'हम पीड़िता हैं या अपराधी?'

दाने-दाने को तरसती गुजरात की बालिका वधू

*पहचान छुपाने के लिए नाम बदले गए हैं

गौरा*, जो इस साल 18 साल की हो गईं, तीसरी बार प्रेगनेंट हैं.

नंगे पांव साड़ी के पल्लू से सिर को ढंके और अपने पेट पर हाथ रखे गौरा खावड़ा की आंगनबाड़ी की ओर इस महीने में तीसरी बार चल पड़ीं. खावड़ा गुजरात के कच्छ जिले में एक सुदूर गांव है.


गौरा ने कहा “घर में खाने वाले बहुत हैं और कमाने वाले सिर्फ दो. मेरी पड़ोसन रानी* ने मुझे बताया कि सरकार आंगनवाड़ी में प्रेग्नेंट महिलाओं और नई मांओं को मुफ्त में दाल और तेल दे रही है.”

"लेकिन मुझे वापस भेज दिया गया. मुझे कहा गया कि मैं इसकी पात्र नहीं हूं... उसके मोबाइल में कुछ खराबी होगी. उसको दिख नहीं रहा कि मैं प्रेग्नेंट हूं?"

गौरा को इस योजना का लाभ नहीं मिलने की असल वजह पता है, जिसे जून 2022 में मुख्यमंत्री मातृशक्ति योजना (MMY) नाम से शुरू किया गया था. उसका बाल विवाह हुआ था और MMY ऐप पर रजिस्ट्रेशन नहीं करा सकती है.

गांव की एक आंगनवाड़ी वर्कर हेतल* ने बताया कि "हम उसका ऐप पर रजिस्ट्रेशन नहीं कर सकते हैं. इसके लिए उसके आधार कार्ड के डिटेल्स की आवश्यकता होगी और यह उसे परेशानी में डाल देगा."

गौरा को इस योजना का लाभ नहीं मिलने की असल वजह पता है, जिसे जून 2022 में मुख्यमंत्री मातृशक्ति योजना (MMY) नाम से शुरू किया गया था. उसका बाल विवाह हुआ था और MMY ऐप पर रजिस्ट्रेशन नहीं करा सकती है.

गांव की एक आंगनवाड़ी वर्कर हेतल* ने बताया कि "हम उसका ऐप पर रजिस्ट्रेशन नहीं कर सकते हैं. इसके लिए उसके आधार कार्ड के डिटेल्स की आवश्यकता होगी और यह उसे परेशानी में डाल देगा."

इस योजना के तहत गुजरात में आंगनवाड़ी केंद्रों में गर्भवती महिलाओं और नई मांओं को दो किलो छोले, एक किलो अरहर की दाल और एक किलो खाद्य तेल मुफ्त में दिया जाता है. 800 करोड़ रुपये के बजट से शुरू की गई मुख्यमंत्री मातृशक्ति योजना के लिए गुजरात सरकार का दावा है कि इससे लगभग 1.36 लाख महिलाओं को लाभ होगा.


गौरा, यह जानने के बावजूद कि उसको राशन नहीं मिल पाएगा, अपने दिल में उम्मीद लिए हर कुछ दिनों में आंगनवाड़ी पहुंचती हैं. वह अकेली नहीं हैं जो इस योजना का लाभ नहीं उठा पा रही हैं.


हालिया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, गुजरात में 20 से 24 वर्ष की आयु की हर पांच महिलाओं में से एक की शादी 18 वर्ष से पहले हो चुकी थी, जो विवाह के लिए कानूनी उम्र है.

इसके अलावा, सर्वे के समय ग्रामीण क्षेत्रों में 15-19 आयु वर्ग की 6.7% विवाहित लड़कियां मां बन गयी थीं या गर्भवती थीं. जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 2.6% था.

यह ग्रामीण गुजरात में जी रहीं कई ऐसे गौरी की कहानी है, जिन्हें न केवल बाल विवाह के लिए मजबूर किया जाता है, बल्कि कम उम्र में प्रेग्नेंट भी कर दिया जाता है. यह स्थिति उन्हें इस स्वास्थ्य देखभाल और पोषण योजना का लाभ उठाने के अयोग्य बना देती है.

उम्र छुपाने की मजबूरी इलाज से दूर कर रही

नवंबर की एक गर्म दोपहरी क्विंट की मुलाकात 17 साल की देवी* से हुई, जो छह महीने की गर्भवती हैं. उसकी सास ने कहा "अभी तक, कोई समस्या नहीं आई है."

सिविल हॉस्पिटल उनके घर से केवल एक किलोमीटर दूर है, लेकिन देवी डॉक्टर के पास नहीं जा सकतीं. 

