भारत में एक बार फिर नए सिरे से ई-सिगरेट या इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलीवरी सिस्टम (ENDS) को बढ़ावा देने का प्रयास हो रहा है.
31 मई को, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने भारत में ENDS पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए श्वेत पत्र जारी किया.
इसके जवाब में 62 ग्लोबल एक्सपर्ट्स और भारत में ENDS के व्यापार प्रतिनिधियों (TRENDS, वितरकों, आयातकों, ENDS के खुदरा विक्रेताओं का एक समूह) ने अब ICMR के रुख पर सवाल उठाया है.
साल 2000 की शुरुआत में भारत में ई-सिगरेट के शुरू होने के बाद से ही वैपिंग के फायदों को साबित करने और खारिज करने का एक लंबा इतिहास रहा है. अगस्त 2018 में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलीवरी सिस्टम (ENDS) के खिलाफ एक एडवाइजरी जारी की. इसमें निकोटिन को स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभावों के साथ ट्यूमर को बढ़ावा देने वाला बताया गया. इसके बाद भारत में 16 राज्यों में ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
मार्च में, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सभी दवा नियंत्रकों को अपने अधिकार क्षेत्र में ENDS के निर्माण, बिक्री, आयात और विज्ञापन की अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया. धूम्रपान के वैकल्पिक माध्यमों पर प्रतिबंध लगाना मोदी सरकार के 100 दिन के एजेंडे में है. दिल्ली हाईकोर्ट में 22 अगस्त को ई-सिगरेट पर प्रतिबंध के मामले के सुनवाई थी.
भारत में ई-सिगरेट पर पाबंदी लगनी चाहिए या नहीं?
1. ई-सिगरेट क्या है?
ई-सिगरेट बैटरी से चलने वाली डिवाइस है, जिसमें अलग-अलग मात्रा और सांद्रता (concentrations) में वाष्पीकृत (vaporized) निकोटिन होती है. हालांकि इसमें किसी भी ड्रग को डाला जा सकता है. ये आकार में कई तरह के होते हैं. ये पेन, रेगुलर सिगरेट और यहां तक कि यूएसबी ड्राइव की तरह आकर्षक और छोटे दिख सकते हैं.
ई-सिगरेट और सामान्य सिगरेट के बीच अंतर ये है कि ई-सिगरेट में तंबाकू और सामान्य सिगरेट में पाए जाने वाले कई दूसरे हानिकारक रसायन नहीं होते है.
यही वजह है कि इन्हें पारंपरिक धूम्रपान के कम खतरनाक विकल्प के रूप में देखा जाता है. इसे धूम्रपान करने वालों के बीच तंबाकू पर निर्भरता को कम करने के तरीके के रूप में भी देखा जाता है.
लेकिन स्टडीज का कहना है कि नियमित रूप से ई-सिगरेट पीना फायदे से ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है. 2015 में अमेरिका में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के रिसर्च के अनुसार, ई-सिगरेट पीने वाले 58.8 फीसदी लोग पूरी तरह से रेगुलर धूम्रपान नहीं छोड़ पाते हैं.
इसके अलावा, 2008 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा था कि ई-सिगरेट की मार्केटिंग धूम्रपान के एक सुरक्षित विकल्प के रूप में नहीं की जानी चाहिए क्योंकि इसका समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है.
Expand2. वेपिंग में बच्चों की दिलचस्पी, स्मोकर्स की एक नई पीढ़ी
वेपिंग के जोखिम में धूम्रपान करने वालों की एक पूरी नई पीढ़ी को अपनी जद में लाना शामिल है. यूएस के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने ई-सिगरेट के यूज को युवाओं के लिए महामारी बताया. 2018 में, FDA ने बताया कि मिडिल और हाई-स्कूल जाने वाले 36 लाख स्टूडेंट्स ई-सिगरेट का इस्तेमाल करते हैं. इनमें वे बच्चे शामिल थे, जिन्होंने पहले कभी धूम्रपान नहीं किया था.
