल मीडिया पर मामले के बारे में बात की और कहा कि एनएचआरसी की एक टीम आगे की जांच के लिए 7 अप्रैल से 9 अप्रैल के बीच अस्पताल का दौरा करेगी.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

दीपक तिवारी के अनुसार, कानूनगो के सोशल मीडिया पोस्ट के बाद ही सीएमएचओ ने डॉक्टर की डिग्री फर्जी के बारे में घोषणा की और 6 अप्रैल को एफआईआर दर्ज की गई.

द क्विंट से बात करते हुए दमोह के मुख्य पुलिस अधीक्षक अभिषेक तिवारी ने एफआईआर दर्ज होने की पुष्टि की और बताया कि आरोपी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 318 (धोखाधड़ी), 338 (महत्वपूर्ण दस्तावेजों की जालसाजी), 336 (जालसाजी, विशेष रूप से धोखा देने या नुकसान पहुंचाने के इरादे से दस्तावेजों या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को बनाना या बदलना) और 340 (2) (जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को असली के रूप में उपयोग करना) और मध्य प्रदेश आयुर्वेदिक परिषद अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है.

इसके साथ ही उन्होंने कहा,

"आरोपी फिलहाल हिरासत में है और उससे पूछताछ की जाएगी. सबूतों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी. वह फरवरी से फरार चल रहा था, मौखिक और टेक्निकल लीड के जरिए उसे ट्रेस किया गया. अगर अस्पताल के अधिकारी भी इसमें शामिल पाए जाते हैं तो कार्रवाई की जाएगी."

अस्पताल और भर्ती एजेंसी ने झाड़ा पल्ला

यह घटना अस्पताल की नियुक्ति और सत्यापन प्रक्रियाओं में गंभीर खामियों को उजागर करती है, साथ ही सवाल उठता है कि एक अयोग्य डॉक्टर प्रशासनिक जांच से कैसे बच निकलने में कामयाब रहा?

दीपक तिवारी ने बताया, "प्रक्रिया के अनुसार, अस्पताल को सभी कागजी कार्रवाई की पुष्टि करनी थी, जिसकी सीएमएचओ द्वारा जांच की जानी थी, ताकि डॉक्टर को काम करने की अनुमति देने के लिए एनओसी जारी की जा सके."

मिशन अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, यादव को मध्य प्रदेश सरकार के साथ पंजीकृत भोपाल स्थित भर्ती कंपनी IWUS (इंटीग्रेटेड वर्कफोर्स यूनिक सॉल्यूशन) के माध्यम से नियुक्त किया गया था.

मिशन अस्पताल की प्रभारी प्रबंधक पुष्पा खरे ने द क्विंट को बताया, "इस साल जनवरी में उन्होंने काम शुरू किया और फरवरी में चले गए. वे अपने साथ इकोकार्डियोग्राम मशीन ले गए. जाने से पहले उन्होंने हमें सूचित नहीं किया. हमने उनसे संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला."

उन्होंने कहा, "सत्यापन और जांच एजेंसी की जिम्मेदारी है. हमने इस सेवा के लिए उन्हें डॉक्टर के वेतन का 50 प्रतिशत यानी करीब 4 लाख रुपये का भुगतान किया, लेकिन उन्होंने धोखाधड़ी की."

जब पूछा गया कि क्या एजेंसी ने यादव के दस्तावेजों का सत्यापन किया था, तो IWUS के एक प्रतिनिधि ने अस्पताल के आरोपों का खंडन करते हुए कहा, "हमने अस्पताल को बायोडाटा भेजा था, लेकिन उन्होंने हमें दरकिनार कर सीधे उन्हें नौकरी पर रख लिया."

प्रतिनिधि ने कहा, "अगर उन्हें हमारे माध्यम से काम पर रखा गया होता, तो हम आवश्यक जांच करते और उनके दस्तावेजों का सत्यापन करते."

हालांकि, खरे ने जोर देकर कहा कि यादव को एजेंसी के माध्यम से काम पर रखा गया था और उसी के लिए भुगतान किया गया था. क्विंट ने रसीद और चालान दोनों की प्रतियां हासिल की है.

