Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Dear India, कभी सोचा है, वो हमको क्यों लड़ाते हैं?

Dear India, कभी सोचा है, वो हमको क्यों लड़ाते हैं?

अभी लड़ रहे हो आपस मेंअपनों का खून बहा रहेन अंग्रेज रहे, न रहे मुगलतो किसके लिए धूल खा रहे
The Quint
Voices
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कभी सोचा है, जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते हैं?
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(Photo: The Quint)
कभी सोचा है, जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते हैं?
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कभी सोचा है, जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते हैं?
कभी सोचा है तुमने, इससे हम क्या खोते, क्या पाते हैं?

कभी महारों ने मराठाओं को हराया था
कभी राजपूतों ने मुगलों को घुटने पे लाया था
कभी सिकंदर को पोरस ने घर का रास्ता दिखाया था
कभी सूरजमल दिल्ली का दरवाजा उखाड़ लाया था

कभी किसी की हार का कारण बना था कोई
कभी धोखे की काली स्याही ने किसी वंश को कलंक लगाया था
कभी हारकर भी जीत गया था कोई
कभी किसी ने अपनी जान की बाजी लगाकर किसी को बचाया था

कभी जीत गया था कोई
कभी किसी ने किसी को हराया था
लेकिन इन सब में
मैंने-तुमने क्या खोया, क्या पाया था?

कभी सोचा है, जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते हैं?
कभी सोचा है तुमने, इससे हम क्या खोते, क्या पाते हैं?

अभी लड़ रहे हो आपस में
अपनों का खून बहा रहे
न अंग्रेज रहे, न रहे मुगल
तो किसके लिए धूल खा रहे

न तब मिला था कुछ तुम्हें
न अब मिलने वाला है
आपस में यूं लड़ने से
किसका भला होने वाला है

धर्म से महान नहीं बनता कोई
अपने कर्म से विशाल बनता है
लड़ने से कम होगी ताकत
लेकिन जुड़ने से बल मिलता है

कभी सोचा है, जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते हैं?
कभी सोचा है तुमने, इससे हम क्या खोते, क्या पाते हैं?

अपनी राजनीति को चमकाने
यह नेता तुमको बहका रहे
अपने भविष्य के लिए
तुमको यह बरगला रहे

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इस झगड़े में जली किसी की गाड़ी है
टूटे शीशे कितने घरों के, टूटी कितनी यारी है
किसके लिए उछाला था वह पत्थर
उस लाश पर आंसू बहा रही एक मौसी तुम्हारी है

इन नेताओं की बातों में मत आओ
फिर से धोखा खाओगे
जो एक हो जाओ सारे
तो अपनी ताकत बढ़ाओगे

कभी सोचा है जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते हैं?
कभी सोचा है तुमने, इससे हम क्या खोते, क्या पाते हैं?

न वह घर इनके हैं जो जल गए
न वह दुकान इनकी थी, जो लुट गई
न उजड़ा इनका सुहाग है
न हुए ये अनाथ हैं

अरबों की है संपत्ति इनकी
करोड़ों रुपया इनके पास है
आज भी गरीबी में पल रहे तुम
फिर भी इनसे आस है?

कभी सोचा है, जात के नाम पर वो हमको क्यों लड़ाते हैं?
कभी सोचा है तुमने, इससे हम क्या खोते, क्या पाते हैं?

अब भी वक्‍त है संभल जाओ
इनके बहकावे में मत आओ
हमारी एकता इनकी शामत है
एक-दूसरे का साथ ही हमारी ताकत है

डॉ. सुदीप डांगावास

(At The Quint, we are answerable only to our audience. Play an active role in shaping our journalism by becoming a member. Because the truth is worth it.)

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