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नीतीश के पीछे 'MY' फैक्टर, 10 हजारी स्कीम... NDA की जीत के 5 सबसे बड़े कारण

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: NDA में BJP और JDU ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था.

मोहन कुमार
राजनीति
Published:
<div class="paragraphs"><p>बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे</p></div>
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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे

(फोटो: अरूप मिश्रा/ द क्विंट)

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"पच्चीस से तीस, फिर से नीतीश", ये वो नारा है जो फिलहाल बिहार की सच्चाई बनती जा रही है. जब-जब मीडिया और नेताओं ने नीतीश कुमार को कम आंका, तब-तब उनका कम बैक हाउस फुल शो में बदल जाता है. इस बार भी यही हुआ. अब तक के रुझानों में नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला है. सबको चौंकाते हुए जेडीयू के प्रदर्शन में भारी सुधार होता दिख रहा है.

एनडीए की इस जीत के पीछे एक अहम फैक्टर है 'MY'. हां 'MY'. ये लालू यादव के जमाने वाला 'MY' यानी मुस्लिम-यादव समीकरण नहीं है, बल्कि इस 'MY' का मतलब है 'महिला-युवा' फैक्टर. ऐसे ही कुछ और फैक्टर हैं जिनके सहारे 20 सालों से सत्ता में रहे नीतीश कुमार ने एंटी इनकंबेंसी को प्रो इनकंबेंसी में बदल दिया.

चलिए आपको बताते हैं कि वो पांच बड़े कारण, जिसकी वजह से एनडीए एक बार फिर बिहार की सत्ता पर काबिज होने जा रही है.

महिलाओं के लिए 'दसहजरिया' स्कीम बना संजीवनी

बिहार में महिला वोटर्स एक बार फिर नीतीश कुमार के लिए संजीवनी साबित हुई हैं. 'दसहजरिया' स्कीम एनडीए के लिए सबसे बड़ा विनिंग फैक्टर साबित हुआ है.

अपने करीब दो दशक के कार्यकाल में नीतीश कुमार ने बिहार में महिला सशक्तीकरण से जुड़ी कई योजनाएं शुरू की हैं. चुनाव से ठीक पहले सितंबर महीने में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना शुरू की थी और पूरे बिहार में महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपए ट्रांसफर किए गए थे. यहां तक कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद भी 10-10 हजार रुपए ट्रांसफर किए गए.

चुनावों में इसका सीधा लाभ एनडीए को मिलता दिख रहा है. इस बार के चुनाव में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान 8.15 फीसदी ज्यादा रहा है. वोटिंग में पुरुषों की हिस्सेदारी 62.98% रही, जबकि 71.78 फीसदी महिलाओं ने वोट किया.

बिहार में 3.51 करोड़ महिला वोटर हैं और 3.93 करोड़ पुरुष वोटर और कुल मतदाताओं की तादाद 7.45 करोड़ है. इस बार बिहार में 67.13 फीसदी मतदान हुआ जो कि पिछले विधानसभा चुनाव से 9.6% ज्यादा है.

शराबबंदी हो या फिर पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं को 50% आरक्षण, नीतीश कुमार के लिए ये फैसले चुनावी जीत के बड़े फैक्टर रहे हैं.

सोशल स्कीम और चुनाव से पहले की घोषणाएं

चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार ने प्रदेश के 1.67 करोड़ उपभोक्ताओं को 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा की थी. सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के तहत एक करोड़ 11 लाख लोगों को मिल रही पेंशन की राशि 400 रुपये से बढ़ाकर 1100 रुपये कर दिया था.

इसके अलावा, युवाओं पर फोकस करते हुए नीतीश सरकार ने ‘मुख्यमंत्री प्रतिज्ञा’ योजना का ऐलान किया था. जिसके तहत तीन अलग-अलग श्रेणियों में युवाओं को 4000, 5000 और 6000 रुपये देने का ऐलान किया था.

चुनाव से पहले नीतीश ने दावा किया था कि 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी और लगभग 39 लाख लोगों को रोजगार दिया जा चुका है.

सीधे तौर पर इन घोषणाओं से एनडीए को फायदा होता दिख रहा है. गठबंधन ने घोषणापत्र में अगले पांच सालों में यानी 2025 से 2030 तक बिहार के एक करोड़ युवाओं को सरकारी नौकरी और रोजगार देने का भी वादा किया है.