इसके जोखिमों पर हाल ही में 20 अगस्त को रेडियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित स्टडी में निष्कर्ष निकला कि वेपिंग हमारे ब्लड वेसल्स के काम को अस्थायी रूप से प्रभावित कर सकती है. यह बात वेपिंग और दौरा पड़ना और दूसरी न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के बीच संबंध विषय पर जांच में सामने आई है. ये स्टडी 2010 और 2019 के बीच की गई. एफडीए को इस तरह की 127 रिपोर्ट्स मिले.
इसके अलावा, विशेष रूप से बिना-नियम के, ई-सिगरेट के लिक्विड को भी कस्टमाइज्ड और मिक्स किया जा सकता है. इसे अलग-अलग मात्रा में मिलाया जा सकता है. यह विशेष रूप से किशोरों और यंग यूजर्स के लिए हानिकारक है.
पब्लिक हेल्थ के लिए काम करने वाले संगठन वॉलेंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया से जुड़ी भावना मुखोपाध्याय कहती हैं, ‘ई-सिगरेट एक आकर्षक फॉर्मेट में सिर्फ निकोटिन पहुंचाने का एक सिस्टम है. इसकी मार्केटिंग एक कम नुकसान करने वाले प्रोडक्ट के रूप में की जा रही है, जो सच्चाई के उलट है क्योंकि ई-सिगरेट के हेल्थ रिस्क पारंपरिक सिगरेट के समान ही भयावह हैं. यंगस्टर्स को लुभाया जा रहा है क्योंकि यह आसानी से अलग-अलग फ्लेवर में उपलब्ध है.
Expand3. ई-सिगरेट पर भारत की स्थिति
बढ़ती वैश्विक लोकप्रियता के बीच, ई-सिगरेट की लहर भारत में आ रही है.
ई-सिगरेट के कथित लाभों में से एक है इसका ‘धूम्रपान खत्म करने वाले डिवाइस’ के रूप में उपयोग. हालांकि TRENDS के संयोजक प्रवीण रिखी ने कहा कि वे इसे 'धूम्रपान खत्म करने वाले उपकरण के रूप में दावा नहीं कर रहे हैं.'
हालांकि, एम्स के एडिक्शन साइकाइट्रिस्ट डॉ मोहित वार्ष्णेय ने दावा किया कि ई-सिगरेट धूम्रपान रोकने वाले दूसरे प्रोडक्ट्स जैसे च्यूंग गम की तुलना में दोगुना प्रभावी है.
विरोध करने वाले 62 एक्सपर्ट्स का तर्क ये है कि ई-सिगरेट पर प्रतिबंध इस विषय पर किसी भी दूसरे रिसर्च को रोक देगा और इस प्रोडक्ट को ब्लैक मार्केट में धकेल देगा.
इस मामले में स्थिति साफ करने के लिए हमने पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI) के डॉ गौरांग नैजर से बात की. डॉ नैजर कहते हैं कि वे ICMR के निर्णय के पक्ष में हैं. वो कहते हैं,
‘इसके अलावा, ई-सिगरेट का बड़ा खतरा युवाओं के लिए आकर्षण है. सामान्य सिगरेट पर उम्र की चेतावनी के बावजूद उन्हें सिगरेट से दूर रखना मुश्किल है. कोई भी पूरी तरह से खरीदार की उम्र को नहीं देखता है, इसलिए आप अधिक आकर्षक विकल्प क्यों पेश करेंगे?’
उन्होंने यह भी कहा कि रिसर्च जारी है और प्रतिबंध के बावजूद जारी रहेगा, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया खुद अपने स्तर पर रिसर्च कर रहा है.
उन्होंने कहा कि प्रोडक्ट के ब्लैक मार्केट में चले जाने की आशंका केवल अतिशयोक्तिपूर्ण है क्योंकि ‘भारत में ई-सिगरेट का उपयोग महज का 0.7% है. बाजार कई अन्य तंबाकू / निकोटिन प्रोडक्ट्स से भरा पड़ा है. निश्चित रूप से, प्रतिबंध होने पर इसमें बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन ऐसा होने के लिए ई-सिगरेट के बारे में जागरुकता अभी भी बहुत कम है.’
ENDS की पैरवी करने वालों का कहना है कि ध्यान रेगुलेशन पर होना चाहिए न कि प्रतिबंध लगाने पर.
