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"न शेल्टर, न योजना": दिल्ली में आवारा कुत्ते अदालती आदेश और हकीकत के बीच फंसे

दिल्ली-NCR में डॉग बाइट और रेबीज से होने वाली मौतों के बढ़ते आंकड़ों पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था.

शादाब मोइज़ी
जनाब ऐसे कैसे
Published:
<div class="paragraphs"><p>दिल्ली-NCR में डॉग बाइट और रेबीज से होने वाली मौतों के बढ़ते आंकड़ों पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था.</p></div>
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दिल्ली-NCR में डॉग बाइट और रेबीज से होने वाली मौतों के बढ़ते आंकड़ों पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था.

(फोटो: कामरान अख्तर/ द क्विंट)

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"ये बोला दिल्ली के कुत्ते से गांव का कुत्ता

कहां से सीखी अदा तू ने दुम दबाने की

वो बोला दुम के दबाने को बुज़-दिली न समझ

जगह कहां है यहां दुम तलक हिलाने की"

सागर खय्यामी का ये शेर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले की कहानी बयां करता है. शीर्ष अदालत ने दिल्ली-NCR की सरकारों को आठ सप्ताह के भीतर आवारा कुत्तों को शेल्टर में रखने के निर्देश दिए हैं.

दिल्ली-NCR में डॉग बाइट और रेबीज से होने वाली मौतों के बढ़ते आंकड़ों पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था. कोर्ट के फैसले का उद्देश्य मानव जीवन की रक्षा करना है, लेकिन कुछ सवाल भी हैं: बिना किसी बुनियादी ढांचे के, दिल्ली के हर इलाके से आवारा कुत्तों को सिर्फ छह से आठ हफ्तों में शेल्टर में कैसे रखा जा सकता है? और अगर यह समय सीमा पूरी नहीं हो पाई तो क्या होगा?

जनाब, ऐसे कैसे के इस एपिसोड में हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे. दिखाएंगे आपको, दिल्ली-NCR में डॉग शेल्टर की जमीनी हकीकत और बताएंगे लोगों का कोर्ट के फैसले पर क्या कहना है.

"इतने सारे कुत्तों को रखना नामुमकिन"

सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद द क्विंट की टीम ने दिल्ली के तिमारपुर इलाके में नेबरहुड वूफ द्वारा संचालित एक नसबंदी और देखभाल केंद्र का दौरा किया, जहां कुत्तों को टीकाकरण के बाद अस्थायी रूप से रखा जाता है. नेबरहुड वूफ की टीम ने हमें साफ-साफ बताया कि दिल्ली में आवारा कुत्तों के लिए फिलहाल कोई स्थायी आश्रय स्थल नहीं है. उनका कहना था कि

"G20 के समय हम दिल्ली के हजार कुत्तों को भी सेंटर में नहीं रख पाए थे, तो अब इतने सारे कुत्तों को रखना तो और भी नामुमकिन है."
आयशा क्रिस्टीना, CEO, नेबरहुड वूफ

दिल्ली में कम्युनिटी डॉग्स के लिए शेल्टर से जुड़े सवाल पर आयशा कहती हैं, “दिल्ली में कम्युनिटी डॉग्स के लिए एक भी शेल्टर होम नहीं है. यहां 78 अस्पताल तो हैं, लेकिन वे चल नहीं रहे."

आवारा कुत्तों के काटने और रेबीज से होने वाली मौत के सवाल पर आयशा कहती हैं-

"अगर आप मेरे सेंटर के रिकॉर्ड देखेंगे तो पाएंगे कि यहां एमसीडी करीब 600 कुत्ते लाती है और 2400 कुत्ते एनिमल लवर्स लेकर आते हैं. अब सोचिए, ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों टीके लगवा रहे हैं, क्यों नसबंदी करवा रहे हैं? वो ये सब इंसानों की सुरक्षा के लिए कर रहे हैं. मेरे यहां एक बाइटिंग डॉग आया था. हमें पता चला कि उसके कान में इंफेक्शन है. जैसे ही कान का इंफेक्शन ठीक होगा, उसका काटना भी बंद हो जाएगा. असल में, हर चीज की एक वजह होती है. और जब तक डॉग-बाइट की रिपोर्ट हमें नहीं मिलेगी, तब तक हम समाधान कैसे निकाल पाएंगे?"

"हम नहीं जानते अब सर्जरी साइकिल को कैसे मेंटेन करेंगे?"

नेबरहुड वूफ के वेटरनरी सर्जन डॉ. हरगुण बताते हैं कि हर साल 15 अगस्त पर लालकिले के आसपास जो भी डॉग्स होते हैं, उन्हें एमसीडी की वैन में लाकर लगभग 10 दिन के लिए यहां रखा जाता है और अस्थायी रूप से रीलोकेट कर दिया जाता है. जब तक वे यहां रहते हैं, उन्हें खाना-पानी दिया जाता है, और अगर उनकी सर्जरी नहीं हुई होती है तो उनकी सर्जरी भी की जाती है. इसके बाद, 15 अगस्त के बाद उन्हें उसी जगह वापस छोड़ दिया जाता है.

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"इस साल भी शुरुआत में यही प्रक्रिया चल रही थी. 15 अगस्त से पहले हमारे पास कुत्ते लाए जा रहे थे और योजना थी कि उन्हें 15 अगस्त के बाद वापस उसी जगह छोड़ा जाएगा. लेकिन अब हमें एक नोटिस मिला है कि जो भी डॉग्स एमसीडी द्वारा लालकिले से लाए गए हैं, उन्हें यहीं पर रखा जाएगा और वापस रीलोकेट नहीं किया जा सकता. इतना ही नहीं, जो कुत्ते पहले से ही हमारे पास थे, उनके लिए भी निर्देश आ गया है कि उन्हें भी बाहर नहीं छोड़ा जा सकता."

"हमारे सेंटर का कामकाज इस तरह चलता है कि जिन डॉग्स की सर्जरी हो चुकी है, उन्हें रिलीज करके नए डॉग्स लाए जाते हैं, ताकि ऑपरेशन का सिलसिला लगातार चलता रहे. लेकिन अब जब पुराने कुत्तों को रिलीज करने की इजाजत नहीं है, तो हम नहीं जानते आगे इस साइकिल को कैसे मेंटेन करेंगे?"
डॉक्टर हरगुण

पशु जन्म नियंत्रण (ABC) केंद्रों में कुत्तों को ज्यादा से ज्यादा पांच दिन तक ही रखा जा सकता है. यही सीमा है. ये केंद्र लंबे समय तक कुत्तों को रखने के लिए बनाए ही नहीं गए हैं, हमेशा के लिए रखना तो दूर की बात है.

सरकार ने संसद में जानकारी दी है कि साल 2024 में देशभर में 37 लाख से ज़्यादा डॉग-बाइट के केस सामने आए. सिर्फ दिल्ली की बात करें तो यह आंकड़ा 25 हजार से ज्यादा है.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और कहा कि दिल्ली की सड़कों से स्ट्रीट डॉग्स को हटाया जाए. लेकिन सवाल यह है कि इतने सारे कुत्तों को आखिर किस शेल्टर में रखा जाएगा? क्या दिल्ली में इतने शेल्टर होम मौजूद भी हैं? और बड़ा सवाल यह भी है कि लोकल बॉडीज और एमसीडी से यह क्यों नहीं पूछा गया कि इतने सालों में उन्होंने शेल्टर बनाने के लिए क्या किया?

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