पता नहीं क्या बात है तुम में, तुम्हारे साथ भावनाओं का तीर सीधा निशाने पर लगता है. मैं जो कहना चाहता हूं, सीधा सुनने वाले के कलेजे में उतर जाता है. ये रिश्ता तुम्हारा और मेरा जन्म से ही है. शुरुआत तोतली जुबान से हुई थी, याद तो होगा ही तुम्हें कैसे माँ को मामामा , पिता जी को पापापा कह-कह कर काफी टांग खिंचा करता था तुम्हारी. जब पढ़ाई की शुरुआत हुई तो तुमने पूरा बदला लिया मुझसे. जब मैंने तुम्हे छोटी इ समझा तो.
तुम बड़ी निकली और जब बड़ी ई समझा तो छोटी, कसम से कई बार तो तुम्हें छोड़ने का भी मन किया पर तब तक तुम इतना अंदर घुस चुकी थी कि छोड़ना मुमकिन न था. बचपन पूरा कर जब जवानी में कदम रखा तो सुना कि तुम आम जुबान हो चुकी हो, अगर कामयाब होना है तो दूसरी भाषा सीखनी पड़ेगी. डर कर जब दूसरी जुबान सीखने की कोशिश की तो विफल रहे पर तुमने कभी बुरा नहीं माना. शायद तुम्हें हमारे रिश्ते पर मुझसे ज्यादा भरोसा था. फिर मुझे समझ आया कि मेरी जिंदगी तो तुम्हारे साथ ही बीतेगी. तब से आज तक जब-जब मैं तुम्हारे साथ किसी भी मंच पर गया तो गौरव के साथ वापस लौटा हूं. जिंदगी के अलग –अलग पड़ावों पर तुमने मेरे व्यक्तित्व को निखारा है पर पिछले एक दश्क से तुम्हारी परिस्थिति देखकर बहुत उदास हो जाता हूं. जिस प्रकार समाज में विदेशी भाषाओं का चलन चला है लगता है मानो तुम कभी थी ही नहीं. पर डरो नहीं, कुछ लोग अब भी तुम्हें बचाने में लगे हुए हैं. कमाल की बात है ना कि अपने ही घर में तुम्हें बचाने की कोशिश की जा रही है. हिन्दी तुम भाषा नहीं हो तुम भावना हो,तुम आंगन की हँसी हो. तुम छायादार वृक्ष हो, तुम मां हो.
(This article was sent to The Quint by Mohit Mudgal for our Independence Day campaign, BOL – Love your Bhasha. Mohit is pursuing Journalism and Mass Communication from Sharda University, Greater Noida.
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