इस बारे में डॉ नैजर कहते हैं, ‘पहले से मौजूद तंबाकू सिगरेट को रेगुलेट करना मुश्किल है. गुटखा पर प्रतिबंध था, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है.’
‘इसके अलावा, ई-सिगरेट का बड़ा खतरा युवाओं के लिए आकर्षण है. सामान्य सिगरेट पर उम्र की चेतावनी के बावजूद उन्हें सिगरेट से दूर रखना मुश्किल है. कोई भी पूरी तरह से खरीदार की उम्र को नहीं देखता है, इसलिए आप अधिक आकर्षक विकल्प क्यों पेश करेंगे?’
लेकिन TRENDS के एक प्रतिनिधि रिखी कहते हैं, "जो बच्चे सिगरेट पीना चाहते हैं, वे उसे कैसे भी हासिल करेंगे." जबकि डॉ वार्ष्णेय दोहराते हैं कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को सिगरेट बेचे जाने से रोकने के लिए ‘कड़ी सजा’ होना महत्वपूर्ण है.
लेकिन जैसा कि डॉ नैजर ने उल्लेख किया है, भारत में इम्पलिमेंटेशन और रेगुलेशन इतना आसान नहीं है.
Expand4. क्या ई-सिगरेट तंबाकू सिगरेट के मुकाबले कम खतरनाक है?
डॉ वार्ष्णेय ने कहते हैं, ‘ई-सिगरेट सामान्य सिगरेट की तुलना में 95% हेल्दी है.’
यह आंकड़ा पहली बार 2015 में ब्रिटिश जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन में पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (PHE) द्वारा किए गए एक स्टडी में रखा गया था, हालांकि द लांसेट ने इस दावे को खारिज किया था.
तंबाकू नियंत्रण में बिना किसी निर्धारित विशेषज्ञता वाले व्यक्तियों के एक छोटे समूह की राय नुकसान के साक्ष्य की पूरी अनुपलब्धता पर आधारित थी. PHE ने जो अपनी रिपोर्ट में संदेश और बड़ा निष्कर्ष दिया है, वह असाधारण रूप से कमजोर नींव पर आधारित है.
द लांसेटडॉ नैजर ने कहा, ‘ई-सिगरेट वास्तव में सामान्य सिगरेट की तुलना में कम हानिकारक है, लेकिन मैं इसके अधिक पक्ष में नहीं हूं. इसका स्वास्थ्य पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है. इस बात के सबूत हैं कि ई-सिगरेट का संबंध हृदय और सांस संबंधी बीमारियों से है."
उन्होंने कहा कि जो दावा किया जा रहा है कि यह एक धूम्रपान बंद करने की डिवाइस है, इसका आधार बहुत कमजोर है.
"कई विश्वसनीय शोध संस्थानों, जैसे यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया ने कहा है कि यह धूम्रपान रोकने वाले अन्य प्रोडक्ट की तरह प्रभावी नहीं है. ई-सिगरेट को धूम्रपान समाप्त करने वाले एक प्रभावी प्रोडक्ट के रूप में साबित करने के लिए, भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल द्वारा अप्रूव्ड उचित क्लिनिकल ट्रायल की आवश्यकता है. अभी हमारे पास पहले से ही निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी, धूम्रपान छुड़ाने के लिए टेस्टेड और प्रभावी दवा और बिहेवियरल थेरेपी उपलब्ध है.
मैक्स हॉस्पिटल्स में कैंसर केयर के चेयरमैन, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के निदेशक और मुख्य सलाहकार डॉ हरित चतुर्वेदी कहते हैं, ‘मैं तंबाकू खाने से होने वाले कैंसर से पीड़ित रोगियों का इलाज करता हूं. मैं देखता हूं कि तंबाकू इंडस्ट्री विशेष रूप से युवा पीढ़ी को लुभाने के लिए नए प्रोडक्ट लॉन्च कर रहा है. वर्तमान में, हम ENDS की नई चुनौती का सामना कर रहे हैं और चूंकि, इसे नुकसान कम करने वाले उपकरण के रूप में प्रचारित किए जा रहा है, इससे डॉक्टर बहुत चिंतित हैं. वास्तव में, ये नए निकोटिन प्रोडक्ट कंपनियों के लिए अपना लाभ बढ़ाने का एक और तरीका है. कंपनियों को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि लोगों के जीवन पर आजीवन निकोटिन की लत का क्या प्रभाव पड़ता है.
