Dear India,
मानस में तुम्हारी मूरत है, होठों पे तुम्हारे अफसाने
ऐ हुब्बे वतन कुर्बान तुझ पे, होते हैं जो ऐसे दीवाने
आजादी क्या शय है जिनका, चित्तौड़ के राणा से पूछो
जंगल की खाक भी छानी थी, खाने को न मिलते थे दाने
आसान नहीं कुर्बान होना, अधिकार नहीं सबको इसका
बलिदान वही बकरे होते, जाते हैं जो निर्दोषी माने
जय हिन्द!
उमेश कुमार सिंह

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