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बिहार में कितने घुसपैठिए हैं?
स्पेशल इंटेंसिव रिविजन यानी SIR के बाद चुनाव आयोग को बिहार में कितने अवैध विदेशी नागरिक मिले?
गृह मंत्री अमित शाह ने 27 सितंबर 2025 को बिहार के अररिया में एक विशाल रैली में राहुल गांधी की यात्रा को लेकर कहा था कि राहुल गांधी ने जो यात्रा निकाली थी, वह चुनाव आयोग द्वारा बिहार की मतदाता सूची से घुसपैठियों को बाहर करने के खिलाफ थी. उन्होंने इसे "घुसपैठिया बचाओ यात्रा" बताया और कहा कि कांग्रेस पार्टी घुसपैठिए मतदाता सूची में बने रहें, इसलिए यह यात्रा कर रही है.
अमित शाह ने जोर देकर कहा,
मीडिया की कवरेज और नेताओं के बयान से यही लग रहा होगा कि बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी SIR कराने के पीछे बड़ा मकसद बिहार में घुसपैठिए यानी अवैध रूप से रह रहे विदेशी वोटर्स को पकड़ना ही था. लेकिन ऐसा हुआ क्या? तीन महीने चला चुनाव आयोग का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन 30 सितंबर 2025 को खत्म हुआ. वोटर्स की फाइनल लिस्ट आई, लेकिन ये पता न चला कि SIR के दौरान कितने घुसपैठिए मिले. 6% यानी 47 लाख लोगों के नाम पुरानी वोटर लिस्ट से काटे गए लेकिन ये भी पता न चला कि इन 47 लाख लोगों के नाम किन किन वजहों से काटे गए. मतलब ये हुआ कि घुसपैठियों का मुद्दा बनाएंगे लेकिन संख्या नहीं बताएंगे.
24 जून 2025 को जब एसआईआर शुरू हुआ तब चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट जारी किया- उसमें एसआईआर क्यों किया जा रहा है इसके कारण बताए. उसमें से एक कारण था- विदेशी अवैध प्रवासियों यानी foreign illegal immigrants. नोट में लिखा था-
जब एसआईआर शुरू हुआ तब चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट जारी किया- उसमें एसआईआर क्यों किया जा रहा है
फोटो सोर्स- ELECTION COMMISSION OF INDIA
चुनाव आयोग ने 6 अक्टूबर की प्रेस कॉन्फ्रेंस में 2025 बिहार विधानसभा चुनाव का पूरा शेड्यूल घोषित कर दिया है. इस दौरान उन्होंने कहा,
पत्रकार ने फिर सवाल पूछा कि नाम क्यों काटे गए. चुनाव आयोग यह क्यों नहीं बता पा रहा है कि कितने लोगों के नाम नागरिकता साबित ना होने की वजह से काटे गए?
जवाब- फिर वही गोल-मोल. चीफ इलेक्शन कमिश्नर ने कहा कि जिले के डीएम यानी डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर के पास सारी जानकारी है.
मतलब साफ है इंडायरेक्ट तरीके से उन्होंने गेंद जिला अफसरों, यानी डीएम के पाले में डाल दी. इसके बाद हमने बिहार के कई जिलों के डीएम से बात करने की कोशिश की. इस दौरान दरभंगा के डीएम कौशल कुमार से बात हुई. जब उनसे घुसपैठियों की संख्या को लेकर पूछा गया, तो उन्होंने कहा "ये जानकारी कॉन्फिडेंशियल है, हम आपको नहीं बता सकते."