आखिर में डॉ नैजर कहते हैं कि पहले से ही बढ़ती हुई आबादी सिगरेट के लत की शिकार है. ऐसे में इस नए प्रोडक्ट को शुरू में ही रोक देना बेहतर (और इसकी उपयोगिता का क्लिनिकल ट्रायल और परीक्षण करना चाहिए) है. वर्तमान में इस प्रोडक्ट की व्यापकता कम है और हम जानते हैं कि यह खतरनाक है. इसलिए इसे प्रतिबंधित करना बेहतर है.
(At The Quint, we are answerable only to our audience. Play an active role in shaping our journalism by becoming a member. Because the truth is worth it.)
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ई-सिगरेट क्या है?
ई-सिगरेट बैटरी से चलने वाली डिवाइस है, जिसमें अलग-अलग मात्रा और सांद्रता (concentrations) में वाष्पीकृत (vaporized) निकोटिन होती है. हालांकि इसमें किसी भी ड्रग को डाला जा सकता है. ये आकार में कई तरह के होते हैं. ये पेन, रेगुलर सिगरेट और यहां तक कि यूएसबी ड्राइव की तरह आकर्षक और छोटे दिख सकते हैं.
ई-सिगरेट और सामान्य सिगरेट के बीच अंतर ये है कि ई-सिगरेट में तंबाकू और सामान्य सिगरेट में पाए जाने वाले कई दूसरे हानिकारक रसायन नहीं होते है.
यही वजह है कि इन्हें पारंपरिक धूम्रपान के कम खतरनाक विकल्प के रूप में देखा जाता है. इसे धूम्रपान करने वालों के बीच तंबाकू पर निर्भरता को कम करने के तरीके के रूप में भी देखा जाता है.
लेकिन स्टडीज का कहना है कि नियमित रूप से ई-सिगरेट पीना फायदे से ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है. 2015 में अमेरिका में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के रिसर्च के अनुसार, ई-सिगरेट पीने वाले 58.8 फीसदी लोग पूरी तरह से रेगुलर धूम्रपान नहीं छोड़ पाते हैं.
इसके अलावा, 2008 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा था कि ई-सिगरेट की मार्केटिंग धूम्रपान के एक सुरक्षित विकल्प के रूप में नहीं की जानी चाहिए क्योंकि इसका समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है.
वेपिंग में बच्चों की दिलचस्पी, स्मोकर्स की एक नई पीढ़ी
वेपिंग के जोखिम में धूम्रपान करने वालों की एक पूरी नई पीढ़ी को अपनी जद में लाना शामिल है. यूएस के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने ई-सिगरेट के यूज को युवाओं के लिए महामारी बताया. 2018 में, FDA ने बताया कि मिडिल और हाई-स्कूल जाने वाले 36 लाख स्टूडेंट्स ई-सिगरेट का इस्तेमाल करते हैं. इनमें वे बच्चे शामिल थे, जिन्होंने पहले कभी धूम्रपान नहीं किया था.
इसके जोखिमों पर हाल ही में 20 अगस्त को रेडियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित स्टडी में निष्कर्ष निकला कि वेपिंग हमारे ब्लड वेसल्स के काम को अस्थायी रूप से प्रभावित कर सकती है. यह बात वेपिंग और दौरा पड़ना और दूसरी न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के बीच संबंध विषय पर जांच में सामने आई है. ये स्टडी 2010 और 2019 के बीच की गई. एफडीए को इस तरह की 127 रिपोर्ट्स मिले.
इसके अलावा, विशेष रूप से बिना-नियम के, ई-सिगरेट के लिक्विड को भी कस्टमाइज्ड और मिक्स किया जा सकता है. इसे अलग-अलग मात्रा में मिलाया जा सकता है. यह विशेष रूप से किशोरों और यंग यूजर्स के लिए हानिकारक है.
