Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Hindi Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Janab aise kaise  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019दिल्ली चुनाव: वेलफेयर स्कीम को Freebies कहना, गरीब-मिडिल क्लास का मजाक बनाना है?

दिल्ली चुनाव: वेलफेयर स्कीम को Freebies कहना, गरीब-मिडिल क्लास का मजाक बनाना है?

क्या पॉलिटिकल पार्टी बिना बजट कैलकुलेट किए हवा-हवाई चुनावी वादें कर रही हैं?

शादाब मोइज़ी
जनाब ऐसे कैसे
Published:
<div class="paragraphs"><p>चुनावी रेवड़ी या वेलफेयर स्कीम?</p></div>
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चुनावी रेवड़ी या वेलफेयर स्कीम?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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रेवड़ी कल्चर, फ्रीबीज (Freebies), मुफ्त का मलिदा.. बिजली फ्री, पानी फ्री.. फ्री.. फ्री.. फ्री

सब फ्री है? या आप इन फ्री की बहुत महंगी कीमत चुका रहे हैं? या फिर वेल्फेयर स्कीम को रेवड़ी या फ्री कहकर देश के जरूरतमंद लोगों का मजाक बनाया जा रहा है? बहुत कंफ्यूजन है न? तो आप ये पढ़िए-

‘‘ये ‘रेवड़ी कल्चर’ वाले कभी आपके लिए नए एक्सप्रेसवे नहीं बनाएंगे, नए एअरपोर्ट या डिफेंस कॉरिडोर नहीं बनाएंगे. हमे जल्द ही देश की राजनीति से इस रेवड़ी कल्चर को हटाना होगा. इन रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि देश की जनता को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर, उन्हें खरीद लेंगे. ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिय घातक है.’’

ये बयान साल 2022 में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करने के लिए उत्तर प्रदेश के जालौन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था.

अब एक और बयान देखिए- "दिल्ली की जरूरतमंद महिलाओं के लिए महिला समृद्धि योजना के तहत 2500 रुपये प्रतिमाह दिए जाएंगे. LPG का सिलेंडर पर 500 रुपये की सब्सिडी मिलेगी. होली और दिवाली में 1-1 सिलेंडर एक्स्ट्रा मिलेगा. मातृत्व सुरक्षा योजना के तहत 21000 रुपए दिए जाएंगे. 6 न्यूट्रिशियस किट अलग से दी जाएंगी."

ये दोनों बयान देखने के बाद सवाल है कि- कल तक जिस वेलफेयर स्कीम को रेवड़ी कह रहे थे अब उसी रेवड़ी को बांटने का वादा हर चुनाव में किया जा रहा है. इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि क्या वेलफेयर स्कीम को रेवड़ी कहना सही है? क्या भारत के विकास के लिए कैश ट्रांसफर या फ्री जैसी स्कीम की जरूरत है? क्या पॉलिटिकल पार्टी बिना बजट कैलकुलेट किए हवा-हवाई चुनावी वादें कर रही हैं?

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अपील- अगर आप मार्केट से खराब सामान लाते हैं, तो उसे बदल देते हैं, नेता पसंद नहीं आता तो किसी और को वोट करते हैं, फिर खबरों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं. टीवी स्टूडियो में चिकचिक, लड़ाई, गाली कब तक देखिएगा.. ऐसी खबर देखिए, पढ़िए जिससे देश और आपके सोच का विकास हो. इसलिए क्विंट के मेंबर बनिए. सब्सक्राइब कीजिए.  

दिल्ली में विधानसभा चुनाव है और आम आदमी पार्टी से लेकर बीजेपी, कांग्रेस तीनों ही 'मुफ़्त' की कई योजनाओं के जरिए वोटर को लुभाने की कोशिश में हैं. ऐसे में सवाल है कि फ्री क्या है?

जवाब है- कुछ भी नहीं. जनता यानी आप और हम टैक्स देते हैं, बदले में राजनीतिक दल जो सत्ता में होती है वो अपनी सत्ता बचाने के लिए और देश के विकास के लिए वेलफेयर स्कीम के साथ-साथ सड़क, बिजली, सुरक्षा देती है.

आरबीआई ने अपनी 2022 में एक बुलेटिन में "फ्रीबीज" का जिक्र किया था और इसे "निःशुल्क दिए जाने वाले लोक कल्याण उपाय" यानी "public welfare measures provided free of charge" के रूप में डिफाइन किया था.

यहां आपको समझना होगा कि वेलवेयर और रेवड़ी में क्या फर्क है?

रेवड़ी को ऐसे समझिए कि जैसे कोई मुखिया चुनाव जीतने के लिए कहे कि चुनाव जीतेंगे तो गांव के हर घर से एक आदमी को सरकारी नौकरी देंगे

-हवाई अड्डा बनवाएंगे.

