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"शहर में पढ़े लिखे लोग होते हैं, जाति में उतना विश्वास नहीं रखते हैं.."
"Caste is a western construct.."
"हमारे दलित भी दोस्त हैं, हम साथ में खाते पीते हैं.."
ये वो लाइन हैं जो जातीय भेदभाव और जाति की सच्चाई छिपाने के लिए लोग इस्तेमाल करते हैं.
लेकिन पिछले कुछ दिनों में भारत में जातीय भेदभाव यानी caste discrimination की कई घटनाएं सामने आई हैं. कहीं जाति की वजह से किसी का बाल काटकर उसे अपमानित किया जाता है, तो कहीं ठाकुरों के मोहल्ले से दलितों की बारात ले जाने पर हिंसा हो रही है. जनाब ऐसे कैसे के इस एपिसोड में हम कास्ट यानी जाति की बात करेंगे जिसे कुछ लोग western construct यानी अंग्रेजों की उपज कहकर नकार देते हैं, लेकिन असल में उसकी जड़ पढ़े-लिखे भारत में कितनी गहरी है वो जानना जरूरी है.
साल 1913, जनवरी का महीना था. विदेश में पढ़ाई कर भारत लौटे एक युवक को बड़ौदा सचिवालय में नौकरी मिली. लेकिन उन्हें कहीं छूना न पड़ जाए, इसलिए चपरासी दूर से उन्हें फाइल फेंक कर देते थे. उस युवक का नाम था भीम राव आंबेडकर. तब से लेकर अबतक 112 साल बीत गए, भारत आजाद हो गया, भारत ने दलित-आदिवासी राष्ट्रपति देख लिए. लेकिन फिर भी जाति जाती नहीं है. आप एक घटना देखिए-
इंडिगो एयरलाइन्स के एक 35 साल के ट्रेनी पायलट ने कथित तौर पर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें उन्होंने बताया है कि एयरलाइन के गुड़गांव स्थित कॉर्पोरेट ऑफिस में तीन सीनियर ऑफिसर ने जाति आधारित उत्पीड़न किया है. FIR में लिखा है- 28 अप्रैल को IndiGo के गुरुग्राम ऑफिस में हुई एक मीटिंग में उन्हें 30 मिनट तक जातिसूचक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा. मुझे कहा गया-
ट्रेनी पायलट का आरोप है कि यह मानसिक उत्पीड़न (Professional Victimisation) केवल अपमान तक सीमित नहीं था. सैलरी में कटौती, जबरन दोबारा ट्रेनिंग की धमकी और नौकरी छोड़ने पर मजबूर किया गया. उन्होंने इस मुद्दे को कंपनी के उच्चाधिकारियों और IndiGo Ethics Panel के समक्ष भी उठाया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
हालांकि कंपनी ने अपने बयान में कहा,
अब आप एक और घटना देखिए- दिल्ली यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स और एस्ट्रोफिजिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर अशोक कुमार के प्रोमोशन का इंटरव्यू था. अशोक बताते हैं-
डॉक्टर अशोक कुमार दिल्ली यूनिवर्सिटी के टॉप 10 साइंटिस्टों में 5 वे नंबर पर आते हैं. 17 साल से दिल्ली यूनिवर्सिटी में है. लेकिन जब प्रोमोशन के लिए इंटरव्यू हुआ तो इन्हे Not Found Suitable category में डाल दिया गया. आरोप है कि ये इसलिए हुआ क्योंकि ये दलित से आते हैं.
कुछ लोग कहेंगे कि ये एकाद दो घटनाएं हैं. ठीक है तो फिर साल दर साल दलितों के खिलाफ हिंसा की घटनाए बढ़ क्यों रही हैं. इसे तो घटना चाहिए ना?
एससी समाज से जुड़े लोगों के खिलाफ साल दर साल अपराध की घटनाएं
(फोटो- क्विंट हिंदी)
ये अपराध, ये सामाजिक भेदभाव तब ही मिटेगा जब हर क्षेत्र में diversity होगी. लेकिन अगर आप शिक्षा के क्षेत्र को ही देखें तो यहां आजादी के इतने सालों बाद भी एक बड़ा गैप है.
सवाल यही है कि कब तक जाति नहीं होती है ये बोलकर सच से मुंह फेरते रहेंगे. कब तक जाति के नाम पर कभी हिंसा तो कभी शिक्षा के क्षेत्र में रुकावट खड़े किए जाएंगे.