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सामाजिक समीकरण साधने में कामयाब रही NDA

एनडीए में कुल पांच पार्टियां हैं. बीजेपी, जेडीयू, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा. अगर सामाजिक समीकरण की बात करें तो चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाह की वापसी से सत्तारूढ़ गठबंधन को मजबूती मिली है, जो रुझानों में भी झलक रहा है.

2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए (37.26%) और महागठबंधन (37.23%) के वोट शेयर में मामूली अंतर था. चिराग पासवान के अकेले चुनाव लड़ने से जेडीयू को बड़ा नुकसान हुआ था. पार्टी सिर्फ 43 सीट ही जीत पाई थी. चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) ने पिछली बार 7% फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए थे. इन दोनों पार्टियों के साथ आने से पासवान और कुशवाहा वोटर्स एनडीए फोल्ड में आए हैं.

वहीं उम्मीदवारों के चयन में भी एनडीए ने सोशल इंजीनियरिंग का भी खास ख्याल रखा. 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही बीजेपी ने सबसे ज्यादा 48 फीसदी सवर्ण उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. सवर्णों को बीजेपी वोटर माना जाता है. दूसरी तरफ जेडीयू ने पिछड़ा और अतिपिछड़ा वोटर्स पर फोकस करते हुए 58 फीसदी कैंडिडेट्स को टिकट दिया.

महागठबंधन के मुकाबले NDA में एकजुटता देखने को मिली. सीट शेयरिंग को लेकर एनडीए में कोई खास मतभेद नहीं रहा. इसके साथ ही एनडीए के घटक दल अपने-अपने बागियों को भी साधने में कामयाब रहे.

'जंगलराज' नैरेटिव सेट करने में NDA सफल

एनडीए, आरजेडी के खिलाफ 'जंगलराज' का नैरेटिव सेट करने में कामयाब रहा. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रैलियों में लालू यादव और राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री कार्यकाल की कड़वी यादें ताजा करवाईं. एक रैली में उन्होंने कहा कि पंद्रह साल के जंगलराज में बिहार में जीरो विकास हुआ है. वहीं उन्होंने दस हजार कैश ट्रांसफर का बार-बार जिक्र किया.

पीएम मोदी सहित बीजेपी के नेताओं ने बिहार के मतदाताओं में यह कहकर डर पैदा कर दिया कि अगर महागठबंधन सत्ता में आया तो प्रदेश में अराजकता के दिन लौट आएंगे. बीजेपी के प्रचार तंत्र ने सोशल मीडिया पर 'जंगल राज' का खूब प्रचार किया.

दूसरी तरफ महागठबंधन इसका काट ढूंढ़ने में नाकाम रही. तेजस्वी ने प्रदेश के हर परिवार को एक सरकारी नौकरी, माई-बहिन योजना सहित कई चुनावी वादे किए, लेकिन जनता इनपर भरोसा नहीं कर पाई.

नीतीश पर भरोसा- मोदी का साथ

सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए सबसे बड़ा फायदा खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साबित हुए हैं. बिहार में नीतीश 'सुशासन' के पर्याय कहे जाते हैं. 20 साल की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद नीतीश अपनी योजनाओं और चुनावी सौगातों के जरिए वोटर्स के बीच पैठ बनाने में कामयाब रहे. कोइरी-कुर्मी कोर वोटर्स के साथ-साथ नीतीश को EBC और महादलितों का भी साथ मिलता दिख रहा है.

स्वास्थ्य को लेकर विपक्ष के सवालों के बावजूद नीतीश एनडीए की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने 84 चुनावी रैलियों में भाग लिया, जो तेजस्वी से सिर्फ एक कम है.

अब तक रुझानों के मुताबिक, बिहार में 'मोदी मैजिक' चलता दिख रहा है. प्रधानमंत्री ने प्रदेश में 14 रैलियों को संबोधित किया और दो रोड शो किया था. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनती दिख रही है. जो दर्शाता है कि बिहार की जनता को 'डबल इंजन' सरकार पंसद है.

चुनाव आयोग के दोपहर 2 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी 101 में से 91 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. पिछली बार के मुकाबले पार्टी के वोट शेयर में भी हल्का इजाफा हुआ है.

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