पब्लिक हेल्थ के लिए काम करने वाले संगठन वॉलेंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया से जुड़ी भावना मुखोपाध्याय कहती हैं, ‘ई-सिगरेट एक आकर्षक फॉर्मेट में सिर्फ निकोटिन पहुंचाने का एक सिस्टम है. इसकी मार्केटिंग एक कम नुकसान करने वाले प्रोडक्ट के रूप में की जा रही है, जो सच्चाई के उलट है क्योंकि ई-सिगरेट के हेल्थ रिस्क पारंपरिक सिगरेट के समान ही भयावह हैं. यंगस्टर्स को लुभाया जा रहा है क्योंकि यह आसानी से अलग-अलग फ्लेवर में उपलब्ध है.
ई-सिगरेट पर भारत की स्थिति
बढ़ती वैश्विक लोकप्रियता के बीच, ई-सिगरेट की लहर भारत में आ रही है.
ई-सिगरेट के कथित लाभों में से एक है इसका ‘धूम्रपान खत्म करने वाले डिवाइस’ के रूप में उपयोग. हालांकि TRENDS के संयोजक प्रवीण रिखी ने कहा कि वे इसे 'धूम्रपान खत्म करने वाले उपकरण के रूप में दावा नहीं कर रहे हैं.'
हालांकि, एम्स के एडिक्शन साइकाइट्रिस्ट डॉ मोहित वार्ष्णेय ने दावा किया कि ई-सिगरेट धूम्रपान रोकने वाले दूसरे प्रोडक्ट्स जैसे च्यूंग गम की तुलना में दोगुना प्रभावी है.
विरोध करने वाले 62 एक्सपर्ट्स का तर्क ये है कि ई-सिगरेट पर प्रतिबंध इस विषय पर किसी भी दूसरे रिसर्च को रोक देगा और इस प्रोडक्ट को ब्लैक मार्केट में धकेल देगा.
इस मामले में स्थिति साफ करने के लिए हमने पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI) के डॉ गौरांग नैजर से बात की. डॉ नैजर कहते हैं कि वे ICMR के निर्णय के पक्ष में हैं. वो कहते हैं,
‘इसके अलावा, ई-सिगरेट का बड़ा खतरा युवाओं के लिए आकर्षण है. सामान्य सिगरेट पर उम्र की चेतावनी के बावजूद उन्हें सिगरेट से दूर रखना मुश्किल है. कोई भी पूरी तरह से खरीदार की उम्र को नहीं देखता है, इसलिए आप अधिक आकर्षक विकल्प क्यों पेश करेंगे?’
उन्होंने यह भी कहा कि रिसर्च जारी है और प्रतिबंध के बावजूद जारी रहेगा, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया खुद अपने स्तर पर रिसर्च कर रहा है.
उन्होंने कहा कि प्रोडक्ट के ब्लैक मार्केट में चले जाने की आशंका केवल अतिशयोक्तिपूर्ण है क्योंकि ‘भारत में ई-सिगरेट का उपयोग महज का 0.7% है. बाजार कई अन्य तंबाकू / निकोटिन प्रोडक्ट्स से भरा पड़ा है. निश्चित रूप से, प्रतिबंध होने पर इसमें बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन ऐसा होने के लिए ई-सिगरेट के बारे में जागरुकता अभी भी बहुत कम है.’
ENDS की पैरवी करने वालों का कहना है कि ध्यान रेगुलेशन पर होना चाहिए न कि प्रतिबंध लगाने पर.
इस बारे में डॉ नैजर कहते हैं, ‘पहले से मौजूद तंबाकू सिगरेट को रेगुलेट करना मुश्किल है. गुटखा पर प्रतिबंध था, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है.’
‘इसके अलावा, ई-सिगरेट का बड़ा खतरा युवाओं के लिए आकर्षण है. सामान्य सिगरेट पर उम्र की चेतावनी के बावजूद उन्हें सिगरेट से दूर रखना मुश्किल है. कोई भी पूरी तरह से खरीदार की उम्र को नहीं देखता है, इसलिए आप अधिक आकर्षक विकल्प क्यों पेश करेंगे?’
लेकिन TRENDS के एक प्रतिनिधि रिखी कहते हैं, "जो बच्चे सिगरेट पीना चाहते हैं, वे उसे कैसे भी हासिल करेंगे." जबकि डॉ वार्ष्णेय दोहराते हैं कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को सिगरेट बेचे जाने से रोकने के लिए ‘कड़ी सजा’ होना महत्वपूर्ण है.
