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दिल्ली में 'फीस' बढ़ोतरी पर बवाल, सरकारी नियमों में कहां फंसा पेंच?

AAP ने भारतीय जनता पार्टी पर "एजुकेशन माफिया" के साथ मिलकर अभिभावकों और छात्रों का शोषण करने का आरोप लगाया है.

मोहन कुमार
जनाब ऐसे कैसे
Updated:
<div class="paragraphs"><p>अभिभावकों का आरोप है कि बढ़ी हुई फीस नहीं भरने पर उनके बच्चों को क्लास में बैठने तक नहीं दिया जाता है.</p></div>
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अभिभावकों का आरोप है कि बढ़ी हुई फीस नहीं भरने पर उनके बच्चों को क्लास में बैठने तक नहीं दिया जाता है.

(फोटो: द क्विंट/ कामरान अख्तर)

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साल 2017 में इरफान खान की एक फिल्म आई थी. नाम था हिंदी मीडियम. ये फिल्म भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाती है. इसी फिल्म का एक डायलॉग है- "ये हेडमास्टर, हेडमास्टर नहीं हैं जी, ये बिजनेसमैन हैं और आजकल पढ़ाई, पढ़ाई नहीं है जी, ये धंधा है... धंधा."

देश की राजधानी दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों में फीस बढ़ोतरी को लेकर बवाल मचा है. अभिभावकों का आरोप है कि बढ़ी हुई फीस नहीं भरने पर उनके बच्चों को क्लास में बैठने तक नहीं दिया जाता है. बच्चों को लाइब्रेरी में बैठाकर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है. इसके विरोध में अभिभावक सड़कों पर उतर आए हैं और विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. (यूज- वीडियो एंड फोटोज)

दिल्ली में फीस बढ़ोतरी को लेकर राजनीतिक विवाद भी खड़ा हो गया है. आम आदमी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी पर "एजुकेशन माफिया" के साथ मिलकर अभिभावकों और छात्रों का शोषण करने का आरोप लगाया है. जवाब में, दिल्ली शिक्षा विभाग के मंत्री आशीष सूद ने इस समस्या से निपटने के लिए नए कदमों की घोषणा की है.

ये मुद्दा नया नहीं है. लेकिन हर साल फीस बढ़ोत्तरी का मुद्दा उठता है. पार्टियां आरोप-प्रत्यारोप करती हैं लेकिन पैरेंट्स को कोई ठोस समाधान नहीं मिलता, ऐसे में हम पूछ रहे हैं- जनाब ऐसे कैसै.

दिल्ली में सालाना फीस में 25 से 30% तक की बढ़ोतरी का अनुमान

दिल्ली में कुल 1677 प्राइवेट स्कूल हैं. इनमें से कुछ स्कूलों और शिक्षा विभाग से जुड़े कार्यालयों के बाहर पैरेंट्स फीस बढ़ने को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. फीस बढ़ने पर शिक्षा निदेशालय का कहना है कि पोस्ट कोविड यह समस्या और बढ़ गई है, जिसमें सालाना फीस में 25 से 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी का अनुमान है. शिक्षा निदेशालय भी मान रहा है कि ये मुद्दा खास तौर पर मिडिल और लोअर क्लास को परेशान करने वाला है.

दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने कुछ स्कूलों के नाम गिनाकर उनकी फीस बढ़ोत्तरी का जिक्र भी किया. उन्होंने बताया, DPS द्वारका ने 2020 में अपनी फीस में 20%, 2021 में 13%, 2022 में 9%, 2023 में 8% और 2024 में 7% की बढ़ोतरी की है. सृजन स्कूल ने AAP सरकार के कार्यकाल के दौरान फीस में 35% की बढ़ोतरी की. वहीं 2024-25 में 36% फीस बढ़ाया.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एहलकॉन इंटरनेशनल स्कूल पर 15 करोड़ के वित्तीय अनियमितता के आरोप लगे फिर भी उसे साल 2022-23 में 15% फीस बढ़ाने की अनुमति दी गई. वहीं 2024-25 में इस स्कूल ने फीस में 13% की बढ़ोतरी की.