-बुजुर्गों को बीड़ी देंगे, महीने में चार बोतल दारू देंगे, साड़ी बांटेंगे, कपड़ा बाटेंगे.

लेकिन फ्री शिक्षा, फ्री इलाज, कम दाम में अनाज, महिलाओं को सैनेट्री पैड, स्कूल में मिड डे मील ये सब रेवड़ी नहीं है. ये समाज के विकास का रास्ता है. साल 2006 में नीतीश कुमार ने बिहार में लड़कियों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए साइकिल की स्कीम निकाली, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार पढ़ने वाले छात्रों को लैपटॉप दे रही थी. स्कूलों में मिड डे मील.  इन सब स्कीम का मकसद बच्चों के एजुकेशन और ग्रोथ से जुड़ा था. वैसे ही बीजेपी की सरकार ने भी लड़कियों को कॉलेज जाने के लिए स्कूटी का वादा किया. आम आदमी पार्टी का मोहल्ला क्लिनिक ये सब वेलफेयर स्कीम का हिस्सा हैं.

तो फिर इसमें गलत क्या है? गलत है- फंड की कमी होने के बाद भी वादों की लंबी लिस्ट, मिसमैनेजमेंट और योजनाओं का फायदा गलत लोगों को मिलना. मतलब अगर आपके पास पैसे हैं, तो आप शिक्षा या हेल्थ पर ही सारे पैसे खर्च नहीं कर देंगे. और भी विकास के काम हैं.

इसे ऐसे समझिए कि फिलहाल दिल्ली का बजट 78 हजार 800 करोड़ रुपये का है. ऐसे में बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कैश ट्रांसफर स्कीम, फ्री बिजली-पानी टाइप स्कीम के वादों को देखें तो अनुमान के हिसाब के करीब 20 हजार करोड़ रुपये इन मुफ्त की योजनाओं को पूरा करने में खर्च हो जाएंगे. इसके अलावा कर्मचारियों को सैलरी, पेंशन, सरकारी ऑफिस के रखरखाव, नेताओं से लेकर अधिकारियों की गाड़ी, उसपर तेल सबके खर्चे. फिर जाकर सड़क से लेकर अस्पताल. यानी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए पैसे चाहिए होंगे.

एक रिपोर्ट के मुताबिक  31 साल में पहली बार दिल्ली के रेवेन्यू डिफिसिट यानी राजस्व घाटे में जाने का अनुमान है. इसके लिए कैश ट्रांसफर जैसी स्कीम को जिम्मेदार माना जा रहा है.

लेकिन यहां ये सवाल उठता है कि केजरीवाल ने महिलाओं के लिए 1000 रुपए की स्कीम को 2100 रुपए करने का वादा किया है तो बीजेपी ने भी तो 2500 रुपए का वादा किया है. अगर केजरीवाल के स्कीम रेवड़ी है तो बीजेपी की स्कीम को बताशा क्यों न समझा जाए?  

मध्य प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र पर कर्ज फिर फ्री योजना क्यों?

यहां एक सवाल ये भी है कि अगर केजरीवाल की रेवड़ी खराब है तो फिर कर्ज में डूबे मध्य प्रदेश के लाडली बहन योजना का क्या? महाराष्ट्र की लाडकी बहिन योजना का क्या? जबकी ये सब राज्य कर्ज में हैं.

BJP शासित मध्य प्रदेश पर कर्ज 4 लाख 80 हजार 976 करोड़ है. लाडली बहना योजना के लिए महिलाओं को 1250 रुपए महीने के दिए जाते हैं. करीब 1600 करोड़ रुपए महीने का खर्च आ रहा है. कर्जदार राज्यों में तमिलनाडु टॉप पर है. तमिलनाडु पर 9 लाख 55 हजार 690 करोड़ का कर्ज है. तमिलनाडु वही राज्य है जहां नेताओं ने मिक्सर ग्राइंडर से लेकर 8 ग्राम सोना देने तक का वादा किया था. कर्जदार राज्यों की लिस्ट में उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर है. यहां भी बीजेपी की सरकार है. कर्जदार राज्यों में महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है. यहां भी बीजेपी की सरकार है. महाराष्ट्र पर 8 लाख 12 हजार 68 करोड़ का कर्ज है.

कर्नाटक चौथे नंबर पर है. यहां कांग्रेस की सरकार है. इन सभी राज्यों का तर्क है कि ये विकास के कामों के लिए कर्ज ले रहे हैं. लेकिन इतना कर्ज?

पूरी खबर समझने और जानने के लिए आप ऊपर दिए वीडियो को देखें.

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