Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Hindi Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Janab aise kaise  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019अंधेरे में दलित: बिहार के डोम समुदाय के लिए दिवाली का क्या मतलब है?

अंधेरे में दलित: बिहार के डोम समुदाय के लिए दिवाली का क्या मतलब है?

डोम समुदाय, दलितों में भी सबसे गरीब और हाशिए पर है.

शादाब मोइज़ी
जनाब ऐसे कैसे
Published:
<div class="paragraphs"><p><strong>बिहार के दरभंगा में रहने वाला डोम समुदाय, जो दलितों में भी सबसे गरीब और हाशिए पर है, आज भी अंधेरे में दीवाली मनाता है. यहां न बिजली है, न पक्के घर, न शौचालय</strong></p></div>
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बिहार के दरभंगा में रहने वाला डोम समुदाय, जो दलितों में भी सबसे गरीब और हाशिए पर है, आज भी अंधेरे में दीवाली मनाता है. यहां न बिजली है, न पक्के घर, न शौचालय

फोटो- क्विंट हिंदी

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बिहार के दरभंगा में रहने वाला डोम समुदाय, जो दलितों में भी सबसे गरीब और हाशिए पर है, आज भी अंधेरे में दीवाली मनाने को मजबूर है. दरभंगा के एक इलाके में दलितों की बस्ती है. जहां कई घरों में न बिजली है, न पक्के मकान, न शौचालय. ये वही ‘भूले-बिसरे नागरिक’ हैं जो देश के ‘विकास’ और ‘त्योहारों की रौशनी’ की चमक से बिल्कुल दूर हैं. सवाल यह है कि क्या डोम समुदाय की यह हकीकत हमें अब भी नहीं झकझोरती?

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जब पूरा देश दीयों और रोशनी से जगमगा रहा था, तब क्विंट की टीम दरभंगा की एक ऐसी बस्ती पहुंची जहां एक भी दिया नहीं जल रहा था. डोम समुदाय की इस बस्ती में 20 से ज्यादा घर हैं, लेकिन किसी घर में बिजली नहीं थी. दीवाली की रात, जब बाकी मोहल्लों में पटाखों की आवाजें और लाइटों की चमक थी, यहां सन्नाटा था, अंधेरा था.

यह अंधेरा सिर्फ बिजली के न होने का नहीं, बल्कि समाज और सरकार की उस बेरुखी का है जिसने इन्हें बुनियादी जरूरतों से भी महरूम रखा है.

त्योहार के दिन जहां हर घर में पकवान बनते हैं, वहीं डोम समुदाय की एक शख्स ने बताया —

हमारे घर में खाना दो दिन बाद बना है. कई बार पूरा परिवार बिना खाना खाए सो जाता है.

न बिजली है, न शौचालय

यहां शौचालय नहीं हैं, लोग अब भी रेलवे लाइन के पास खुले में शौच करने जाते हैं. एक युवक ने बताया कि उसे महीने के सिर्फ ₹7,500 मिलते हैं, जिससे पूरे परिवार का खर्च चलाना लगभग नामुमकिन है.

यह गरीबी और उपेक्षा सिर्फ एक परिवार या एक बस्ती की कहानी नहीं यह उस ‘नई रोशनी वाले भारत’ की सच्चाई है जहां विकास की रौशनी कुछ घरों तक ही सीमित रह गई है.

“जनाब, ऐसे कैसे?” इस एपिसोड में हम ये सवाल उठा रहे हैं कि क्यों अब तक डोम समुदाय जैसे सबसे पिछड़े दलित तबकों तक बिजली, घर और सम्मान नहीं पहुंच पाया?

क्यों इनके हिस्से सिर्फ अंधेरा और भूख ही आती है, जबकि कुछ ही दूरी पर करोड़ों की लाइटें जलती हैं?

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