लेकिन जैसा कि डॉ नैजर ने उल्लेख किया है, भारत में इम्पलिमेंटेशन और रेगुलेशन इतना आसान नहीं है.
क्या ई-सिगरेट तंबाकू सिगरेट के मुकाबले कम खतरनाक है?
डॉ वार्ष्णेय ने कहते हैं, ‘ई-सिगरेट सामान्य सिगरेट की तुलना में 95% हेल्दी है.’
यह आंकड़ा पहली बार 2015 में ब्रिटिश जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन में पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (PHE) द्वारा किए गए एक स्टडी में रखा गया था, हालांकि द लांसेट ने इस दावे को खारिज किया था.
तंबाकू नियंत्रण में बिना किसी निर्धारित विशेषज्ञता वाले व्यक्तियों के एक छोटे समूह की राय नुकसान के साक्ष्य की पूरी अनुपलब्धता पर आधारित थी. PHE ने जो अपनी रिपोर्ट में संदेश और बड़ा निष्कर्ष दिया है, वह असाधारण रूप से कमजोर नींव पर आधारित है.द लांसेट
डॉ नैजर ने कहा, ‘ई-सिगरेट वास्तव में सामान्य सिगरेट की तुलना में कम हानिकारक है, लेकिन मैं इसके अधिक पक्ष में नहीं हूं. इसका स्वास्थ्य पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है. इस बात के सबूत हैं कि ई-सिगरेट का संबंध हृदय और सांस संबंधी बीमारियों से है."
उन्होंने कहा कि जो दावा किया जा रहा है कि यह एक धूम्रपान बंद करने की डिवाइस है, इसका आधार बहुत कमजोर है.
"कई विश्वसनीय शोध संस्थानों, जैसे यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया ने कहा है कि यह धूम्रपान रोकने वाले अन्य प्रोडक्ट की तरह प्रभावी नहीं है. ई-सिगरेट को धूम्रपान समाप्त करने वाले एक प्रभावी प्रोडक्ट के रूप में साबित करने के लिए, भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल द्वारा अप्रूव्ड उचित क्लिनिकल ट्रायल की आवश्यकता है. अभी हमारे पास पहले से ही निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी, धूम्रपान छुड़ाने के लिए टेस्टेड और प्रभावी दवा और बिहेवियरल थेरेपी उपलब्ध है.
मैक्स हॉस्पिटल्स में कैंसर केयर के चेयरमैन, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के निदेशक और मुख्य सलाहकार डॉ हरित चतुर्वेदी कहते हैं, ‘मैं तंबाकू खाने से होने वाले कैंसर से पीड़ित रोगियों का इलाज करता हूं. मैं देखता हूं कि तंबाकू इंडस्ट्री विशेष रूप से युवा पीढ़ी को लुभाने के लिए नए प्रोडक्ट लॉन्च कर रहा है. वर्तमान में, हम ENDS की नई चुनौती का सामना कर रहे हैं और चूंकि, इसे नुकसान कम करने वाले उपकरण के रूप में प्रचारित किए जा रहा है, इससे डॉक्टर बहुत चिंतित हैं. वास्तव में, ये नए निकोटिन प्रोडक्ट कंपनियों के लिए अपना लाभ बढ़ाने का एक और तरीका है. कंपनियों को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि लोगों के जीवन पर आजीवन निकोटिन की लत का क्या प्रभाव पड़ता है.
आखिर में डॉ नैजर कहते हैं कि पहले से ही बढ़ती हुई आबादी सिगरेट के लत की शिकार है. ऐसे में इस नए प्रोडक्ट को शुरू में ही रोक देना बेहतर (और इसकी उपयोगिता का क्लिनिकल ट्रायल और परीक्षण करना चाहिए) है. वर्तमान में इस प्रोडक्ट की व्यापकता कम है और हम जानते हैं कि यह खतरनाक है. इसलिए इसे प्रतिबंधित करना बेहतर है.
(At The Quint, we are answerable only to our audience. Play an active role in shaping our journalism by becoming a member. Because the truth is worth it.)