इसके बाद हमने मुंगेर के डीएम निखिल धनराज निप्पणीकर से भी बात की उन्होंने बताया-
अब आते हैं दूसरे और इम्पॉर्टेंट सवाल पर. SIR के फर्स्ट फेज के बाद ड्राफ्ट लिस्ट पब्लिश हुई थी तो आयोग ने डेथ और माइग्रेशन की वजह से कटे नामों की संख्या बताई थी, लेकिन जब SIR कम्पलीट हुआ और फाइनल लिस्ट जारी हुई तो डेथ, माइग्रेशन की वजह से कटे नामों की संख्या बताने की जरूरत नहीं समझी गई? आखिर चुनाव आयोग ने क्यों नहीं बताया कि पूरे प्रदेश में 47 लाख लोगों के नाम किन वजहों से काटे गए.
SIR से पहले डॉक्यूमेंट सबसे अहम मुद्दा था. अब चुनाव आयोग क्यों नहीं बताता कि कितने मतदाताओं के नाम डॉक्यूमेंट्स न दिखा पाने की वजह से काटे गए.
जिन लोगों के नाम कटे हैं उनकी लिस्ट कहां है? उन सबके नाम वोटर लिस्ट की तरह चुनाव आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए?
क्यों हर बार चुनाव आयोग से डेटा के लिए अदालत का रुख करना होता है. क्यों नहीं चुनाव आयोग खुद से ही ये जानकारी शेयर कर रहा है?
एसआईआर के बाद चुनाव आयोग ने बताया कि फॉर्म 6 के जरिए 21.53 लाख वोटर के नाम वोटर लिस्ट में जोड़े गए हैं.
Form-6 मतलब New Voters रेजिस्ट्रेशन के लिए Application Form. हालांकि जिन लोगों का नाम किसी वजह से ड्राफ्ट लिस्ट से कट गया था उनके लिए भी चुनाव आयोग ने फॉर्म 6 के जरिए दोबारा नाम जुड़वाने का ऑप्शन दिया था.
चुनाव आयोग ने जब बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान किया तब बताया कि बिहार में 14.1 लाख फर्स्ट टाइम वोटर हैं. तो फिर क्या माना जाए? 21.53 लाख - 14.1 लाख वोटर = 7 लाख वो लोग हैं जिनका गलत तरीके से या डॉक्यूमेंट्स नहीं जमा करने की वजह से नाम कट गया था और अब दोबारा वो लोग वोटर बन गए हैं?
24 जून को जब एसआईआर शुरू हुआ तब चुनाव आयोग ने 11 डॉक्यूमेंट्स में से किसी एक को enumeration form के साथ जमा करने की बात कही थी. तब आधार, राशन और वोटर आईडी कार्ड जैसे दस्तावेज़ों को नागरिकता साबित करने वाला डॉक्यूमेंट्स नहीं माना.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने आधार कार्ड को भी वैलिड डॉक्यीमेंट माना. अब यहां सवाल उठता है कि कितने लोगों के नाम आधार कार्ड की जरिए मतदाता सूची में शामिल किए गए?
जब एक पत्रकार ने ज्ञानेश कुमार ने आधार कार्ड को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा,
आपने घुसपैठिए और नाम कटने की वजहों के बाद आधार पर भी ज्ञानेश कुमार का जवाब सुना. क्या आपको स्पष्ट हुआ कि SIR में आधार को 12वां डॉक्युमेंट माना जाएगा या नहीं. इसके अलावा चुनाव आयोग को इस बात का भी स्पष्ट जवाब देना चाहिए कि SIR प्रोसेस में क्या लोगों को आधार कार्ड की वजह से जोड़ा गया है? अगर हां तो ऐसे लोगों की संख्या क्या है?
बिहार, एसआईआर का मास्टर प्रोजेक्ट था. ऐसे में चुनाव आयोग को गोलमोल घुमाने की बजाए टू द प्वाइंट जवाब देकर election process में ट्रांस्पैरेसी दिखाने की जरूरत थी. देश की सुरक्षा की नजर से भी चुनाव आयोग को बताना चाहिए कि बिहार में कितने घुसपैठिए मिले, 47 लाख लोगों के नाम क्यों और किस वजह से कटे, जिनके नाम कटे वो कौन हैं? नहीं तो जनता पूछेगी जनाब ऐसे कैसे?