खावड़ा, जहां देवी रहती हैं, कच्छ जिले के भुज तालुका के कुछ ही ऐसे गांवों में से एक है जहां पर काम करता एक सिविल हॉस्पिटल है. खावड़ा सिविल हॉस्पिटल में दिनारा, रतादिया, गोदपार और धोरावर जैसे आसपास के गांवों के लोग इलाज के लिए आते हैं.

देवी के जेठ महेश* ने कहा, "चेक-अप के लिए सिविल हॉस्पिटल जाने का मतलब है कि सरकारी डॉक्टरों को उसकी (देवी की) उम्र बतानी होगी." उन्होंने आगे कहा "अगर कोई प्रॉब्लम होगी तो हम उसे भुज या अंजार के प्राइवेट हॉस्पिटल में ले जाएंगे."

हालांकि, प्राइवेट हॉस्पिटल में जाने का मतलब है कि खर्चा बढ़ेगा, जिसे उठा पाना कठिन है. इस नौ लोगों के परिवार में केवल देवी के पति और बहनोई ही कमाने वाले हैं. दोनों एक दिन में 250-300 रुपये कमाते हैं.

देवी के गांव में ही रहने वाले गौरा के परिवार को एक "समाधान" मिल गया है.

गौरा ने बताया कि "एक मान्यता प्राप्त आशा दीदी की मदद से, हमने एक 'ममता कार्ड' बनवा लिया है… मेरी पिछली प्रेग्नेंसी कठिन थी. तब मैं 14 साल की थी और समय से पहले डिलीवरी हो गयी. मेरा बच्चा 40 दिनों से अधिक एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती था. इसमें हमारे 2.5 लाख रुपये खर्च हुए और हम अभी भी कर्ज में हैं.  इस बार हमारे पास ममता कार्ड है.

तो, क्या है ममता कार्ड?

ममता कार्ड गुजरात सरकार का मां और शिशु के लिए प्रोटेक्शन कार्ड है. इसमें गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताएं और उनके बच्चे कब-कब हॉस्पिटल गए, कब चेकअप हुआ और कब टीकाकरण हुआ, इसका रिकॉर्ड रखा जाता है.

क्विंट ने गौरा का एक ममता कार्ड देखा जिसके मुताबिक नवंबर 2022 तक उसकी उम्र 21 साल है जबकि कार्ड की दूसरी कॉपी के अनुसार वह 26 साल की है. आधार कार्ड पर उसकी जन्म तिथि 8 जुलाई 2004 है और वह 18 साल की है.

आंगनबाड़ी वर्कर हेतल ने समझाया कि "कभी-कभी, आशा वर्कर को जो बताया जाता है उसके आधार पर वे ममता कार्ड बनाती हैं. कई लड़कियों के पास आधार कार्ड नहीं हैं. आशा वर्कर यह भी जानती हैं कि कभी-कभी ममता कार्ड पर उम्र गलत होती है लेकिन विकल्प क्या है?"

उन्होंने कहा कि ममता कार्ड के बिना, "इनमें से अधिकतर लड़कियों का इलाज नहीं हो पाएगा. वे डर के मारे सिविल हॉस्पिटल नहीं जाती हैं और प्राइवेट क्लीनिक का खर्च वे नहीं उठा पाएंगी"

हालांकि, ममता कार्ड से इन महिलाओं को MMY योजना के तहत मुफ्त राशन नहीं मिल सकता. हेतल ने बताया कि "उसके लिए, आपको आधार कार्ड नंबर की आवश्यकता है."

गुजरात में बाल वधुओं के आंकड़े भयावह हैं

बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार अगर यह साबित हो जाता है कि लड़की शादी के समय नाबालिग थी तो गौरा और देवी जैसी लड़कियों के माता-पिता और ससुराल वालों को दो साल की जेल की सजा या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.

गुजरात में भी 1964 से बाल विवाह के खिलाफ कानून है.

इसके बावजूद, हालिया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) बताता है कि कच्छ जिले में, 20 से 24 वर्ष की आयु की 19% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले कर दी गई थी.


इसी जिले में, सर्वे के समय 15 से 19 वर्ष की आयु की 5.7% लड़कियां पहले से ही मां बन गयी थीं या गर्भवती थीं.

पूरे ग्रामीण गुजरात में, यह आंकड़ा और भी अधिक था - 15-19 वर्ष की आयु वर्ग की 6.7% ग्रामीण लड़कियां पहले से ही मां बन गयी थीं या गर्भवती थीं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा केवल 2.6% था.