शिक्षा मंत्री द्वारा दिए गए उदाहरणों में लांसर कॉन्वेंट भी शामिल है, जिसने कथित तौर पर 2024-25 में फीस में 34% की बढ़ोतरी की है, रुक्मिणी देवी पब्लिक स्कूल ने उसी साल 11%, और सलवान पब्लिक स्कूल, जिसने कथित तौर पर 2023-24 में लगभग 24% और 2024-25 में 15% की फीस बढ़ाई है, जबकि वह 1.68 करोड़ रुपये के फंड के दुरुपयोग के लिए जांच के दायरे में है.

अब आप सोच रहे होंगे कि जब शिक्षा निदेशालय पैरेंट्स के दर्द को समझने की बात कर रहा है. शिक्षा मंत्री खुद ही स्कूलों के नाम गिना रहे हैं फिर फीस बढ़ने पर कंट्रोल क्यों नहीं हो रहा है.

फीस बढ़ोतरी को लेकर क्या नियम हैं?

इसे समझने के लिए दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में फीस बढ़ोतरी के नियम और उनके पेंच को जानना जरूरी है.

दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की फीस को कंट्रोल करने के लिए DSEAR-1973 यानी दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम और नियम लागू है. इसके तहत, सरकारी जमीन पर चलने वाले प्राइवेट स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशालय से अनुमति लेनी होती है. स्कूलों को हर साल अप्रैल में ऑनलाइन अपनी फीस बढ़ोतरी का प्रस्ताव देना होता है.अगर प्रस्ताव अधूरा हुआ तो उसे खारिज कर दिया जाता है, और बिना अनुमति फीस बढ़ाने पर सख्त कार्रवाई हो सकती है.

हालांकि, 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि प्राइवेट स्कूलों को फीस बढ़ाने के लिए DoE से अनुमति की जरूरत नहीं है, बशर्ते वे मुनाफाखोरी न करें.
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राष्ट्रीय राजधानी में कुल 1,677 प्राइवेट स्कूल हैं. इनमें से 335 प्राइवेट स्कूल सरकार द्वारा आवंटित जमीन पर चल रहे हैं. ऐसे स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा विभाग को सूचित करना अनिवार्य है. वहीं अन्य स्कूल जो अनऑथराइज्ड जमीन पर चल रहे हैं, वह इस दायरे से बाहर हैं.

दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम कहती हैं, "आशीष सूद कह रहे हैं कि दिल्ली की 1677 प्राइवेट स्कूलों में से 335 यानी 20 फीसदी स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले अनुमति की आवश्यकता है. इसका एक छिपा हुआ मतलब है कि 80 फीसदी स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले अनुमति नहीं चाहिए. ऐसे स्कूल अपनी फीस बढ़ा सकते हैं."

"जिन 20% फीसदी स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले अनुमति लेनी होती है, उन्होंने भी अपनी फीस बढ़ाई है. ये कहना गलत नहीं है कि दिल्ली के लगभग हर स्कूल ने अपनी फीस बढ़ा दी है."

हालांकि, फीस बढ़ोतरी के आरोपों पर एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "लगातार नौ सालों तक हमने फीस नहीं बढ़ाई क्योंकि हर साल इसे अस्वीकार कर दिया जाता था. फीस बढ़ाने की जब जरूरत महसूस हुई तब ही इसे उचित रूप से बढ़ाया गया है."

शिक्षा मंत्री के प्लान को AAP ने बताया नौटंकी

हालांकि, शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने फीस बढ़ोतरी की समस्या से निपटने का प्लान बताया है. वहीं आम आदमी पार्टी ने इसे नौटंकी करार दिया है.

सूद ने कहा कि नई पहल के तहत सरकार पिछले कुछ सालों में फीस बढ़ोतरी पर स्कूल-वार आंकड़े 10 दिनों के भीतर शिक्षा निदेशालय की वेबसाइट पर प्रकाशित करेगी.