उन्होंने कहा, "हमने भर्ती एजेंसी के खिलाफ उनकी लापरवाही के लिए शिकायत भी दर्ज कराई है."

जब उनसे पूछा गया कि क्या अस्पताल ने अपनी ओर से कोई जांच की थी, तो उन्होंने कहा, "नरसिंहपुर के अस्पताल में जहां वो पहले काम करते थे वहां का दस्तावेज जमा करने के लिए कहा गया था. यह पिछले प्रबंधन द्वारा किया गया था. हालांकि, वे इसे टालते रहे. मार्च में मेरे कार्यभार संभालने के बाद, मैंने स्थानीय पुलिस को सूचना दी कि वे बिना किसी को बताए चले गए हैं और बिना अनुमति के अस्पताल की संपत्ति पर कब्जा कर लिया है."

"उनके पास विभिन्न अस्पतालों से प्राप्त अनेक प्रमाण-पत्र थे, जिससे हमारे लिए उन सभी का सत्यापन करना असंभव था. इसीलिए हमने एक एजेंसी को काम पर रखा और उनपर जांच-पड़ताल के लिए भरोसा किया. इसकी के लिए उन्हें पैसा भी दिया गया था."
पुष्पा खरे

खरे ने सात मरीजों की मौत का तार यादव से जुड़े होने से इनकार किया है.

उन्होंने कहा, "70 से अधिक मरीजों का इलाज उन्होंने किया और करीब 60 एंजियोप्लास्टी की. मुझे नहीं पता कि वह धोखेबाज डॉक्टर हैं या नहीं. मौतों की जांच चल रही है और उसके बाद ही पता चलेगा कि वह इसके लिए जिम्मेदार थे या नहीं."

फर्जीवाड़े का पुराना इतिहास

यादव का फर्जीवाड़ा ऑपरेशन थिएटर और उससे आगे तक फैला था, जो सालों से चल रहा था. ब्रिटेन के जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. जॉन कैम के नाम का इस्तेमाल करने पर कई बार उसकी ऑनलाइन आलोचना भी हुई. 2024 में उसके एक्स अकाउंट को सस्पेंड कर दिया गया था.

असली डॉ. कैम ने खुद सार्वजनिक रूप से यादव द्वारा उनकी पहचान चुराने और इस धोखेबाजी को लेकर चेताया था.

गूगल सर्च से पता चलता है कि यादव के खिलाफ पूरे देश में कई एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें गबन से लेकर मेडिकल धोखाधड़ी और यहां तक ​​कि अपहरण का एक मामला भी शामिल है.

2019 तक उसके असली नाम नरेंद्र यादव का उल्लेख मिलता है.

उस साल मई में ब्राउनवाल्ड हॉस्पिटल्स के तत्कालीन अध्यक्ष, जिनका नाम डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव था, धोखाधड़ी के एक मामले में राचकोंडा पुलिस (तेलंगाना) ने चेन्नई से गिरफ्तार किया था.

2023 में न्यूज आउटलेट बूम द्वारा 'धोखेबाज डॉक्टर' पर एक विस्तृत जांच रिपोर्ट से पता चला है कि ब्राउनवाल्ड हॉस्पिटल्स की वेबसाइट के आर्काइव में डॉ. यादव की तस्वीर डॉ. एन जॉन कैम से मिलती-जुलती है.

इसके अलावा, यादव ने कथित तौर पर 2006 में छत्तीसगढ़ के पूर्व स्पीकर राजेंद्र प्रसाद शुक्ला की सर्जरी की थी- जिसमें शुक्ला की दुखद मौत गई थी, जैसा कि पीटीआई की रिपोर्ट में उनके बेटे ने बताया है.

इन चेतावनियों के बावजूद, यादव प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में घुसपैठ करने में कामयाब रहा और सत्यापन प्रोटोकॉल में खामियों का फायदा उठाता रहा.

(ट्रांसलेशन- मोहन कुमार)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT