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DU के क्लासरूम से एयरलाइंस तक: 2025 के भारत में जातिवाद के नए चेहरे

NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 के मुकाबले 2022 में SC के खिलाफ अपराध की घटनाओं में 13.1% की बढ़ोतरी हुई है.

शादाब मोइज़ी
जनाब ऐसे कैसे
Published:
<div class="paragraphs"><p>जातीय भेदभाव कबतक?</p></div>
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जातीय भेदभाव कबतक?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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"शहर में पढ़े लिखे लोग होते हैं, जाति में उतना विश्वास नहीं रखते हैं.."

"Caste is a western construct.."

"हमारे दलित भी दोस्त हैं, हम साथ में खाते पीते हैं.."

ये वो लाइन हैं जो जातीय भेदभाव और जाति की सच्चाई छिपाने के लिए लोग इस्तेमाल करते हैं.

लेकिन पिछले कुछ दिनों में भारत में जातीय भेदभाव यानी caste discrimination की कई घटनाएं सामने आई हैं. कहीं जाति की वजह से किसी का बाल काटकर उसे अपमानित किया जाता है, तो कहीं ठाकुरों के मोहल्ले से दलितों की बारात ले जाने पर हिंसा हो रही है. जनाब ऐसे कैसे के इस एपिसोड में हम कास्ट यानी जाति की बात करेंगे जिसे कुछ लोग western construct यानी अंग्रेजों की उपज कहकर नकार देते हैं, लेकिन असल में उसकी जड़ पढ़े-लिखे भारत में कितनी गहरी है वो जानना जरूरी है.

आजादी के बाद भी जाति से नहीं हो सके आजाद

साल 1913, जनवरी का महीना था. विदेश में पढ़ाई कर भारत लौटे एक युवक को बड़ौदा सचिवालय में नौकरी मिली. लेकिन उन्हें कहीं छूना न पड़ जाए, इसलिए चपरासी दूर से उन्हें फाइल फेंक कर देते थे. उस युवक का नाम था भीम राव आंबेडकर. तब से लेकर अबतक 112 साल बीत गए, भारत आजाद हो गया, भारत ने दलित-आदिवासी राष्ट्रपति देख लिए. लेकिन फिर भी जाति जाती नहीं है. आप एक घटना देखिए-

इंडिगो एयरलाइन्स के एक 35 साल के ट्रेनी पायलट ने कथित तौर पर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें उन्होंने बताया है कि एयरलाइन के गुड़गांव स्थित कॉर्पोरेट ऑफिस में तीन सीनियर ऑफिसर ने जाति आधारित उत्पीड़न किया है. FIR में लिखा है-  28 अप्रैल को IndiGo के गुरुग्राम ऑफिस में हुई एक मीटिंग में उन्हें 30 मिनट तक जातिसूचक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा. मुझे कहा गया-

"तुम विमान उड़ाने के लायक नहीं हो, वापस जाओ और चप्पल सीओ.. और “तुम्हारे पास यहां चौकीदार बनने की भी योग्यता नहीं है.”

ट्रेनी पायलट का आरोप है कि यह मानसिक उत्पीड़न (Professional Victimisation) केवल अपमान तक सीमित नहीं था. सैलरी में कटौती, जबरन दोबारा ट्रेनिंग की धमकी और नौकरी छोड़ने पर मजबूर किया गया. उन्होंने इस मुद्दे को कंपनी के उच्चाधिकारियों और IndiGo Ethics Panel के समक्ष भी उठाया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.

हालांकि कंपनी ने अपने बयान में कहा,

IndiGo का भेदभाव, उत्पीड़न या पक्षपात के प्रति जीरो टॉलरेंस पॉलिसी है. हम इन आरोपों को पूरी तरह निराधार मानते हैं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को पूरा सहयोग देंगे.

अब आप एक और घटना देखिए- दिल्ली यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स और एस्ट्रोफिजिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर अशोक कुमार के प्रोमोशन का इंटरव्यू था. अशोक बताते हैं-

"प्रोफेसर की प्रमोशन के लिए अप्लाई किया था, इंटरव्यू 2 जून को हुआ, तीन एक्सपर्ट्स थे साथ में वाइस चांसलर, हेड ऑफ डिपार्टमेंट कम डीन थे. इंटरव्यू में बहुत अच्छा माहौल नहीं था. इंटरव्यू काफी प्रेशर वाला था. मुझे ज्यादा परेशान किया और मेरा बहुत शॉर्ट इंटरव्यू हुआ 20 मिनट के करीब और उसमें मतलब एक्सपर्ट्स बहुत ज्यादा एक्साइटेड थे. इस दौरान डीन और वायसचांसलर के बीच में लगातार कुछ बात हो रही थी, जो मैंने सुना वो रिगार्डिंग कास्ट भी थी कि ये एससी कैंडिडेट है. हालांकि मेरी जो रिक्रूटमेंट है असिस्टेंट प्रोफेसर वो अनरिजर्व कैटेगरी में हुई थी. एससी का एंगल तब आता है जब आप कहीं डिस्कस कर रहे हैं. इंटरव्यू के दौरान इन चीजों को क्यों डिस्कस कर रहे थे."

डॉक्टर अशोक कुमार दिल्ली यूनिवर्सिटी के टॉप 10 साइंटिस्टों में 5 वे नंबर पर आते हैं. 17 साल से दिल्ली यूनिवर्सिटी में है. लेकिन जब प्रोमोशन के लिए इंटरव्यू हुआ तो इन्हे Not Found Suitable category में डाल दिया गया. आरोप है कि ये इसलिए हुआ क्योंकि ये दलित से आते हैं.

कुछ लोग कहेंगे कि ये एकाद दो घटनाएं हैं. ठीक है तो फिर साल दर साल दलितों के खिलाफ हिंसा की घटनाए बढ़ क्यों रही हैं. इसे तो घटना चाहिए ना?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की साल 2022 की रिपोर्ट से पता चलता है कि अनुसूचित जातियों (एससी) के खिलाफ अपराध के कुल 57,582 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 (50,900 मामले) की तुलना में 13.1% अधिक है.

एससी समाज से जुड़े लोगों के खिलाफ साल दर साल अपराध की घटनाएं

(फोटो- क्विंट हिंदी)

ये अपराध, ये सामाजिक भेदभाव तब ही मिटेगा जब हर क्षेत्र में diversity होगी. लेकिन अगर आप शिक्षा के क्षेत्र को ही देखें तो यहां आजादी के इतने सालों बाद भी एक बड़ा गैप है.

IIT से लेकर IIM में दलित-पिछड़ों की संख्या

सितंबर 2024 में अखिल भारतीय अन्य पिछड़ा वर्ग छात्र संघ (एआईओबीसीएसए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी किरण कुमार ने एक आरटीआई के जवाब में पाया था कि आईआईएम इंदौर में 97 प्रतिशत से अधिक faculty General Category or Unreserved Category के हैं. वहीं, अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों से जुड़े एक भी प्रोफेसर नहीं हैं. इसी तरह, Indian Institute of Technology (IIT) बॉम्बे में 91 प्रतिशत से अधिक फैक्लटी General or Unreserved Category के हैं. वहीं एसटी समुदाय से आने वाले फैकल्टी मेंबर सिर्फ 0.88 प्रतिशत हैं. यही नहीं, कम से कम सात आईआईटी में ST समाज से आने वाले शिक्षकों की संख्या कुल फैकल्टी के एक प्रतिशत से भी कम है.

सवाल यही है कि कब तक जाति नहीं होती है ये बोलकर सच से मुंह फेरते रहेंगे. कब तक जाति के नाम पर कभी हिंसा तो कभी शिक्षा के क्षेत्र में रुकावट खड़े किए जाएंगे.  

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