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"तीसरी बार हमारा घर बिना नोटिस के तोड़ दिया गया. हम फिर से उजड़ गए. कुछ दिन बाद बेटी की शादी होने वाली थी, अब जाएं तो जाएं कहां?"
यह कहते हुए जमुनी देवी रो पड़ती हैं.
यह बिहार के नालंदा की वही दलित बस्ती है, जहां 26 नवंबर को बुलडोजर कार्रवाई हुई थी. ज्यादातर पासवान और मुसहर समुदाय के लोग यहां रहते हैं. रहुई प्रखंड के शिवनंदन नगर में हुई इस कार्रवाई ने पूरे मोहल्ले में डर फैला दिया है. हाई कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुए इस अभियान में प्रशासन ने 8 घरों के साथ कई झोपड़ियां और खपरैल मकान ढहा दिए, जबकि 100 परिवारों को अगली तारीख तक घर खाली करने का नोटिस पकड़ा दिया गया. हैरानी की बात यह है कि नोटिस पाने वाले लगभग 85 मकान पहले से प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने हुए हैं.
दरअसल 10 अक्टूबर 2025 को Sitaram Prasad vs. The State of Bihar & Ors. मामले की सुनवाई के दौरान पटना हाई कोर्ट ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को 8 सप्ताह में सार्वजनिक जमीन से अतिक्रमण हटाना होगा. अगर राज्य की किसी नीति में वैकल्पिक जमीन देने का प्रावधान है, तो उसे लागू किया जा सकता है, लेकिन तालाब जैसी सार्वजनिक जगहों पर अवैध कब्जे की अनुमति नहीं दी जाएगी.
यह मामला सोनसा (शिवनंदन नगर) गांव में 20 एकड़ के कलकल्या/बड़की पोखर पर अतिक्रमण हटाने और जलाशय बहाल करने से संबंधित है. जनहित याचिका सिताराम प्रसाद ने 2022 में दायर की थी.
बुलडोजर कार्रवाई की तस्वीर
फोटो: द क्विंट को प्राप्त
सुरज पासवान बताते हैं कि लगभग 30 साल पहले उन्हें इंदिरा आवास योजना (PM आवास योजना) के तहत घर मिला था. उस समय मिले 30 हजार रुपये जोड़कर उन्होंने घर बनाया था. उनका दावा है कि मोहल्ले में लगभग 85 घर इसी सरकारी योजना से बने हैं. मोहल्ले में मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के तहत सड़कों का निर्माण भी कराया गया है. यानी क्या वही जमीन, जिस पर अतिक्रमण बताया जा रहा है, सड़क निर्माण जैसी सरकारी परियोजना के लिए इस्तेमाल हुई?
मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के तहत निर्मित सड़क
फोटो: द क्विंट
इसी तरह, सुनीता देवी को फरवरी 2022 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर मिला था. लेकिन अब उन्हें भी अपना घर खाली करने का नोटिस मिला है. प्रशासन के इस रवैए से सुनीता काफी नाराज हैं. वह गुस्से में कहती हैं:
सुनीता देवी को PM आवास योजना के तहत मिले घर के डॉक्युमेंट्स और घर खाली करने का नोटिस.
द क्विंट को प्राप्त
राजकुमार पासवान बताते हैं, "हम लोग बहुत संघर्ष के बाद यहां आकर बसे थे. हम बेहद गरीब हैं, हमारे पास कोई जमीन नहीं है, नहीं तो उस समय यहां क्यों आते." राजकुमार को भी घर खाली करने का नोटिस थमा दिया गया है.
विजय पासवान ने द क्विंट को बताया कि दो दिन पहले नोटिस आया था, लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें विश्वास था कि इतने वर्षों से रहने के बाद शायद सरकार कोई रास्ता निकालेगी.
विजय का आरोप है कि घर गिराने के दौरान पुलिस ने पूरे मोहल्ले को पुलिस छावनी में बदल दिया था. लोग बेबस होकर अपने घरों को मलबे में बदलते सिर्फ देखते रह गए.
अब तक करीब 8 घर ढहाए जा चुके हैं और 100 लोगों के नाम घर खाली करने का नोटिस जारी किया गया है. स्थानीय लोगों का दावा है कि बाकी परिवारों को 5 तारीख तक खुद घर खाली करने का आदेश दिया गया है. पूरे मोहल्ले में डर का साया है और हर किसी को लगता है कि अगला नंबर उसी का है.
1989 से यहां रह रहे वीरेंद्र पासवान बताते हैं कि 20 तारीख को उनके घर की दीवार पर नोटिस चिपकाया गया. लेकिन डर की वजह से उन्होंने कार्रवाई से पहले ही मकान खाली कर दिया है और अब सर्दी में बच्चों के साथ टेंट में रह रहे हैं. वीरेंद्र पूछते हैं कि इतना साल यहीं बिताया, अब कहां जाएं?