दिल्ली शिक्षा विभाग ने एक ईमेल आईडी- ddeact1@gmail.com जारी किया है, जहां अभिभावक स्कूलों की मनमानी या फीस बढ़ोतरी को लेकर अपनी शिकायतें भेज सकते हैं. ईमेल की निगरानी सीधे शिक्षा उपनिदेशक द्वारा की जाएगी.

फी एनोमली कमेटी का क्या हुआ?

ये तो हो गई अभी की बात. अब जरा पीछे चलते हैं. 1990 के दशक के आखिर में दुग्गल समिति की सिफारिशों और उसके बाद अदालती निर्देशों के बाद दिल्ली सरकार को फी एनोमली कमेटी यानी फीस विसंगति समिति बनाने करने का निर्देश दिया गया था. ताकि अभिभावक फीस बढ़ोतरी के खिलाफ शिकायत कर सकें. हालांकि, ये कमेटी कभी भी पूरी तरह से ऑपरेशनल नहीं हुई.

2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने हर जिले में ऐसी कमेटी बनाने का निर्देश दिया. उसी साल दिसंबर में समिति को फिर से अधिसूचित किया गया और जनवरी 2018 में जारी एक सर्कुलर में फीस संबंधी शिकायतों से निपटने की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए एक SOP तैयार की गई. जिसके मुताबिक, कमेटी में तीन सदस्य होंगे- जिला उप शिक्षा निदेशक, जोनल उप शिक्षा अधिकारी, और एक चार्टर्ड अकाउंटेंट.

अभिभावक 100 रुपये के शुल्क के साथ शिकायत दर्ज कर सकते हैं. कमेटी को 90 दिनों में शिकायत का समाधान करना होता है. लेकिन यह कमेटी ज्यादातर कागजों पर ही रही, और जमीन पर इसका असर नहीं दिखा.

इसके बाद साल 2023 में प्राइवेट स्कूलों के फीस बढ़ोतरी के प्रस्तावों की जांच करने के लिए दो PMU यानी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट बनाए गए. जिसका काम स्कूलों के वित्तीय दस्तावेजों की जांच करना और फीस बढ़ोतरी की जरूरत का आकलन करना था.

तीन सालों में 50-80% बढ़ी फीस- सर्वे

दिल्ली ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी प्राइवेट स्कूलों में फीस बढ़तोरी एक बड़ी समस्या है. कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्किल्स द्वारा देशभर में किए गए एक सर्वे के मुताबिक, 36 फीसदी पैरेंट्स ने बताया कि पिछले तीन सालों यानी 2022 से 25 के बीच उनके बच्चों की स्कूल फीस में 50-80% की बढ़ोतरी हुई है. वहीं 8 प्रतिशत ने कहा कि 80 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी हुई है.

8 फीसदी पैरेंट्स ने कहा कि 30-50 तक स्कूल फीस बढ़ी है, जबकि 27 फीसदी अभिभावकों का कहना था कि स्कूल फीस 10-30% महंगी हुई है. 8 फीसदी ऐसे भी थे, जिन्होंने कहा कि 3 सालों में फीस नहीं बढ़ी है. वहीं 13% ने बताया कि उन्होंने अपने बच्चों का स्कूल बदला था, इसलिए उन्हें इसकी जानकारी नहीं है.

वहीं, 93% अभिभावकों का कहना है कि उनकी राज्य सरकारें इस बढ़ोतरी को रोकने में पूरी तरह नाकाम रही हैं. जबकि, 7 फीसदी पैरेंट्स का मानना है कि सरकार ने प्रभावी कदम उठाए हैं. बता दें कि यह सर्वे देश के 309 जिलों में 31,000 अभिभावकों के बीच किया गया था.

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 के अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकारें फीस को लेकर प्राइवेट स्कूलों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, लेकिन मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण को रोकने के लिए फीस ढांचे को रेगुलेट कर सकती है. लेकिन, इसे प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया गया है, जिसकी वजह से कई स्कूल अलग-अलग तरीकों से फीस बढ़ाते हैं. इसलिए हम पूछ रहे हैं, जनाब ऐसे कैसै.

Published: 13 Apr 2025,11:18 AM IST

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