बच्ची, दुल्हन और मां: इंसान एक,

जिम्मेदारी कई

गौरा को अपने पहले दो बच्चों के जन्म या उनके बचपन के बारे में बहुत कम याद है - दोनों का जन्म तब हुआ जब वह खुद बालिग नहीं हुई थी.
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गौरा ने दोनों को सुलाते हुए कहा कि "एक चार साल का है और एक दो साल का है. सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि मुझे समझ ही नहीं आया कि मां होना क्या होता है."

इस बार, वह उम्मीद करती है कि यह अलग होगा.

गौरा को भी आसपास की कई लड़कियों की तरह स्कूल से उनकी मर्जी से पहले ही निकाल दिया गया था. गौरा केवल छठी क्लास तक पढ़ सकी हैं.

"मैं आगे पढ़ना चाहती थी. मैंने फैसला किया है कि मेरे बच्चे तभी शादी करेंगे जब वे चाहेंगे" गौरा ने यह तब भी कहा जब वह इस बात से पूरी तरह वाकिफ है कि इसकी संभावना बहुत कम है. यहां घर में फैसले मर्द और परिवार के बड़े लेते हैं. लड़कियों और महिलाओं की मर्जी का मोल कम है.

दूसरी तरफ देवी कभी स्कूल नहीं गई. उसने कहा कि "मुझे नहीं लगता कि मैंने बहुत कुछ मिस किया है. मेरी जिंदगी जैसी है, मैं उससे खुश हूं. बच्चे के जन्म के बाद, मेरे पति (राजेश*) और मैं पहाड़ों पर जाएंगे."

बुराई को जड़ से खत्म करना:

अधिकारी क्या कर रहे हैं?

क्विंट ने खावड़ा के सिविल हॉस्पिटल के मेडिकल ऑफिसर डॉ. रोहित भील से भी बात की. उन्होंने कहा, "शिक्षा यहां एक बड़ा मुद्दा है. लोग परिवार नियोजन के कॉन्सेप्ट को नहीं समझते हैं. दो बच्चों के बीच जरूरी गैप नहीं रखा जाता. ऐसी महिलाएं हैं जो प्रसव के छह से सात महीने के भीतर फिर से प्रेग्नेंट हो जाती हैं."

"ऐसा कई बार हुआ है महिलाओं ने अपनी छठी या सातवीं प्रेग्नेंसी के बाद, हमें अपने ससुराल वालों और पतियों को बच्चे के जन्म के बारे में संवेदनशील बनाने के लिए कहा है." डॉ. रोहित भील, मेडिकल ऑफिसर, खावड़ा सिविल हॉस्पिटल

2011 की जनगणना के अनुसार, खावड़ा की आबादी 4,000 से अधिक है और यह कच्छ में भुज उप-जिला का एक गांव है. भुज में पुरुष साक्षरता दर 80.83% है जबकि महिला साक्षरता दर केवल 65.08% है.

ग्राम सरपंच जेसुंगभाई पटेल ने कहा कि पंचायत भी समस्या से अवगत है और संबंधित समुदायों के साथ बातचीत शुरू करने की कोशिश कर रही है.

उन्होंने कहा कि "इस साल मार्च-अप्रैल में, हमने गांव में रहने वाले विभिन्न समुदायों के लोगों के साथ बैठकें कीं. हमने उन्हें बताया कि अब बाल विवाह करने वालों को दंडित किया जाएगा."

जेसुंगभाई  पटेल ने दावा किया कि उसके बाद से पंचायत में बाल विवाह का कोई मामला नहीं आया है.

दूसरी तरफ खावड़ा पुलिस थाने के हेड, सब-इंस्पेक्टर धर्मेंद्र सिंह वाघेला ने दावा किया कि उन्हें हाल में बाल विवाह के किसी भी मामले की जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा कि "ज्यादातर लोग हमारे पास चोरी या हादसे की शिकायत दर्ज कराने आते हैं. हम बाल विवाह की समस्या के बारे में कुछ नहीं जानते."

लेटेस्ट राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में पूरे गुजरात में बाल विवाह के केवल 12 मामले दर्ज किए गए हैं.

गांव के बाहरी इलाके में बसे गौरा और देवी के घर पुलिस थाने से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर हैं.

एक तरफ प्रशासन की आंख बंद है और दूसरी तरफ उनकी डिलीवरी की तारीख नजदीक आने के साथ ही उनका संघर्ष जारी है.


गौरा कहती है कि वह मुफ्त राशन मिलने की उम्मीद लिए आंगनबाड़ी का चक्कर काटती रहेंगी. दूसरी ओर देवी ने अपनी आंखों में पहाड़ों की यात्रा का सपना सजा रखा है.

क्रेडिट

रिपोर्टर
हिमांशी दहिया

ग्राफिक डिजाइनर
चेतन भकुनी

सीनियर एडिटर
सौम्या लखानी

क्रिएटिव एडिटर
मेघनाद बोस

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