परिवार के साथ टेंट में रहने को मजबूर वीरेंद्र पासवान
फोटो: द क्विंट
प्रशासन का दावा है कि अतिक्रमणकारियों में से 112 लोगों को अलग-अलग जगहों पर 2 डिसमिल जमीन का पर्चा दिया गया है. लेकिन जमीन मिलने की हकीकत बिल्कुल उलट दिखती है. संटू कुमार जैसे कई लोग कहते हैं कि उन्हें कोई पर्चा नहीं मिला. उनका पक्का मकान ढहा दिया गया और अब वे टेंट में रह रहे हैं. वे सवाल करते हैं—“जब कोई जमीन मिला ही नहीं, तो घर क्यों तोड़ दिया गया?”
जमुनी देवी की कहानी इस पूरी कार्रवाई की सबसे मार्मिक तस्वीर पेश करती है. दावा है कि उनका घर तीसरी बार तोड़ा गया है. जमुनी की बेटी छोटी कुमारी कहती हैं कि उनके पिता पुलिस विभाग में नौकरी करते थे और रिटायरमेंट का पैसा जोड़कर घर बनाया गया था.
छोटी कुमारी
फोटो: द क्विंट
नोटिस मिलने के बाद अधिकांश लोगों को डर है कि अगर उन्हें गैरमजरुआ जमीन (सरकारी भूमि) पर ही बसाया गया, तो भविष्य में सरकार दोबारा उसे खाली कराने का आदेश दे सकती है. इसी आशंका के चलते स्थानीय परिवारों की मांग है कि सरकार सभी परिवार को कम से कम 5 डिसमिल रैयती जमीन खरीदकर दे और वहां उनके लिए पक्का घर बनवाकर बसाए, ताकि उन्हें आगे फिर से बेदखली का सामना न करना पड़े.
प्रियंका देवी बताती हैं कि उनकी छोटी सास का घर भी बुलडोजर कार्रवाई में तोड़ दिया गया. फिलहाल पूरी परिवार एंकर घर में शरण लिए हुए है. प्रियंका कहती हैं कि जिस जमीन पर वे दशकों से रह रहे थे, वह गैरमजरूआ जमीन है—और अब सरकार पुनर्वास के नाम पर फिर से गैरमजरूआ जमीन का ही पर्चा दे रही है.
हालांकि रहुई के अंचल अधिकारी मनोज कुमार प्रसाद ने द क्विंट को बताया कि लोगों में “भ्रम की स्थिति” है. उनके मुताबिक गैरमजरूआ जमीन ही सरकार की जमीन होती है, और प्रशासन द्वारा पर्चा दिए जाने के बाद उन लोगों की रसीद काट दी जाएगी. अधिकारी का कहना है कि रसीद मिलने के बाद उन्हें दोबारा नहीं हटाया जाएगा.
इस मामले के प्रशासनिक और कानूनी पहलुओं से इतर, शिवनंदन नगर के लोग इसे जातीय संघर्ष से भी जोड़कर देख रहे हैं. उनका आरोप है कि पास के कुर्मी समुदाय के कुछ लोग लंबे समय से उन्हें इस इलाके से बेदखल करना चाहते थे, और इसी वजह से सीताराम प्रसाद द्वारा जनहित याचिका दायर की गई.
द क्विंट से राजकुमार पासवान बताते हैं कि 1970–80 के समय हमारे पूर्वज कई लड़ाइयों-झगड़ों के बाद यहां बसे थे, क्योंकि दूसरे समुदाय के लोग इस जमीन पर कब्जा करना चाहते थे. उसी दौरान पुलिस ने सुरक्षा के लिए यहां कैंप किया था और तभी हम लोगों को यहां बसाया गया था.
वहीं वीरेंद्र पासवान भी यही दावा करते हैं कि अतिक्रमण वाले स्थान से दलितों को हटाने के लिए सीताराम कुछ किसानों को अपने साथ मिलाकर कोर्ट तक मामला ले गए.
स्थानीय लोगों का कहना है कि तालाब पर अतिक्रमण हटाने की कवायद के पीछे न्यायिक आदेश तो है, लेकिन जमीन की राजनीति और जातीय तनाव भी उतनी ही मजबूती से काम कर रहे हैं.
अंचल अधिकारी मनोज कुमार प्रसाद के अनुसार 26 तारीख को 8 घरों पर बुलडोजर चलाया गया. इनमें कई लोग पुनर्वास योजना के पात्र नहीं हैं और कुछ पेंशनधारी भी हैं. बाकी तालाब की जमीन पर अतिक्रमण करने वाले 112 लोगों को 2 डिसमिल जमीन का पर्चा निर्गत किया जा चुका है, जिनमें से करीब 30 लोगों ने आवास योजना के लिए बीडीओ कार्यालय में आवेदन भी कर दिया है.
अधिकारी ने बताया कि 2023 में भी कोर्ट के ही आदेश पर 14 लोगों के घर तोड़कर हटाए गए थे. उन्होंने कहा की कोर्ट के आदेश पर हम आगे भी कार्रवाई करेंगे.